RE: Hindi Porn Story चीखती रूहें
"नहीं मोस्सीओ....." उस ने हाथ उठा कर कहा "डरने की ज़रूरत नहीं. ये रिवॉल्वार नकली है."
"ओह्ह....सत्यानाश हो....." पागल सा अजनबी दाँत पीस कर बोला. "सारा रोमांच चौपट कर के रख दी."
"मैं सच कहती हूँ कि अब तुम्हें पागल-खाने ही पहुँचा कर दम लूँगी." औरत ने हाथ हिला कर गुस्से से कहा.
"मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो." अजनबी हलक फाड़ कर चीखा.
इतनी देर मे इमरान भी छलान्ग लगा कर दूसरे किनारे पर पहुँच चुका था. सफदार जहाँ था वहीं खड़ा रहा.
"कुच्छ भी हो ये पोलीस केस है मेडम." इमरान ने कहा.
"ओह्ह....आइ आम सॉरी मोस्सीओ...आप को तकलीफ़ हुई. लेकिन ये केवल मज़ाक से अधिक नहीं था. विश्वास कीजिए."
"मैं नहीं समझा."
"इस पर हीरो बनने का पागलपन सवार है. कहता है मैं बिल्कुल टेक्सस के जंगालियों की तरह लूट-मार कर सकता हूँ."
"मैं कहता हूँ चली जाओ यहाँ से." अजनबी फिर चीखा.
"तुम चुप चाप मेरे साथ चलोगे." औरत ने गुस्से से कहा.
"क्या मैं आप की कोई मदद कर सकता हूँ मेडम?"
"थॅंक यू मोस्सीओ...मैं इसे घर ले जाना चाहती हूँ. डर है कि कहीं इसे पोलीस ना पकड़ ले."
अजनबी ने बिल्कुल फिल्मी स्टाइल मे ठहाका लगाया और कहा...."हह....पोलीस. पोलीस के सामने मिकेल द लटोशे का नाम ले लो और
देखो कैसे उन के हाथों के तोते उड़ते हैं. पोलीस साधारण चीटियों से की तरह रेंगने वाले कीड़े......हहह...."
"चुप चाप घर चलो दोस्त.....वरना मैं तुम्हें पीठ पर लाद कर ले जाउन्गा." इमरान ने कहा,
"चलो मिकेल..." औरत बोली.
"अर्रे....दफ़ा हो जाओ. मैं बिगड़ा हुआ घोड़ा नहीं हूँ कि सुधर जाउन्गा. आदमी हूँ और आदमी को समझाना बहुत कठिन होता है. मैं जो कुच्छ भी करता हूँ उस के पिछे एक बहुत बड़ी फिलॉसोफी है. तुम एक मछुवारे की बेटी हो. जाओ यहाँ से. तुम्हारे शरीर से मछलियो की गंध आती है."
"तुम अपना हुलिया देखो. खबीस कहीं के." औरत झल्लाई.
"मेहनत-कश लोग ऐसे ही होते हैं जैसे मैं हूँ.....यानी मिकेल द लटोशे."
अचानक इमरान ने उसके हाथ से रिवॉल्वार झपट लिया......और वो लड़खड़ाता हुआ दो चार कदम पीछे हट गया.
"अपने हाथ उपर उठाओ." इमरान ने गरज कर कहा......और अजनबी के हाथ सच मूच उपर उठ गये.
"तू ने मुझे तबाह कर दिया." अजनबी औरत की तरफ देख कर बड़बड़ाया.
"हां......आप आगे चलिए मेडम." इमरान ने कहा और फिर अजनबी से बोला."तुम पिछे चलो. मूड कर देखा......और मैं ने ट्रिगर दबाया.....समझे."
औरत मुस्कुराइ और झाड़ियों मे मूड गयी. अजनबी दोनों हाथ उपर उठाए उस के पिछे था. इमरान ने सफदार से हिन्दी मे कहा "तुम फल
ले जाओ.....मैं कुच्छ देर बाद आउन्गा. मगर तुम मे से कोई अपनी जगह से ना हिले."
अजनबी चुप चाप हाथ उठाए चलता रहा. औरत आगे थी. इमरान ने रिवॉल्वार को सच मूच नकली ही पाया.....जिस मे धमाका पैदा करने वाले हार्मलेस कारतूस लगे हुए थे.
ज़रूरी नहीं था कि इमरान इस मामले मे इतनी दिलचस्पी लेता. लेकिन उसे अपने और अपने साथियों के पेट भी तो पालना था. इस के लिए कुच्छ ना कुच्छ तो करना ही पड़ता.
वो थोड़ी देर खामोशी से चलता रहा और फिर औरत से पुछा...."ये आप के कॉन हैं मेडम?"
"ये ना पुछिये मोस्सीओ....मुझे दुख होता है जब कोई मिकेल के बारे मे बात करता है. ये मेरा पति है."
"ओववव......" इमरान ने सीटी बजाने के ढंग से होन्ट सिकोडे और अचानक अजनबी बोल पड़ा......"शादी कर के मैं ने अपने पैरो पर
खुद कुल्हाड़ी मारी थी. इस से अधिक रोमॅन्सलेस चीज़ दुनिया मे कोई हैं ही नहीं. लानत है मुझ पर."
औरत चलते चलते रुक कर मूडी......और इमरान ने उसे गोर से देखा. उमर 25 से अधिक नहीं रही होगी. रंगत भी निखरी हुई थी. लेकिन आँखें.......अगर आँखें भी ऑर्डर मे होतीं तो उसे हर हाल मे सुंदर कहा जा सकता था. आँखें कुच्छ इस ढंग से भेंगी थीं कि वो एक साथ
दो अलग अलग दिशाओं मे देखती हुई लगती थी. उस के रुकते ही मिकेल भी रुक गया. फिर इमरान क्यों ना रुकता.
"क्या कहा तुम ने?" औरत आँखें निकाल कर बोली......और उस के चेहरे की वीरानी कुच्छ और बढ़ गयी थी.
"मैं ने ठीक कहा. ये शादी एक मजबूरी थी. अगर मेरा बाप तुम्हारे बाप का कर्ज़दार ना होता."
"बकवास बंद करो...." औरत दहाडी.
"मेडम.....मेरा ख़याल है कि आप चलती ही रहिए......वरना ये घर कभी नहीं पहुँच सकेगा." इमरान बोला.
औरत कुच्छ पल अजनबी को घूरती रही फिर आगे बढ़ गयी.
इमरान ने अजनबी से भी चलने को कहा.
लगभग आधे घंटे के बाद वो साहिल की एक ऐसी बस्ती मे पहुँचे जो छोटे छोटे झोंपड़ो से बनी थी. जिस के बीच मे एक बड़ा सा मकान था. हलाकी उस मकान की छत भी फूस की ही थी.....लेकिन दीवारें पत्थर के टुकड़ों को जोड़ कर बनाई गयी थीं. मकान के चारों तरफ हरी
भरी क्यारियाँ थीं जिन का फैलाओ दूर तक था और मकान के साथ एक्सट्रा ज़मीन की घेरा बंदी लकड़ी के लटठों से की गयी थी. कॉंपाउंड
मे प्रवेश होते ही इमरान ने रिवॉल्वार को जेब मे डाल लिया था.
मेन गेट के पास पहुँच कर औरत रुक गयी. उस ने इमरान से कहा...."अब प्लीज़ मेरी मदद करें ताकि मैं इसे कमरे मे बंद कर सकूँ. इस समय यहाँ कोई नहीं. सब नावों पर होंगे.
"मैं इस ज़ुल्म के खिलाफ प्रोटेस्ट करता हूँ." मिकेल ने हाथ उठा कर कहा.....और फिर वो ज़मीन पर बैठ गया.
"उठो मिकेल....मैं जो कुच्छ कर रही हूँ उसी मे तेरी भलाई है. पिच्छली बार पापा ने तुम्हें किस बुरी तरह पीटा था. तुम्हें याद है ना?"
"आज उस से कहो कि मुझे मार ही डाले. मैं तो नहीं उठुन्गा."
"मोस्सीओ प्लीज़....." औरत इमरान से संबोधित हुई......और इमरान मिकेल से बोला "मोस्सीओ मिकेल.....मैं आप से निवेदन करता हूँ
कि कृपया उठ जाइए. मुझे इस बात पर विवश मत कीजिए की मैं आप को उठाने का प्रयास करूँ और असफल हो जाउ."
औरत उसकी अनोखी याचना और धमकी पर मुस्कुरा दी लेकिन तुरंत ही सम्भल कर माथे पर लकीरें डाल ली.
(जारी)
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