RE: Hindi Porn Story चीखती रूहें
जूलीया ने सफदार के लाए हुए किसी तरह गले से नीचे उतारे थे और झरने का ठंडा पानी पी कर दिल ही दिल मे इमरान को कोसने लगी थी.
जोसेफ एक तरफ उकड़ू बैठा उंघ रहा था. सफदार ने कुच्छ फल उसकी तरफ भी बढ़ाए.
"नहीं मिसटर......." जोसेफ सर हिला कर बोला..."कों जाने ये फल मुझे ज़िंदा रखने के लिए पर्याप्त ही हो....."
उसके स्वर मे निराशा थी क्योंकि उसे पिच्छले दिन से शराब का एक घूँट भी नसीब नहीं हुआ था. उन्हें उसके लिए चिंता थी. सफदार के विचार से शराब ही उसे काम का आदमी बनाती थी......वरना वो तो बस एक तरह सामान बन कर रह जाता था जिसे सूट-केसो की तरह उठाते फ़िरो.
अचानक जोसेफ ने इमरान के बारे मे पुछा. और जब उसे बताया गया कि वो किसी के साथ अकेले गया है तो वो उच्छल कर खड़ा हो गया.
"मैं नहीं समझ सकता कि तुम ने उन्हें अकेले जाने क्यों दिया?" जोसेफ अपनी आँखें फाड़ने की कोशिश करता हुआ बोला......जो नींद
के दबाब से बोझल होती जा रही थीं.
"क्यों....?" सफदार ने उसे घूरते हुए पुछा.
"मैं इसे ठीक नहीं समझता कि जंगल मे उन्हें अकेला छोड़ा जाए. बताओ वो किधर गये हैं?"
"खुद तलाश कर लो जा कर...." सफदार ने लापरवाही से कहा.
"आए......तुम कैसी उल्टी सीधी बातें कर रहे हो?" जोसेफ ने झुरजुरी सी ली. अंदाज़ बिल्कुल किसी लड़ाके मुर्गे ही का सा था.
जूलीया झपट कर बीच मे आई.
"अरे.......क्या तुम लड़ने का इरादा किए हो? दिमाग़ तो नहीं खराब हो गया?" उस ने बारी बारी से दोनों को घूरते हुए कहा.
"मिसी.......तुम हट जाओ. ये जंगल ऐसा नहीं है कि किसी को अकेला छोड़ा जाए. मैं कहता हूँ अगर बॉस का बाल भी बाका हुआ तो मैं मिसटर सफदार से समझ लूँगा."
"क्या बकवास कर रहे हो?" सफदार आँखें निकाल कर दहाड़ा.
"देख ही लोगे..." जोसेफ ने कहा और मूड कर गुफा के मूह की तरफ देखने लगा.
फिर जोसेफ राइफ़ल उठाने के लिए झुका ही था कि जूलीया ने कहा....."क्यों....? क्या तुम जा रहे हो?"
"हां....मैं जाउन्गा...."
"नहीं.....ये तुम्हारे बॉस का आदेश है......यहीं ठहरो."
"जंगल मे बॉस का ये हुक्म नहीं मान सकता. तुम लोग क्या जानो कि जंगल किसे कहते हैं?"
"जाने दो...." सफदार बोला...."जहन्नुम मे जाए."
जोसेफ राइफ़ल संभालता हुआ गुफा के दरवाज़े से बाहर आया. उसका मस्तिष्क उसके काबू मे नहीं था. फिर भी वो कोशिश कर रहा था की उसके कदम ज़मीन पर मज़बूती से पड़ें.
लेकिन वो जैसे ही गुफा से बाहर आया......उसके सर पर किसी ने कोई भारी चीज़ पूरी ताक़त से मारी......और उस की आँखों मे तारे से नाच उठे. वो लड़खड़ाया लेकिन सम्भल गया और फिर उसे हमलावर दिखाई दिए जो काई थे. जोसेफ ने उन्हें देख कर आँखें फाडी और
अचानक गुस्से ने उस की खोपड़ी उलट दी. उधर वो उस पर झपते ही थे कि जोसेफ ने राइफ़ल की नाल इस ढंग से संभाली जैसे डंडा पकड़ते हैं और दूसरे ही पल राइफ़ल का कुण्डा एक हमलावर की कमर पर पड़ा.
इसके बात फिर तो जानवरों जैसी जंग शुरू हो गयी. सफदार और चौहान भी बाहर निकल आए. लेकिन वो कुच्छ ऐसे बद-हवास हो गये थे कि खुद भी राइफलें संभाल कर जोसेफ ही की तरह हमलावरों पर टूट पड़े. हलाकी होना ये चाहिए था कि वो फाइयर करने की धमकी देते और इस लड़ाई की समाप्ति हो जाती. इस तरह वो खुद भी इस बेतुकी कसरत से बच जाते.
हमलावरों मे से केवल एक के हाथ मे एक मोटा सा डंडा था. बाकी निहत्थे थे. लेकिन ये ज़रूरी नहीं था कि उन के पास रिवॉल्वार या चाकू ना रहे हों. ये और बात है की उन्हें उसके इस्तेमाल का मौका ही नहीं पाया होगा. आख़िर वो भाग निकले.
जोसेफ के सर से खून बह रहा था. लेकिन उस की हालत अब इतनी खराब नहीं लग रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे उस से अधिक फुर्तीला और चाक-चौबंद आदमी आज तक देखा नहीं गया हो.
"चलो यहाँ से." वो किसी ज़ख़्मी जानवर की तरह दाँत निकाल कर बोला. "उन्हें अब हमारे ठिकाने का पता चल चुका है."
उन्होने बड़ी जल्दी मे अपना सामान समेटा और एक तरफ झाड़ियों मे घुस पड़े. जूलीया ने जोसेफ को उसके ज़ख़्म की तरफ ध्यान दिलाया लेकिन उस ने कहा......"चिंता मत करो मिसी.....ये बहुत अच्छा हुआ. अब मैं नहीं मरूँगा. मुझे होश आ गया है. ये चोट जब तक दुखती रहेगी मुझे ज़िंदा रखेगी........चाहे शराब मिले ना मिले."
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(जारी)
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