RE: Hindi Porn Story चीखती रूहें
(Jaari)
इमरान ने महसूस कियकी बाली उसे बे-मतलब जंगल मे भटकाता फिर रहा है. आख़िर एक जगह उस ने उन्हें रुकने को कहा......और बोला...."अपने हाथ उपर उठाए रखो. जिस के हाथ भी नीचे आए उस के लिए अच्छा नहीं होगा. और हन बाली......तुम मेरी तरफ मुड़ो."
बाली मुस्कुरा रहा था और उस की मुस्कुराहट पूरी तरह गुस्सा दिलाने वाली थी.
"तुम मुझे मूर्ख बनाने की कोशिश कर रहे हो." इमरान ने कहा.
"तुम खुद ही बन रहे हो. मैं ने तुम्हें नहीं कहा था."
इमरान को अगर अपने साथियों की चिंता ना होती तो शायद उन्हें वो वहीं ढेर कर दिया होता.
अचानक बाएँ साइड वाली ढलान से तेज़ सीटी की आवाज़ आई.....और जंगल के किसी सुदूर भाग से शायद उसका जवाब दिया गया.
"पोलीस....." बाली उच्छल पड़ा और इमरान से बोला. "ये क्या बेवकूफी कर रहे हो. तुम भी कहीं के नहीं रहोगे.....अगर उन्होने हमें यहाँ देख लिया." बाली ने ग़लत नहीं कहा था. पोलीस के लिए इमरान के पास कोई जवाब ना था. उस ने तेज़ी से दाईं तरफ की झाड़ियों मे
छलान्ग लगाई और बाली अपने साथियों समेत दौड़ता चला गया. झाड़ियाँ घनी थीं. इमरान के दोनों पैर एक दूसरे से उलझ गये.......और वो इस बुरी तरह गिरा......की जल्दी मे उठ कर भागना उसके लिए संभव नहीं रहा.
वो उठने की कोशिश कर ही रहा था कि अचानक किसी ने उसकी कलाइयाँ मज़बूती से पकड़ लीं. इमरान ने झटका दिया.
"अर्रे मैं हूँ....." किस ने फ्रेंच मे धीरे से कहा. "मैं हूँ......मैं अगता. उठो जल्दी करो...."
"इमरान बौखला कर उठ बैठा. उस की कलाइयाँ छोड़ दी गयीं. अगता निकट ही बैठी हाँफ रही थी. उस ने इमरान का हाथ पकड़ कर कहा "चलो उठो..."
इमरान उठ कर उसके साथ चलने लगा. वो उसे रास्ता बताती हुई ना जाने कहाँ ले जा रही थी. इमरान कुच्छ देर तक तो चलता रहा
फिर रुक गया. सीटियाँ अब भी सुनाई दे रही तीन. लेकिन आवाज़ दूर की लग रही थी.
"तुम मुझे कहाँ ले जा रही हो?" उस ने पुछा.
"अच्छा अगर मैं भी तुम्हारे पिछे ना चल पड़ी होती तो तुम कहाँ होते?" अगता मुस्कुराइ. वो फ्री होने की कोशिश कर रही थी. इमरान
किसी सोच मे पड़ गया.
"बोलो......जवाब दो...." वो इठलाई.
"मैं अपने आदमियों की तलाश मे था. इन लोगों ने उन्हें कहीं गायब कर दिया."
"ह्म......तो तुम सच मच मिस्र के जादूगर हो. मुझे मूर्ख बनाया था.....क्यों?" वो वैसे ही मुस्कुरा रही थी.
इमरान सोचने लगा कि इस बात का क्या उत्तर दे.
"सुनो...." इमरान ने गंभीरता से कहा...."हो सकता है कि तुम्हें किसी तरह की ग़लत-फ़हमी हुई हो. लेकिन मैं ने तुम से कॉन सी बुराई की है. चलो तुम ने जो कुच्छ भी मुझे दिया......उसे मेरी मज़दूरी ही समझ लो. मैं अपने साथियों को भूका मरते तो नहीं देख सकता था."
मैं उस गुफा से यहाँ तक तुम्हारा पिच्छा करती रही हूँ. तुम जिस तरह भी उन लोगों से पेश आए थे उस से ये तो पता चल गया कि वो तुम्हारे लिए अजनबी नहीं रहे होंगे."
"चलो ये भी ठीक है. देखो मेरी याददाश्त बहुत कमज़ोर है. मुझे याद नहीं कि मैं उन से किस तरह पेश आया था.......मगर क्या तुम ये समझती हो की मैने तुम से फ्रॉड किया था?"
"तुम वास्तव मे कों हो? मुझ से ना छुपाओ. मुझे तुम से सहानुभूति है. शायद मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूँ. ये मैं केवल इस लिए कह रही हूँ की वो लोग मेरे लिए अजनबी नहीं थे. मैं उन्हें अच्छी तरह जानती हूँ."
"ओह्ह.....वो कॉन थे?"
"बहुत बुरे लोग.......कम से कम मैं तो उनके खून की प्यासी हूँ."
"अच्छा...!!" इमरान मुस्कुराया. मैं समझता हूँ कि वो लोग बहुत चालाक हैं. उन्होने हमारे आस पास काई तरह के जाल बिच्छाए हैं. अगर एक से बच जाएँ तो दूसरे मे फँसें. क्यों है ना यही बात?"
"मैं समझी नहीं तुम कहना क्या चाहते हो?"
"मतलब ये कि वो मुझे ज़बरदस्ती नहीं ले जा सके तो अब तुम आई हो."
"फ़िज़ूल बात...." अगता ने बेज़ारी से कहा. "तुम नहीं जानते कि मैं बाली से कितनी नफ़रत करती हूँ. और मुझे उस समय उसकी पराजय
का दृश्य कितना दिलचस्प लगा है. तुम तो खुद भी मुझे कोई बुरी आत्मा लगते हो. बाली से यहाँ सब डरते हैं."
"लेकिन तुम क्यों उस से नफ़रत करती हो?"
"सारे मछुवारे उस से नफ़रत करते हैं. वो डाकू है. सारे घाट का मालिक बनना चाहता है. मच्छुआरो के समंदर पर उस का शासन है.
मेरे बाप के कारोबार को उसके कारण बहुत नुकसान पहुँचा है. मेरा वश चले तो उसकी हड्डियाँ अपने दाँतों से चबा डालूं."
"अगर ये बात है तो मेरी दोस्ती का हाथ क़ुबूल करो." इमरान ने हाथ बढ़ाते हुए कहा.....जो दोनों हाथों से थाम लिया गया. आदि तिर्छि आँखों की छाओ मे अगता की मुस्कुराहट बड़ी अर्थ-पूर्ण लग रही थी. लेकिन इमरान ने इस ढंग से पलकें झपकाइं जैसे अब कोई दिल्फ़रेब सा इश्क़ भरा शे'र सुनाएगा.
"मगर तुम कॉन हो मुझे बताओ."
"मैं बाली का दुश्मन हूँ क्योंकि उस ने पिच्छले साल टिग्रिश आइलॅंड मे मेरे मौसा(खलू) को पेड़ से उल्टा लटका कर गोली मार दी थी. मैं बदला लेने आया हूँ."
"लेकिन वो तुम्हें कहाँ ले जाना चाहता था?"
"वहीं.....जहाँ मेरे दोस्तों को क़ैद किए हुआ है. शायद इस तरह वो पता करना चाहता है कि मेरे साथ और कितने आदमी हैं."
"अर्रे तो चलते रहो....लगता है कि तुम भी पोलीस से भयभीत हो.....क्यों?"
"मुझे बदला लेना है.....इस लिए पोलीस से तो बचना ही पड़ेगा ना?"
वो कुच्छ ना बोली, इमरान थोड़ी देर तक खामोश चलता रहा फिर बोला...."क्या ये आदमी बाली....पादरी स्मिथ से भी संबंध रखता है?"
"पता नहीं.......क्यों?"
"यूँ ही. तुम ने कहा था की जंगल मे अधिकतर स्मिथ के आदमी ही देखे जाते हैं."
"मैं नहीं जानती कि उसका संबंध स्मिथ से रहा है या नहीं.....लेकिन इस समय सोचना पड़ रहा है कि वो पोलीस की सीटी पर डर क्यों गया था."
"क्या पोलीस जंगल मे गश्त करती रहती है?"
"अक्सर......लेकिन रात को यहाँ आने की हिम्मत कोई भी नहीं करता. ओह्ह.....क्या तुम मेरे पापा से मिलोगे?"
"अगर वो भयानक ना हुए तो. मुझे पापाओं से बहुत डर लगता है."
"क्यों.....?"
"पापा ही ठहरे......पता नहीं कब फाड़ खाएँ."
"नहीं मेरे पापा तो बहुत सीधे आदमी हैं. और जब उन्हें पता चलेगा कि तुम बाली जैसे लोगों पर भी हाथ उठा सकते हो.....तो वो शायद
तुम्हें सर पर ही बिठा लें."
"ओह्ह.......मगर मैं अपने साथियों के लिए क्या करूँ?"
"तलाश करेंगे उन्हें भी. जंगल विचित्र है. यहाँ आज भी बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहाँ अब तक कोई आदमी नहीं पहुँच सका." अगता ने कहा. फिर चलते चलते रुक गयी. कुच्छ देर सोचती रही फिर बोली...."सुनो....एक सजेशन है मेरे दिमाग़ मे. पापा को नावों पर काम करने वालों की ज़रूरत है. मैं उन से कहूँगी की मैं ने तुम्हें नौकर रखा है. अभी उन से बाली के मामले मे कुच्छ नहीं बताया जाए. क्या विचार है तुम्हारा?"
"तुम इतनी जीनियस हो कि क्या बताउ." इमरान ने ठंडी साँस ली. "लेकिन वो मुझे पसंद नहीं करेंगे.......क्यों कि मैं एक मूर्ख आदमी हूँ."
"मूर्ख.........तुम....!!" वो हंस पड़ी.
"हां....मेरे साथ यही सब से बड़ी ट्रॅजिडी है कि लोग मुझे मूर्ख समझते हैं." इमरान ने दुख भारी गंभीरता से कहा. "यही कारण है कि आज तक मेरी शादी नहीं हो सकी."
और फिर वो इस तरह शरमाया कि कान की लौ तक सुर्ख हो गयीं......और उसका हुलिया बड़ा ही हास्यास्पद दिखाई देने लगा.
"अर्रे....वाहह....तुम अपनी शादी की चर्चा से शरमाते भी हो."
"हुन्न....मम्मी कहा करती थीं की शरम आनी चाहिए ऐसी बातों पर." इमरान ने सर झुका कर मुर्दा सी आवाज़ मे कहा.
अगता फिर हँसी. लेकिन जल्दी ही गंभीर दिखाई देने लगी. उस ने कहा...."शकल से तुम एक नंबर के डफर लगते हो......मगर मैं नहीं समझती की वास्तव मे भी यही हो."
"तुम भी डफर ही कह रही हो." इमरान भर्राई हुई आवाज़ मे बोला. और फिर अगता ने देखा कि उस की आँखों से टॅप टॅप आँसू गिर रहे हैं
. अब वो सच मूच घबरा गयी.
"अर्रे अर्रे......तुम रो रहे हो.......अर्रे भाई वाहह...." उस ने कहा और उस का बाज़ू पकड़ लिया. अब इमरान के कंठ से तरह तरह की आवाज़ें भी निकलने लगी थीं.....और अगता के मूह से तो "अर्रे वाह...." के अलावा और कुच्छ निकल ही नहीं रहा था. फिर जब वो इस से भी संतुष्ट ना हुई तब बौखलाहट मे उसका सर खीच कर सीने से लगा लिया.
"अब चुप भी रहो......ये क्या कर रहे हो........अर्रे मैं तो यूँ ही मज़ाक मे......तुम बहोत अच्छे हो.......मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूँ......" वो भर्राई हुई आवाज़ मे बोली......और उस की आँखों से भी आँसू टपकने लगे.
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(जारी)
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