RE: Hindi Porn Story चीखती रूहें
(Jaari)
अगता का पापा एक नाटे क़द का गोल मटोल सा आदमी था. उपरी होंठ घनी मूच्छों से ढका हुआ था. आँखें छोटी और धुन्दलि थीं. सर
के निचले हिस्सों मे थोड़े खिचड़ी बाल थे. बीच का हिस्सा सफाचट था.
शाम को उस ने इमरान को किचन मे अगता का हाथ बटाते देखा.....और जहाँ था वहीं रुक गया. इमरान ने उसकी तरफ ध्यान भी नहीं दिया. लेकिन वो उसे घूर रहा था.
"ये कॉन है?" इमरान ने कुच्छ देर बाद गुर्राहट सी सुनी और उच्छल पड़ा. फ्राइयिंग पॅन उसके हाथ से छूट कर दूर जा गिरा. मूर्खता और बनावटी भय ने उस का हुलिया खराब कर रखा था.
"मैने आज ही इसे नौकर रखा है. ये फिशिंग भी कर सकता है पापा." अगता ने उत्तर दिया.
"क्या गॅरेंटी है कि ये चोर नहीं है?" बूढ़े ने झल्लाई हुई आवाज़ मे पुछा.
"मुझे विश्वास है कि ये बे-ईमान आदमी नहीं है. आज इस ने मेरी बहुत मदद की. मिकेल किसी तरह निकल गया था. अगर ये ना मिल
जाता तो आज मिकेल की वापसी मुश्किल थी."
"ठीक है लेकिन मुझ से राय लिए बिना नौकर रखने की क्या ज़रूरत थी?"
अगता ने बहुत बुरा सा मूह बनाया. ऐसा लगा जैसे वो अब रो ही देगी. फिर मिन्मिनाति हुई आवाज़ मे बोली....."मैं नहीं जानती थी पापा कि तुम इस आदमी के सामने मेरा अपमान करोगे जिसे मैं ने पनाह दी है. अच्छी बात है...अब मुझ पर भी अपने घर का दरवाज़ा बंद कर दो."
"क्या बेहूदा बकवास शुरू कर दी तुम ने?" बूढ़े ने सर हिलाते हुए कहा. "खुद भुगतगी....मुझे क्या करना है."
वो वहाँ से हट कर दूसरी तरफ चला गया. तभी इमरान भ्रराई हुई आवाज़ मे बोला....."मैं बहुत बाद-नसीब आदमी हूँ........हाँ. अच्छा.....मैं जेया रहा हूँ."
"ये......नामुमकिन है." अगता एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए बोली. "तुम नहीं जा सकते..........सुना तुम ने....??"
"तुम ने मुझ पर भरोसा कर लिया है. हो सकता है कि मैं चोर ही साबित हूँ....."
"हो चुके हो साबित....."
"क्या मतलब?" इमरान उछल पड़ा.
"दिल के चोर...." अगता धीरे से बोली......और उस की वीरान आँखें मुस्कुरा पड़ीं.
"दिल..........म्म....मतलब कि दिल्ल्ल.....म्म....मैं समझा नहीं." इमरान बौखला कर चारों तरफ देखने लगा.
"तुम सा भोला आज तक मैने नहीं देखा." अगता ने हंस कर कहा.
वो कुच्छ देर मुस्कुराती निगाहों से उसकी तरफ देखती रही फिर बोली...."तुम वास्तव मे कहाँ के निवासी हो?"
"मैं मिस्री हूँ.....तुम्हें विश्वास क्यों नहीं होता?........और ये भी सही है कि मैं सितारों की चाल से परिचित हूँ."
"अच्छी बात है.........मुझे बताओ कि मैं कभी मिकेल से पिच्छा छुड़ा सकूँगी या नहीं? मेरे बाप ने मुझ पर बहुत ज़्यादती की थी. उसे एक मददगार की ज़रूरत थी. मिकेल का बाप उस का क़र्ज़-दार था. इसलिए तय हुआ कि अगर वो मिकेल को उसे दे दे तो वो क़र्ज़ माफ़
कर देगा. इस तरह हमारी शादी हुई. लेकिन मिकेल नकारा निकल गया. वो पड़े पड़े खाना चाहता है. पागल बन गया है. मैं जानती हूँ
वो पागल नहीं है. केवल इस लिए ये ढोंग रचाया है कि काम ना करना पड़े. किसी पागल के ज़िम्मे कॉन अपना काम छोड़ देगा."
इमरान मुस्कुराया और वो जल्दी से बोली....."कितनी प्यारी है तुम्हारी मुस्कुराहट."
"अर्रे बाप रे....." इमरान हिन्दी मे बड़बड़ाया....और दाँतों तले उंगली दबा कर शरमाते हुए फ्रेंच मे बोला....."ऐसी बातें ना करो.....मुझे शरम आती है."
"अर्रे वाहह...." वो हंस पड़ी. "इधर देखो मेरी तरफ............"
इमरान वैसे ही दाँतों मे उंगली दिए सर झुकाए रहा. अचानक बाहर से शोर की आवाज़ आई.....और अगता चौंक पड़ी.
"ये क्या....?"
फिर वो किचन से निकल कर मैन गेट की तरफ झपटी. लेकिन इमरान वहीं रहा. वो अपने साथियों को लेकर उलझन मे पड़ा हुआ था. पता नहीं वो कहाँ और किस हाल मे होंगे.
अगता जल्दी ही वापस आई. उस की आडी तिर्छि आँखें जोश से चमक रही थीं. उस ने कहा....."हमारे आदमियों ने एक चोर को पकड़ा
है और उस की मरम्मत कर रहे हैं. वो हमारी मछलियाँ चुरा रहा था.......काला आदमी."
"काला आदमी....?" इमरान चौंक पड़ा "कहाँ है?"
"जंगल के सिरे पर मछलियों को रखा गया था. हमारे आदमी शायद थक गये थे. वो कुच्छ देर के लिए आराम कर रहे थे. वो पता नहीं
किधर से आया और उन की नज़रों से बच कर मछलियाँ चुराने लगा."
"क्या वो उसे यहाँ पकड़ लाए हैं?"
"हां....बाहर कॉंपाउंड मे.....लेकिन वो बड़ा सख़्त जान लगता है."
"कहीं वो मेरा साथी ना हो. मुझे दिखाओ."
"ओके चलो..."
अगता उसे एक कमरे मे लाई जिस की खिड़कियाँ बाहर खुलती थीं.
"यहाँ से देखो. मैं इस समय नहीं चाहती कि तुम पापा के सामने जाओ."
इमरान ने जोसेफ को पहचान लिया......जो पाँच आदमियों को धमकियाँ दे रहा था. उसके हाथ मे लोहे की एक मोटी सी सलाख थी. ऐसा लग रहा था जैसे कुच्छ देर पहले वो उस से गुथे रहे हों......और वो किसी तरह उनकी गिरफ़्त से छूटने मे सफल हो गया हो. अब वो उन्हें ललकार रहा था.....लेकिन वो आगे नहीं बढ़ रहे थे. अगता का बाप चीख चीख कर उन से कह रहा था....."बढ़ो.....मार डालो.....सुव्वर को....मारो."
"ये मेरा साथी ही है." इमरान ने अगता की तरफ देख कर कहा. उसे बचाओ किसी तरह......वो चोर नहीं है. मैं तुम्हें पहले ही बता चुका हूँ कि हम लोग बिल्कुल खाली हाथ हैं. हमारे पास यहाँ की करेन्सी नहीं है. उस ने भूक से मजबूर हो कर मछलियाँ चुराई होंगी."
"ये तो बहुत बुरा हुआ. अभी पापा कह चुके हैं तुम्हारे बारे मे कि कहीं चोर ना हो. मैं अभी उन से ये भी नहीं बताना चाहती कि तुम बाली के दुश्मन हो. उस से बदला लेने आए हो. अगर इसकी चर्चा भी हुई तो वो यही समझेंगे कि बाली ने तुम्हें किसी मकसद से यहाँ भेजा है. बहुत बुरा हुआ ये....."
इमरान सोच रहा था कि कहीं बूढ़ा जोसेफ को पोलीस के हवाले ना कर दे.
"तो क्या खुद मुझे ही उस की मदद करनी पड़ेगी?" उस ने कहा.
"अर्रे नहीं....इंपॉसिबल...."
"ह्म.....तो क्या मैं उसे मर जाने दूं? अपने साथी को?"
अगता कुच्छ कहना ही चाहती थी कि कॉंपाउंड के गेट पर बाली दिखाई दिया. उस के साथ दो आदमी और थे. उस ने वहीं से चीख कर अगता के बाप से कहा...."सुतरां.....तुम मेरे आदमी पर ज़ुल्म करते हो......फिर उल्टा तुम्हें ही मुझ से शिकायत होती है."
"ये और बुरा हुआ...." इमरान बड़बड़ाया.
सुतरां घूँसा लहरा कर कह रहा था...."अगर तुम्हारे आदमी चोरी करेंगे तो उनका यही अंजाम होगा. तुम चले जाओ यहाँ से. मेरे कॉंपाउंड मे कदम भी मत रखना.....वरना मुझ से बुरा कोई ना होगा."
"इंपॉसिबल.....तुम मेरे रहते हुए मेरे आदमी पर ज़ुल्म करोगे?" बाली आगे बढ़ता हुआ बोला. इमरान ने महसूस किया कि सुतरां के आदमी उस से भयभीत हैं. जैसे ही वो आगे बढ़ा सुतरां ने अपने आदमियों को ललकारा लेकिन उन मे से कोई भी उसे रोकने के लिए आगे नहीं बढ़ सका.
"मैं जा रहा हूँ." इमरान ने कहा और अगता उस का बाज़ू पकड़ के घिघियाई "नो...नो.....तुम मत जाओ.......फॉर गॉड सेक....मेरी बात समझो..."
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