RE: Hindi Porn Story चीखती रूहें
"तो अब तुम्हारे साथी कहाँ हैं?" सुतरां ने पुछा.
"काश मुझे मालूम होता, संयोग से काला आदमी इस तरह हाथ आया था लेकिन बाली के कारण वो भी निकल गया. मुझे डर है कि वो कहीं भूके ना मार जाएँ."
"सुनो...." सुतरां कुच्छ सोचता हुआ बोला. "बाली एक प्रभाव-शालि व्यक्ति है. मैं जानता हूँ कि वो कितना कमीना आदमी है. लेकिन क़ानून उसी का साथ देगा. वो यहाँ से पिट कर गया है. मैं नहीं जानता कि अब वो क्या करेगा. अच्छा यही होगा कि तुम यहाँ से चले जाओ. वैसे
मैं तुम्हारी और तुम्हारे साथियों की मदद ज़रूर कर सकता हूँ. हां.....वो अगर तुम लोगों को पहचानता ना होता तो बात दूसरी थी."
"ये सच है वो हमें पहचानता है. लेकिन अगर हमें कहीं पैर जमाने की जगह मिल जाए......तो उस के फरिश्ते भी हमें नहीं पहचान सकेंगे."
"वो कैसे.....?"
"हम किसी ना किसी मज़बूती ही के कारण यहाँ अवैध रूप से आने की हिम्मत किए हैं. ये ना समझिए मोस्सीओ की हम बिल्कुल फटे-हाल ही आए हैं. हमारे पास यहाँ की काफ़ी करेन्सी थी. लेकिन हमारे एक साथी की ग़लती से वो हाथ से निकल गयी."
"मैं पुछ्ता हूँ वो तुम्हें पहचान क्यों ना सकेंगे?"
"हम अपनी शकलें आसानी से बदल सकते हैं."
"ओह्ह...."
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रात को इमरान 2 मछुवारो को साथ ले कर अपने साथियों की तलाश मे निकला. उन्हों ने उसे वो जगह दिखाई जहाँ जोसेफ ने मछलियाँ चुराने की कोशिश की थी.
इमरान ने मछुवारो को वहीं से वापस कर दिया. वो जानता था कि जंगल मे बाली के आदमी निश्चित रूप से मौजूद होंगे. इसलिए सुतरां के आदमियों के साथ उस का देखा जाना मुनासिब ना होगा.
जहाँ जोसेफ ने मछलियाँ चुराने की कोशिश की थी वो जंगल ही का हिस्सा था. इमरान ढलान मे उतरता चला गया. सीमित रौशनी
वाली छोटी सी टॉर्च हर समय उसकी जेब मे पड़ी रहती थी. इस समय भी वो काम आ रही थी.
लेकिन इतने बड़े जंगल मे उन्हें ढूंड निकालना कोई आसान काम तो ना था. वो सोच रहा था कि उसे क्या करना चाहिए. अगर बाली और उसके साथियों का ख़याल ना होता तो शायद वो उन्हें पुकारता भी.
इस बार सही अर्थ मे उसके साथी उसके लिए हेडेक बन गये थे......और वो सोच रहा था कि अकेले काम करने मे कितना मज़ा है. लेकिन वो तो मजबूरी मे साथ आए थे. हालात ही ऐसे थे की उन्हें लाना पड़ा था.
लगभग एक घंटे तक वो इधर उधर भटकता फिरा......लेकिन साथियों का सुराग नहीं मिला. अंत मे वो थक हार कर एक जगह बैठ गया. रात अंधेरी थी. जंगल साएन्न साएन्न कर रहा था.
अचानक इमरान को ऐसा लगा जैसे वो वहाँ अकेला नहीं है. ये उसका सिक्स्त सेन्स थी जिस ने उसे बार बार बड़े बड़े ख़तरों से बचाया था.
वो बड़ी तेज़ी से ढलान मे रेंग गया. एक दरार थी जिस मे वो रेंगता हुआ नीचे जा रहा था. फिर वो रुक गया. सोचने लगा हो सकता है केवल शंका ही हो.
इन दिनों बिल्कुल जानवरों जैसी ज़िंदगी हो रही थी. मस्तिष्क ढंग से सोच भी नहीं सकता था. और फिर हालात कुच्छ ऐसे थे कि कुच्छ सोचना भी बेकार ही था. उस के दुश्मन उसे लाए थे. और फिर इस तरह छोड़ दिया था कि मौत को भी तलाश करने मे कठिनाई हो.......क्या बोघा पागल ही था?"
लेकिन वो जाली नोट जिस ने रॉबर्टू को पोलीस के चक्कर मे फँसा दिया था. तो फिर इतनी ही सी बात केलिए बोघा ने उसे और उस के साथियों को वहाँ से लाने का कष्ट उठाया था. और खुद अपने काई आदमियों को मुफ़्त मे फंस्वा दिया था. इमरान यही सब सोचता हुआ दरार मे चित्त लेट गया.
एक बार फिर उसे महसूस हुआ जैसे उस ने करीब ही किसी तरह की आवाज़ सुनी हो. जिस जगह वो लेटा हुआ था वहाँ दरार की गहराई 2 फीट से अधिक नहीं थी. अचानक उपर से उसे किसी की खोपड़ी दिखाई दी. कोई दरार मे झाँक रहा था. दूसरे ही पल इमरान के दोनों हाथ उठे और उस ने बड़ी मज़बूती से झाँकने वाली गर्दन पकड़ ली.
"फादर........जोशुवा....." शिकार के कंठ से मुश्किल से ये आवाज़ निकली.......और इमरान ने जोसेफ की आवाज़ पहचान ली.
"अबे......अंधेरे के बच्चे.....ये क्या करता फिर रहा है?" इमरान ने अपनी पकड़ ढीली करता हुआ धीरे से कहा.
"हाएन्न.....अर्रे बॉस.....माइ गॉड.....तुम हो....!!" जोसेफ की आवाज़ मे चह्कार थी.
इमरान ने उसकी गर्दन छोड़ दी और उठ कर बैठ गया. जोसेफ भी दरार मे कूद आया.
"मिल गयी बॉस......" उस ने कहा...."आख़िर मिल ही गयी."
"क्या मिल गयी....?"
"शपलली...."
"सत्यानाश हो तेरा जोसेफ के बच्चे...." इमरान उसकी गर्दन फिर से दबोचता हुआ बोला. "वो लोग कहाँ हैं?"
"वो उन्हें ले गये बॉस...." जोसेफ दुखी लहजे मे बोला. "अच्छा ही हुआ.....भूकों तो ना मरेंगे. मैं तो वो जगह भी भूल गया........कल जहाँ फल खाए थे. मगर वो जगह मुझ से ना छोड़ी जाएगी जहाँ मैं ने शपलली के ढेर ही ढेर देखे हैं. आहह....बॉस....भूक के मारे मेरा दम निकल रहा है."
"हुन्न.....रूको..." इमरान ने चमड़े के थैले मे हाथ डालता हुआ बोला. वो उनके लिए फ्राइ फिशस और रोटियाँ लाया था. जोसेफ किसी भूके कुत्ते की तरह उस पर टूट पड़ा.
"वो किस तरह पकड़े गये?" इमरान ने पुछा.
"ओह्ह बॉस.....पहली बार तो हम बच गये थे. केवल मेरा सर फटा था. ओह्ह....कितना तेज़ दर्द है. ये शपलली भी अजीब चीज़ है बॉस. बस 2-3 पत्तियाँ चबा लो......ऐसा लगेगा जैसे सारी दुनिया जाग पड़ी है."
"आब्बे.....मैं पुच्छ रहा हूँ वो लोग कैसे पकड़े गये?"
"जैसे चूहे पकड़े जाते हैं. चारो तरफ से घेर कर पकड़ लिया. पहली बार हम सब निकल गये. दूसरी बार मैं ही निकल सका."
फिर उस ने बताया कि किस तरह भूक से बेताब हो कर उस ने मछलियाँ चुराने की कोशिश की थी और पकड़ा गया था और बाली ने
उसे मछुवारो से छुड़ाने की कोशिश की थी.....फिर कैसे वो खुद ही निकल भागा.
"और उस समय बॉस...." उस ने ब्रेड हलक से नीचे उतारते हुए कहा...."तुम्हारे सितारे बहुत अच्छे थे कि मैने तुम पर हमला नहीं किया. बहुत देर से तुम्हारा पिच्छा करता रहा था. बस यही सोच रहा था की शायद किसी ऐसी जगह ले जाए जहाँ कुच्छ खाने पीने को मिल सके."
इमरान कुच्छ ना बोला. जोसेफ के मूह से निकलने वाली 'चपर चपर' सुनता रहा. वो जब खाने बैठता था तो उस के मूह से ऐसी ही
आवाज़ें निकलती थीं जैसे अकेला वही नहीं बल्कि उसका पूरा कबीला खाना खा रहा हो.
इमरान..........सफदार, चौहान और जूलीया के बारे मे सोच रहा था. अगर बोघा के साथ केवल अपने जाली नोट ही ट्राइ करना चाहते थे तो
वो तो हो चुका था. अब इस पकड़ धकड के क्या मतलब?
कुच्छ देर बाद उस ने जोसेफ से पुछा "खा चुके?"
"हां बॉस.....अब प्यास लगी है."
"उठो और मेरे साथ चलो." इमरान ने कहा.
सुतरां के घर के सिवा वो उसे कहाँ ले जाता.
***
(जारी)
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