RE: Hindi Kamuk Kahani जादू की लकड़ी
अध्याय 3
जब नींद आती है तो नरम बिस्तर की परवाह नही रह जाती ,यही मेरे साथ हुआ मुश्किल घड़ी में भी ना जाने कब मैं नींद के आगोश में चला गया था,
मेरी नींद खुली टॉमी की गुर्राने से मैं तुरंत ही सतर्क हो गया ,टॉमी सामने देख कर गुर्रा रहा था,सामने देखा तो मानो मुझे सांप ही सूंघ लिया क्योकि सामने सच में सांप ही था ,फन फैलाये वो भी फुंकार मार रहा था,मैं घर में एक अदन छिपकली को भी देखकर भाग जाता हु और यंहा नागराज स्वयं पधारे थे ..
वही टॉमी लड़ने की पोजिशन ले चुका था वो उसे देख कर गुर्रा रहा था,दोनों की निगाहे एक दूसरे से मिली हुई थी ,मुझे पता नही था की एक पालतू कुत्ता इस तरह शिकारी भी हो सकता है,शायद ये उसके खून में हो ,कुछ चीजे जानवरो को कभी नही सीखनी पड़ी वो उसे जन्म से ही सीखकर पैदा होते है ,जैसे सेक्स करना ..
टॉमी ने अपना एक पंजा सांप की ओर किया और सांप ने उपसर झपट्टा मार दिया ,वही टॉमी ने दूसरे पंजे से सीधे सांप के गले पर वार किया और इससे पहले की सांप कुछ समझ पाए टॉमी ने अपने दांतो से उसके गर्दन को दबोच लिया और रामनाम सत्य….
टॉमी की इस बहादुरी पर मुझे थोड़ा आश्चर्य भी हो रहा था लेकिन आज उसने मेरी जान बचा ली थी …
अभी तो ये शुरुवात थी ना जाने मुझे इस जंगल में और क्या क्या देखना पड़ेगा ……..
रात भारी बारिश हुई थी और पास जिस नदी के साथ मैं चल रहा था उसे देखकर मेरा दिल ही भर आया था,कारण था की उसमें पानी लबालब भरा हुआ था,नदी का वेग तेज हो गया था साथ ही उसका पानी बारिश के कारण गंदा भी हो चुका था,मुझे रोना इसलिए भी आ रहा था क्योकि मैं घर में फिल्टर का पानी पिया करता था ,कल तक नदी का पानी साफ़ था लेकिन आज ,मुझे आग जलानी होगी..
जब पेट में चूहों ने कोहराम मचा दिया तो मेरे दिमाग में एक ही बात आयी की आग जलाओ और कुछ पका कर खाओ लेकिन क्या..??
टॉमी फिर से सूंघता हुआ अपने जुगाड़ में लग गया था मैं उसके पीछे पीछे चलता हुआ ना जाने कहा तक निकल गया बस मैं ध्यान ये रख रहा था की नदी की दिशा में ही चलता जाऊं ,रास्ते में जो खाने के लायक मिल जाता मैं उसे खा लेता था ,दो ही दिन में मैं सिख गया था की कौन सी चीज खाई जा सकती है ,इसे कहते है जीवन का संघर्ष ..
चलते चलते मैं थक कर बैठ चुका था ,कही कोई उम्मीद की किरण नही दिख रही थी लेकिन फिर भी मुझे चलते रहना था,तभी मानो कुछ हुआ मेरे कानो में शंख की गूंज सुनाई पड़ी ,मैं उछाल कर खड़ा हो गया मानो फिर से शरीर में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया हो..
“टॉमी तुमने सुना ,ये तो शंख की गूंज है यानी कोई इंसान आस पास ही होगा “
अब बेचारा टॉमी बोलता भी क्या वो बस मुझे ही देखे जा रहा था ..
मैं उस शंख की ध्वनि के सहारे आगे बड़ा और मैंने जो देखा उसे देखकर मेरा दिल बाग बाग हो गया था ,दूर पहाड़ पे मुझे एक मंदिर दिखाई दिया,मैंने अब देर नही की और उसी ओर बढ़ने लगा,मैं ठीक उस पहाड़ के नीचे था जिसके ऊपर मंदिर था,दोपहर से शाम होने को आई थी और मैं थक कर चूर था लेकिन फिर भी जब बात जीने मारने की हो तो कौन देखता है ,मैंने गहरी सांसे ली ..
“बस वंहा तक पहुच जा कोई ना कोई तो मिल ही जाएगा “
मैंने खुद से कहा और चलने ही वाला था की टॉमी की हरकत से मैं थोड़ा ठिठका …
वो पीछे किसी को देख रहा था ,जब मैं पीछे मुड़ा तो ……
तो लगा जैसे अब हार्ट अटैक आने वाला हो ..
एक बिल्कुल ही शार्प चीता मुझे लालची निगाहों से देख रहा था ,वो हमशे कुछ ही दूरी पर था ,मेरे हाथ पैर मानो शून्य पड़ गए थे,दिल ने धड़कना ही बंद कर दिया था,आज तक लोगो ने मुझे डरपोक कहा था लेकिन डर होता क्या है ये शायद आज मुझे पता चला,वो बड़े ही प्यार से मुझे निहार रहा था जैसे कोई भूखा व्यक्ति अपने खाने को निहारता है ..
कुछ पल के लिए लगा मानो सब कुछ थम सा गया हो ,मरे हाथो में वो भाला था जो मैंने जोड़ तोड़ कर बनाया था लेकिन उसपर भी मेरी पकड़ धीमी पड़ने लगी थी …
वो बहुत ही धीरे धीरे मेरी ओर बढ़ रहा था ,वही टॉमी की भी सिट्टी पिट्टी गुम थी ,वो भी बस उसे ही देख रहा था शायद मेरे जैसी स्तिथि उसकी भी थी ..
“है भगवान बचा ले ...माँ “
मेरे दिल से ये फरियाद निकली ,मानो मेरा पूरा प्राण बस उसे ही पुकार रहा हो ,अचानक मेरे अंदर ये भावना आयी की जब मरना ही है तो लड़ कर मारूंगा ..
मेरे चहरे का भाव बदलने लगा , ना जाने कहा से एक ऊर्जा सी मेरे भीतर उमड़ गई ,डर रोमांच में बदल गया ,हाथो में रखे भाले पर मेरी मुठ्ठी कसने लगी ,मैं पहली बार मेरे पैरों में मुझे जान आने की अनुभूति हुई ,मैं वैसे ही पोजिशन में आ गया जैसे की टॉमी आज सुबह सांप के सामने था ,शिकारी वाली पोजिशन में मैं उसके तरफ थोड़ा सा झुक गया था और भाले को अपने एक हाथ में पकड़ा हुआ अपने से पैरलर रखे हुए था,मुझे याद आया हॉलीवुड मूवी 300 का वो सीन जब स्पार्टा का युवराज लियोनार्डस एक अदमखोर जानवर का शिकार करता है……
मैं खुद को उसके ही जगह में पा रहा था,मेरे हाथो में भी भाला था,मैं भी अकेले था,बस वंहा बर्फ पड़ रही थी और यंहा धूप निकली हुई थी ,मुझे देखकर मानो चीता भी शिकारी मूड में आ गया था वो झपट्टा मारने को पूरी तरह से तैयार था ,और मैं भी उससे भिड़ने को तैयार हो गया था ..
तभी ..
शंख की ध्वनि फिर से पूरे माहौल में गूंज गई ,इस बार वो बहुत पास सी आती हुई प्रतीत हुई ,उसे सुनकर चीते को ना जाने क्या हुआ वो तुरंत ही सामान्य हुआ और वंहा से खिसक लिया ,मैं बड़े ही आश्चर्य से ध्वनि की ओर देखने लगा, सामने कुछ ही दूर पर पहाड़ के एक बड़े पत्थर पर खड़ा हुआ सन्यासी मुझे देख रहा था ,उसके हाथो में शंख था और हाथो में त्रिशूल ,पूर्ण नग्न था लेकिन पूरे शरीर में राख मले हुआ था ,बड़ी बड़ी जटाएं फैली हुई थी ,दुबला पतला ही था लेकिन मानो चहरे और शरीर से एक तेज सा निकल रहा हो,वो बस मुझे देखने लगा ,और मैं …….
मैं वही दंडवत हो गया…
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