RE: Hindi Kamuk Kahani जादू की लकड़ी
अध्याय 14
मैंने सोचा नही था डॉ का ग्रुप इतना संगठित होगा,मेरा प्रिंसपल भी इसका सदस्य था,मेरे एग्जाम होने वाले थे और मेरे ऊपर टेस्ट शुरू हो चुके थे,चन्दू का पता नही था लेकिन उसे ढूंढने की पूरी कोशिस जारी थी वही वकील साहब के घर से लॉकर की चाबी मिल चुकी थी ,साले ने उसे कॉन्डोम के डिब्बे में छिपा के रखा था,काजल के आदमी को बाकायदा उसकी बीवी को पटाने और उसके साथ रात गुजरने के लिए नियुक्त किया गया था ताकि वो घर में घुसकर चाबी का पता लगा सके ,मजे की बात ये थी की बीबी ने जब कॉन्डोम का डिब्बा खोला तो वो वही मिल गया ...और मजे की बात ये भी थे की डागा गैंग ने सारा घर छान मारा था लेकिन उस डिब्बे को छोड़ दिया था…..
हमारे पास वसीयत थी जिसे मेडम ने हिफाजत से रख लिया था उसकी एक कॉपी मुझे दी गई थी जो मेरे कमरे में सुरक्षित थी ,इसे अभी क्लेम करने से मना किया गया था क्योकि चन्दू बीच में आकर आधी प्रोपर्टी पर हक जमा सकता था क्लियर था की चन्दू के साथ वही करना होगा जो वो मेरे साथ करना चाहता था …
दवाइयों की टेस्टिंग से मेरे अंदर कुछ परिवर्तन आने लगे थे,जैसे मेरे मसल्स तेजी से बढ़ रहे थे,आवाज भारी हो रही थी ,एक महीने में ही मैं एक मुस्कन्डा दिखाने लगा था ,साथ ही साथ मेरे अंदर ऐसे मानसिक चेंज भी आ रहे थे जो किसी को नही दिखते थे,लेकिन टेस्ट करने पर पोसिटिव रिजल्ट ही था…….
बहुत मुश्किल से सही लेकिन निशा और रश्मि को अपने हवस से दूर ही रखा था क्योकि अभी तक ये मुझपर हावी नही हुए थे,निशा को मैंने अपने साथ सोने से सख्त मना कर रखा था वो मुझसे गुस्सा भी थी लेकिन अभी मैं उसके साथ कुछ नही करना चाहता था कम से कम जब तक टेस्ट पूरे ना हो जाए...रश्मि को दूर रखना आसान ही था…
लेकिन ,मेरी नजर शबीना और कांता पर टिकी थी ,काजल के लोग के अलावा मैंने पिता जी से कहकर कुछ सिक्योरिटी के लोग भी एक्सट्रा ला लिए थे,घर के किसी नॉकर को बाहर जाने की सख्त मनाही कर दी थी ताकि कांता और शबीना और अब्दुल भाग ना जाए,उनके अलावा बस एक नॉकर जो की मेरा ही आदमी था वंहा बिठा दिया था जो बाहर से समान लाने का काम करता था,ये सब घर वालो को अजीब लग रहा था लेकिन मेरे पिता को इससे कोई प्रॉब्लम नही थी ,बात ऐसी थी की मैंने वसीयत की एक कॉपी उनके डेक्स में रखवा दी थी ..
उन्हें पता था की मैं पूरी दौलत को क्लेम करने वाला हु ,और उसके बाद उनके पास कुछ भी नही रह जाएगा …
मैंने उनसे कुछ भी नही कहा ना ही माँ से कुछ कहा लेकिन पिता जी को मेरे हावभाव से समझ जरूर आ गया था की अब से इस घर का मालिक मैं हु ना की वो …….और वो मुझसे उलझना नही चाहते थे,ना ही मैं ये चाहता था …….
पूरा महीना हो चुका था और मेरे सेक्स की आग बढ़ने से मुझे बहुत परेशानी हो रही थी ,मैं हिलाना भी नही चाहता था ..
एक दिन मैंने अपनी सील खोलने की ठान ली ,लेकिन समस्या थी की किस्से शुरुवात की जाए क्योकि मैं जानता था की एक बार शुरू हो गया तो मेरे लिए रुकना मुश्किल होने वाला है,इसीलिए मैंने अभी तक इसे सम्हाल कर रखा था….
मेरे दिमाग में पहला नाम आया रश्मि का साथ ही निशा भी तो बेताब थी ,लेकिन मै दोनो के साथ नही करना चाहता था कारण था की दोनो ही कुँवारे थे और मैं इतनी ताकत के साथ उनके साथ कैसा व्यवहार करूँगा मुझे खुद नही पता था ,मुझे कोई एक्सपीरियंस चाहिए था……
और दुश्मन की माँ से ज्यादा अच्छा कौन हो सकता है ,ऐसे भी मैं साले की माँ चोदना चाहता था क्यो ना असल जिंदगी में भी उसकी माँ चोदी जाए……
लेकिन कैसे ..???
जबदस्ती ????
नही यार ये मुझसे नही होगा …..
फिर मेरे दिमाग में एक क्लिक हुआ ...
और मैं एक शाम अपने पार्किंग में गया …
वंहा पापा नही थे लेकिन कांता और शबीना मौजूद थे शायद पिता जी का ही इंतजार था,मैं उस कमरे की खिड़की के पास ही खड़ा था की पिता जी आते हुए दिखे मैं उनके पास चला गया ..
“आप यंहा ..”
वो मुझे देख कर हड़बड़ाए..
“हा वो कार कार लेने आया था वो काम से बाहर जाना है “
“लेकिन आपकी कार तो बाहर ही खड़ी है…”
“नही वो ये वाली कार उन्होंने वंहा खड़ी एक कार की ओर इशारा किया “
“हम्म तो जाइये ले जाइये “
उन्होंने अजीब निगाहों से मुझे घूरा लेकिन बिना कुछ बोले उस कार में जाकर बैठ गए जिसे उन्होंने पता नही कितने सालो से नही चलाया था ...उनके जाने के बाद मेरे होठो में मुस्कान आ गई,और मैंने सोचा क्यो ना लकड़ी का यूज़ करके देखा जाए,मैंने उस दिन के बाद से फिर कभी इसका उपयोग नही किया था लेकिन अब मुझे उसके जैसी मिलती जुलती दवाइयों की आदत हो गई थी,और शरीर भी लगभग तैयार ही था…..
मैंने लड़की निकाली और उसे चूस लिया…..
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