RE: Hindi Kamuk Kahani जादू की लकड़ी
“क्यो बरखुरदार क्या हुआ “
उसके पिता ने फिर से कहा ,मैंने तावीज निकाली हल्के से उसे चाटा और अपनी टीशर्ट उतार कर अखाड़े में चला गया,वंहा की मिट्टी को अपने माथे में लगा लिया और जांघो में एक ताल मार दी ,असल में ये सब मैंने फिल्मो में देखा था ……
“भइया ट्रेलर तो अच्छा लग रहा है ,अब फ़िल्म शुरू करे “
रश्मि के चाचा ने कहा ,और राजा साहब की आज्ञा मिल गई ….
लकड़ी को चाटने के बाद से मेरे नशो में खून का प्रवाह बढ़ गया था ,दिमाग एकदम शून्य हो गया था जैसे सब कुछ एकदम ही धीरे हो गया हो,जब जब मैं अपने को एकाग्र करने की कोशिस करता मैं बहुत ही एकाग्र हो जाता था,मेरे सामने एक हट्टा कट्टा मुस्टंडा खड़ा था वो भी लंगोट में ,उसने अपनी पोजिशन ले ली ,अब साला मुझे कौन सा कुश्ती आती थी ,वो मुझपर झपटा लेकिन मैंने उसके शरीर को ध्यान से देखा मुझे वो सब स्पॉट नजर आ गए जिस पर मैं अपने मार्शल आर्ट के टेक्निक से वार कर सकता था ,बाकी सब मेरी प्रेक्टिस से हो गया,पहला किक उसके पैरो के पास उसका घुटना थोड़ा मुड़ा वो थोडा लड़खड़ाया ,दूसरा वार उंगलियों से सीधे पसलियों पर,एक चीख निकली और तीसरा पंच मुक्के से माथे के साइड में खून दिमाग में जाने से थोड़े देर के लिए रुक गया ,छोटी सी इंजुरी और वो वही धड़ाम…….
ये सब सिर्फ कुछ 5 सेकंड में ही हो गया और मैं फिर से नार्मल स्टेज में आ चुका था …..
“इसकी माँ का ..”
सभी लोग भौचक्के से उस गिरे हुए पहलवान को ही देख रहे थे ,ऐसे ये कोई मार्शल आर्ट का कमाल नही था,क्योकि पहलवान को गिराना कोई बच्चे का काम नही था लेकिन ये कमाल था मेरी उस लकड़ी का और उससे उत्पन्न एकाग्रता का और मेरी थोड़ी सी प्रेक्टिस का …….
मैं रश्मि की ओर देखा वो भी मुह फाड़े ये सब देख रही थी …
“वाओ “उसके मुह से बस यही निकला
भैरव सिंह कभी मुझे देखते तो कभी उस पहलवान को …
उन्होंने फिर से एक दूसरे पहलवान की ओर इशारा किया ,शायद वो और भी बड़ा पहलवान हो ..
वो अखाड़े में आ चुका था ,पहले वाले से दूसरी पोजिशन ले ली ..
वो फिर मुझपर झपटा …
और मेरा दिमाग फिर से शून्य …..
वो मुझे ऊपर से पकड़ना चाहता था इसलिए मैं घटने के बल बैठ कर उसकी ओर घिसटा ..अपने शरीर को झुकाया और उसके पैरो के बीच से निकल गया ,लेकिन इस दौरान एक पंच उसके जांघो के एक स्पेशल नश पर मार दी जिससे उसका पैर थोड़ी देर के लिए लकवाग्रस्त हो गया,वो लड़खड़ाता हुआ जमीन पर गिरा ,लेकिन उसके गिरने से पहले ही मैं खड़ा होकर पीछे से उसके मेरुदंड (स्पाइनल कार्ड) में अपनी उंगलियों से एक वार कर दिया जो की एक नर्व पर किया वार था जिससे उसके कमर से नीचे का शरीर थोड़ी देर के लिए पैरालाइज हो गया था ,
वो वही गिर गया …
ये सब भी कुछ 5 सेकंड से कम के वक्त में हो गया …
सभी फिर से मुह फाडे ये देख रहे थे ……
“वाह बेटा तुम तो कमाल के फाइटर हो यार ,हमारे बड़े बड़े पहलवानो को एक ही वॉर में चीत कर दिया “इस बार रश्मि का चाचा भीष्म बोल उठा……
वही भैरव सिंह उठा और मेरे पास आया,उसने मेरे पीठ पर शाबासी दी ,वो इतना भारी था की मेरा पूरा शरीर ही हिल गया …
“शाबास बेटे...हमे खुशी है की तुम हमारी बेटी के दोस्त हो “
उनकी बात सुनकर रश्मि भी खुस हो गई ,और आंखों ही आंखों में इशारा किया जैसे कह रही हो ‘क्या बात है ‘
उसके घर वालो ने मेरी बहुत खातिरदारी की ,जितना मैंने भैरव सिंह के बारे में सुना था वो असल में उतना भी खतरनाक आदमी नही था खासकर अपने परिवार के साथ,वो रश्मि को बेहद प्यार करता था,रश्मि पूरे घर की चहेती थी ,अपने पिता की एक ही औलाद भी थी ,वही भीष्म का एक बेटा था जो की छोटा था,हमने साथ ही नाश्ता किया,उसकी चाची और माँ ने जबरदस्ती मुझे नाश्ता खिलाया,और साथ ही मेरे परिवार को लेकर भी बाते हुई ,रश्मि की माँ और चाची मेरी माँ के अच्छे दोस्त थे ..
ये सब हो रहा था और डाइनिंग टेबल में मेरे सामने बैठी रश्मि मुझे मस्कुराते हुए देख रही थी …
मुझे ऐसा लगा जैसे जमाई पहली बार ससुराल आया हो……
इन सबके बाद रश्मि मुझे अपने कमरे में ले गई …
आखिर वो राजकुमारी थी तो कमरा भी वैसा ही था,बेहद ही आलीशान …….
“तो मेरे घर वाले कैसे लगे “
उसने आते ही कहा ,हम उसके कमरे में रखे एक सोफे पर बैठ गए थे ….
“यार पहली बार पता चला की लोग बार बार ससुराल क्यो जाते है ,जब इतनी खातिरदारी हो तो क्यो ना जाए “
वो मुझे मुस्करा कर देखने लगी ..
“अच्छा ऐसी बात है,गधे कहि के “
उसने एक पिलो मेरी ओर फेका और हल्के हल्के मुस्कुराने लगी …
“ऐसे तुमने अपने घर वालो को मेरे बारे में बताया क्या है ..??”
“कुछ भी नही ,मैं जन्हा भी जाती हु हमारे गार्ड मेरे साथ होते है ,ये बात मुझे भी पता होती है लेकिन मैंने तुम्हे कभी नही बताया था ,तो तुम्हारे बारे में चाचा और पापा को पहले से पता था, मैं सबकी लाडली हु तो वो मुझे कभी दुखी नही करते,मैंने उन्हें साफ कहा था की तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त हो ,...”
“सिर्फ दोस्त हु …….”
मैंने रश्मि की आंखों में देखा ,वो भी मुझे ही देख रही थी शमा थोड़ा सुहाना हो चुका था ……
“तो और क्या हो ..??”
रश्मि ने हल्के से कहा,मैं उसके पास सरक गया …
“तुम नही जानती ..??”
अब हमारी सांसे भी एक दूजे से टकरा रही थी …
“तुमने कभी कहा ही नही “
उसने फिर से धीरे से कहा ,उसके होठ फड़फड़ा रहे थे वही उसके दिल की धड़कने इतनी तेज थी की उसकी आवाज मेरे कानो तक भी पहुच रही थी ,मैं अपने होठो को हल्के से उसके होठो के करीब लाने लगा लेकिन उसने अपना चहरा मोड़ लिया ,और मुझे धक्का दे दिया …….
“जुबान से कहने की हिम्मत नही है क्या ...मैं सुनने को बेताब हो गई हु और तुम कुछ कहते ही नही हो ..”
उसने गुस्से से मुझे कहा हालांकि उसका गुस्सा बेहद ही कमजोर था ..
मैंने उसके हाथो को अपने हाथो में थाम लिया..
“अब भी कहने की कोई जरूरत है ??”
“हा है..”
“क्या कहु ..???”
उसनें मुझे गुस्से से देखा
“भाड़ में जाओ “
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