Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
03-24-2020, 09:00 AM,
#23
RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"वैसे ही जैसे इस वक्त भी पड़ी है ?"

"हां ।"

"इमारत का प्रवेश द्वार खुला था या उसे मिसेज चावला ने चाबी लगाकर खोला था ?"

"इस बात की तरफ तो मैंने ध्यान नहीं दिया था।"

"क्यों ?"

"सच बताऊं ?"

"सच ही बताओगे तो बनेगी बात ।" "सच यह है, यादव साहब, कि उस वक्त मेरा ध्यान मिसेज चावला की शानदार फिगर की तरफ था, उसके सांचे में ढले जिस्म की तरफ था, उसकी मदमाती चाल की तरफ था।"

"भीतर बत्ती जली होने जैसी अस्वाभाविकता को नोट कर चुकने के बावजूद तुमने यह देखने की कोशिश नहीं की कि दरवाजा खुला था या उसमें ताला लगा हुआ था ?"

"नहीं की। सॉरी !"

"जब तुम लोगों ने स्टडी में लाश बरामद की थी, उस वक्त कितने बजे थे ?"

"आठ ।"

“पूरे ?"

एक-दो मिनट ऊपर होंगे ।"

"लेकिन पुलिस को फोन तो तुमने बड़ी देर में किया था । लाश बरामद होते ही तुमने फौरन फोन क्यों नहीं किया था ?"

"फौरन नम्बर नहीं मिला था। टेलीफोन में कोई नुक्स था । कई बार डायल करने के बाद मुझे पुलिस का नम्बर मिला
था।"

"मुझे तो फोन में कोई नुक्स नहीं दिखाई दिया ।"

"अब नहीं होगा। तब था।"

"यह विस्की जो तुम्हारी सांसों में बसी है यह तुम घर से पीकर आये थे या यहां आकर पी थी ? मैं तुम्हें अंधेरे में नहीं रखना चाहता । सवाल का जवाब इस बात को निगाह में रखकर देना कि किचन में दो गिलास और उनके करीब एक आइस-ट्रे पड़ी मैंने देखी है और" - उसने मुझे घूरा- "गिलासों पर से उंगलियों के निशान उठाये जा सकते हैं।"

"विस्की का एक पैग मैंने यहां पिया था ।"

"जो कि मिसेज चावला ने पेश किया था ?"

"हां ।”

"जो कि उसने खुद भी पिया था ?"

"हां ।" - मैं विचलित स्वर में बोला।

"ऐसी औरत के बारे में तुम क्या राय कायम करोगे जो कि अपने ताजे-ताजे मरे पति की लाश के सिरहाने खड़ी २ होकर विस्की पीती हो और किसी दूसरे को भी पिलाती हो ?"

"विस्की हमेशा नशे के लिए ही नहीं पी जाती इंस्पेक्टर साहब !"

“सब-इंस्पेक्टर । मैं इंस्पेक्टर नहीं हूं।"

"विस्की ट्रांक्विलाइजर का भी काम करती है । घबराये, बौखलाये आदमी को तसकीन देने का भी काम करती है।"

"आई सी ! तो मिसेज चावला विस्की के जाम में तसकीन तलाश कर रही थी ? खाविन्द की मौत के सदमे के शिकार अपने दिल को राहत पहुंचा रही थी ?"

"हां ।"

"साथ में तुम भी ?"

"मैं किसी सदमे का शिकार नहीं था। मैं, सिर्फ मिसेज चावला का साथ दे रहा था ।"

"बाकायदा ? चियर्स बोलकर ?"

"अब यादव साहब आप तो...."

"नेवर माइण्ड । तो फिर तुम्हारी मिसेज चावला से तफसील में कोई बात हुई थी कि उसे तुम्हारी क्यों खिदमत दरकार थी ?"

"तफसील से नहीं हुई । अलबत्ता इतना उसने जरूर बताया कि उसे अपने पति पर शक था कि उसके किसी गैर औरत से ताल्लुकात थे इसलिए हकीकत जानने के लिए वह अपने पति की निगरानी करवाना चाहती थी। अब जबकि पति ही नहीं रहा था इसलिये इस काम के लिये मेरी सेवाओं की जरूरत नहीं रही थी।"

"यानी कि तुम्हारी छुट्टी ?"

"नहीं । छुट्टी नहीं । छुट्टी हो गई होती तो मैं यहां से चला न गया होता !"

"तो ?"

"वो अभी भी मेरी क्लायंट है।"

"अब किसलिए ?"

"इसलिये कि पुलिस वाले उसके पति की हत्या के लिये उसे जिम्मेदार न ठहराने पाएं?"

"यह हत्या का केस है ?"

"हां ।"

"तुम जानते हो इस बात को ?"

"हां । यह तो अन्धे को दिखाई दे रहा है कि.."

"फिर भी तुमने पुलिस को खबर देते वक्त टेलीफोन पर कहा था कि चावला साहब ने अपने-आपको शूट करके आत्महत्या कर ली थी ?"

"तब कहा था लेकिन बाद में मेरे ज्ञानचक्षु खुल गये थे।"

"कैसे ?"

हैं "गोली से हत्प्राण के माथे में बने सुराख के गिर्द जले बारूद के कण मुझे नहीं दिखाई दिये थे, जिससे साफ जाहिर
होता था कि गोली फासले से चलाई गई थी।"

"लेकिन मर्डर वैपन पर हत्प्राण की उंगलियों के निशान पाये गये हैं और यह बात इसे आत्महत्या का केस साबित करती है।"

"तुम इसे आत्महत्या का केस समझ रहे हो ?"

"समझ लें ?" - वह ऐसे स्वर में बोला जैसे मेरे साथ बिल्ली-चूहे का खेल खेल रहा हो । "मुझसे पूछ रहे हो ?"

"हां ।"

समझ लो ।"

यूं ही ? फोकट में ?

" मैंने हड़बड़ाकर यादव का मुंह देखा। "रोकड़े का तुमसे क्या वादा किया है विधवा ने ?"

“तुम हिस्सा चाहते उसमें ?"

"हर्ज क्या है ?"

"हर्ज तो कोई नहीं लेकिन वह हिस्सा बहुत कम होगा। तुम इस बाबत सीधे मिसेज चावला से बात करो।"

"तुम करा दो ।"

"तुम मुझे घिस रहे हो ।”

वह खामोश रहा । उसके चेहरे पर बड़ी अजीब मुस्कराहट थी । उसकी आंखों में बड़ी अजीब चमक थी। यादव कोई दूध का धुला पुलिसिया नहीं था । एक केस के सिलसिले में उसने नगर के करोड़पति ज्वैलर, अब-दिवंगत, दामोदर गुप्ता से मेरे सामने रिश्वत ली थी जिसमें से पांच हजार रुपये उसे उसकी पोल खोल देने की धमकी देकर मैंने भी झपट लिये थे लेकिन इस बार मुझे विश्वास न हुआ कि वह रिश्वत की तरफ इशारा कर रहा था । ऐसी बात होती तो उसने मुझे हर हाल में पहले ही वहां से चलता कर दिया होता । वह सिर्फ मुझे खिजा रहा था, मुझे घिस रहा था मेरे साथ चूहे-बिल्ली का खेल खेल रहा था। "यह एक आजाद मुल्क है।" –
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