RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"अब तो" - वह बोली - "मैं अकेली ही समझो ।"
"ओह !"
"वैसे नौकर-चाकर बहुत हैं।"
तब मुझे चावला के वर्दीधारी शोफर का ध्यान आया। "साहब का शोफर" - मैंने पूछा –
"यहीं रहता है या मर्सिडीज छोड़कर घर चला जाता है ?"
"यहीं रहता है।"
"उसे बुलाओ।"
"क्यों ?"
"उससे यह मालूम हो सकता है कि साहब छतरपुर कैसे पहुंचे थे।"
"जरूरी नहीं, उसे मालूम हो ।”
"मैंने कहा है, मालूम हो सकता है। पूछने में क्या हर्ज है?"
"अच्छा । भीतर स्टडी में इण्टरकॉम है। मैं उस पर उसे यहां आने के लिए भी कहती हूं और तुम्हारा चैक भी बनाकर लाती हूं।"
"वैरी गुड ।"
अपना ब्रांडी का गिलास हाथ में थामे वह बार के पहलू में ही बने एक बन्द दरवाजे को खोलकर भीतर दाखिल हो गई
मैं ब्रांडी का गिलास संभाले एक सोफे पर जा बैठा और बीस हजार की डाउन पेमंट और कुल जमा दो लाख रुपये का सपना देखने लगा। सपना मुझे बहुत सुखद लगा। राज - मैंने खुद अपनी पीठ थपथपाई - दि लक्की बास्टर्ड।
कमला वापिस लौटी । उसके हाथ में एक चैक था जो कि उसने मुझे सौंप दिया।
"शुक्रिया" - मैंने चैक का एक बार मुआयना किया और फिर उसे दोहरा करके जेब में रख लिया - "अब यह समझ लो कि हमारे सहयोग पर सरकार की मोहर लग गई।"
"दैट्स गुड ।" तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी।
कमला ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला। उसी शख्स ने भीतर कदम रखा जिसे मैंने दिन में शोफर की वर्दी पहने चावला की मर्सिडीज चलाते देखा था। उस वक्त वह कुर्ता-पाजामा पहने था और कंधों के गिर्द एक शाल लपेटे था।
"इसका नाम कदमसिंह है" - कमला बोली - "यह साहब का शोफर है।"
"मुझे पहचाना, कदमसिह ?" - मैंने पूछा।
"नहीं ।" - वह बोला ।
"मुझे राज कहते हैं। मैं डिटेक्टिव हूं।" प्राइवेट मैंने जानबूझकर नहीं कहा। वह खामोश रहा । मेरे डिटेक्टिव होने का उसने कोई रोब खाया हो, ऐसा उसकी सूरत से न लगा ।
"आज दिन में तुम चावला साहब की गाड़ी चला रहे थे !" - मैं बोला।
“जी हां" - वह बोला - "हमेशा ही चलाता हूं।"
"कहां-कहां गए थे, साहब ?" वह हिचकिचाया । उसने कमला की तरफ देखा।
"जवाब दो, कदमसिंह ।" - कमला बोली ।
"पहले हम यहीं से मद्रास होटल गए थे" - वह बोला –
"वहां से साहब को मैं लंच के लिए चेम्सफोर्ड क्लब लेकर गया था। फिर वापिस आया था। फिर राजेन्द्रा प्लेस जाना हुआ था।"
"अकेले ? यानी कि तुम और साहब ?"
|