RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
मैं सोचने लगा, टेलीफोन तो स्टडी में भी हो सकता था। इतनी बड़ी कोठी में तो कई टेलीफोन मुमकिन थे। मुझे लगा कि घंटी स्टडी में भी बजी थी।
मैं उठ खड़ा हुआ।
स्टडी का दरवाजा खोलकर मैं भीतर दाखिल हुआ। भीतर बत्ती नहीं जल रही थी लेकिन बाहर की जो थोड़ी-बहुत रोशनी वहां प्रतिबिम्ब हो रही थी, उसमें मुझे परे एक मेज पर पड़ा टेलीफोन दिखाई दिया। मैंने आगे बढ़कर उसका रिसीवर उठाकर अपने कान से लगा लिया।
मेरे कानों में एक जनाना आवाज पड़ी लेकिन मुझे गारण्टी थी कि वह आवाज कमला की नहीं थी।
तभी मेरी खोपड़ी पर जैसे कोई बम छूटा । फोन मेरे हाथ से छूट गया और मेरे घुटने मुड़ गए । मेरी आंखों के आगे लाल-पीले सितारे नाचने लगे । अंधेरे में मैंने अपने हाथ सामने को झपटाये तो वे किसी के जिस्म से टकराये । तभी एक और डंडा मेरी खोपड़ी की तरफ आया ।। मैंने पूरी शक्ति से डंडा पकड़कर अपनी तरफ खेंचा डंडे वाला आदमी नीचे आकर गिरा मैं उसकेऊपर सवार हो गया। अंधेरे में मैंने अपने दोनों से अपने नीचे दबे आदमी पर घूँसे बरसाने शुरूकर दिए । मुझे नहीं पता था कि मैं उस पर कितने घूँसे बरसा रहा था पर बदले में कम-से-कम मुझ पर कोई प्रहार नहीं हो रहा था। फिर पता नही कैसे वह मुझे अपने ऊपर से परे धकेलने में कामयाब हो गया ।
नीम अंधेरे में बड़ा मुझे अपने चेहरे की तरफ लहराता जाता दिखाई दिया। मैंने तुरन्त करवट बदली । डण्डा । - जोर से फर्श से टकराया। वह आदमी उठकर दरवाजे की तरफ भागा। मैंने फर्श पर पड़े-पड़े ही जम्प लगाई ।
मेरी दोनों बांहें उसकी कमर से लिपट गई । हम दोनों धड़ाम से नीचे गिरे । मैं उससे पहले उछलकर अपने पैरों पर खड़ा हो गया। मैंने अपने जूते की एक भरपूर ठोकर उसकी पसलियों में जमाई । वह गेंद की तरह परे उछला और फिर जहां जाकर गिरा, वहां से दोबारा न हिला । में हांफता हुआ उसके सिर पर जा खड़ा हुआ और उसके शरीर में कोई हरकत होने की प्रतीक्षा करने लगा।
तभी लगभग भागती हुई कमला स्टडी रूम में दाखिल हुई। "राज !" - वह आतंकित भाव से बोली - "क्या हुआ ?"
"मुझे नहीं मालूम कि यहां की बिजली का स्विच कहां है !" - मैं बोला - "बत्ती जलाओ, फिर देखते हैं, क्या हुआ ।" .
उसने बत्ती जलाई तो मैंने देखा कि मेरे सामने नीचे फर्श पर जो आदमी पड़ा था, मेरे अधिकतर घूसे, लगता था, उसके चेहरे पर ही पड़े थे। उसकी नाक में से खून बह रहा था, ऊपर का होठ कट गया था, सामने के दो दांत टूट गए थे और चेहरा यूं लगता था जैसे स्टीम रोलर से टकराया था। उस वक्त उसकी चेतना लुप्त थी।
खुद मेरी कनपटी और खोपड़ी पर दो गूमड़ सिर उठाने लगे थे और मेरी खोपड़ी में यूं सांय-सांय हो रही थी जैसे जैसे भीतर कोई बम विस्कोट होने वाला था । मेरा दिल धाड़-धाड़ मेरी पसलियों से टकरा रहा था।
"कौन है यह ?" - कमला बदहवास भाव से बोली।
"तुम नहीं जानती ?" - मैंने पूछा। -
"इसकी सूरत आज से पहले मैंने कभी नहीं देखी ।"
"इसे होश में लाते हैं । फिर यह खुद ही बताएगा कि यह कौन है ! तुम थोड़ा पानी लेकर आओ ।”
वह वहां से चली गई। मैंने उस आदमी की बगलों में हाथ डालकर उसे उठाया और उसे एक कुर्सी पर डाल दिया। वह चालीसेक साल का काफी लम्बा-चौड़ा आदमी था । वह एक सूट पहने था जिसको टटोलकर मैंने उसके कोट की भीतरी जेब से एक रिवॉल्वर बरामद की । जिस डण्डे से दो बार मेरी खोपड़ी पर प्रहार किया गया था, वह परे लुढ़क गया था और गनीमत थी कि वह लकड़ी का था । लोहे का होता तो उसके पहले ही वार से मेरी खोपड़ी तरबूज बन चुकी होती ।। कमला पानी का एक जग लेकर वापिस लौटी। मैंने जग खुद थाम लिया और उसके मुंह पर पानी के छीटें मारने लगा। उसे होश आया। अपने सामने का नजारा देखते ही उसका हाथ अपने कोट की भीतरी जेब की तरफ झपटा।
"इसे ढूंढ रहे हो ?" - मैंने उसकी रिवॉल्वर उसकी तरफ तानी ।
“साले !" - वह खून थूकता हुआ कहर भरे स्वर में बोला - "खून पी जाऊंगा । जान से मार डालूंगा।"
"अच्छा ! कैसे करोगे इतने सारे काम ?"
उसने फिर गाली बकी तो अपने बायें हाथ में अभी भी थमे जग का सारा पानी मैंने उस पर पलट दिया।
"कौन हो तुम ?" - मैं बोला ।
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