RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
क्या पतंगबाज औरत थी - मैं मन ही मन बुदबुदाया - पहले खींचा, फिर बांधा, फिर ताना, फिर तानकर छोड़ दिया कि बेटा और कुछ नहीं तो डोर बंधे-बंधे लटके जरूर रहो।। "मैंने मजाक किया था ।" - वह बोली ।
"आई अंडरस्टैंड ।"
"मैं तुम्हें दिल से कोई अपशब्द नहीं कह सकती । दिल से मैं तुम्हें बहुत पसंद करती हूं।"
“मुझे मालूम है । आठ घंटे की हद से ज्यादा लंबी और मुतवातार मुलाकात में मेरा आपको यूं पसंद आ जाना स्वाभाविक था।"
"मैं तुम्हें पसंद नहीं ?"
पसंद "बहुत ज्यादा पसंद हो । ताजमहल के बाद एक आप ही को तो देखा है पसंद आने के काबिल ।”
"दिल से कह रहे हो ?"
"हां ।"
"फिर तो हमारी खूब निभेगी ।"
"जाहिर है ।"
"जरा हालात सुधर जाएं, फिर देखना क्या आता है जिंदगी का मजा !"
यानी कि उस अक्ल के अंधे की चिता की राख ठंडी पड़ जाए जो पति के नाम से जाना जाता था। वह मुझे कार तक छोडने आई ।। वहां, मेरे विदा होते-होते भी उसने मेरे गाल पर एक चुंबन जड़ दिया। उसकी मजबूरी थी, उसका पति मर कर उसके लिए असुविधा पैदा कर गया था, वरना वह शायद आखिरी क्षण पर भी मुझे कार में से वापिस बाहर घसीट लेती।
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टेलीफोन की निरंतर बजती घंटी की आवाज से मेरी नींद खुली । रिसीवर उठाने से पहले मैंने फोन के पहलू में रखी टाइमपीस में टाइम देखा । ग्यारह बज चुके थे।
में हड़बड़ाकर उठ बैठा । आंखें मिचमिचाते हुए मैंने फोन उठाकर कान से लगाया और बोला - "हैलो !”
| "गुड मॉर्निग" - मुझे डॉली का मधुर स्वर सुनाई दिया - "सोचा, आपको खबर कर दें कि कायनात स्टार्ट हो चुकी है।
और लोगों को अपना दिन शुरू किए कई-कई घंटे हो चुके हैं।"
"यही बताने के लिए तुमने मुझे फोन किया है ?" - मैं भुनभुनाया।
"हां ।"
"लानत है तुम पर ।"
| "वो किसलिए ?"
"मैं साढ़े चार बजे सोया था ।"
"यह मेरी गलती है ?"
"नहीं-नहीं । गलती तो मेरी ही है मैंने तुम्हारे जैसी वाहियात सैक्रेट्री चुनी ।”
"सैक्रेट्री कोई बीवी तो नहीं होती जो कि एक बार गेले का फंदा बन गई तो बन गई । निकाल बाहर कीजिये ऐसी वाहियात सैक्रेट्री को ।"
"यह तुम मुझे राय दे रही हो ?" .
"जब तक मैं आपकी सैक्रेट्री हूं तब तक आपको सही और संजीदा राय देना मेरा फर्ज बंता है।"
“अब तुम चाहती क्या हो ?"
"मैं यह चाहती हूं कि जो मेमसाहब आपके पहलू में लेटी हुई हैं और जिनकी वजह से आप साढ़े चार बजे तक सो नहीं पाये हैं, उन्हें रुखसत कीजिये और काम-धाम में लगिए और चार पैसे कमाइए ताकि आप मेरी तनखाह अदा करने के काबिल बन सकें, क्योंकि पहली तारीख करीब आ रही है।"
"मेरे पहलू में कोई नहीं है।"
"यानी कि जो थी वह पहले ही रुखसत हो चुकी है ?"
"कोई थी ही नहीं । मेरा पहलू फकीर की झोली की तरह खाली है। तुम चाहो तो उसे ओक्युपाई कर सकती हो ।”
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