RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
तब मैं बिस्तर से निकला। नित्यक्रम से निवृत होकर और नया सूट पहनकर जब मैं तैयार हो गया तो मैंने लैजर बुक निकाली। अगर उस डायरी के बदले में मुझे दस हजार रुपये हासिल हो सकते थे तो मुझे उसकी ज्यादा हिफाजत करनी चाहिए थी।
मैंने उसे टॉयलेट में पानी की टंकी के ढक्कन के भीतरी भाग के साथ टेप लगाकर फिक्स कर दिया ।
मैं बाहर की ओर बढा । बैठक में मैं ठिठका । मेरी निगाह उस दीवार पर पड़ी जहां से पलस्तर उखड़ा पड़ा था।
हमेशा ही पड़ती थी ।
वह उखड़ा पलस्तर मेरी जिन्दगी की एक बहुत अहम घटना की यादगार था। कभी मैंने वहां दीवार पर एक विस्की की बोतल फेंककर मारी थी। वह उखड़ा पलस्तर मेरी निम्फोमैनियक बीवी मंजुला की यादगार थी जो अब इस दुनिया में नहीं थी। मैंने एक गहरी सांस ली और आगे बढ़ गया । फिर घर से निकलकर जो सबसे पहला काम मैंने किया, वह यह था कि मैंने कमला चावला का बीस हजार रुपये का चैक भुनवाया । नोट मेरे कोट की भीतरी जेब में पहुंच गए तो तब जाकर मुझे विश्वास हुआ कि चैक कैश हो गया था
मैं पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा। वहां मैंने यादव को तलाश किया।
"कैसे आये ?" - यादव तनिक रुखाई से पेश आया ।
“यही जानने आया था कि वह चौधरी नाम का जो चोर गिरफ्तार हुआ था, उससे तुमने क्या जाना ?"
"कुछ नहीं ।”
"कुछ नहीं ? मतलब ?"
“मतलब यह कि कुछ जानने की नौबत आने से पहले ही जान पी एलेग्जैण्डर उसे जमानत पर छुड़ा ले गया।"
"ओह !" - मैं एक क्षण ठिठका और फिर बोला - "चौधरी कुछ तो बका होगा !"
"कुछ नहीं बका। वह कहता है कि वह तो अपने साहब का एक सन्देशा लेकर चावला की कोठी पर गया था जहां कि तुमने उसे पकड़कर खामखाह पीटना शुरू कर दिया था।"
"वह कोठी के भीतर स्टडी में कैसे पहुंचा ?"
"उसे पहुंचाया गया था। एक नौकर उस वहां बिठाकर गया था।"
"कोई नौकर ऐसा कहता है ?" ।
"नहीं कहता । इसलिए नहीं कहता क्योंकि मालकिन ने और उसके चमचे ने यानी कि तुमने ऐसा कहने के लिए मना किया है।"
"उसके पास रिवॉल्वर थी।"
"उसके पास कोई रिवॉल्वर नहीं थी । जो रिवॉल्वर तुम उसके पास से बरामद हुई बताते हो, वह नहीं जानता कि वह कहां से आई !"
"उसने डंडे के प्रहार से मेरी खोपड़ी खोलने की कोशिश की थी।"
"की थी, लेकिन तब की थी जब तुम उसे जान से मार देने पर आमादा हो गए थे।"
"कमाल है ! तुम्हें उसकी इस कहानी पर विश्वास है ?"
"नहीं ।"
"फिर भी तुमने उसे छोड़ दिया ?"
"मजबूरी थी। लेकिन मैंने उसकी निगरानी के लिए एक आदमी तैनात किया हुआ है । चौधरी दोबारा मय सबूत हमारे हत्थे चढ़ सकता है।"
वह मेरे लिए कोई सांत्वना न थी ।
मैं झण्डेवालान पहुंचा। वहां हत्प्राण के वकील बलराज सोनी का वह दफ्तर था जिसका पता मैंने डायरेक्ट्री में देखा था। बलराज सोनी वहां मौजूद था। मेरे आगमन से वह खुश हुआ हो, ऐसा मुझे न लगा । "कैसे आये ?" - वह बोला ।
"कोई खास वजह नहीं ।" - मैं लापरवाही से बोला – "इधर से गुजर रहा था । सोचा, मिलता चलूं ।”
"कुछ पियोगे ?"
"नहीं, शुक्रिया।" वह खामोश हो गया।
“पुलिस ने आपसे कोई पूछताछ नहीं की ?" - मैंने सहज भाव से पूछा।
"किस बाबत ?"
"चावला साहब के कत्ल की बाबत ।"
"मुझसे क्या पूछते वो ?"
"मसलन यही कि कत्ल के वक्त आप कहां थे?"
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