RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
बनाए गया के ?"
"हां । बनाए गया । आपने उसके वकील से बात की थी। उसने कुछ नहीं बताया आपको ?"
"नां, जी ।"
"मालूम हो जाएगा" - मैं उठ खड़ा हुआ ।
"बैठो, जी । कॉफी मंगावें ?"
"नहीं, शुक्रिया । अब मैं रुखसत चाहता हूं । जाती बार आपको एक बात बता जाना चाहता हूं।"
"वा का ?"
"मैं पुलिस नहीं हूं। मैं एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूं।
" पिराइवेट डिटेक्टिव ?" - वह बोला - "फिर तो हम थमें जान गए होड़ ।"
"अच्छा !"
"हां ! थम राज हो ?"
"कैसे जाना ?"
"चावला की मौत की खबर के साथ थमारा नाम छापे में छपा होड़ ।"
"ओह !"
"वैसे जो बातां मैंने थमारे सां की, वा म्हारे को पिराइवेट डिटेक्टिव से भी करने से गुरेज न होवे था । म्हारा दिल साफ
"जानकार खुशी हुई।” मैं फिर से उसका शुक्रिया अदा करके वहां से विदा हो गया।
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टेलीफोन डायरेक्ट्री के मुताबिक शैली भटनागर की मैट्रो एडवरटाइजिंग एजेंसी एंड साउंड स्टूडियो जनपथ पर शॉपिंग सेंटर की भीड़-भाड़ से परे उसके कनाट प्लेस से लगभग दूसरे सिरे पर क्लेरिसीज होटल के करीब था। शैली भटनागर का व्यवसाय-स्थल मैंने अंग्रेजों के जमाने की बनी एक एकमंजिला कोठी में पाया । कोठी के गिर्द विशाल लान था और उसके लकड़ी के फाटक पर एक चौकीदार बैठा था। टैक्सी को भीतर दाखिल होने की ख्वाहिशमंद पाकर उसने बिना हुज्जत किए फाटक खोल दिया । कोठी की पोर्टिको में मैं टैक्सी से उतरा । मैंने टैक्सी का भाड़ा चुकाकर उसे विदा किया। भीतर मेरे कदम एक सजे रिसेप्शन पर पड़े। "मैं डिटेक्टिव हूं।" - मैं जानबूझकर रूखे स्वर में वहां बैठी सुंदरी बाला से बोला - "मैं अमर चावला के कत्ल की बाबत शैली भटनागर से मिलना चाहता हूं।"
डिटेक्टिव शब्द का अनोखा रोब था। उसने फौरन शैली भटनागर को फोन किया। फिर उसने मुझे एक चपरासी के सुपुर्द कर दिया। जिस ऑफिस में चपरासी मुझे छोडकर गया, वह एडवरटाइजिंग के ग्लैमरस धंधे जैसा ही ग्लैमरस था । वहां की हर बात में रईसी की बू बसी थी । शैली भटनागर निश्चय ही बहुत पैसे कमाता था। वह एक अधेड़ावस्था का लेकिन फिल्म अभिनेताओं जैसा खूबसूरत व्यक्ति था । उसके बाल तकरीबन सफेद थे लेकिन वह उनमें भी जंच रहा था । वह एक शानदार सूट पहने था। "हैलो !" - उसने उठकर मुझसे हाथ मिलाया - "मुझे शैली भटनागर कहते हैं।"
"और बंदे को राज ।" - मैं बोला।
"तशरीफ रखिए ।"
मैं एक निहायत आरामदेह कुर्सी में ढेर हो गया।
"तो आप डिटेक्टिव हैं ?" - वह बोला ।
"प्राइवेट ।" - मैंने बताया।
"मुझे मालूम है।"
"कैसे मालूम है ?"
"अभी-अभी मालूम हुआ है, जनाब ! आपके नाम से । पेपर में मैंने चावला के कत्ल के संदर्भ में राज
नामक एक प्राइवेट डिटेक्टिव का जिक्र पढ़ा था।"
"आई सी !"
एक चपरासी नि:शब्द भीतर आया और कॉफी सर्व कर गया। मैंने अपना रेड एंड वाइट का पैकेट निकाला और उसे सिगरेट ऑफर किया।
"शुक्रिया" - वह बोला - "मैं सिगरेट नहीं पीता।"
"अच्छा ! विज्ञापन के धंधे से ताल्लुक रखते आप पहले आदमी होंगे जो सिगरेट नहीं पीते ।"
वह हंसा ।। "लेकिन आप शौक से पीजिए ।" - वह बोला।
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