Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
03-24-2020, 09:07 AM,
#54
RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"नहीं" - वह उठती हुई बोली - "आप एडवांस जरूरी समझिए । मैं लाती हूं एडवांस ।" वह वहां से विदा हो गई। मैंने ताबूत की एक कील सुलगाई और खुद अपनी पीठ थपथपाई - राज, दि लक्की बास्टर्ड। चौबीस घंटे से भी कम समय में मैंने बाईस हजार रुपए कमा लिए थे। अब जो फीस मुझे हासिल होने जा रही थी, असल काम करने वाले को उसमें से मैंने सिर्फ सौ रुपए रोज देने थे । इतने पैसे पैसे पीट लिए थे मैंने और वह मेरी कमबख्त सैक्रेट्री मुझे उसकी तनखाह कमाने के काबिल नहीं समझती थी। मेज पर एक फिल्मी पत्रिका पड़ी थी। मैं उठाकर उसके पन्ने पलटने लगा । एक पन्ने पर मुझे जूही चावला की एक बड़ी दिलकश रंगीन तस्वीर छपी दिखाई दी जो की किसी साड़ियों के विज्ञापन के साथ छपी थी। मैंने वह तस्वीर पत्रिका में से फाड़ ली और उसे तह करके अपनी जेब में रख लिया । वह वापिस लौटी। चैक की जगह उसने मुझे सौ-सौ के बीस नोट नकद दिये तो मेरी तबीयत और भी प्रसन्न हो गयी ।

"चावला साहब के कत्ल की बाबत" - मैंने पूछा - "पुलिस ने आपसे कोई पूछताछ नहीं की ?"
,,,
"अभी नहीं की।"

"पुलिस देर-सबेर पहुंचेगी जरूर आपके पास । उनसे आपकी रिश्तेदारी की बात पुलिस से छुपी नहीं रहने वाली ।

और किसी खामख्याली में न रहिएगा । पुलिस आप पर भी कत्ल का शक कर सकती है।"

“मुझ पर ?" - वह अचकचाकर बोली। |

"हां ।”

"मैंने उनका कत्ल नहीं किया।"

आपसे और किसी जवाब की उम्मीद भी नहीं की जा सकती ।"

"मैं उनसे मुहब्बत करती थी ।"

"उनसे ज्यादा मुहब्बत शायद आप उनकी दौलत से करती हों ?"

"मतलब ?"

"अब यह न कहिएगा की आपको यह खबर नहीं कि चावला साहब की वसीयत के मुताबिक उनकी तीन-चौथाई संपत्ति की मालकिन आप हैं।"

"नहीं कहूंगी लेकिन, मिस्टर राज, उस वसीयत की खबर मुझे आज ही लगी है। आज ही सुबह चावला साहब के वकील ने मुझे वसीयत की बाबत बताया था।"

“पहले से आपको वसीयत के बारे में नहीं मालूम था ?"

"नहीं मालूम था ।"

"यह कैसे हो सकता है ?

चावला साहब ने वसीयत करते ही आपको इस बाबत बताया होगा। आखिर आपकी खातिर वे अपनी ब्याहता बीवी को अपनी जायदाद से लगभग बेदखल कर रहे थे।"

"मुझे नहीं बताया था।"

"अब तो आप यही कहेंगी।"

"मैं सच कह रही हूं" - एकाएक उसका स्वर भर्रा गया - "मैं चावला साहब से मुहब्बत करती थी । कत्ल तो दूर की बात है, मैं तो उनका बुरा भी नहीं चाह सकती थी ।"

आंसुओं की शक्ल में छलछलाती संजीदगी मुझे उसकी आंखों में दिखाई दी। लेकिन फिर मुझे याद आया कि वह औरत थी । किसी औरत के लिए बावक्तेजरूरत आंसू बहाने लगना क्या बड़ी बात थी।

मैं अपने स्थान पर से उठकर उसके सोफे पर उसके पहलू में पहुंचा । मैंने एक बांह उसके कंधों के गिर्द लपेटी और दूसरे हाथ से बड़े प्यार से उसके गुलाबी कपोलों पर ढुलक आई आंसुओं की बूंदें पोंछी । करना तो मैं ऐसा अपने होंठों से चाहता था लेकिन उस वक्त मेरी अक्ल - नीयत नहीं, अक्ल - उतनी ही लिबर्टी की गवाही दे रही थी। बहरहाल उतने में ही जन्नत का मजा आ गया। मेरा जी चाहने लगा की वह रोती रहे और मैं उसके आंसू पोंछता रहूं। "छि: !" - मैं अपने स्वर में मिश्री घोलता हुआ बोला - "अच्छे, बच्चे कहीं रोते हैं !" उसने सुबकना बंद किया और फिर मेरे से थोड़ा परे सरक गयी ।


मुझे लगा, जैसे मेरी बांहों से जन्नत निकल गई।

,,, - "मुझे चावला साहब की मौत का बड़ा दुख है।" - वह गमगीन स्वर में बोली ।

"वो तो मैं देख ही रहा हूं। विस्की कौन-सी पीते थे चावला साहब ?"

"डिम्पल !"

"जरा देखें तो कैसी होती है डिम्पल ?"
ऐसा मैंने विस्की पीने की नीयत से नहीं कहा था । मैं सिर्फ उसका ध्यान बंटाना चाहता था, उसे उसके गमजदा मूड से उबारना चाहता था ताकि मैं उससे कुछ जरूरी सवालात पूछ सकता ।
वह उठकर बाहर गई ।

मैंने नया सिगरेट सुलगा लिया। वह लौटी तो उसके साथ ट्रे उठाए उसकी नौकरानी थी । ट्रे में डिम्पल की बोतल, सोडा साइफन, काइमपा कोला और दो गिलास थे। नौकरानी ट्रे को सैंटर टेबल पर रखकर विदा हो गई तो जूही ने बड़ी दक्षता से मेरे लिए जाम तैयार किया। साफ जाहिर हो रहा था की चावला की जिंदगी में उसकी वह सेवा वहां हमेशा वही किया करती थी। अपने लिए उसने गिलास में कैम्पा कोला डाला। मैंने चीयर्स बोला, शानदार स्कॉच विस्की का रसास्वादन किया और बोला - "अब मैं चंद सवाल पूछे ?"

पूछो।" - वह सुसंयत स्वर में बोली।

"चावला साहब कल यहां किसलिए आए थे?"

"कौन कहता है, वे कल शाम को यहां आए थे ?"

"मैं कहता हूं। कल शाम को वे यहां आए थे।"

"तुम्हें कैसे मालूम ?"

"मैं जासूस हूं । रिमैम्बर ?"

वह खामोश रही ।

"आपकी चावला साहब से आशनाई थी । आते तो वे यहां अक्सर होंगे। मैं सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि कल भी वे तफरीहन ही आए थे या कोई और वजह भी थी ?"

"कल दरअसल वो बड़े फिक्रमंद मूड में थे और एक बड़े गंभीर मसले पर मुझसे बात करने आए थे।" "क्या था वह गंभीर मसला ?" "हमारी शादी ।"
"इसमें मसले वाली क्या बात थी ?" "एक तो ये बात थी की वे पहले से ही शादीशुदा थे। दूसरे वे चाहते थे कि उनसे शादी के बाद मैं मॉडलिंग छोड़ दें और एक्ट्रेस बनने का ख्याल तो कतई छोड़ दें ।"

"आपको इससे ऐतराज था ?"

था ?"

"ऐतराज तो नहीं था लेकिन अपने कैरियर से फौरन किनारा कर लेना भी मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था। मैंने उन्हें यही कहा था कि पहले शादी तो हो, फिर अगर मेरा कैरियर हमारे विवाहित जीवन में अड़्गा बनता दिखाई देगा तो मैं छोड़ दूंगी उसे ।"

"कबूल की थी उन्होंने यह बात ?"

"हां । बड़ी मुश्किल से की थी लेकिन की थी।" =

"इसके बाद और क्या बातें हुई उनसे ?" –

"और कुछ नहीं । इतने में सात बज गए थे और उन्होंने किसी से मिलने जाना था।"


"किससे ?"

"मालूम नहीं ।"

"उन्होंने कोई नाम नहीं लिया था ?"

"नहीं ।"

"आपने पूछा भी नहीं था ?"

"नहीं ।"

"क्यों ?"

"उनकी ऐसी बातों में दखलंदाजी मुझे पसंद नहीं थी।"

"आप जानती नहीं उन्होंने किससे मिलने जाना था या बताना नहीं चाहती ?"

"जानती नहीं ।”

"यह मालूम हो कि उस मुलाकात के लिए उन्होंने कहां जाना था ?"

"हां । यह मालूम है।"

"कहां जाना था ?" "छतरपुर । अपने फार्म हाउस में ।"

"आप समझती हैं न कि उसी आदमी ने उनका वहां कत्ल किया हो सकता है जिससे कि वो मिलने गए थे?"

"समझती हूं।"

फिर भी उसका नाम नहीं बताना चाहतीं ?"

“जो बात मुझे मालूम ही नहीं, वो कैसे बता सकती हूं भला ?"

"नैवर माइंड । तो चावला साहब कल शाम सात बजे तक यहां थे?"

"हां ।”

"गए कैसे थे वे यहां से ? अपनी कार पर ?" ‘

"नहीं टैक्सी पर ।"
,,,
"अपनी कार पर वयों नहीं ?"

"अपनी कार उन्होंने वापिस भेज दी थी।"

"क्यों ?"

"वजह मुझे नहीं मालूम।"

"आदमी कारों का व्यापारी हो और टैक्सी पर सफर करे, यह बात अजीब नहीं लगती ?"

"लगती है।"
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