RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
यह विस्की नहीं पीती ।" - उत्तर मैंने दिया ।
कमला के चेहरे पर विश्वास के भाव न आये।
"ऑनेस्ट ।" - जूही अपने गले की घण्टी छूती हुई बोला।
,,, फिर भी कमला ने जब तक उसका कैम्पा कोला का गिलास सूंघकर न देख लिया उसने उसकी बात पर विश्वास न किया।
कमाल है !" - वह बोली - "बाकी तो सारे काम करती हो । यह कैसे छूट गया तुमसे ?
" जूही ने आहत भाव से कमला की तरफ देखा ।
"कमला !" - मैं बोला - "भगवान के लिए बाज आ जाओ।"
"ओके ! ओके !"
मैंने अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली । सवा छ: हो चुके थे। यानी कि अगर मैंने एलैग्जैण्डर से मुलाकात के लिये वक्त पर पहुंचना था तो मुझे वहां से विदा हो जाना चाहिए था।
लेकिन कमला को पीछे जूही के पास छोड़ जाने की कोई सुखद कल्पना कर पाना कठिन काम था। "देखो" - मैं दोनों से सम्बोधित हुआ - "हत्यारे की तलाश की दिशा में अगर मैंने कोई तरक्की करनी है तो मुझे जाकर किसी काम-धाम पर लगना होगा । ठीक ?"
कोई कुछ न बोला।
"तुम मेरे साथ चलती हो ?" - मैं कमला से बोला।
"नहीं" - वह बोली - "मैं अपने आप आई हूं, अपने-आप चली जाऊंगी।"
"तो फिर यह गारंटी करो कि मेरे पीठ फेरते ही यहां तुम दोनों एक-दूसरे का मुंह नहीं नोचने लगोगी। यहां तुम दोनों में से एक की लाश नहीं बिछी होगी।"
मुझे आण्टी से कोई डर नहीं ।" - जूही बोली - "ये जब तक चाहें, यहां ठहरें ।”
मैंने कमला की तरफ देखा। . वह अपने लिए नया जाम तैयार करने लगी। उसके उस एक्शन से ही मुझे लगा कि अब वह अपना रौद्र रूप त्याग चुकी थी। "सी यू कमला !" कमला ने अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
मैं जूही की तरफ घूमा और बोला - "मेरा आदमी बॉडीगार्ड की जिम्मेदारी निभाने के लिये एक डेढ़ घण्टे में यहां पहुंच जायगा ।" जूही ने भी सहमति में सिर हिलाया ।।
एक-दूसरे की सूरत से बेजार दो स्त्रियों को अगल-बगल बैठा छोड़कर मैं वहां से विदा हो गया। जिस वक्त मैं राजेन्द्र प्लेस के आगे से गुजरा, उस वक्त पौने सात बज रहे थे लेकिन वहां एलैग्जैण्डर के पास हाजिर होने से ज्यादा जरूरी मेरा करोलबाग पहुंचना था जहां कि वह शख्स रहता था जिसे मैं जूही चावला के बॉडीगार्ड की ड्यूटी पर लगाना चाहता था। मेरी तकदीर अच्छी थी, वह मुझे घर पर मिल गया ।
उस शख्स का नाम हरीश पांडे था । वह रिटायर्ड फौजी था और आजकल एक शराब के स्मगलर के पास काम करता था। मेरे फायदे के उसमें दो गुण थे । एक तो उसके पास वक्त बहुत होता था और वक्त को पैसे में तब्दील करने का।
,,, कोई भी मौका छोड़ना वह हराम समझता था। दूसरे उसके पास लाइसेंसशुदा रिवॉल्वर थी । उम्र में वह पचास के पेटे में था और खूब हट्टा-कट्टा और तन्दुरुस्त था। जूही चावला की पत्रिका में से फाड़ी हुई तस्वीर मैंने उसे सौंपी और उसे समझाया कि उसने क्या करना था।
सौ रुपये रोज की बात सुनकर वह जितना खुश हुआ उतना ही चौबीस घण्टे की ड्यूटी की बात सुनकर वह । सकपकाया भी । बहरहाल उसने काम से इनकार न किया। मैंने उसे दो सौ रुपये एडवांस दिये और उसे जूही चावला की पता बताकर वहां से रवाना कर दिया। तब मैंने एलैग्जैण्डर के ऑफिस का रुख किया। वापिस राजेंद्रा प्लेस पहुंचने तक सात दस हो गये। लिफ्ट पर सवार होकर मैं उसके ऑफिस वाली इमारत की पांचवीं मंजिल पर पहुंचा।
वहां फ्लोर केवल एलैग्जैण्डर के ऑफिस में ही रोशनी का आभास मुझे मिला। बाकी-सब ऑफिस बन्द हो चुके थे
और अन्धकार में डूबे थे। मैंने उसे हौले से धक्का दिया तो उसे खुला पाया । बाहर खड़े-खड़े ही मैंने भीतर झांका तो पाया कि रिसैप्शन की कोई बत्ती नहीं जल रही थी। पिछले एक कमरे में रोशनी थी और वहां से वार्तालाप की आवाजें आ रही थीं। मैंने दबे पांव भीतर कदम रखा और पिछले दरवाजे के करीब पहुंचा। अब वार्तालाप मुझे स्पष्ट सुनाई देने लगा। "बॉस" - कोई कह रहा था - "अब इन्तजार करना बेकार है । सवा सात तो बज गए । अब क्या आयेगा वो ! मैं तो थक गया उसका इन्तजार करता-करता। मेरे ख्याल से तो..." –
"शटअप !" - कोई गुस्से से गुर्राया - "अपुन कब बोला तेरे को अपना ख्याल जाहिर करने के वास्ते ?"
वह एलैग्जैण्डर की आवाज थी ।
"सॉरी, बॉस !"
"बाहर अपनी जगह पहुंच । बुलाये बिना तेरे यहां कदम न पड़े।"
"यस बॉस !"
दरवाजा खुला ।
एक आदमी ने बाहर कदम रखा।
दरवाजा खुलने की वजह से थोड़ी देर के लिये बाहर का कमरा प्रकाशित हुआ लेकिन दरवाजा बंद होते ही वहां
अंधेरा छा गया। उसकी परछाई से मैंने अंदाजा लगाया कि वह चौधरी हो सकता था। वह बाहरी दरवाजा भी खोलकर ऑफिस से बाहर निकल गया । मैं सोचने लगा।
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