RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"लैजर निकाल ।” - एलैग्जैण्डर बोला। -
"ये दस हजार हैं?" - मैं बोला ।
"हां ! गिन ले । कोई नोट फटा हो तो बदल ले ।”
"यह रकम कम है।"
"टेलीफोन पर तेरे को यह रकम मंजूर थी।"
"तब मुझे माल की मुकम्मल अहमियत नहीं मालूम थी।"
"लैजर तेरे किसी काम की नहीं ।"
"लेकिन किसी और के बहुत काम की हो सकती है।"
"किसी और से तेरे को रोकड़ा नहीं मिल सकता।"
"यह साबित होना अभी बाकी है।"
"तू अपनी जुबान से फिर रहा है, छोकरे ?
" मैं सिर्फ मुस्कुराया।
“अपुन को जुबान से फिरने वाला भीडू पसन्द नहीं ।”
"मैं यहां तुम्हारी पसन्द-नापसन्द जानने नहीं आया ।”
"कुछ तो जानकर ही जायेगा यहां से । अगर जायेगा तो ।"
मैं खामोश रहा ।
"आखिरी बार तेरे को राय है । रोकड़ा उठा, उसकी जगह लैजर बुक रख और खुशी-खुशी घर जा ।"
"लैजर मेरे पास नहीं है।"
"तो कहां है?"
"वह किसी और के पास है।"
"किसके पास ? जिसके पास है, उसका नाम बोल ।"
"उसकी जरूरत नहीं । लैजर तुम्हें मिल जायेगी लेकिन उसकी मुनासिब कीमत हासिल होने से पहले नहीं ।"
"मुनासिब कीमत क्या है?"
"एक लाख ।"
,,, उसने हाथ बढ़ाकर मेरे सामने से नोट उठा लिये और उन्हें वापिस दराज में डाल लिया । "बिजनेस में कच्चा है तू।" - वह बोला - "तूने अभी-अभी दस हजार रुपये खो दिये ।”
"खोये नहीं है। उनकी उनसे ज्यादा बड़ी रकम की वसूली सिर्फ मुल्तवी की है।"
"अब लैजर के बदले में तेरे को कोई रोकड़ा नसीब नहीं होने वाला । अगर तू शुरू में ही अपनी एक लाख की मांग पर अड़ा रहता तो बात कुछ और होती । तब अपुन तेरे को समझदार बिजनेसमैन समझता लेकिन वो मौका तूने खो दिया।"
“अपना-अपना ख्याल है।"
"पीना खत्म कर ।"
"क्यों ?"
"ताकि खाने का प्रोग्राम शुरू किया जाये ।”
"क्या खाने का ?"
"मार ।"
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