RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"मर चुकी है ? लेकिन अभी कुछ घण्टे पहले तो मैं उसे सही-सलामंत छोड़कर आया था !"
"उसे मरे दो घण्टे हो चुके हैं।"
,,, मुझे कमला चावला का ख्याल आया। कहीं मेरे जाने के बाद उसी ने तो जूही का काम तमाम नहीं कर दिया था !
"देखो।" - मैं बोला - "तुम उस लड़की की बात कर रहे हो न जिसका नाम जूही चावला है, जो फैशन मॉडल है और
जो नारायना विहार के सत्तर नम्बर बंगले में रहती है ?"
"हां । उसी की बात कर रहे हैं हम।" "और जो आदमी हिरासत में है और अपने-आपको मेरा आदमी बताता है, उसका नाम हरीश पाण्डे है ?"
"हां ।"
"जूही की मौत के वक्त पाण्डे कहां था ?"
"असल में पता नहीं कहां था, लेकिन जो कुछ वो अपनी जुबान से कह रहा है, वो यह है कि वो उसके बंगले के बाहर बैठा था।"
"कोई गिरफ्तार हुआ ?"
"गिरफ्तार ! काहे के लिए ?"
"जूही के कत्ल के लिए और काहे के लिए ?"
"यह किसने कहा कि उसका कत्ल हुआ है ?"
"और क्या वो जुकाम से मर गई ?"
"उसने आत्महत्या की है।"
"आत्महत्या !"
"हां । खुदकुशी ! सुसाइड !"
"वो किसलिए?"
"कुछ बताकर नहीं मरी वो।"
"अपने पीछे कोई सुइसाइड नोट नहीं छोड़ा उसने ?"
"नहीं छोड़ा। अब जुबानदराजी बन्द करो और चलने की तैयारी करो।"
"मैं ऐसे नहीं चल सकता ।"
"तो कैसे चल सकते हो ?"
“पहले मुझे ऊपर अपने फ्लैट में जाकर कपड़े बदलने दो और हुलिया सुधारने दो।"
"तुम्हारे हुलिए को क्या हुआ है ? ऐसी गत कैसे बनी तुम्हारी ?"
"मैं रोड़ी कूटने वाले इंजन से टकरा गया था ।"
"जाओ, जो करना है, करके आओ । पांच मिनट में नीचे आ जाना।"
"अच्छा ।"
पांच मिनट में नीचे न आये तो मैं ऊपर आ जाऊंगा ।"
,,, "अच्छा-अच्छा ।" मैं अपने फ्लैट में पहुंचा। वहां अपने दो कमरों में अस्त-व्यस्त तो मुझे कोई चीज न दिखाई दी लेकिन फिर भी मुझे ऐसा महसूस होने लगा कि | मेरी गैर मौजूदगी में वहां किसी के पांव पड़े थे।
मैं टॉयलेट में पहुंचा। है यह देखकर मैंने चैन की सांस ली कि वहां पानी की टंकी में लैजर बुक सही-सलामत मौजूद थी।
लैजर बुक के दर्शन कर चुकने के बाद कहीं मुझे अपनी जेब का ख्याल आया । मैंने जल्दी से अपने कोट की भीतरी जेब टटोली । मेरी मुकम्मल कमाई गायब थी।
और किसी जेब में नोटों के होने की सम्भावना नहीं थी लेकिन फिर भी मैंने सारी जेबें टटोलीं । बाईस हजार के नोट कहीं से बरामद न हुए ।
और अब पुलिस के झमेले की वजह से मैं उसकी वसूली के लिए पंजाबी बाग वापिस भी नहीं जा सकता था। फिर मैंने यही सोचकर अपने-आपको तसल्ली दी कि अभी लैजर बुक मेरे पास थी जो कि बाईस हजार से कहीं ज्यादा नोटों में बदल सकती थी। सबसे पहले मैंने अपने खून के रंगे कपड़े उतारे । फिर मैंने गरम पानी में डिटौल डालकर और उनमें रुई डुबो-डुबोकर अपने सूजे थोबड़े की मरम्मत आरम्भ की। उसके बाद मैंने कपड़े तब्दील किए। अन्त में मैंने रायल सैल्यूट की बोतल निकाली और एक मिनट में उसके बड़े बड़े दो पैग हलक से नीचे उतारे। तभी ए एस आई वहां पहुंचा। मैंने बोतल उसे आफर की लेकिन उसने हिचकिचाते हुए इनकार में सिर हिला दिया।
"मैंने तुम्हें पांच मिनट में नीचे आने के लिए कहा था।" - वह कठोर स्वर में बोला ।
"बस, आ ही रहा था ।"
"अब हिलो ।”
"बस, सिर्फ एक मिनट और ।"
"अब क्या है ?"
"जो है वो अभी सामने आता है।"
मैंने अपनी मैटल की चपटी फ्लास्क निकाली, जिसमें कि आधी बोतल व्हिस्की आ जाती थी। उस फ्लास्क को मैंने व्हिस्की से भर लिया और उसे अपनी पतलून की पिछली जेब में डाल लिया।
"चलो।" - मैं बोला।
उसके साथ मैं नीचे आया।
मुझे नीचे बरामदे में अपना मकान-मालिक खड़ा दिखाई दिया। "क्या बात है?" - मेरे साथ एक पुलिसिये को देखकर वह बोला । बाहर खड़ी जीप पहले ही उसके नोटिस में आ चुकी थी।
"कुछ नहीं, ओक साहब ।" - मैं बोला - "कोई खास बात नहीं ।" |
"तुम बड़ी जल्दी लौट आए ?"
"जल्दी ! मतलब?" |
"जैसे तुमने अपने कपड़े मंगवाए थे, उससे तो नहीं लगता था कि तुम आज ही वापिस आ जाओगे ।"
"मैंने अपने कपड़े मंगवाये थे ?"
"हां । ले नहीं गया था वह आदमी तुम्हारे कुछ कपड़े ?"
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