RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
" "वही है जो रोज होता है। साल में तीन सौ पैंसठ दिन होता है। फिर एक कत्ल की खबर छपी है।"
"अब कौन मर गया ?"
"आपने जान पी एलैगजैण्डर का नाम सुना है?"
"उसका नाम किसने नहीं सुना ?"
“उसी का कोई आदमी बताया जाता है मरने वाला ।"
"कौन सा आदमी ?" - मैं बोले बिना न रह सका – "नाम नहीं छपा ?
" दोनों ने घूरकर मेरी तरफ देखा।
छपा है ।" - मालिक बोला - "रामप्रताप चौधरी नाम का आदमी है कोई ।"
"अखबार है तुम्हारे पास ?"
इस वक्त नहीं है । कोई ले गया है । मंगाऊं?"
"नहीं । जरूरत नहीं ।”
फिर वह खुद ही बताने लगा कि चौधरी के कत्ल की बाबत अखबार में क्या छपा था।
"किसी ने चाकू उतार दिया पट्टे के दिल में ।" - मालिक बोला - "ग्रेटर कैलाश के एक फ्लैट में उसकी लाश पाई गई है। कहते हैं वह फ्लैट राज नाम के जिस आदमी का है, वह कोई प्राइवेट डिटेक्टिव है और उसका परसों । रात छतरपुर में हुए अमर चावला के कत्ल से भी कोई रिश्ता है। ऊपर से मजे की बात यह है कि जूही चावला नाम की एक लड़की का वो बॉडीगार्ड बना हुआ था लेकिन काम उसका भी हो गया । दारोगा साहब, कहते हैं यह लड़की चावला की माशूका थी ।
" "होगी ।" - हवलदार लापरवाही से बोला।
"पेपर के मुताबिक अब पुलिस राज को तलाश कर रही है और वो पट्टा कहीं नहीं मिल रहा। जरूर सारे कत्ल उसी ने किए होंगे और अब चौधरी के इस तीसरे कत्ल के बाद अपने-आपको फंसता पाकर फूट गया होगा कहीं
"कानून से भला कोई बच सकता है ।" - हवलदार दार्शनिकतापूर्ण स्वर में बोला - "कानून के हाथ लंबे होते हैं।
आज नहीं तो कल पकड़ा जाएगा वह राज का बच्चा ।"
मैं कुछ न बोला । मैं सिर झुकाये चाय की चुस्कियां लेता रहा। मैंने चाय खत्म की और उठकर बाहर की तरफ बढ़ा । तभी एक छोकरा मालिक का अखबार लेकर वापिस लौटा।
"यह देखो, दारोगा साहब ।" - मालिक अखबार खोलकर हवलदार को दिखाने लगा – "यह रही खबर ।”
मैंने काउंटर पर चाय की अठन्नी रखी। मैंने स्टाल से बाहर एक ही कदम निकाला था कि एकाएक एक मजबूत हाथ मेरे कंधे पर पड़ा।
मैं घूमा। हवलदार मुझे थामे था और हैरानी भरी निगाहों से मुझे देख रहा था। “खबरदार !" - वह चेतावनी भरे स्वर में बोला।
"किस बात से ?"
"भागने की कोशिश न करना । तुम गिरफ्तार हो ।”
"वो किसलिए?"
"तुम राज हो ।”
"कैसे जाना ?"
उसने काउंटर पर खुले पड़े अखबार की तरफ इशारा किया । अखबार के मुखपृष्ठ पर मेरी तस्वीर छपी हुई थी।
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