RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
- "बंगले के मुख्यद्वार पर जाकर उसने कॉलबेल बजाई । दरवाजा खुला । वह भीतर दाखिल हो गया और मेरी निगाहों से ओझल हो गया। मैं बदस्तूर बाहर जमा रहा । फिर कोई पौने घंटे के बाद दरवाजा खुला और एयरबैग वाला जो आदमी भीतर गया था, वह एक खूबसूरत औरत के साथ बाहर निकला । वे दोनों कम्पाउंड में खड़ी एक सफेद मारुति में सवार हो गए । ड्राइविंग सीट पर औरत बैठी थी और वह आदमी उसकी बगल में । फिर कार वहां से चली गई । दस-पंद्रह मिनट मैंने बंगले से बाहर ही बिताये । जब वह कार वापिस न लौटी तो मैंने बंगले के कम्पाउंड में कदम रखा। कई बार मेंने कॉलबेल बजाई । दरवाजा भी ट्राई किया लेकिन वो बंद था। मैंने यही समझा कि मेरे वहां पहुंचने से पहले ही जूही कहीं चली गई थी। मैं उसके इंतजार में बंगले के बरामदे में बैठ गया।" "यानि कि जो औरत मारूती पर वहां से गई थी, वो जूही नहीं थी ?"
"नहीं।"
"फिर ?"
"फिर कोई एक घंटा मैं वहां बैठा रहा । जब कोई मुझे पहुंचता न दिखाई दिया तो मैं पिछवाड़े में पहुंचा। पिछवाड़े के भी तमाम दरवाजे बंद थे लेकिन वहां किचन के दरवाजे और रोशनदान की झिर्रियों में से निकलती गैस की गंध मेरे नथुनों से टकराई । मैंने रोशनदान पर चढ़कर भीतर किचन में झांका तो मैंने जूही को किचन के फर्श पर पड़ा पाया। तब मैंने पुलिस को फोन कर दिया।"
"जो आदमी टैक्सी पर वहां आया था, उसका हुलिया बयान करो ।”
"नाम ही न बता दें उसका ?
" मैंने घूरकर पाण्डेय को देखा। "तुम्हें उस शख्स का नाम मालूम है ?"
"हां ।”
"क्या नाम है उसका?"
"सोनी साहब ।"
"तुम्हें कैसे मालूम? तुम उस आदमी को पहचानते हो ?"
"नहीं ।”
"तो?"
"कॉलबैल के जवाब में जब जूही ने बंगले का दरवाजा खोला था तो उसने उस शख्स की शक्ल देखते ही बड़ी घबराहट में कहा था - "सोनी साहब, आप फिर आ गए ?"
"तुमने उसे सोनी साहब कहते साफ सुना था ?"
"हां ।”
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"उसका हुलिया फिर भी बयान करो।"
उसने किया।
वह सरासर वकील बलराज सोनी का हुलिया बयान कर रहा था। मैं गोल्फ लिंक पहुंचा।
वहां चावला की कोठी के कम्पाउंड में जहां कई वाहन खड़े थे, वहां उनमें एक पुलिस जीप भी थी। विशाल ड्राइंगरूम में मुझे सब लोग मौजूद मिले । वकील बलराज सोनी और कमला चावला एक तरफ एक सोफे पर बैठे थे और सिर जोड़े किसी बड़ी संजीदा बात पर बहस मुबारसा कर रहे थे। एलेग्जैण्डर और शैली भटनागर एक अन्य सोफे पर इकट्टे बैठे दिखाई दिए। उनमें भी गुफ्तगू का माहौल गर्म था । कस्तूरचन्द और सब-इंस्पेक्टर यादव एक -एक सोफाचेयर पर अकेले बैठे थे।
_ मैंने देखा, कस्तूरचन्द अपने हाथों में सफेद सूती दस्ताने पहने था।
सबकी निगाह मुझ पर पड़ी लेकिन मेरी क्लायंट समेत किसी के भी चेहरे पर ऐसा भाव न आया जैसे किसी को मेरे | आगमन से खुशी हुई हो । अलबत्ता यादव अपने स्थान से उठा और मेरे करीब आकर मुझे बांह पकड़कर ड्राइंगरूम से बाहर स्विमिंग पूल वाली साइड के लॉन में ले आया।
"मैंने बम्बई पुलिस से बात की थी ।" - वह बोला ।
"अच्छा ! क्या मालूम हुआ ?"
"यह कि शैली भटनागर कभी बम्बई में अमर चावला का मैनेजर हुआ करता था। उसी ने कम्पनी के माल का कुछ ऐसा घोटाला किया था कि पुलिस केस बन गया था। तब वे एक फाइनांस कम्पनी चलाते थे और घोटाला पब्लिक के पैसे से ताल्लुक रखता था । इस वजह से जेल दोनों ही जा सकते थे लेकिन चावला किसी तरह बच गया - था और शैली भटनागर को दो साल कैद की सजा हुई थी । जेल से छुट्टकर भटनागर बम्बई छोड़कर दिल्ली आ गया था। तब से अब तक उसने फिर ऐसा कोई काम नहीं किया है जो इखलाकी या कानूनी तौर पर गलत समझा जाये।
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