RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"इस बात का कोई गवाह कि कल रात आप अपने ऑफिस में ही सोये थे ?"
"वहां के चौकीदार के अलावा कोई नहीं ।”
आप मिस्टर एलैग्जैण्डर से वाकिफ हैं?"
"हां, हूं।"
"खूब अच्छी तरह से ?"
"हां ।"
"आपने कभी कोई एकमुश्त मोटी रकम इन्हें दी है ?
" वह हिचकिचाया । उसने व्यग्र भाव से एलैग्जैण्डर की तरफ देखा । एलैग्जैण्डर ने अपना पाइप सुलगा लिया था और उसके कश लगाता हुआ अपलक भटनागर को देख रहा था।
"जवाब दीजिये ।" - यादव जिदभरे स्वर में बोला ।
"हां" - भटनागर एलैग्जैण्डर की तरफ से निगाह फिराकर बोला - "दी है।"
"कितनी बड़ी रकम?"
“बीस हजार रुपये।"
किसलिए ?"
भटनागर फिर खामोश हो गया । एकाएक वह बहुत व्याकुल दिखाई देने लगा था।
उसी क्षण वहां एक हवलदार के साथ एक युवक ने कदम रखा। उसकी जेब के ऊपर एक तिकोना बिल्ला लटका हुआ था जो कि उसके टैक्सी ड्राईवर होने की चुगली कर रहा था। दोनों यादव के समीप पहुंचे । हवलदार ने यादव के कान के पास मुंह ले जाकर कुछ कहा । यादव ने सहमती में सिर हिलाया और फिर युवक को आंख के इशारे से आदेश दिया। युवक बारी-बारी वहां मौजूद हर आदमी की सूरत देखने लगा। उसकी निगाह वकील बलराज सोनी पर अटक गई। "ये वो साहब हैं" - फिर वह उसकी उंगली उठाता हुआ बोला - "जिन्हें मैं कल रात आठ बजे के करीब नारायण विहार के सत्तर नम्बर बंगले पर छोड़कर आया था।"
यादव कुछ क्षण टैक्सी वाले से कुछ सवाल पूछता रहा । फिर उसने उसे रुखसत कर दिया और वह बलराज सोनी की तरफ आकर्षित हुआ । वह उसे ड्राइंगरूम के एक कोने में ले गया और ऐसे दबे स्वर में उससे मुखातिब हुआ कि उनके करीब जाये बिना वार्तालाप सुन पाना मुमकिन न था।
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कमला मेरे करीब पहुंची।
जरा इधर आओ।" - वह बोली।
,,, "इधर" उस रेलवे प्लेटफार्म जैसे विशाल ड्राइंगरूम का दूसरा कोना था।
"क्या बात है?" - मैं बोला ।
"राज" - वह व्याकुल भाव से बोली - "मेरी मदद करो ।"
"क्या मदद करू ?"
"यह इंस्पेक्टर जानता है कि चौधरी के कत्ल के वक्त में यहां कोठी में नहीं थी ।"
"यह तो मैं भी जानता हूं लेकिन मदद क्या चाहती हो तुम ? मैं यह साबित कर के दिखाऊं कि यह बात गलत है कि कल रात तुम पूरा डेढ़ घंटा यहां से गायब रही थीं ? मैं स्याह को सफेद कर के दिखाऊं ?"
"तुम भी समझते हो, चौधरी का खून मैंने किया है ?"
"मेरी समझ से कुछ नहीं होता । सवाल इस बात का है कि पुलिस क्या समझती है ! तुम्हारी हर हरकत शक पैदा । करने वाली है और तुम्हारी कोई हरकत पुलिस से छुपी नहीं । यादव तुम्हें किसी भी क्षण गिरफ्तार कर सकता है।"
वह खामोश रही ।
"मैं तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा हूं, शुरू से ही तुम्हारी मदद करने की कोशिश कर रहा हूं। तुम्हारी • खातिर अपने आपको खतरे तक में डाला है। अगर तुम फंस गई तो तुम्हारे मददगार के तौर पर मेरा भी फंस जाना । लाजमी है। फिर भी तुमने मेरे साथ धोखा किया।"
"मैंने क्या धोखा किया तुम्हारे साथ ?"
"तुमने कल रात मुझे विस्की में बेहोशी की दवा मिलाकर नहीं पिलाई ?"
"हरगिज नहीं ।”
"तुम्हारे बैडरूम में मैं होश में था ?"
. "नहीं । लेकिन होश तुमने नशे की वजह से खोया था ।”
“पागल हुई हो ! मैंने आज तक बोतल पी के होश नहीं खोया ।"
"राज, मेरा विश्वास करो, मैंने तुम्हें बेहोशी की दवा नहीं पिलाई। मैंने किसी का कत्ल नहीं किया।"
"तो फिर रात के दो बजे तुम कहां गई थीं ? क्या करने गई थीं ?"
"मुझे किसी का फोन आया था । ऐसा फोन आया था जिसे सुनकर मेरा यहां से जाना जरूरी हो गया था।"
“ऐसा क्या जरूरी फोन था?"
"ऐसा ही जरूरी फोन था ।"
"किसका?"
"बलराज सोनी का ।"
"उसने तुम्हें रात के दो बजे फोन किया था?"
"हां ।"
"और उस फोन कॉल के जवाब में तुम्हें आनन-फानन यहां से जाना पड़ा था ?"
सर्प, धू।।
"हां ।"
"ऐसी क्या आफत आ गई थी ?"
"आफत ही आ गई थी।"
"क्या ?"
= "वह आत्महत्या करने पर आमादा था।" - तभी यादव और बलराज सोनी हमारे करीब पहुंचे। हमारे वार्तालाप का आखिरी हिस्सा शायद उन्होंने भी सुना ।
यादव के चेहरे पर उलझन के भाव थे।
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