antervasna चीख उठा हिमालय
03-25-2020, 12:34 PM,
#5
RE: antervasna चीख उठा हिमालय
तब--ज़वकि जीप ठीक उस बुढ़िया की झोंपडी के सामने जाकर रुकी ।
बुढिया बाहर दरवाजे पर ही खड़ी थी । एक साफ-सी धोती पहने, मानो अपने बेटे के राजा बनने की खुशी में वह भी झूम रही थी । जीप के रुकते ही बूढा जिस्म जीप की तरफ लपका ।




बागारोफ सहित सबने श्रद्धापूर्वक पांव छुए उसके ! बुढ़िया ने पूछा-"मिला मेरा बेटा ?"




"क्या वतन यहां नहीं अाया दादी मां?" अलफांसे ने पूछा-----"क्या आपसे मिलने नहीं आया?”




" कहां अाया मुआ, मेरा तो उधार भी नहीं चुकाया -उसने ।" कहकर रो पडी फ़लवाली बुढिया-"कितने दिन से इसी उम्मीद पर जी रही थी कि कब वह दिन अाएगा जब यह राजा बनेगा । सबको तो यह खुशी होगी कि वतन आज राजा बना है मगर मुझे उसके राजा बनने की खुशी थोड़े ही थी । मुझे क्या मतलब कि बो मुआ राजा बने या मरे । मैं तो बस यह चाहती हूँ कि एक बार सामने आकर पैसे दे दे मेरे । "





वतन के प्रति बुढ़िया का प्रेम देखकर आंखे छलछला गई । सबकी ।




विकास ने कहा---" तुम्हें देने के लिए पैसे तो उसने मुझे रात ही दे दिये थे दादी मां-लो अपने पैसे ।। ” कहते हुए विकास ने जेब में हाथ डाला ।





“चल...चल..मुए----तुझसे पैसे क्यों लूंगी में? मैं तो उसी राजा के बच्चे से लूंगी ।"




आंसू भरी आंखों के साथ मुस्करा उठा विकास, बोला---सीधे क्यों नहीं कहती दादी मां कि तुझे पैसे नहीं, वतन चाहिए । ”




"मैं पागल हूं क्या?" कहती कहती फफक पड़ी वुढ़िया---"जो अपने पैसों से ज्यादा उस मुए से प्यार करूंगी?"



कहकर उनमें से किसी की भी बात सुने विना बुढ़िया रोती हुई झोंपड्री की तरफ भाग गई । अवाक् रह गए सब ।।।




आंखों में आंसू उमड अाए थे । खुद को संभालकर विजय ने कहा…"अब क्या करें दिलजले?"




विकास की विचार-श्रंखला टूटी । अासू-भरी आंखों से विजय की तरफ देखकर बोला ----" क्या वतन को मुजरिम समझकर हमने वहुत बडी भूल नहीं की थी? आपने देखा------ मुल्क के लोग उसे कितना प्यार करते हैं? क्या इतने सारे लोग कभी किसी मुजरिम को भी इतना प्यार कर सकते है?" कभी नहीं गुरु-कभी नहीं ।

सचमुच, अपने दिल पर हाथ रखकर कहता हूं मैं----वतन देवता है...सचमुच का देबता ।"




" अबे चिडीमार, सवाल यह नहीं कि यह देबता है या राक्षस ।" बागारोफ दहाड़ा'----"सबाल यह है कि वह गया कहा ?"





"अगर वह अपनी इच्छा से गया है चचा, तो सिर्फ एक जगह और ऐसी है, जहां वह जा सकता है ।" विकास ने कहा ।



"कहां ?"




"अपने -घर में " बिकास ने कहा---"उस घर में जहाँ उसने अपनी मां और बहन की सड़ी हुई लाशें देखी थी । अगर वह बहां भी नहीं है चचा, तो समझो, वह गायब नहीं हुआ है । उसे किसी ने गायब किया है और तुम्हारी कसम उसे गायब करने वाले की बोटी-बोटी नोंच डालूंगा । फाढ़कर सुखा दूंगा उसे ।"




कुछ देर बाद, जीप मैं बैठे हुए, वे सब वतन के मकान की तरफ उडे चले जा रहे थे ।




बेहद तीव्र वेग से चलाने के वावजूद धनुषटंकार तीस मिनट में वतन के मकान पर पहुच सका । सबने देखा-थक जर्जर सा, पुराना-टुटा-फूटा मकान । लॉन में जंगली घास उग अाई थी ।




लम्बी लम्बी कटीली झाड्रिर्यों ने रास्ता घेर रखा था ।



मकान का दरवाजा बन्द होने का छ
प्रशन ही नहीं था क्योंकि टूटे हुए दोनों किवाड़ दरवाजे के पास ही झाडियों में पड़े थे । झाड़ियों को पार करते हुए वे है पहले कमरे में पहुंच गए



देखा-दूसरे कमरे का दरवाजा बन्द था ।



सभी ठिठक गए । दूसरे कमरे के अन्दर से किसी के रोने की आवाज अा रही थी ।



फूट-फूटकर तड़प-तड़पकर रो रहा था वहां कोई ।




फिर, वतन की आवाज ने सबके रोंगटे खड़े कर दिए, सुबकता हुआ वह कह रहा था-"मां देख क्यों नहीं रही है तू? देख तेरा वतन आज चमन का राजा बन गया है तेरे लाल के राजा बनने पर तेरे देश की जनता कितनी खुश है ।। तूं कहां चली गई मां ।। तेरी लाश कहां गई? छवि वहन तू भी मां के साथ ही चली गई, पगली, तेरे भाई के -रहते भला वह कुत्ता तुझसे शादी कर सकता था, मैं तेरा..."




ज्यादा सुना नहीं गया विकास से, तो दरवाजा खटखटा दिया उसने ।




अन्दाज एकदम बन्द हो गई ।



सुबकने की आवाज भी बन्द ।




दर्दयुक्त स्वर में पूछा गया----"कौन है?"



"वतन, मैं हूं विकास । " उसने कहा-----"दरवाजा खोलो । "

फिर, कुछ देर सन्नाटा----फिर दरबाजे की तरफ़ अाती कदमों की आवाज । एक झटके से दरवाजा खुला ।



आखों के सामने था विकास के बराबर लम्बा वतन । दूध जैसे सफेद लिबास में वाकई देवता सा लता था वह । आंखों को ढके हुए वही सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा, कुछ देर तक तो सारे के सारे देखते ही रह गए उसे । कपोल पर एक भी तो आंसु नहीं था ।




फिर, इस अजीव से सन्नाटे का तनाव बागारोफ ने समाप्त किया----"" चिड्री के पंजे, यहां है तू ? वहां चमन के हर कुएं में तुझे खोजने के लिए जाल डलवा दिए । सबकी जान निकाल दी तूने-खिला हुआ गुलिस्तां मुर्झा उठा ।"



" चचा !" वतन ने उसकी कोई बात सुनी ही नहीं-----"आओ मेरे साथ ।" बागारोफ की दोनों कलाइयां पकड़कर वह उसे अन्दर ले गया, कमरे के गन्दे फर्श की और संकेत करके बोला…"यहाँ चचा, अपनी मां और बहन की लाशों को यहां छोड़ गया था मैं । अब वे गायब हैं ।"
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