RE: antervasna चीख उठा हिमालय
"क्यों मां, क्या इस लकीर को भूल गयी तुम ?" अपने सीधे हाथ में चाकू द्वारा वनी लकीर के सूखे ज़ख्म को दिखाता हुआ वतन बौला---"तुम्हारे ही चाकू से तो यह लकीर बनाई थी । तुमने कहा था न कि जिसके हाथ में यहा लकीर नहीं होती, वह राजा नहीं बनता । अगर तुम उस दिन मुझे यह बात न बतातीं दादी मां, तो मुझे क्या पता लगता ? मैं भला अपने हाथ में लकीर क्यों बनाता । यह लकीर न बनाता तो सच दाद्री मां, मैं राजा तो की थोड़े ही ना बन सकताथा।"
" पगला ।" वतन को उसने और जोर से लिपटा लिया…"मैंने तो तुमसे झूठ बोला था ।"
"'मैने तो सच ही समझा था मां !" वतन बोला----"मैं अपने हाथ में यह लकीर न बनाता तो कभी राजा नहीं बनता । मेरा विश्वास है मा कि इस लकीर की वजह से ही राजा बना हूं मैं । क्या तुम मुझे अपनी आंखों से राजगद्दी पर बैठा हुआ न देखोगी ?"
"अच्छा चल, मैं चलती हुं--ज्यादा, बात मत वना ।।" इस तरह…फलवाली बुढ़िया को अपने साथ कार में बैठाकर वतनने कार दौड़ा दी।।
तब --जबकि ब्रेकों की चरमराहट करती हुई कार एक झटके के साथ रुकी सबसे पहले खुली हुई खिड़की से बाहर कूदा अपोलो । घंटियों की आबाज से वातावरण झनझन्नाया ।
अगले हीं पल-बैंड और शहनाई की आवाजों में घंटियों की टनटनाहट विलीन होकर रह गई ।।
सहारा देकर वतन ने बुढिया को कार से बाहर निकला । जोरदार स्वागत किया गया ।
बुढिया पर फूलों वर्षा हो रही थी । वे राष्ट्रपति भवन में प्रविष्ट हो गए ।
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