RE: antervasna चीख उठा हिमालय
उसके बाद दूध जैसे बेदाग सफेद कपडों में कैद वतन । आंखो पर सुनहरे फ्रेम का काला चश्मा, हाथ में छडी…वह छड़ी, जिसके अन्दर उसकी मां और बहन की हडिड़यों का बना मुगदर था । कमरे में वतन की आवाज गूंजी…"मैं जा गया हूं मोण्टों ।"
इसके बाद रात के बारह बजे तक धनुषटंकार की जबरदस्त खातिर चलती रही ।
अगले दिन तब जबकि दरबार में पेटियां खुल रही थी-उस वक्त सारा दरबार चौका जब आखिरी पेटी खुली । पैटी में से फर्श पर गिरे शिकायत-पत्र पर प्रत्येक की दृष्टि स्थिर-सी होकर रह गई । ज्यादातर दरबारिर्यो के चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर अाए । "
धनुषटंकार, अपोलो और वतन की निगाह भी उसी पर थी ।
चमन के विभिन्न स्थानों पर ये पेटियों रखने का कार्यक्रम' पिछले चार महीनों से चल रहा था । प्रतिदिन दरबार में इन पेटियों को खोला जाता था, कभी कुछ नहीं निकला । इन पेटियों के खुलते … समय दरबारी बड़े इत्मीनान के साथ खडे रहते थे, 'क्योंकि सभी जानते थे कि उनमें से कुछ निकलने वाला नहीं है । चार महीने में यह पहला कागज था जो पेटी के माध्यम से दरबार में अाया था ।
तभी तो प्रत्येक की दृष्टि उसी कागज पर केद्रित थी ।
अजीब-सी धढ़कनों मैं साथ दिल धड़कने लगे थे ।
ज्यादातर लोग एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे, जैसे पूछ रहे हों कि क्या वह जानते कि कागज में क्या लिखा होंगा ?
मगर हर आंख में यह सवाल था, जवाब कहीं नहीं ।
…"हम कहते थे न कि इन पेटियों का व्यापक प्रचार नहीं क्रिया गया ।" वतन ने कहा-----"कल के प्रचार का परिणाम सामने है ।"
--"'नहीं महाराज है" पेटियां खोलने वाला मुलाजिम थोडा आगे बंढ़कर बोला---" मैं दावे के साथ कह सकता हू कि आपके शासन में चमन के क्रिसी भी नागरिक क्रो कोई शिकायत नहीं है । यह कागज यूं ही किसी ने मजाक में डाल दिया हो... ।"
…-""शमशेरसिंह ।" वतन की इस गुर्राहट ने दरबार में मौजूद हर आदमी क्रो कंपकंपा दिया-" जानते हो कि चटुकारिता हमें पसन्द नहीं । तुम कैसे कह हो कि सारे चमन-मैं किसी
क्रो हमसे कोई शिकायत नहीं हैं ।"
" ज जी जी मैं जानता हूं ।" शमशेरसिह नामक मुलाजिम बौखला गया ।
"तुम जैसे चादुकार अगर हमारे चारों तरफ रहें तो चमन के नागरिक घुट-धुटकर ही मर जाए वे परेशान होते रहे अोर तुम जैसे चाटकारों से घिरे हम इसी भ्रम में रहे कि हमारे शासन में किसी कौं कोई शिकायत नहीं है, कैसे जानते हो तुम ?"
सहमकर शमशेर सिंह ने गर्दन झुका ली ।
'"अगर तुम जानते होते तो यह कागज इस पेटी में से न निकलता ।" वतन का गम्भीर स्वर-----" रही मजाक की बात तो तुम्हें यह ध्यान रखना चाहिए कि चमन का एक बच्चा भी इतना बदतमीज नहीं जो अपने राजा से इस तरह का मजाक करे । पेटी से निकला यह पत्र ज्वलन्त प्रमाण है क्रि क्रिसी को हमसे, हमारे शासन करने के ढंग से कोई शिकायत है तुम्हारी यह पहली गलती है, इसलिए क्षमा करते हैं, मगर इस शर्त पर की भविष्य में तुम हमसे ऐसी चाटुकारिता-भरी बात फिर कभी न कहोगे ।"
शमशेरर्सिंह चुप ।
" अपोलो !" वतन के मुह से निकला ।
जैसे इसी शब्द का प्रतीक्षक था बकरा, वह अपने सिहांसन से उछला । एक मिनट में वह पत्र लाकर उसने वतन को दिया, इधर अपोलो वापस अपने सिंहासन पर जाकर बैठा और उधर पत्र की तह खोलता हुआ वतन कह रहा था…"यह पत्र हम भरे दरबार में जोर-जोर पढेगे ताकि जिसने यह लिखा है, उसकी शिकायत आप लोग भी जान जाएं ।"
सबकी सांसें रूक गई जैसे !
सभी लोग जानना चाहते थे कि वतन के खिलाफ आज चमन के किसी नागरिक की क्या शिकायत हो गई है ।
वतन ने पड़ना शुरू क्रिया-
-----वतन बेटे?
वतन ने पत्र में लिखा ये सम्बोधन पढ़ा तो दरबारियों के रोंगटे खडे हो गए ।
परन्तु बिना अटके वतन आगे पढ रहा था…
" तुम्हारे शासन में कोई कमी न होते हुए भी एक सबसे बड़ी कमी यह है कि तुम्हारा गुप्तचर विभाग वहुत कमजोर है । तुम जानते होगे जिस देश का यह बिभाग कमजोर हो उस देश का भविष्य किसी भी समय अन्धक्रार में गर्तं में डूब सकता है । तुम शायद यह चाहोगे कि मैं इस कथन को प्रमाणित करू । तुमने अपने गुप्तचर विभाग को यह काम भी सौंप रखा है कि कोई भी अजनबी चमन में दाखिल होते ही
उनके नोटिस में अा जाए? मगर--यह नहीं हुआ । मैं चमन में आ गया और तुम्हारा कोई भी जासूस यह न जान सका कि कोई अजनबी चमन में आ पहुंचा , चमन में ही नहीं बल्कि इस वक्त जबकि यह पत्र दरबार में पढ़ा जा रहा है-यह सुन कर शायद सभी को हैरत होगी कि मैं इसी दरबार में मौजूद हूं तुम्हारे जासूस अगर मुझे अब भी पकड़ लें तो मैं यह शिकायत वापस ले लूंगा ।
तुम्हारा न-न-ना-अभी नाम नहीं ।
इस पत्र की समाप्ति तक सारे हॉल में सनसनी-सी दौढ़ गई ।
अजीब घबराए-से चेहरे नजर अाने लगे । सब एक-दूसरे क्रो संदेह-भरी दृष्टि से देख रहे थे ।
और --- सिंहासन के करीब बैठे गुप्तचर ?
उनके चेहरे तो हल्दी की भांति पीले पड़ गए ।
वतन की दृष्टि अभी तक पत्र पर जमी हुई थी एकाएक उसने पत्र पर से नजरें हटाई । गौर से एक-एक देरबारी को देखा । पत्र उसने अपनी जेब में रखा । दरबार में सन्नाटा छा गया-ऐसा जैसे कि मौत पर शोक मनाया जा रहा हो ।
फिर सबने देखा-वतन के होंठों पर उभरने वाली एक अजीब-सी मुस्कान ।
वह सिंहासनं से उठ खडा हुअा ।
धीरे-धिरे सन्तुलित से कदमों से वह नीचे उतरने लगा । सारे दरबार में ऐसा सन्नाटा छा गया था कि सूई भी गिरे तो बम जैसे विस्फोट की अावाज हो । हर दृष्टि इस वक्त वतन पर केन्द्रित थी ।
लह सिंहासन से नीचे अाया ।
सैनिको की कतारों क्रो देखता वह आगे बढने लगा ।
एकाएक शमशेरसिह के करीब जाकर यह उसके पैरों में झुक गया । पैर छू लिए उसने ।
" अरे अरे , महाराज..." शमशेर .ने बौखलाना चाहा तो... उसक पैर पकडकर वतन ने कहा-"आपका बच्चा आपको पहचान गया है अलफांसे चचा !" वतन के ये शब्द जैसे विस्फोट वन गए । सभी उछल पडे ।
धनुषटंकार तो अपने छोटे-से सिंहासन से गिरते-गिरते बचा ।
शमशेरसिह ने झुककर वतन के कान पकड़े और उसे ऊपर उठाता हुआ बोला-"पगला कहीं का ।"
अलफांसे का स्वर सुनकर तो धनुषटंकार उछल ही पड़ा ।
उधर…अलफांसे वतन को अपने गले से लगाए खडा था ओर इधर कूदकर धनुषटंकार उसके करीब पहुंचा वडी श्रद्धा के साथ उसने अलफांसे के चरण स्पर्श किए तो अलफांसे का ध्यान उसकी तरफ आकर्षित हुआ ।
वतन उससे अलग हुआ तो धनुषटंकार उसके गले में झूल गया ।
पागलों की तरह वह अलफांसे के चेहरे पर से शमशेर का मेकअप उतारने की कोशिश करने लगा तो..
हंसता हुआ अलफासे कहने लगा---"अबे रूक जा शैतान बान्दर...मैं खूद ही हटाता हू ।" इन शब्दों के साथ ही अलफासे ने अपने चेहरे पर से शमशेर के चेहरे की झिल्ली उतार दी ।
अलफांसे का चेहरा देखते ही सबके मुह से सिसकारियां सी निकल पड़ी । उसके गले में बांहें डाले छाती पर लटका धनुषटकार पागलों की तरह अलफांसे के चेहरे को चूमे चला जा रहा था, उधर-अपोलो ने भी करीब जाकर-उसके चरर्ण स्पर्श किए ।
धनुषटंकार को छोड़कर उसने अपोलो को गोद में उठा लिया । कुछ समय, इसी तरह की मौजमस्ती में गुज़र गया ।
फिर-दरवार में अलफांसे के लिए एक विशेष सिंहासन डलवाया गया । पुन: अपने सिंहासन पर जाकर जव वतन ने गुप्तचरों के अभी तक पीले पडे 'चेहरों को देखा तो ' -"चचा !" "उसने अलफांसे से कहा था- इस शिकायत-पत्र में तुमने जो मेरे गुप्तचर विभाग के बारे में जो लिखा है, उसे मैं सहीं नहीं मानता ।"
"क्यों ?" अलफांसे ने कहा----" मैं न सिर्फ चमन में बल्कि इस दरबार तक पहुंच गया, और इन्हें भनक तक न लग सकी, क्या ये ...."
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