RE: antervasna चीख उठा हिमालय
" चचा, ये कमी इसलिए नहीं रही क्योंकि दरबार तक पहुचने बाले अाप हैं ।" वतन ने कहा'-"आप...जो दुनिया के माने हुए जासूसों को उंगलियों पर नचाते हैं न जाने कब से इण्टरपोल के लिए सिरदर्द बने हैं । अमेरिका के माफिया संगठन ने जिसके सामने घुटने टेक दिए , जिसने हर देश में जुर्म किए, लेकिन कोई भी सरकार आपको अपनी इच्छा के विरुद्ध कभी किसी जेल में न रख सकी…तो...तो...फिर आपके सामने इन छोटे गुप्तचरों की क्या बिसात है ? ये बेचारे क्या पकड़ पाते आपको ?"
" हम तो ये चाहते हैं वतन कि दुनिया के सर्वश्रेष्ट जासूसों से ज्यादा समझदार और खतरनाक चमन के जासूस हों ।" अलफासे ने कहा--हम यह चाहते हैं कि जिस को कभी कोई न पकड़ सका उसे चमन के जासूस पकड़ें ।"
-"यह तो आपका प्यार है मेरे प्रति जो अाप ऐसा सोचते हैं चचा !" वतन ने कहा'---'"आपका अाशीर्वाद रहा तो कुछ दिनों बाद चमन का गुप्तचर संगठन ऐसा ही होगा, फिलहाल दरखस्त है मेरी कि अाप अपने बच्चों को माफ कर दें ।" वतन का संकेत जासूसों की तरफ था ।
"‘माफ क्रिया ।" अलफांसे ने कहा…"लेकिन ये नहीं बताओगे क्रि तुमने मुझे एकदम कैसे पहचान लिया ?"
अब कहीं जाकर जासूसों के चेहरे सामान्य हुए ।
वे वतन की तरफ़ देखे रहे थे, यह जानने के लिए कि वह अलफांसे के प्रश्न का क्या जवाब देता है ।
धीमे से मुस्कराने के पश्चात् वतन ने कहा…"यहा आने के बाद आपने शेमशेर का मेकअप तो कर लिया चचा, लेकिन चूक आपसे यह हो गई कि शिकायत-पत्र आपने अपनी राइटिंग में लिख दिया जिसे थ्रोड़ा-सा ध्यान से देखने पर ही हैं पहचान गया था ।"
"ओह !" अलफांसे के मुंह से निकला-----", खैर मेरीं राइटिंग पहचानने के बाद यह तुम जान गए कि यह पत्र लिखने वाला मैं हूं लेकिन सवाल यह उठता है कि तुमने यह वैसे पहचान लिया कि मैं शमशेरसिह के मेकअप में हू ?।"
…"क्योकि आपके चेहरे पर अन्य दरबारियों की तरह घबराहट के चिन्ह नहीं थे ।"
वतन जब यह कहा अलफांसे ने उसे पुऩः अपनी बांहों में भींच लिया ।
"तो इसका मतलब यह है चचा, कि अाप भी इसी वज़ह से यंहा अाए है जिस वजह से मोण्टो भारत से अाया ?" अलफासे की सारी बाते सुनने के बाद वतन ने कहा था…"यानी आपकों भी यहीं खतरा हुअा कि मेरे स्टेटमेंट से महाशक्तियां मुझे घेरने की कोशिश करेंगी ?"
" और नहीं तो क्या ?" अलफांसे ने कहा ।
इस वक्त वे दोपहर का भोजन कर रहे थे और साथ-ही-साथ आपस में बातें भी भी करते जा रहे थे । यह भोजन कक्ष राष्ट्रपति भवन की तीसरी मंजिल पर था । कुछ देर तक वे यूं ही बातें करते रहे फिर जबकि वे भोजन कर चुकं तो धनुषटकार ने डायरी पर लिखा --
" वो कल का वादा याद है, भैया ?"
वतन ने पहा, पढकर मुस्कराकर बोला…" क्या तुम्हारी बात मैं कभी भूल सकता हूं मोण्टो ?"
धनुषटंकार कुछ और लिख पाता उससे पहले अलफासे ने पूछा --"दोनों भाई ही बात किए जाओगे या हमें भी पुछोगे ?"
" कोई विशेष बात नहीं चचा ।" वतन ने कहा-"लल मोण्टो से वादा क्रिया था कि इसे अपनी प्रयोगशाला दिखाऊंगा । उसी के लिए लिखकर पुछा है कि कहीं मैं भूल तो नहीं गया हुं ?”
"क्या ?" हल्के से चौककर-"तो क्या तुमने अपनी कोई प्रयोगशाला वना ली है ?"
"नहीं तो फिर आपके ख्याल से मैंने यह आविष्कार कहां किया होगा ?"
" तो तुम्हारी प्रयोगशाला तो हम भी देखेंगे भई ।"
"आप आज आराम कीजिए चचा-----कल देख लीजिएगा ।" वतन ने कहा।
"जिस तरह हिटलर की जिन्दगी में असंभव का कोई शब्द नहीं था उसी तरह हमारी डिक्शनरी में कहीं तुम्हें आराम नहीं मिलेगा ।" मुस्कराते हुए अलफांसे ने कहा…"आराम तो हराम है मेरे लिए । इच्छा तो हमारी है वतन, कि तुम्हारी प्रयोगशाला आज ही देखे, परन्तु कोई बात नहीं वतन । जैसी तुम्हारी इच्छा'-वैसे भी इस वक्त हम चमन में हैं, जर्रें जर्रे पर तुम्हारा हुक्म चलता-है-फिर भला हमारी क्या विसात है ।"
"ओह चचा!" वतन इस तरह बोला जैसे उसे बेहद दुख हुआ हो…"कैसी बातें करते हैं आप? कहीं भी सही लेकिन मेरा हुक्म आपसे बढ़कर नहीं । मैंने तो इसलिए कह दिया था कि अाप थक गये होंगे । आपकी इच्छा यह है कि अाज ही मेरी प्रयोगशाला देखें, तो अाइए ।" कहकर वतन उठा । छड़ी से टक- टक -टक की ध्वनि पैदा करता हुआ वह एक खिड़की के नजदीक पहुंचा ।
खिड़की खोली ।
बस, खिड़की से चमन की वस्ती का एक हिस्सा चमक रहा था । दूर-दूर तक बने हुए मकान, दूर किसी फैक्टरी की एक चिमनी भी चमक रही थी, मगर…यह सब कुछ एक सीमा तक ही चमक रहा था । सामने एक दीवार अड़ रही थी…बेहद ऊंची दीवार ।" जैसे किसी किले की रही हो ।
परन्तु-----वह दीवार किसी किले की थी नहीं इसलिए कि वह नई बनी हुई थी । मगर हां…दीबार भी कहां थी वह । वह तो एक इमारत ----वहुत ऊंची, किलेनुमा ! पूरे चमन में सबसे ऊंची इमारत राष्ट्रपति भवन की थी किन्तु वह साफ देख रहे थे, वह इमारत राष्ट्रपति भवन से भी बहुत ऊंची थी । उसी की और संकेत करते हुए वतन ने कह --"उस किलेनुमा इमारत को देख रहे है न अाप ? दरअसल वही मेरी प्रयोगशाला है जब तक चमन में वह नहीं बनी थी तब चमन की सबसे ऊंची इमारत थी, वह राष्ट्रपति भवन लेकिन अब वह है और थोडी-बहुत नहीं बल्कि इस राष्ट्रपति भवन से ठीक दूगनी ऊंचाई है उसकी । जहाँ उस इमारत का निर्माण' किया गया है, मैग्लीन के शासनकाल में वहा एक वहुत विशाल मैदान था । अपनी प्रयोग्शाला के लिए मैंने उसी जगह को उपयुक्त पाया और आज अाप देख रहे हैं-वहाँ खडी़ मेरी प्रयोगशाला ।"
" लेकिन इसकी यह दीवार इतनी चिकनी और सपाट क्यों है ?" अलफांसे ने पूछा…"कहीं कोई खिडकी, पाइप नजर नहीं अा रही । इतनी ऊंचाई तक जाने बाली इतनी चिकनी और सपाट दीवार बड़ीं अजीब-सी लगती है ।"
" न सिर्फ यहीं दीदार चचा, बल्कि प्रेयोगशाला की चारों ही दीवारें इसी तरह चिकनी' और सपाट हैं ।" वतन ने कहा…"कदाचित अाप समझ सकते हैं कि ये दीवारें प्रयोगशाला की सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं ।"
अलफांसे इस तरह मुस्कराया जैसे कोई बुजुर्ग' बच्चों की किसी बचकानी बात पर मुस्करा दे । बोला----"क्या तुम समझते हो कि इन दीवारों को इतनी चिकनी और सपाट बनवाकर तुमने सुरक्षा का कोई अच्छा प्रबन्ध क्रिया है ?" .
" सोचा तो यही है, चचा ! "
अलफासे कुछ बोला नहीं । हा, होंठों पर मुस्कान वही थी ।
वतन -ने उस मुस्कान का अर्थ समझा तो बोला…“यह मत समझियेगा चचा, कि प्रयोगशाला की सुरक्षा का मैंने यहीँ एकमात्र प्रबन्ध क्रिया है । इसे यूं समझो कि सुरक्षा के जितने भी प्रचन्ध मेरे दिमाग में आए, वे सभी मैंने इस प्रयोगशाला क्री सुरक्षा के लिए प्रयोग क्रिए हैं । मेरा दावा है, बल्कि यू समझिए कि आपके लिए भी चेलेंज है कि अगर आप स्वयं इस प्रेयोगशाला के अन्दर जाकर , अन्दर एक सूई भी उठाकर सुरक्षित बाहर अा जाएँ तो महान सिंगहीं के स्थान पर आपको गुरु मान लुंगा ।"
"ओंह !" अलफांसे धीमें से हसा…"इतना गर्व है अपने प्रबग्ध पर ?"
'"गर्व नहीं, विश्वास कहिए चचा । वतन ने कहा…"मैं गर्व नहीं करता क्योंकि सुना है…गर्व रावण का भी नहीं रहा ।"
" खैर !" अलफांसे बोला-----" सुरक्षा के वे क्या इन्तजाम किया तुमने ?"
-"बांकी इन्तजाम तो अाप प्रयोगशाला के करीब ही जाकर देख सकेंगे । हां, एक इन्तजांम अाप यहां से अवश्य देख सकते हैं, सो मैं आपको दिखाता कहने के बाद वतन ने अपोलो से नजरें मिलाकर कहा…अपेलो ।"
अपोलो जैसे जानता था कि उसे वया करना है ।
वह खिड़की-के पास से मुडा । एक ही जप्प-मेँ वह कमरे से बाहर निकल गया । करीब द्रो मिनट बाद जब यह वापस आया तो वह अपने दो पिछले पैरों पर चल रहा था । अपने अगले दो हाथों में उसने एक विशेष किस्म की दूरबीन क्रो संभाल रखा था ।
दूरबीन उसने वतन को दे दी ।
: अलफांसे की तरफ दूरबीन बढाता हुआ वतन बोला-----" ये लीजिए----, इसे से लगाकर प्रयोगशाला की तरफ देखिए ।"
अलफांसे-ने वैसा ही क्रिया तो देखा-
प्रेयोगशाला की पूरी छत को अजीब-सी किरणों के जाल से कवर कर रखा था । किरणों से जाल की एक छतरी-सी बन गई थी जिसके नीचे प्रयोगशाला की छत थी अलफांसे ने देखा-लाल और बारीक दहकती हुई-
किरणों का एक विशाल जाल । क्रिरणे क्रिसी पतले तार जितनी
मोटी थी । वे तार ऐक दूसरे में बुने हुए प्रतीत हो रहे थे । ठीक आटा छानने की छलनी का बडा रूप । कुछ देर तक अलफांसे उसे देखता रहा फिर दूरबीन आंख से सटाये ही बोला----"यह क्या है ?"
अलफांसे का यह कहना था कि धनुषटंकार ने उसके हाथ से दूरबीन 'ले ली ।
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