RE: antervasna चीख उठा हिमालय
"यह तालाब नहीं है भीम , यह कुम्भकरण नाम के एक योद्धा का सिर है ।' कृष्ण ने बताया-'किसी जमाने में यह रावण का भाई हुआ करता था । श्रीराम ने इसका संहार किया तो उसका धढ़ युद्ध-क्षेत्र में और सिर यहां अाकर गिरा । मगर उसके सिर में न कितनी बरसातों का पानी भर गया है । बस...ऐसा ही तालाब है यह ।'
पांचों पाण्डव आश्चर्य के साथ श्रीकृष्ण का मुखड़ा देखने लगे ।
" कन्हेया ने कहा-'जिसके सिर में बरसात के भरे पानी में तुम डूब गए, जरा अनुमान करो कि वह कुम्भकरण क्या होगा ? किस किस्म का योद्धा होगा ? और ऐसे को भी श्रीराम ने मार डाला, अतः तुम अपनी कौन सी शक्ति पर गरूर करते हो ।'
" पांचों पाण्डवों की अक्ल टिकाने आ गई । बस !”
किस्सा सुनाने के बाद वतन ने कहा'……."कुम्भकरण की खोपडी को दिमाग में रखकर मैंने इस खाई की गहराई बनवाई है ।"
"भारतीय इतिहास और ग्रन्थौ की तुम्हें अच्छी जानकारी है ।" मुस्कराता हुआ अलफांसे कह रहा था -----…"'अखबार में छपे स्टेटमेंट में भी तुमने महाभारत में प्रयुक्त होने वाले हथियारों का जिंक्र बडे अच्छे ढंग से किया था और अब 'चेतक' तथा 'कुम्भकरण की खोपडी' का उदाहरण भी बड़े अच्छे ढंग से दिया है । शायद उन ग्रन्थों के उदाहरण देना तुम्हारी आदत भी है ।"
मोहक ढंग से मुस्कराया वतन, कहने लगा…"बैज्ञानिक हूं न और यह भी जानता हूं कि भारत के प्राचीन ग्रन्थ विज्ञान से भरे पडे़ हैं । उन ग्रन्थों को अगर ध्यान से पढा जाए तो आज़ भी वे इस दुनिया को बहुत कुछ दे सकते हैं ।"
" खैर, छोडो़ ग्रन्थों को , तुम अपनी प्रयोगशाला की सुरक्षा के बारे में कुछ और बता रहे थे ।।"
…"हां" वतन ने कहा…"तो इस खाई की गहराई के बारे तो आप जान ही चुकें हो । यह खाई न सिर्फ इसलिए खतरनाक है इसलिए भी है कि इसमें भरे पानी के अन्दर वह हर खतरनाक किस्म के जानवर मौजूद है, जो समुंद्र में पाए जाते हैं ।। एक बार जो इस खाई में गया समझो, मैत के मुह में गया ।"
अलफांसे को याद अाई-----पानी की लह खलबली ।
एक वार पुन-: उसने खाई में झांककर देखा तो उसके जिस्म में झुरझुरी सी' दौढ़ गई । पानी के उपर तैरते एक भयानक मगरमच्छ को उसने साफ देखा था । न जाने क्यों अलफांसे जैसा' व्यक्ति भी थरथरा गया ।।
-"क्या किसी भी आदमी को प्रयोगशाला के अन्दर जाने से रोकने के लिए इतने प्रबन्ध कुछ कम हैं ?" वतन ने पूछा ।
-"नहीँ" बरबस ही अलफासे के होंठों से निकला-“काफी हैं ।"
…"तो आइए मेरे साथ ।" वतन ने कहा…"जरां ध्यान से देख लीजिए कि प्रयोगशाला की इस दीवार में कहीं कोई रास्ता तो नहीं है ?"
ध्यान से देखते हुए अलफांसे ने कहा ---" चमक तो रहा नहीं है ।"
इस बीच वतन उन्हें लिए इमारत के ठीक बीच में पहुंच गया ।
अलफासे ने देखा'-वतन ने एक अजीब से ढंग से अंपने दोनों हाथ उपर उठाए । इधर उसके हाथ ऊपर उठे, उधर खाई के पार ठीक उनके सामने प्रयोगशाला की दीवार में हल्की-सी एक गढ़गड़ाहट हुई और दीवार में न सिर्फ एक खिड़की के बराबर रास्ता खुल गया बल्कि उस रास्ते में से सरसराकर एक स्टील की चादर खाईं के इस किनारे की तरफ़ बढने लगी ।
यह चादर सिर्फ एक गज चौडी थी ।
सरसराहट पैदा करती हुई यह स्टील क्री चादर खाई के इस किनारे तक पहुची और किनारे की जमीन से सटकर रुक गई । जब खाई पर स्टील की उस चादर के रूप में एक गज चौडा और पचास गज लम्बा एक पुल बन गया । यह पुल प्रयोगशाला की दीवार में एक खिड़की नुमा दरवाजे तक गया था और वह दरवाजा खुला हुआ था ।
" आओ चचा !" वतन ने कहा…"यह है प्रयोगशाला के अन्दर जाने का एकमात्र रास्ता ।" कहने के साथ ही उसने स्टील की उस चादर पर पैर रखा और लम्बे लम्बे कदमों के साथ उस पुल क्रो तय करने लगा ।।।
यह बात और थी कि घण्टियां बजाता अपोलो अब भी उसके आगे था ।
धनुषटंकार अलफांसे के कन्धों पर चढ़ गया, और मुस्कराता हुआ अलफासे वतन के पीछे बढ़ रहा था । अपनी छडी को टक् टक् के साथ वतन बड़े शाही ढंग से उस अजीबो गरीब पुल को तय कर रहा था ।
कुछ ही देर बाद वे सब उस खिड़की में से होते हुए प्रयोगशाला के अन्दर पहुंच गए । अन्दर खिड़की के समीप ही दाहिनी तरफ़ एक सैनिक खड़ा था । उसने वतन को श्रद्धापूर्वक अभिवादन क्रिया ।
उसके करीब ठिठककर वतन ने अलफांसे से कहा-----" इस आदमी ने मेरा यह संकेत देखकर, जो खाईं के उस पार से लिया था…यह रास्ता खोला था । अब मान लिजिए कि मेरे पीछे-पीछे भागता हुआ कोई आदमी प्रयोगशाला में की आने की चेष्टा करता है तो .......?"
समीप की दीवार में ही लगा बटन वतन ले दबा दिया । गड्रगड़ाहट की आवाज के साथ खाई के पार वाला सिरा अपनी जगह से हटा और स्टील की चादर खाई की तरफ झुकती चली गई । इस हद तक झुकी कि वह पुल पूरी तरह खाई में लटक गया ।
"अंजाम की कल्पना अपना अाप स्वयं कर सकते हैं ।" कहते हुए वतन ने दूसरा बटन दबा दिया । स्टील की चादर सिमटकर अन्दर अाने लगी ।
कुछ ही देर बाद वह चादर भी अन्दर आ गई और खिड़की नुमा रास्ता भी वन्द हो गया ।
अब पहली बार अलफांसे ने उधर से ध्यान हटाकर यह देखा कि वह कहां आ गया है । इस वक्त लह एक बहुत की हॉल में था और उसकी छत ठीक उतनी ही ऊचाई पर थी जितनी ऊंची प्रयोगशाला की दीवारें थी ।
जगह-जगह रोशन रॉडों ने पूरे हॉल को प्रकाशमान कर रखा था ।
हॉल में सादगी के नाम पर कोई इक्का दुक्का ही नजर अाता था ।
एक कोने में बड़े-बडे चार जनरेटर रखे थे । उन जनरेटरों के अागे चार सैनिक मुस्तेदी के साथ बैठे थे ।
वतन ने बताया-कोई भी खतरे की बात होगी तो वह अभी जो मेरे लिए रास्ता खोला करता है, खतरे का साइरन बजा देगा ।। और खतरे का साइरन बजते ही वे चारों सेनिक जनरेटर अॉन कर देंगे । परिणाम यह होगा कि प्रयोगशाला की चारों दीवारों में करेंट बहने लगेगा । वैसे सारी रात तो वे जनरेटर आँन रहते ही हैं । "
उन्हें बताता हुआ वतन हॉल में एक तरफ बढ़ रहा था ।
"लेकिंन इस प्रयोगशाला के अन्दर आदमी गिने-चुने ही नजर अा रहे हैं हैं" अलफांसे ने कहा ।
"ज्यादा आदमियों का यहाँ करना भी क्या है ?” वतन ने बताया-"सिर्फ जरूरत के ही जादमी अन्दर हैं । एक बात अौर भी है जिसे सुनकर शायद आपकी आश्चर्य होगा । वह यह कि प्रयोगशाला अंन्दर का एक भी आदमी प्रयोगशाला से बाहर नहीं जा सकता ।"
" क्या मतलब ?" वाकई अलफांसे चौंका ।
‘"हा चचा !" वतन ने बताया----", चमन में मात्र मैं और अपोलो ही ऐसे जीव हैं जो हर रोज प्रयोगशाला के अन्दर और बाहर की दुनिया देखते हैं । वरना ज्यादा यह है कि जो लोग प्रयोगशाला के अन्दर हैं, वे कभी प्रयोगशाला से बाहर नहीं गए । जो लोग प्रशेगशाला से बाहर हैं…वे नहीं जानते कि प्रयोगशाला अन्दर से कैसा है कैसा ? चमन के कानून के मुताबिक प्रयोगशाला के अन्दर वाले किसी आदमी का बाहर जाना किसी बाहरी आदमी का अन्दर बना जुर्म है, और इस जुर्म को करने बाले की सजा यह है कि उसे खाई में डाल दिया जाएगा । किन्तु शुक्र है कि अाज तक किसी को ऐसी हिंसात्मक सजा देने की जरुरत नहीं पड़ी ।"
" तुम्हारे कहने का मतलब यह हैकि तुम्हारे और अपोलो के अलावा आज तक प्रयोगशाला के अन्दर का कोई आदमी बाहर नहीं निकला है ओर बाहर से कोई अन्दर नहीं अाया है ?"
"वेशक, मेरे कहने का यहीं मतलब है ।" वतन ने कहा----"इस कानून का यहाँ कठोरता से पालन हो रहा है ।"
“यह बात तो कुछ असम्भव-सी लगती है, वतन ।" अलफांसे ने कहा------" लोग इस प्रयोगशाला के अन्दर हैं, उनका मन अपने बीबी-वच्चों, माता-पिता_अथबा भाई-वहन से मिलने के लिए करता होगा ।"
अचान्क वतन के मस्तक पर बल उभर अाया ।
अलफासे ने उसे महसूस क्रिया । मगर कुछ बोला नहीं ।
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