RE: antervasna चीख उठा हिमालय
-"ये सारा जाल इनका का ही बिछाया हुआ था ।" वतन ने बताया-"मानना पड़ेगा कि इनकी हर चाल, पूरी साजिश, एक स्वस्थ दिमाग से सोची हुई थी । इनके दिमाग को मान गया मैं । इतनी देर तक हम दुश्मन के साथ रहे और दुश्मन को पहचान न सके ।"
-"लेकिन हमें भी तो बताओ भैया, कि ये सव कुछ इन्होंने किया कैसे ? "
-"सुनो ।" वतन ने कहना शुरू किया-“आज दिन में जव ये हमारे साथ यहाँ अाए थे तो हमारी नजरों से छुपाकर इन्होंने एक टाइम बम दीवार कं सहारे इमरजेंसी लाइट के पास फिट कर दिया । तुम्हें याद होगा अपोलो कि दिन में ये तुम्हारे साथ लैट्रीन गए थे । इन्होंने हाथ उन्हीं तीन जनरेटरों के पास धोए होंगे जो बम-बिस्फोट से नष्ट हुए ।"
'अपोलो ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई ।
-------"तुम्हारी स नजरों से छुपाकर इन्होंने एक टाइम बम उस जगह फिट कर दिया ।” वतन ने बताया---"इंसके बाद दोनों को याद होगा कि शाम को ये कुछ देरके लिए भवन से गायब हो गए थे है मेरे पूछने पर इन्होंने बताया था कि चमन की सैेर करने गए थे, परन्तु हकीकत यहीं थी कि उस समय में इन्होंने प्रयोगशाला के बाहर वाले मैदान में हमारे चार सैनिकों क्रो मार डाला । मारकर उनकी लाश को छोटी-छोटी कीलों और रेशम की डोरी की मदद से खाई में लटका दिया ।
उन चारों की मशीनगनें इन्होंने मैंदान के चारों कोनें पर जमीन में फिट कर दी-इस तरह कि उनका निशाना हर पल अपनी-अपनी तरफ वाली सचंलाइर्टों पर था । गनों के ट्रेगरों के साथ इन्होंने स्प्रिंग के छोटे-छोटे टुकडे बांध दिए । स्प्रिंग के दुकड्रो के दूसरे सिरों में लोहे की एक गेंद जैसी वस्तु थी जो असल में टाइम बम के सिद्धान्त पर तैयार की जाती है । लोहे की उस गेंद के अन्दर एक घडी होती है ।
-----उस घडी में जो टाइम फिट कर दिया-जाए-- उस वक्त तक तो वह आराम से चलती रहेगी मगर ठीक तब जबकि इसमें भरा टाइम समाप्त हो जाएगा बन्द हो जाएगी बन्द होते वक्त वह एक तेज झटके के साथ अपने स्थान से की तरफ उछलेगी । वैसी ही गेंदों के टाइमों में एक एक मिनट का अन्तराल करके इन्होंने गनों के ट्रेगरों में बन्धे स्पिंगों के दूसरे सिरों से फिक्स कर दी । टाइम समाप्त होते ही गेदों में झटके हुए और चारों गनों से एक-एक गोली निकलकर अपने-अपने लक्क्ष पर जा लगी ।
------- गनों को फिक्स करना और उन गनों के मालिक हमारे चार साथियों को मारकर खाई में लटका देने का काम इन्होंने उसी समय में किये थे जिसमें ये गायब रहे । ये सारे काम इन्होंने किए भी इतनी सावधनी से कि कोई उन्हें नोट भी नहीं कर सका ।"
सास लेने के बाद वतन ने पुन: कहा----" स्कीम इन्होंने अच्छी तरह सोच-समझकर बनाई थी । अपनी उसी स्कीम के मुताबिक इन्होंने विभिन्न स्थानों पर फिक्स टाइम बमों के टाइम बंमों के चलने इत्यादि के टाइम सैट किए थे । ठीक वक्त के अन्तराल से चारों गर्ने चली । वही हुआ जो ये चाहते थे ।
-------- चारों सर्चलाइटें फोड़कर इन्होंने अंधेरा कर दिया । स्वाभाविक था कि फायरों की आवाज को सुनकर मैं रात ही को यहाँ अाता । अपनी योजना के मुताबिक ये हमारे साथ अाए । जिस मकसद से इन्होंने यह अंधेरा किया था, उसका इन्होंने भरपूर लाभ उठाया । अंधेरे का लाभ उठाकर इन्होंने कील सहित लाशों को पानी में डाल दिया और मेरे दिमाग में यह बाल घुसेड़ने की कोशिश करने
लगे कि सैनिकों का लिबास पहने खाई में कुदने वाले वे ही दुश्मन है जिन्होंने सर्चलाइट तोड़ी हैं और जो लेग ' वेवज एम' का फामूला चुराने का मकसद लेकर यहां आऐ है । इसके बाद प्रयोगशाला के अन्दर धमाका-------
------फिर इस कक्ष ----- यह सब कुछ इनकी एक शातिराना चाल धी । इन्होंने कुछ ऐसे दुश्मनों का भ्रमजाल फैलाये जो कहीं थे ही नहीं । हम उस जाल में फंसे रहे, हम ही क्या सचमुच, आदमी चाहे जितना समझदार हो, ऐसे जाल में फंस जाना स्वाभाविक ही है ।
-इनका मकसद था-कल्पनिक दुश्मनों का पीछा कराते हुए हमे इस कक्ष तक लाना ये पहले ही जानते थे कि इस कक्ष में पहुंचकर इन्हें यह भी साबित करना पड़ेगा कि इस कक्ष में अन्दर दुश्मन जिस रास्ते से भाग गया । अत: कहानी बड़े स्वाभाविक बनाने के लिए इन्होंने पहले ही टाइम बम को इस तरह फिक्स क्रिया था कि दीवार में मोखला वन जाये ताकि उस मोखले को दिखाकर ये यह कह सकें कि दुश्मन इसमें से भाग गया है । "
-------" इस तरह इन्होंने एकं ऐसे काल्पनिक दुश्मन का नाटक रचा जो असल में था ही नहीं ।" वतन ने सांस लेने के बाद कहा----"सर्चलाइट का फूटना, चार का खाई में कूदना, प्रयोगशाला के अन्दर धमाके, कोई यह सोच भी नहीं सकता कि यह सब कुछ स्वय ही हो रहा होगा । हर आदमी उन परिस्थितियों में उसी कहानी पर चलेगा जो यह बनाना चाहते थे । अत: हर आदमी यहीं सोचेगा कि दुश्मनों ने पहले सर्चलाइर्टे फोडी, खतरनाक-जीवों से बचने का कोई इन्तजाम करके खाई में कूदे, किसी तरह अन्दर पहुच गए, इत्यादि ! इसी भ्रमजाल में फंसाकर ये हमें ऐसे दुश्मनों का पीछा कराते हुए, जो कभी थे ही नहीं, यहां तक ले जाए । इन्हें मालूम था कि यहा अाने पर हमारे दिमाग में प्रश्न उभरेगा कि बन्द कक्ष में से दुश्मन कंहा गए ? इसका जवाब इस मोखले के रूप में इन्होंने पहले ही तैयार कर लिया था ।
" उसी मोखले में से गुजरकर तुम दोनों उस काल्पनिक दुश्मन की तलाश में चले गए । दुश्मन जब इनके अलावा कोई था ही नहीं तो किसी के मिलने का सबाल ही नहीं उठता था । मैं भी तुम्हारे इस गोखले में झपटने बाला था कि इन्होंने मुझे रोक दिया ।
अब क्यों कि इन्हें यह नहीं मालूम था कि इस कक्ष में फार्मूला रखा कहां है, अत: इन्हें फार्मुले का पता लगाना था । अपने उसी मकसद को पूरा करने के लिये इन्होंने मुझसे कहा कि दुश्मन फार्मूला लेकर इस मोखले के माध्यम से भाग गया है ।
-------स्वाभाविक है कि ऐसी परिस्थितियों में हर आदमी सबसे पहले यह चैक करेगा कि उसकी वह महत्वपूर्ण चीज, जिसे उसने छुपाकर रखा है, अपनी जगह पर मौजूद है भी या नहीं ? मैंने भी चेक किया---- फिल्म देखते ही मेरे प्रति इनका लहजा बदल गया । इन्होंने पर जम्प लगा दी और मेरे हाथ से यह डिब्बा छीन लिया जिसमें फिल्म थी, मगर मेरे विचारनुसार, इनकी स्कीम यहाँ अाकर कमजोर हो गई ।"
"‘कैसे ??" धनुषटंकार ने इशारे से पूछा ।
----" मुझें आश्चर्य है इतनी चक्कदार और साफ सुथरी योजना बनाने और सफलतापूर्वक उस पर चलने के बाद अपनी मंजिल के चरम बिन्दू पर पहुंचकर इन्होंने इतनी बडी भूल कैसे कर दी कि जिसका परिणाम यह हुआ ?" कहते हुए वतन ने अलफांसे के बेहोश जिस्म की ओर इशारा क्रिया ।
'"आप कहना क्या चाहते हैं ?” धनुषटंकार ने लिखकर पूछा ।
" मैं यह कहना चाहता हूं के जिस स्कीम से ये हम सबको लेकर इस फिल्म तक पहुंचे, अगर वह स्कीम मैंने बनाई होती , यानी इनकी जगह मैं होता तो इनकी तरह फिल्म पर नजर पड़ते ही अपना असली रूप दिखाने की मूर्खता न करता, बल्कि उसी तरह वना रहता जिस तरह बना हुआ था । कहता कि अब इस फिल्म को यहां रखना खतरे से खाली नहीं है । इन्हें अपने साथ रखो ताकि दुश्मनोें के हाथ न लग सकें । स्वाभाविक-सी बात है कि अगर ये मुझसे यह बात कहते तो मैं फिल्म को कहीं अन्यत्र रखने के स्थान पर अपने पास ही रखना ज्यादा सुरक्षित समझता और मेरे साथ ये रहते ही, प्रयोगशाला से बाहर निकल कर ये धोखे से फिल्म छीनकर भाग जाते तो यह परिस्थिति न बनती जो इस वक्त इनके साथ बनी है, यानी ये बेहोश हैं और एक तरह से इस वक्त मेरी कैद में है"
इन्होंने क्या किया ?"
--'"तुम्हारे यंहा से जाते ही इन्होंने अपना असली रूप दिखा दिया ।" वतन ने वाताया'-"फिल्म देखते ही इन्होंने मुझ पर यह भेद खोल दिया कि यह सब कुछ चक्कर इंन्हीं का फैलाया हुअा है । इनके स्थान पर मैं होता, ऐसी कभी नहीं करता । यह फार्मुला इन्हें मुझसे प्रयोगशाला से बाहर निकलने पर छीनना चाहिए था । आश्चर्य है कि इतनी अच्छी स्कीम बनाने के बाद चचा इतनी सी बात पर धोखा क्यों खा गए हैं"
"मैं जानता हूँ इसका कारण... ।।" धनुषटंकार ने लिखा…"इसका असली कारण यह है कि इन्हें यकीन था कि ' हाथापाई में तुम इनके मुकाबले कहीं भी नहीं हो । इन्हें यकीन होगा कि मल्लयुद्ध में यह तुमसे जीत जायेंगे और तुम्हें यहीं बेहोश करके बड़े आराम के साथ न सिर्फ इस प्रयोगशाला बल्कि चमन से ही निकल जाएंगे । यह तो इन्हें उम्मीद भी नहीं होगी कि उल्टे तुम उन पर हावी ही जाओगे ।"
"यह तो-माना कि 'ओवर कॉफिंडेन्स' के कारण ये अपनी योजना के चरम विन्दु पर धोखा खा गये । " वतन ने कहा-“बल्कि यूं कहो कि 'ओवर
कॉफिंडेन्स भी नहीं, इनका' यह यकीन सहीं था कि मल्लयुद्ध में यह मुझ पर विजय प्राप्त कर लेंगें । नि:सन्देह इस कला में मैं अभी इनका बच्चा ही हूं । ये मल्लयुद्ध के बीच ज्यादातर मुझ पर हावी रहे और लडाई के बीच ही बीच में ये मुझे अपनी वे सब कारस्तानियां सुनाते रहे जो मैंने आपको बताई । यह तो मेरा नसीब ही अच्छा समझो कि मेरा दांव लग गया और मैंने एक वार इनकी कनपटी पर करके इन्हें बेहोश कर दिया । मगर मेरे ख्याल से तो मल्लयुद्ध में अगर ये मुझ पर विजय भी प्राप्त कर भी लेते तो भी ये इस प्रेयोगशाला से नहीं निकल सकते थे ।"
" क्या तुम्हें भी याद नहीं कि मैं कक्ष के बाहर खडे डैनी है और दरवाजा खोलने वाले सैनिक को यह हुक्म देकर अाया हूं कि जब तक मैं न आऊ, किसी को भी इस कक्ष और प्रयोगशाला कि से बाहर न निकलने दिया जाए !"
"हां, याद है... ।" धनुषटकार ने लिखा-" लेकिन बाहर निकलने की कोइं - न कोई तरकीब इनके दिमाग में रही होगी ।"
"खैर...!” वतन ने कहा…“जो भी रही हो-लेकिन फिलहाल तो जो कुछ हुअा, अच्छा ही हुआ । अगर मैं जरा-सा और चुक गया होता इतनी हिफाजत के बाद भी 'वेवज एम' और 'अणुनाशक' किरणों का यह फार्मूला हमारे हाथ से निकल गया होता है"
कुछ देर तक आपस में इसी, तरह की बातें होती रही, फिर ------
-----वतन ने कहा-"खैर जरा वे फिल्में तो दूंढो । हमारी लड़ाई के बीच न जाने वे कहा गिर गई ।" कहने के साथ ही डेस्क से उसने रोशन टॉर्च उठा ली ।
फिर प्रयोगशाला के फर्श पर फिल्मों को तलाश करने लगे ।
कुछ ही देर बाद वे फिल्में धनुषटंकार को मिल गई । उसने उन्हें वतन-को पकड़ा दिया ।
वतन ने सावधानी के साथ अपनी दोनों फिल्में सफेद पैंट की जेब में रखीं । अलफांसे के, बेहोश जिस्म को अपने कंधे पर लादा और प्रयोगकक्ष से बाहर की की चल दिये ।।।
वतन ने वह सब कुछ डैनी को समझा दिया जो धनुषटंकार और अपोलो को समझाया था ।
डेनी और दूसरे सैनिकों को आश्चर्यचकित छोड़कर वे आगे बढ गए । दरवाजा खोलने वाले सैनिक से रास्ता खुलवाकर बाहर आए और मनजीत तथा प्रेयोगशाला के बाहर के, सभी सैनिकों को हकीकत बताकर अपनी कार में जा बैठे ।
हर सैनिक आश्चर्य चकित था ।
डैनी और मनजीत जैसे अधिकारी खुश भी थे, इसलिए कि यह सावित हो चुका था कि कोई दुश्मन था ही नहीं, तो वे पकड़ते किसे ।।
वतन, धनुषट'कार और अपोलो बापस राष्ट्रपति भवन में अा गए ।
वतन ने जब यह कहा कि अलफांसे चचा को होश में लाकर इनसे कुछ बाते की जाएं तो लिखकर धनुषटंकार ने सलाह दी-----" गुरु को इस तरह होश में लाना अाग में हाथ डालने से भी ज्यादा खतरनाक है । इन्हें ताव आ गया तो यकीनन ये सारे चमन में तहलका मचा देंगे ।"
"'तो फिर क्या करें ?”
'यह कि पहले इन्हें अच्छी तरह कसकर बांध दिया जाए ।" धनुषर्टकार ने सलाह दी----"सावधानी के साथ कि अपनी इच्छा से ये अपने जिस्म का एक अंग भी न हिला, सकें । तब इन्हें होश में लाया जाए ।"
" तुम्हारी सलाह पसंद आई मोंण्टो ।" वतन ने कहा---- "निस्सदेह ये हर किस्म के दुश्मन से कहीं ज्यादा खतरनाक हैं । तुम दोनों मिलकर इन्हें बांधो ।। हर जेब की अच्छी तरह तलाशी लो-----कोई नन्हा-सा हथियार भी इनके पास न रह जाए ।"
"और अाप ?"
'"इनके होश मैं अाने पर फिल्म मेरी जेब में नहीं रहनी चाहिए !" वतन ने कहा-----"इन फिल्मों को किसी सुरक्षित जगह पर रखकर वापस लौटता हूँ । " कहने के साथ ही एकदम धूम गया वतन । लम्बे-लम्बे कदमों के साथ वह कक्ष से बाहर निकल गया ।
धनुषटंकार और अपोलो ने एक नजर एक दूसरे को देखा, फिर अपने काम में व्यस्त हो गए । धनुषटंकार अपने कोट की जेब से रेशम की एक मजबूत डोरी निकाली और दोनों ने मिलकर अलफांसे को एक थम्ब के सहारे बांध दिया । फिर धनुषटंकार उसकी तलाशी लेने लगा । तलाशी में कोई खास चीज नहीं, सिर्फ एक कागज मिला । तह खोलकर धनुषटंकार ने वह कागज पढा । उस कागज में लिखा पहला अक्षर पड़ते ही वह उछल पडा ।
फिर राइटिंग पहचानकर उछला ।
अन्त में उसने लिखने वाले का नाम पढ़ा तो खोपडी भिन्ना गई उसकी ।
लिखा था------
------"बेटे बन्दर !
जिसको तुमने बांध दिया है, वह अलफांसे नहीं, तुम्हारा चचेरा भाई है-वतन । और मैं जो फिल्में सुरक्षित रखने गया वतन नहीं, अलफांसे हूं ।
----समझ सकते हो कि अब मुझे राष्ट्रपति भबन में लौटने की कोई ज़रूरत नहीं है ऐसा इन्तजाम मैंने . कर लिया है कि जिस वक्त तुम यह पत्र पढ़ रहे होगे, उस वक्त तक मैं तुममेे से किसी की भी पकड़ से बहुत दूर निकल चुका होऊंगा ।
---सोच रहे होंगे कि यह सब कैसे होगया ?
मैं नहीं चाहता कि यही बात सोचते हुए तुम ज्यादा देर तक अपना दिमाग, खराब रखो । सब कुछ उसी ढंग से हुआ है जैसा कि वतन के भेष में मैं तुम्हें कक्ष में ही बता चुका हूं ।
उस-उसमें इतना परिवर्तन कर लो कि मल्लयुद्ध में तुम्हारा वतन नहीं, हम जीते थे मगर हम जानते थे कि कुछ ही देर बाद जब तुम और अपोलो वापस कक्ष में लौटोगे तो वतन के खिलाफ हमारी जीत पसन्द नहीं करोगे । अत: वतन हमेँ खुद बनना पड़ा और वतन को बनाना-पड़ा अलफांसे ।
प्यारे अन्दर, तुमने वतन को अलफांसे पर कक्ष में वह आखिरी बार करते हुए अपनी आंखों से देखा था जिसके कारण वह बेहोश हुआ, लेकिन नहीं, यह हकीकत नहीं थी । -----------
हकीकत यह थी कि वतन बेचारे को हमने इतना अवसर ही नहीँ दिया कि वह हमारा मुकाबला कर सके । हमने जो कुछ किया, तुम समझ सकते हो कि उस सबकी हमने योजना बना रखी थी । उस योजना के मुताबिक वतन को इतना मौका नहीं देना था कि यह हमारा मुकाबला कर सके ।
इससे पहले कि यह, बेचारा कुछ समझ सकता, उसे बेहोश कर दिया । अपनी योजना के मुताबिक हम पर दो फेसमास्क थे-अपना और वतन का । उन्हीं की मदद से हमने वतन को खुद बनाया और खुद बने वतन । आधे घण्टे में इतने काम हुए । जब हमने देखा कि तुम दोनों आ रहे हो तो अलफांसे बने बेहोश वतन को खड़ा करके एक घूसा मारा ।
-इसके बाद वह फर्श पर पड़ा-रह गया ।
अब यह भी कहोगे कि घूंसा लगते ही तुमने अलफांसे की चीख सुनी थी! हम यह नहीं चाहते कि यह चीख की आवाज तुम्हें ज्यादा देर तक परेशान करती रहे । सीधी-सी बात है कि यह चीख हमने अपने मुह से निकाली थी
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