antervasna चीख उठा हिमालय
03-25-2020, 01:08 PM,
#39
RE: antervasna चीख उठा हिमालय
धनुषटंकार का कागज पढकर वह समझा, कुछ नहीं समझा लेकिन चीख पड़ा-"जीप लाओ ।"



उसके चीखने के दो मिनट बाद ही न जाने किधर से एक जीप दौड़कर आई और ब्रेर्कों की चरमराहट के साथ सैनिक अधिकारी और धनुषटंकार के करीब रुकी ।


धनुषटंकार ने एक भी पल नहीं गंवाया । उसने जल्दी से ड्राईविंग सीट से ड्राइवर को हटाया ।
न सिर्फ सैनिक अधिकारी बल्कि वहां मौजूद सभी सैनिकों पर बौखलाहट सवार थी । मगर कर कोई कुछ नही सकता था क्योंकि धनुषटंकार से सभी उसी परिचित थे । ड्राइविंग सीट पर बैठते धनुषटंकार ने सबको जीप में बैठने का इशारा क्रिया ।


तब जबकि अधिकारी सहित सात सेनिक जीप में बैठ गए, किसी धनुष से छूटे तीर की तरह जीप सडक पर दोड़ पडी ।



इतनी तेज गति से कि उसमें बैठे सैनिक बौखला गए । फिर किसी गोली क्री-सी रफ्तार से उनमें से कभी क्रिसी सेनिक ने जीप को चलाते नहीं देखा था । सब चुप ! जीप में मौत जैसा सन्नाटा !

कोई बोले भी तो क्या ? सभी के दिमाग बौखलाए हुए-से थे । पहली बात तो यह कि किसी की समझ में यह नहीं अा रहा था कि यह हो क्या रहा है ? दूसरी बात…जीप की रफ्तार ।।।


.कोई अच्छा चालक भी इस रफ्तार से जीप चलाए तो उसमें बैठने वाले अच्छे अच्छे कांप जाएँ---और-यहां-----यहां तो सभी सैनिकों के दिमाग में यह बात भी थी कि जीप एक बन्दर ड्राइव कर रहा ।



सभी को लग रहा था कि निश्चित रूपसे भयानक एक्सीडेंट होने वाला है ।



आखिर सैनिक अधिकारी ने कह ही दिया----"जीप जरा धीरे चलाओ, मोण्टो ।"



लेकिन-वह भला किसकी सुनने वाला था, कम होने के स्थान पर जीप की रफ्तार बढी । दुबारा किसी की हिम्मत न हुई कि कोई उससे रफ्तार कम करने लिए कह दे । सभी को लगा था कि उनके कहने पर रफ्तार और बढ जाएगी ।।
कुछ ही देर बाद सढ़क पर पागलों की तरह भागता हुआ अपोलो हैइलाइर्टों की सरहद में अा गया ।


अपने ऊपर लाइट पड़ते ही एक बार अपोलो ने पलटकर देखा ।


इतनी देर में ब्रेकों की चीख के साथ जीप उसके बराबर में रूकी ।




-'"अपोलो ।" इधर सैनिक अधिकारी के मुंह से निकला उधर---


हवा में लहराता हुआ अपोलो का जिस्म जीप में अा गया ।

जीप एक अटके साथ इस तरह अागे वड़ गई जैसे कभी रुकी ही नहीं थी ।


जबरदस्त तीव्र गति से जीप दौडती ही चली जा रही थी ।


चमन की विभिन्न सड़कों पर दौड़ने के अतिरिक्त जीप ने किया ही क्या ?



वह वस दौडती रही, दौड़ती ही रही । जैसे कि सैनिको को सम्भावना थी, कोई एक्सीडेंट नहीं हुआ ।



आधे घण्टे तक जीप सड़क्रो, पर दौड़ती रही । इस बीच

धनुषटंकार ने सभी सैनिकों को समझा दिया था कि हुआ क्या है ।


वास्तविकता का पता लगने पर उनकी स्थिति भी अपोलो और धनुषटंकार जैसी हो गईं ।



लगातार एक घण्टे तक सड़कों की खाक छानने के बाद भी जब वतन की कार कहीँ नज़र न अाई तो विवश होकर उन्हें राष्ट्रपति भवन की तरफ लौटना पड़ा ।



सभी सेनिक इस वक्त अपने महाराज के दर्शन करना चाहते थे । यह भी चाहते थे के उन्हें होश में लाकर उनसे पूछें कि ऐसी परिस्थितियों में हमारे लिए क्या हुक्म है ?



किन्तु तब, जबकि वे वहाँ पहुंचे जहाँ वे वतन को बंधा छोड़ गए थे ।

अपोलो और धनुषटंकार के पैरों तले से जैसे धरती खिसक गई । "



" महाराज़ कहां गए ? " बरबस ही एक सैनिक के मुँह से निकला ।



ओंर वास्तव में…वतन अपनी जगह से गायब था । रेशम की यह डोरी जिसकी मदद से धनुषटकार ने उसे वांधा था, खम्बे के करीब ही फर्श पर पडी थी ।


फर्श पर से अलफासे के चेहरे के फेसमास्क गायब था ।



धनुषटंकार ने ध्यान से देखा-डोरी उल्झी-पुल्झी जरूर थी, किन्तु कहीं से भी टूटी नहीं थी ।।
उसका सीधा सा मतलब था कि वतन के वन्धन खोले गए हैं । अगर यह सोचा जाए कि इस बीच वतन होश में आ गया होगा और उसने खुद ही स्वयं को रेशम की इस डोरी की कैेद से मुक्त किया होगा तो यह गलत होगा ।



धनुषटंकार जानत़ा था कि उसने बन्धन इतने सख्ती के साथ बाधे थे कि उनमें बधने वाला स्वयं किसी भी तरह से अपने 'वन्धन नहीं खोल सकता था ।



हां अगर ज्यादा बलशाली हो तो बंधनों को तोड़ जरूर सकता था ।



किन्तु रेशम की डोरी का साबुत होना इस बात का प्रमाण था कि वतन को किसी ने खोला था ।।।

" किसने ?"


यही एक सवाल हर दिमाग़ में चकरा उंठा ।।




पूरे राष्ट्रपति भवन में वतन को इस तरह खोजा गया जैसे सुई को खोजा जा रहा हो, परन्तु वह नहीं मिला ।


राष्ट्रपति भवन के अन्य पहरेदारों से पूछताछ गई तो पता लगा कि न तो किसी ने वतन को ही देखा है और न ही अन्य किसी संदिगध आदमी को ।।।


सुवह तक चमन का बच्चा-बच्चा जान गया कि वतन आश्चर्यजनक रूप से गायब हो गया है । सारे चमन में जैसे मातम छा गया । जगह-जगह, तरह तरह के वार्तांलाप होने लगे । रात को गुजने वाली गोलियों की अावाजों और बम बिस्फोटों की चर्चाएं होने लगी ।



चमन की थल सेना के अध्यक्ष मिस्टर नादिर ने चमन कें रेडियों पर चमन के नागरिकों को सम्बोधित करके कहा कि महाराज के गायब होने से घबराने की कोई जरूरत नहीं है ।


वे चमन के दुश्मनों से बदला लेने के लिए खुद ही चले गए हैं । उनके बाद चमन जी रक्षा उनकी फौज बखूबी कर सकती है ।



नादिर द्वारा रेडियों पर राष्ट्र के नाम प्रसारित संदेश का तात्पर्य यह था कि चमन के सामान्य नागरिक आतंकित न हो सकें, धबराएं नहीं यह दूसरी बात थी कि नादिर स्वय घबरा रहा था ।।


स्वयं उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वतन कहां चला गया और उसे कहां ढूंढा जाए ?

वतन की खोज में कईं दिन गुजर गए, लेकिन वह किसी को न मिला ।।




फिर...एक दिन सुबह...!
सारे चमन में जैसे तूफान आ गया ।।



जिसने देखा वही दंग , आंतकित , भयभीत और डरा हुआ ।



सारा चमन जैसे आकाश की तरफ देख रहा था । बूढे, जवान, महिला, पुरुष इत्यादि सभी की निगाहें चमन के ऊपर चकराते उस हेलीकॉप्टर पर थी ।।


सभी के चेहरे पीले पड़े हुए है सारे चमन के साथ-साथ धनुषटंकार अौर अपोलो भी राष्टपति भवन की छत पर खड़े उस को देखरहे थे । उसके बराबर में ही खडा़ था, थलसेना अध्यक्ष नादिर ।



सबकी निगाह चमन के ऊपर चकराते उस हेलीकॉप्टर से नीचे लटक रहे इन्सानी जिस्म पर ज्यादा थी ।


वह जिस्म हेलीकॉप्टर के साथ बंघा एक लाश की तरह लटक रहा था ।


हैलीकॉप्टर के विपरीत दिशा में उड़ता-सा प्रतीत हो रहा था वह ।



नादिर ने तो कहा भी था कि इस हैलीकॉप्टर को किसी गोले से मार गिराया जाए किन्तु न जाने क्या सोचकर धनुषटंकार ने उसे ऐसा करने से रोक दिया था ।

हवा में चकराते हैलीकॉप्टर ने भी चमन के अनेक चक्कर लगाने के अलावा कुछ नहीं किया । हां…वह निर्जीव-सा जिस्म हैलीकॉप्टर के साथ जरूर लहरा रहा था ।




काफी देर तक उस हेलीकॉप्टर ने चमन के नागरिकों को आतंकित रखा । अन्त में…वह समुद्र की तरफ मुड़ा ।राष्ट्रपति भबन की छत पर खड़े घनुषटंकार, अपोलो और नादिर इस वक्त हैलीकॉप्टर को स्पष्ट देख रहे थे ।




वे राष्टपति भवन की छत पर थे और भवन का एक हिस्सा सागर की लहरों पर ही खडा था ।


किनारे से थोडी सागर के ऊपर एक सैकिंड के लिए हैलीकॉप्टर हबा में स्थिर हुआ ।



उसी सेकिड में हेलीकॉप्टर के नीचे बधा वह जिस्म सागर में अा पड़ा । "




बस-उस जिस्म को सागर में डालने के बाद हैलीकॉप्टर सागर के ऊपर से होता हुआ प्रतिपल दूर होता चला गया ।



धनुषटंकार और अपोलो राष्ट्रपति भवन की छत से नीचे की तरफ भागे, नादिर उनके साथ था ।




इस दृष्य को देखने वाले अन्य लोग भी सागर की तरफ जाने की सोच रहे वे, किन्तु सबसे पहले ये तीनों ही उस स्थान् पर पहुचे वह जिस्म सागर की लहरों के थपेड़े खा रहा था ।

धनुषटकार ने अाव देखा न ताव, समुद्र में जम्प लगा दी ।।


उसके पीछे नादिर भी झपटा था ।।



अपोलो किनारे पर ही खड़ा उनकी तरफ देख रहा था ।



तैरते हुए वे दोनों उस जिस्म के पास पहुंचे ।



जिस्म पानी पर मुंह के बल पड़ा लहरों के थपेड़े खा रहा था । यह देखते ही धनुषटंकार और नादिर के रोंगटे खडे हो गए कि उस जिस्म पर सफेद कपड़े थे, किन्तु जगह-जगह से जले हुए । सारा जिस्म जला हुआ-बूरी तरह !



मानो कम-से-कम दो मिनट किसी भंयकर जलती हुई अाग में पड़ा रहा हो वह ।।।



उन्हें लगा यह वतन है ---सफेद कपड़े लम्बाई इत्यादी तो यही साबित करती थी कि यह वतन है ।



नादिर औंर धनुषटंकार के दिल बुरी तरह धड़क रहे थे । मगर, उन्होंने उस जिस्म को पकड़ा और किनारे पर ले आये ।।



किनारे पर अभी मुंह के बल पड़ा था ।

अजीब सीं चीख के साथ बकरा रो पड़ा । कापंते हाथ और धड़कते दिल से नादिर ने उसे पलट दिया ।।


नजर चेहेरे पर पड़ी ।



उफ़, बुरी तरह जला हुआ चेहरा । काला ऐसा जैसे कोई गत्ता जलकर अपने आकार में रह गया हो । झुलसा -हुअा , बूरी तरह जला हुआ वीभत्स चेहरा ।।।


नादिर और धनुषटंकार ने बस ध्यान से देखा ।


सारा चेहरा इस कदर जल गया था कि ठीक से पहचान में भी नहीं आ रहा था है एकाएक उसकी निगाह मस्तक पर पडी़ ।


वहाँ एक बल पढ़ हुआ था ।


मस्तक पर वल प्रमाण था ------ यह वल प्रमाण था कि यह वतन है ।



चमन की मसीहा ही तो था वह ।



वतन----झुलसा हुआ----बुरी तरह


'"जला हुआ वतन ।"

उस समय विकास एक सरदार के मेकअप में था ।

हालांकि ऐसे काम पसन्द नहीं थे लड़के को ।।


वह तो खुला खेले खेलने का शौकीन था ।।


चाहता था कि दुश्मन उसे पहचाने और वह दुश्मन को । डटकर आमना सामना हो और पता लग जाये कि कौन कितने पानी में है ।

.


किन्तु----अपना असली चेहरा छुपाकर काम करने के लिये उसे विजय ने मजबूर किया था ।



ऐसी बात नहीं कि जासूसी के दांव-पेचों को वह जानता नहीं था । विजय, प्रीसेज़ जैक्शन, जैकी और अलफांसे जैसे प्रशिक्षण पाने के पश्चात् वह इन चार महान हांस्तयों की विभिन्न शक्तियों का एक पुतला बन गया या किन्तु --


----उसका कहना था कि जासूसी के किसी भी पैंतरे से मंजिल की ओर बढ़ने की गति बहुत धीमी होती है ।।


अपनी गति वह धीमी नहीं रखना चाहता था ।। वह तो चाहता था कि जितने भी धुरन्धर हें मैदान में कूदें और मामला आरपार कर लें।



किन्तु बिजय ने कहा था----"तुम जैसा ही अभिमन्यु दुश्मन के चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि फिर निकल ही नहीं सका ।।।
उस चक्रव्यूह से भी अधिक सुदृढ व्यूह इस समय दुश्मन ने चमन में रचा है !!


उस चक्रव्यूह में अभिमन्यु बनाकर हम तुम्हें भेज रहे हैं विकास । सोच-----समझकर कदम उठाना ! कहीं अभिमन्यु की कहानी की पुनरावृति न हो जाये ।

तनी तो-विजय के निर्देशानुसार सरदार के मेकअप में था वह ।


उसी मेकअप में चमन के एयरपोर्ट पर उतरा ।


जो शक्ल-सूरत और नाम उसने रखा था, उसी से उसका पासपोर्ट और बीजा इत्यादि बने थे । कस्टम से बाहर आकर लड़के ने अपने चारों और तीक्ष्य दृष्टि से देखा । उसे कोई सन्दिग्ध व्यक्ति नजर न आया ।


साधारण चाल से चलता हुअा वह एक बाथरूम में घूस गया ।



अपनी योजनानुसार अब उसे एक मौलवी का रूप धारण करना था । चटखनी चढ़ाकर बाथरूम का द्वार उसने अन्दर से बन्द किया । अभी अपना इरादा पूर्ण करने हेतु वह सूटकेस खोलने ही वाला था कि…

----"वहआयेगा जरूर !" किसी शिकारी कुत्ते की भांति इस चीनी आवाज ने विकास के कान खडे़ कर दिये--"हमें धैर्य के साथ भारत से आने वाले हर विमान को, चैक करते रहना चाहिए चीफ ने हमें यही आदेश दिया है ।"
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RE: antervasna चीख उठा हिमालय - by sexstories - 03-25-2020, 01:08 PM

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