RE: antervasna चीख उठा हिमालय
-"दो दिन तो हो गये भारत से आने वाले हर विमान को चैक करते ।" दूसरी आवाज----"अभी तक तो वह......!" "तुम में यही कमी है सूंगपी ।" बातें चीनी भाषा में ही हो रही थीं-" तुम जल्दी ही हताश हो जाते हो । यह तो तुम समझ ही सकते हो कि पिछले दिन वतन और विकास बहुत अच्छे दोस्त बन चुके हैं ।। वतन उस वंन्दर का सगा भाई है जिसे विकास बहुत प्यार करता है । वतन का जो स्टेटमेंट विश्व के अ१बारों में छपा है, उसे पढते ही विकास समझ जायेगा कि वह खतरे में है । वह यहां अवश्य आयेगा ।।। बंदर तो अकेला ही आ गया है उसे तो चीफ ने पकड़कर कैद में डाल ही रखा है । अब तो बस विकास की प्रतीक्षा है" ।
"यह तो मैं भी मानता हूं कि वह यहां अवश्य आयेगा, किन्तु ......
" -किन्तु क्या ?"
"कहीं ऐसा न हो कि हम उसे यहीं तलाश करते रहे अौर वह वतन तक पहुंच जाये ।"
" हालांकि ऐसा तो हौगा नहीं और अगर ऐसा हो भी गया तो कौन-सा तीर मार मार लेगा ?" चीनी भाषा में कहा गया ।"
"चीफ ने राष्ट्रपति भवन में ऐसा जाल बिछा रखा है कि वह बच नहीं सकेगा, वतन से मिलने से पूर्व ही वह उस वन्दर की तरह चीफ की कैद में होगा ।।"
-"मुझे दो डर लगता है ।"
धीरे से हंसा कोई, बोला----"तुम तो नाम से डरते हो उसके । खैर, चलो-कही वह बन्दर न निकल भागे ।"
एक-एक बात विकास कान लगाये सुन रहा था । बात चीत की यह आवाज उसके बराबर वाले दूसरे बाथरूम में से अा रही थी । इन बातों से स्पष्ट था कि चमन में चीनी पूर्ण तया अपना जाल फैला चुके हैं ।।
उनकी बातों से यह भी स्पष्ट था कि धनुषटंकार चमन में आते ही वतन को मिलने के जगह पर इन लोगों के हाथ पड़ गया है और इन्होंने उसे कैद कर लिया है । विकास भूल गया कि वह बाथरूम में किस मकसद से आया था ।
वह तो उन आवाजों को सुनने में व्यस्त था । दरवाजा खुलने की आवाज सुनी उसने ।।
फिर बन्द होने की ध्वनि ।
शीघ्रता से विकास ने अपने बाथरुम का दरवाजा खोलकर एक झिर्री सी बनाई । बाहर झांका-बाह्रर वाले बाथरूम से निकलकर दो चीनी बाहर जा रहे थे ।
मेकअप परिवर्तन का विचार त्यागकर विकास उनके -पीछे लपका ।
उन दोनों-की गति काफी तीव्र थी ।
अभी तक विकास उनमें से किसी का चेहरा नहीं देख पाया था ।।।
एयर पोर्ट की इमारते से बाहिर निकलकर उन्होंने एक टेक्सी ली ।
लिख़ने की आवश्यकता नही कि विकास ने भी एक अन्य टेक्सी की सहायता से उनका पीछा किया ।
चमन के बाजार और सड़कों से भलीभांति परिचित था विकास । करीब एक घण्टे पश्चात आगे वाली टेक्सी गोल बाजार की एक इमारत के सामने रुकी ।
अपनी टेक्सी को विकास आगे निकलवा ले गया । टेक्सी में बैठे ही वैठे विकास ने देख लिया था कि टेक्सी बाले का विल अदा करके वे दोनो उसी इमारत में प्रविष्ट हो गये है ।
विकास ने अपनी टेक्सी रुकवाई । विल देकर टेक्सी वाले को बिदा किया और स्वयं वापस उस इमारत की और बढ़ गया ।
इमारत की बगल में ही उसे एकं पतली-सी गली नजर आई, उसी में प्रविष्ट हो गया विकास ।
दिल तो उसका चाह रहा था कि वह धड़धड़ाता हुआ इमारत में घुस जाये । दो-दो हाथे हों और पता लग जाये कि चक्कर क्या है ? किन्तु-बार-बार विजय गुरु के निर्देश याद अाने पर वह स्वयं को रोकता ।
इतना तो वह समझ ही चुका था कि वास्तव में दुश्मनों ने-चमन में सबको फंसाने के लिये चक्रव्यूह का निर्माण कर रखा है ।।
अत: उसे सोच-समझकर के इस व्यूह में प्रबिष्ट होना चाहिये ।
उसने देखा--वह संकरी-सी गली आगे जाकर बन्द थी । गली के अन्दर किसी मकान इत्यादि का दरवाजा भी नहीं था ।।
गन्दगी से भरी पड़ी वह गली ।
दोनों तरह की इमारतों के पतनाले उसी में खुल रहे थे । उसने देखा-गन्दे पानी के पाइपं उस इमारत की दीवार के सहारे-सहारे नीचे पहुंच रहे थे जिसमें वे दोंनो चीनी गये थे ।
विकास को समझते देर ना लगी कि इस गलि में कोई आता जाता नहीं ।
फिर क्या था ?
गन्दे पानी के एक पाइप के सहारे वह ऊपर चढ़ने लगा है इस प्रकार के कार्य अब विकास के लिये उसी प्रकार आसान हो गये थे, जैसे किसी रसगुल्ले को खा जाना है उसने ऐसा पाइप चुना था, जो सीधा इमारत की छत तक पहुंचता था है वन्दर की सी फुर्ती के साथ वह पाइप पर चढता चला जा राह था है
--- उस समय वह इमारत की एक बन्द खिडकी के समीप से गुजर रहा था कि--
भड़ाक से खिडकी खुल गयी पाइप विकास के हाथ से छूटते-छूटते-बचा है वह एकदम इस प्रकार की अप्रत्याशित घटना थी कि जिसकी विकास ने कल्पना भी नहीं की थी ।
खिडकी पर उसे एक आदमी नजर आया है
परिस्थिति ऐसी थी कि विकास जैसे लडके के जिस्म में भी झुरझुरी सी दौड़ गयी ।
वह तो सम्पूर्ण फुर्ती के साथ पाइप पर चढता चला जा रहा था ।
उसका ध्यान तो सिर्फ अपने लक्ष्य अर्थात् छत की तरफ था । उसे तो यह कल्पना भी नहीं थी कि बीच में ही यह खिडकी इस अप्रत्याशित ढंग से खुल पडेगी ।
खिड़की पर चमकने वाले इस चीनी के हाथ में रिबॉल्वर देखकर तो उसके जिस्म का रोयां-रोंया खड़ा हो गया ।
रिर्वाल्लर का रुख बिकास की अोर ही था और उसकी तरफ देखता वह बहुत ही भयानक ढंग से मुस्करा रहा था । बिचित्र-सी स्थिती में फंस गया या विकासा ।
दोनों हाथों से उसने कसकर पाइप को पकड़ रखा था ।
दांतों में दबा था सुटकेस का हैंडिल ।
जमीन ये इतना ऊपर-अा चुका था कि वह कूद नहीं सकता था ।
"इसं तरह चारों को भाँति किसी के मकान में दाखिल होना बुरी बात है मिस्टर विकास । " चीनी ने आराम से अपनी भाषा में कहा ।।
मुंह से कोई जबाव देता विकास तो मुंह से बैग निकल जाना था । जिस ढंग वह फंसा या, उस ढंग से फंसने की उम्मीद कम-से-कम उसने तो की नहीं थी ।
चुपचाप मुर्खों की तरह उस व्यक्ति को देखते के अतिरिक्त विकास कर भी क्या क्या सकता था?
हां- उस चीनी का चेहरा उसे कुछ जाना पहचाना- सा लगा ।
अभी वह उसी स्थिति में था कि--------
वह बोला---"आओ इस खिडकी के रास्ते से कमरे में आ जाओ ! "
कहने के साथ ही चीनी ने एक हाथ उसककी तरफ बड़ा दिया । विकास उसके साहस पर आश्चर्यचकित था । वह अच्छी तरह जानता था कि चीन में उसके उसका कितना आतंक है ,, बच्चा-बच्चा उसके नाम से कांपता है, किन्तु--किन्तु यह व्यक्ति उसे अदम्य साहसी लगा । उसकी बातों से ही लगता था कि उसके दिलं पर विकास का कोई प्रभाव नहीं है ।
विकास ने हाथ बढा दिया ।।
उसने कसकर पकड़ लिया । एक पैर पाइप से हटाकर विकास ने खिड़की पर रखा और फिर---इतने तीव्र झटके के साथ वह खिड़की के अन्दर आया कि वह चीनी बौखला जाये।।
विकास ने विचित्र ढंग से भयानक फुर्ती के साथ उस पर जम्प लगाई थी । उसे आशा थी कि चीनी बौखला जायेगा,
किन्तु , बौखेलाना उसे ही पड़ा था । चीनी को जैसे मालुम था कि विकास यह हरकत करेगा ।।
विकास से अधिक फुर्ती का प्रदर्शन करता हुआ व ह विकास का हाथ छोड़कर अलग हट चुका था ।।
मुंह के बल विकास कमरे के अन्दर फर्श पर जा गिरा ।
बैग उसके मुंह से निकलकर पहले ही कमरे में गिर चुका था ।।
गिरते ही भयानक फुर्ती के साथ वह उठ कर खड़ा हो गया ।।
घूमा, सामने ही हाथ में रिबाँल्वर लिये खड़ा चीनी मुस्करा रहा था ।
विकास ने उसके चेहरे हो ध्यानपूर्वक देखा । विशेष रूप से उसकी आंखों को है विचित्र ढंग से विकास की आँखें सिकुड़ती चली गयी ।
अगले ही पल उसके मुंह से निकला----"तुम्हें पहचान गया हूँ गुरु ।"
" अ--अब पहचाने तो क्या पहचाने ?" चीनी के मुंह से अलफांसे--- की आवाज निकलि--"'हमारे जाल में फंसकर यहां तक तो पहुंच गये ।"
आगे बड़कर अलफांसे के चरणों में झुक गया विकास । श्रद्धापूर्वक चरम-स्पर्श किये, बोला------"फंस भी इसलिये गया गुरु क्योंकि ये जाल तुम्हारा था ।। रही पहचानने की बात, तो उसका जवाब यह है कि आपकी सूरत ही ध्यानपूर्वक देखने का मौका मुझे अब मिला है"
" खैर ।" अशफांसे ने कहा… "बैठो ।" कमरे में पडे़ सोफे पर बैठते हुंए विकास ने पुछा---" अापके साथ दूसरा कौन था गुरु ।'"
"आपकां खिदमतगार ।" दूसरा चीनी अपने मुंह सै पिशाचनाथ की आवाज निकालता हुआ कमरे में प्रविष्ट हुआ-----"क्षमा करें महाराज । यह सब कुछ मुझे महाराज शेरसिंह की आज्ञा पर करना पड़ा !" कहने के साथ ही पिशाचनाथ ने विकास के पैर छू लिये ।।
तीनों ही आराम से सोफे पर बैठ गये ।
"ये सब चक्कर क्या है गुरु ?" विकास है पूछा----"आप चमन में क्या कर रहे है ?"
------"'चक्कर अच्छे-खासे आदमी की खोपडी को घनचक्कर बना देने बाला है विकास प्यारे. ! "' अलफांसे ने बताया-----"तुम्हारा धनुषटकार हमारे चमन में पहुचनें से पूर्व ही वतन के पास पहुंच चुका है और मजेदार बात तो यह है कि एक अलफांसे भी वतन के पास पहुंच चुका है ।"
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