antervasna चीख उठा हिमालय
03-25-2020, 01:22 PM,
#51
RE: antervasna चीख उठा हिमालय
बागरोफ अच्छी तरह समझ चूका था, बातों से जितने मूर्ख नजर आत्ते हैं, ये असल में उतने ही खतरंनाक है। कहने को तो वह न जाने क्या कह रहा था किन्तु दिल में सोच रहा था कि वह एकसाथ इन दोनों पर काबू कैसे पाये ? उसका दिमाग बडी तेजी से काम कर रहा था । ईतना वह समझ चुका था कि, अगर वे एक बार वह हावी हो गये तो फिर वह बच न सकेगा है अचानक उसकी नजर मशाल पर गई।

वह फुर्ती के साथ मशाल पर झपटा तो---

"अरे…अरे...रे ... चचा पागल हो गये तुगलक --इन्हें पकड़ ।"

किन्तु, इससे' पूर्व कि इनमें से कोई वागारोफ के झपटे बागारोफ ने मशाल सम्भाल ली और विद्युत की तीव्रता के साथ उनकी तरफ घूम गया । उस पर झपटने का प्रयास कर रहे दोनों ही ठिठक गये ।

नुसरत कह रहा था --"मै कहता न था तुगलक, हमारे मजाक को चचा गलंत समंझेंगे वही हुआ । अब तुझे नहीं छोड़ेगे चचा । मर साले मैं तेरी क्या मदद कर सकता हूं ?"

हाथ में मशाल लिये बागारोफ नुसरत की तरफ ही बढ़ रहा था ।

उधर तुगलक कह रहा था नुसरत की क्या गलती है चचा, गलती तो मेरी है । मजाक तो मैंने किया था, सजा मुझे दो ।"


" सच चचा !" कान पकड़ लिये नुसरत ने -----" मेरी कोई गल्ती नहीं है । सजा देनी है तो इसे ही दो चचा मैं तो ......"

तेजी से घुमाकर मशाल का एक बार बागरोफ ने नुसरत पर किया ।
गजब की फुर्ती के साथ स्वयं को वचाता हुया नुसरत चीखा-"अबे ओ उल्लु के पदृठे तुगलक की दुम, साले मरवा दिया मुझे ।"

और…जैसे रो पड़ा तुगलक-"नहीं चचा, मेरे गुनाहों की सजा नुसरत को न दो । कहता हुआ तुगलक अभी उस पर झपटने ही बाला था कि बागरोफ ने तीव्रता के साथ उसकी तरफ मशाल घुमा दी ।

मशाल सटाक से उसके चेहरे पर लगी ।

" मर साले और कर चचा से मजाक ।" नुसरत चीखा ।

सचमुच, तुगलक के चेहरे पर मशाल बहुत जोर टकराई थी । उसके मुंह से चीख निकल गई, किंतु- बागरोफ की तरफ से तुरन्त ही होने वाले वार से उछलकर स्वंयं को बचाता हुआ वह रो पडा बोला--" माफ कर दो चचा,मैं उसे चिमटे की कसम खाकर कहता हैं, जिससे पकड़कर मेरे अब्बा ने मुझे अम्मी क पेट से निकाला था । अब तुमसे कभी मजाक नहीं करुगाँ ।"

"अब रोता क्या है साले चचा के पैरों में गिरकर माफी मांग।" नुसरत ने उसे डांटा ।

तुगलक ने जैसे ही बागरोफ के कदमों में झुकना चाहा, बागारोफ ने पुन: उस पर मशाल का वार किया ।

" नहीं चचा , ऐसा न करो ।" तुगलक ने 'कहा-"मुझे माफी मांगने का मौका तो दो ।"



तुगलक गिड़गिड़ाता रहा ।


' रह-रहकर नुसरत तुगलक को कोस रहा था कि उसने चचा से मजाक किया ही कयों ? बीच बीच में वह बागरोफ से तुगलक को क्षमा कर देने का भी अनुरोध करता है मगर
तुगलक और नुसरत की चाल बागारोफ समझ चुका था । वह समझ चुका था कि जिस तरह मुर्खता पूर्ण बाते करने में वे एक दूसरे से काफी आगे हैं, उसी प्रकार बातों में फंसाकर बार करने में भी एक से आगे एक है ।
वे दोनों इसी चक्कर में थे कि जिसका भी मौका लगे, यह बागारोफ को दबोच ले जबकि बागरोफ का प्रयास था कि इतना अवसर उनमें से किसी को भी न मिल सके ।
बे दोनों ऊटपटांग बातों के-साथ अपने बचाव में रहे किन्तु--विजयी हुआ यागारोफ । .

करीब तीस मिनट पश्चात् एक प्रकार से वे दोनों बागारोक की कैद में थे ।कई पलों के लिये तीनों के दिल की धड़कनें मानों बन्द हो गई ।

किसी बुत की भांति वे खड़े रह गये -- सागर तट पर ।

उन तीनों के सामने वतन पड़ा था । झुलसा हुआ --- जला हुआ वतन । मस्तक पर पडा़ बल इस बात का प्रमाण था कि वह वतन ही है । चमन का मसीहा । धनुषटंकार का भाई । अपोलो का मालिक ।

गीले रेत पर जला हुआ वतन पड़ा था ।

फूट-फूटकर रो पड़ा नादिर । अपोलो चीख चीखकर अपने सींग रेत में पटकने लगा । धनुषटंकार है मुंह से एक डरावनी आवाज निकली रोने की आवाज । वह भी सिर पटक पटककर अपोलो की तरह रोने लगा ।

नादिर किसी बच्चे की तरह कुट-कूटकर रो रहा था ।

ना जाने कितनी देर तक वतन के दीवाने पागलो की तरह रोते रहे ।

जब उन्हें होश आया तो देखा-चमन के हजारों नागरिक उन्हें घेरे खड़े थे ।

सभी रो रहे थे । सारा चमन रो रहा था। रोता क्यों नहीं, उनका मसीहा-उनका देवता जो सामने पड़ा था----जला हुआ ।।

अचानक-वतन के मुंह से एक कराह निकली ।

नादिर के साथ साथ अपोलो और धनुषटंकार चौके । उन दोनों के मस्तक उन्हीं के खून से सने थे ।

"अभी महाराज जिन्दा हैं ।" रोते हुए नादिर के मुंह से खुशी की एक किलकारी निकली-"इन्हें महल में ले चलो ।"

फिर जले हुए वतन को महल में लाया गया । शरीर पर से इस तरह के तिनके उतर रहे थे जैसे जले हुये गत्ते पर से उतरते है । चमन के यौग्यतम जसूसों ने राष्ट्रपति भवन के उस विशेष कक्ष में पडे़ पलंग को धेर लिया ।

अभी वे अधिक कुछ नहीं, कर पाये थे कि वतन ने कराहकर नेत्र खोल दिये । फफोलेयुक्त आखों से उसने चारों तरफ देखा । यह समझते ही कि वह राष्ट्रपति भवन में है, बिस्तर पर उठकर बैठ गया ।


डॉक्टरों ने इन्कार किया तो वतन की वाणी गूँज उठी -"बतन मरा नहीं है साथियों---सिर्फ जला है औरर जलकर कुन्दन सी तरह चमका है ।"

सुनने बाले रो पड़े । धनुषटंकार और अपोलो उससे लिपट गए ।

फिन्तु-देखने बालों ने देखा वतन के जले हुए होंठों पर एक दर्द युक्त मुस्कान उभरी ।।।





वतन बोला, "रोते नहीं पागलो, इस दुनिया ने वतन की दिखा दिया है कि दुनिया कितनी धिनौनी हैं ? कितनी डरावनी और बदसूरत है, मेरी तरह । मैं इस दुनिया को जवाब दूंगा--जबाव ।" कहकर धनुषटंकार अौर अपोलो को अलग-अच्चा हटा दिया उंसने ।

मुलाजिम रोकते ही रह गये अौर वतन उठकर खड़ा हो गया । डॉक्टर यह कहते ही रह गये कि अभी उसका उठना ठीक नहीं है, लेकिन वह नहीं माना । चमन में किसका साहस था जो वतन की इच्छा का विरोध करता.

यूं जला हुआ वतन बाहर आ गया । ।

चमन का बच्चा-बच्चा राष्ट्रपति भवन के बाहर खडा था ।

एक दृष्टि वतन ने सागर की भांति उमड़ते विशाल ज़न् समुदाय 'पर डाली । मस्तक पर वल पड़ गया । आंखों से नीर तैर उठा ।।

वातावरण में मौत का सा सन्नाटा था । अभी कुछ कहने ही जा रहा था वतन कि सफेद, बेदाग--दूध जैसे कपडे लिये उसके पास अपोलो पहुंचा । सुनहरे फ्रेम का एक काला चश्मा भी था उसके पास। रोते हुए अपोलो ने वतन का वह सामान उसके आगे कर दिया ।

हल्के से मुस्कराया वतन ।अंपोलो को प्यार किया । तड़प-तड़प-खूब चूमा उसे ।

फिर-अपनी प्रजा के समक्ष ही सफेद कपड़े पहने उसने आँखों पर चश्मा लगाया ।

सारा चमन वहाँ मौजूद था, लेकिन संन्नटा ऐसा कि सुई भी गिरे तो बम जैसा विस्फोट हो । एक बार पुन: बंतन ने अपने दीवानों को चश्मे के अन्दर से देखा । फिर-वतन की वाणी जन-जन् के कानों तक-पहुंची---'" प्यारे देशा वासियों ! मैं देख रहा हैं कि आज तुम्हारी आँखों में आसू हैं ।





हर आँख में आंसू देख रहा हूँ । मुझे ये अाॉसू पसंद नहीं । जो आंसुओं को न रोक सकता हो, वह उन्हें काले चश्मे से ढक ले । क्यों--मेरे जिगर के टुकडों की आँखों में आँसू क्यों हैं ? अपने वतन की सूरत देखकर ? यह देखकर कि कल का खूबसूरत वतन आज जलकर दुनिया का सबसे वदसूरत व्यक्ति बन गया है ? इसमें रोने की कोई वात नहीं है प्यारे चमन के निवासियों । रोने की बात तो यह है कि ये दुनिया-तुम्हारे वतन की तरह वदसूरत है । उसी दुनिया ने तुम्हारे वतन को अपनी तरह बदसूरत बना दिया है । अभी नहीं बताऊँगा प्यारे देशवासियों कि मुझे बदसूरत किसने बनाया ा है ? यह रहस्य मैं तुम्हें नहीं, एक साथ सारी दुनिया को वतलाऊंगा । तभी आप भी जान लेंगे। मैं अपनी प्रयोगशाला में जा रहा हूँ । कुछ ही देर पश्चात दुनिया के हर टी० वी० सेट पर मेरा चेहरा उभरेगा । सारी दुनिया के साथ आप भी जान तेने कि यह दुनिया कितनी बदसूरत है ।"

एक क्षण सांस लेने हेतु रूका वतन, फिर बोला-"आप लोगा से सिर्फ इतना ही कहना है की कोई भी घवराये नहीं । वतन अभी जिन्दा है । आज मैं आपका खूबसूरत वतन न सही, जला हुआ वतन तो हूँ । बदसूरत वतन तो है । कम-से-कम उस समय तक जब तक कि वतन किंसी भी सूरत में जीवित है--चमन को दुनिया से नहीं, दुनिया को चमन से डरना होगा । अगर तुम्हें वतन क् चेहरे से नहीं, दिल से मुहब्बत है तो तुम सबको कसम है अपने वतन की, कोई भी एक भी आँसू आँखों में न आने दे । जो भी यह जानना चाहता हैकि मैं आगे क्या करने जा रहा हूँ, वह कुछ ही देर बाद टी० बी० पर मेरी आबाज सुन ले । जो कुछ मुझे करना है, उसकी घोषणा मुझे सारी दुनिया के सम्मुख करनी ।"
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