antervasna चीख उठा हिमालय
03-25-2020, 01:23 PM,
#55
RE: antervasna चीख उठा हिमालय
इस समय उसका गर्दन से ऊपर का भाग पानी के ऊपर था शेष पानी के अन्दर । धीरे धीरे पानी के अन्दर का भाग भी ऊपर आता जा रहा था ।



रॉड के सहारे चलता हुआ वह जलपोत के पिछले भाग में आ गया है । फिर छपकली की तरह वह जलपोत की ऊंची और चिकनी दीवार पर चिपक गया ।


उसके हाथ-पैरों के चारों पंजों में विचित्र-सी किस्म के दस्ताने थे । ऐसा प्रतीत होता था मानो उसके दस्तानों में हवा भरी हुई हो ।जलपोत को दीवार से उसने दायाँ हाथ हटाया उस हाथ का दस्ताना इस प्रकार फूलता चला गया जैसे किसी माध्यम से उसमें हवा भरी जा रही हो । उसने हाथ सीधा किया, कुछ ऊपर, जलपोत की दीवार पर उसने हाथ रखा ।


उस हाथ के दस्ताने की हवा निकलती चली गई । ज्यों-ज्यों हवा निकलती जा रही पी त्यों-त्यों उस हाय की उंगलियाँ एक विचित्र से ढंग से जलपोत की दीबार पर जमती जा रही थी ।। जब वह हाथ पूर्णतया दीवार पर जम गया तो उसने बायां हाथ दीवार से हटाया । दांयें हाथ की भांति दीवार से हटते ही उस हाथ के दस्ताने में भी हवा भरत्ती चली गयी, फिर दायें हाथ से ऊपर, दीवार पर उसने बायां हाथ जमाया । दस्ताने की हया निकंली और यह हाथ दीवार पर जम गया । फिर दायां हाथ उसने दीवार से हटाया। उसमें हवा भरी दायें से ऊपर चिपकाया ।। इस प्रकार ठीक किसी छपकली की भांति यह जलपोत की ऊंची , सपाट और चिकनी दीबार पर चढ़ता चला गया । जलपोत अपनी स्थायी गति से बढ़ता चला जा रहा था ।


पूरी दीवार पर चढ़ कर: डेक पर पहुंचने में उसे तीस मिनट लग गये ।


डेक पर पहुंचकर उसने निरीक्षण किया । किसी इन्सान की मौजूदगी न पाकर वह डेक पर उतर गया । छडी़ सम्बाले वह एक शेड के नीचे पहुंचा है सर्वप्रथम उसने अपनी पीठ को सिंलेण्डरों के भार से मुक्त किया, कैप उतारी । उसके चेहरे पर चौडे फ्रेम वाला काला चश्मा लगा हुआ था ।

गोताखोरी का लिबास उतरा तो जिस्म पर मौजूद सफेद कपडे चमचमा उठे ।



पैरों में क्रैपसोल के सफेद जूते थे , अपना शेष सामान वहीं छोड़कर उसने छड़ी उठाई और डेक से नीचे जाने वाली सीढियों की तरफ बढ़ गया । उसका रंग गोरा था…दृध जैसा । कद लम्बा । विकास की भांति ही लम्बा ।। लम्बे-लम्बे कदमों के साथ वह बढ रहा था ।।



सीढियां उतरकर वह एक गैलरी में पहुंचा ।


सीढ़ियों के नीचे समीप ही खडे़ एक चीनी सैनिक ने उसे देख लिया था । देखते ही सैनिक ने फुर्ती के साथ उसकी तरफ गन तान ली और चिल्लाया…"कौन हो तुम ? कहां चले आते हो ? "



किन्तु जबाब में दूध जैसे कपडों बाला उसके ऊपर अा गिरा था ।



सफैद बूट की ठोकर इतनी जोर से उसकी कनपटी पर पडी थी कि अपने कंठ से चीख निकालता हुया वह धड़ाम से जलपोत के फर्श पर गिरा उसके हाथों से निकलकर गन तो हवा में लहराती हुई बहुत दूर जा गिरी थी ।।



वह फुर्ती के साथ खड़ा हुआ।



अब भी नहीं पहचाना मुझे गुलाबी अधरों से निकली वाणी के साथ ही उसके मस्तक पर बल पड़ गया----" मै
" व....व....वतन !" सैनिक का पोर-पोर कांप उठा ।।

एक जहरीली मुस्कान गुलाबी होंठों पर उभरी । ऐसे, जैसे कोई लड़का म्यान से तलवार निकाले । छडी के अन्दर से खींचकर हहिडयों का बना मुगदर निकाल लिया वतन ने ।



सैनिक की आंखों में साक्षात मौत नृत्य कर रही थी । भय के कारण चेहरां पीला पड़ा हुआ था । वह पीछे हट रहा था और धीरे-धीरे लम्बे कदमों के साथ वतन उसकी तरफ बढ रहा था ।



सैनिक के पीछे दीवार आ गई । अब वह और अधिक पीछे नहीं हट सकता था ।


वतन का मुगदर वाला हाथ ऊपर उठा मुगदर हवा में लहरा उठा और सन्नाकर वह अभी सैनिक के जिस्म के किसी भाग से टकराने ही वाला था कि सैनिक गिड्रगिड़ा उठा-"न---न---नहीं मुझे मत मारो , मैंने कुछ नहीं किया ।" हाथ रुक गया वतन का , मस्तक पर पडा बल, गहरा बहुत गहरा हो उठा। बोला---"' तुम्हारे चेहरे पर आतंक देख रहा हूँ । मौत के भय की परछाइयां कभी यह परछाइयां मैंने अपनी मां और बहन के चेहरों पर देखी थीं किन्तु किन्तु उन-जालियों ने उन्हें छोड़ा नही था ।। मैं तुम्हें छोड सकता हूँ।"



रो पडा सैनिक--" तुम्हें छोड़ने की कुछ शर्त हैं मेरी ।"


सैनिक की आंखों में प्रश्न उभर आया । जैसे पूछ रहा हो…" क्या ?"



"बताओ कि विकास इत्यादि इस जलपोत में कहा कैद हैं ?"



सैनिक के चेहरे पर हिचकिचाहट के भाव उभर अाये ।

"'तुम्हारा नाम तो नहीं जानता मैं ।" बेहद गम्भीर स्वर में वतन ने कहा--"यह भी सुन लो कि तुम्हारी कौम से घृणा है मुझे । नजानते हो, क्यों? इसलिये, क्योंकि तुम समझते हो कि दुनिया में जीवित रहने का अधिकार सिर्फ तुन्हीं का है ।
तुम्हारा वस चले तो सारी दुनिया को अाग लगा दौ तुम । स्वयं जीवित रहने के लिये दूसरों को फाड़कर खा जाओ । मैं अहिंसा को मानने वाला हूँ, हिंसा का क्या परि'गाम होता है, वह मैंने अपनी मां, बहन और पिता को लाशों पर देखा है । सोचता हूं कि मेरे कारण दुनिया का कोई भी इन्सान उस हिंसा का शिकार न हो, किंतु ऐसी बात भी नहीं कि मैं हिंसा का प्रयोग नहीं कर सकता । मैग्लीन और उसके बेटे का अंजाम सारी दुनिया को पता है । मैं महात्मा गांधी की तरह महान नहीं, जो हिंसा का प्रयोग करने की कसम ही उठा लूँ । हां यह अवश्य मानता हूं कि जहाँ अहिंसा से काम हो सके वहां हिंसा प्रयोग नीच व्यक्ति करते हैं । जो सोदेश्य के लिए हिंसा का प्रयोग नहीं करता, मैं उसे भी नीच समझता हूँ । मेरे सिद्धान्त पर गौर करो और फिर सोचो कि तुम्हें क्या करना है, वे लोग कहाँ कैद हैं ? यह बताना है या.....?"


" मैं वता रहा हूँ ।" बुरी तरहसे गिड़गिड़ा उठा सैनिक ।


" बोलो ?"


"जलपोत की सबसे निचली मंजिल के कमरा नम्बर दस में ।" 'सैनिक ने जबाब दिया ।



मुगदर छडी के अन्दर रख लिया वतन ने बोला------"इस बात के लिए धन्यवाद कि तुमचे मुझे-हिंसा का प्रयोग करने पर विवश नहीं किया, लेकिन याद रखना, तुम जहां खड़े हो जिस, पोजीशन में खड़े थे, उसी. तरह वही खडे हो जाओगे । मेरे विषय में किसी से भी कुछ नहीं कहोगे। यूं समझो कि तुम्हें यह पता ही नहीं है कि वतन यहाँ से गुजरा . है"


" जी हां ।" उसकी जुबान सूख गई थी ।




"उम्मीद हैकि तुम मुझे हिंसा अपनाने के लिए विवश नहीं करोगे ।" कहने के साथ ही वतन उसके पास से मुडा है छड़ी टेकता हुअा वह गैलरी में इस प्रकार आगे बढ गया, मानो उसके पीछे कोई हो ही नहीं । लम्बे लम्बे कदमों के साथ वह गैलरी में ठीक इस प्रकार बढा चला जो रहा था, मानो वह चमन के राष्ट्रपति भवन में ही टहल रहा हो ।
जैसे ही वह गेलेरी कें एक मोड पऱ मुड़ा उसने देखा एक सैनिक उसकी तरफ आ रहा था ।

वतन को देखते ही वह बुरी तरह चौककर ठिठका । गजब की तेजी के साथ उसने कन्धे पर से गन उतारी, किन्तु अभी वह उस गन को किसी पर फायर करने की पोजीशन में भी नहीं ला पाया था कि वतन का मुगदर इतनी जोर है उसकी कनपटी पर पड़ा कि वह चीख पडा ।



एक ही वार में उसकी कनपटी की कोई नस फट गई ।।



कोई बाँध टूट गया मानो---- फव्बारे जैसा रूप धारण करके बह उठा । गन तो कभी की उसके हाथ से निकलकर फर्श पर गिर चुकी थी । उसके कंठ से निकलने वाली वह भयानक चीख--उसके इस जीवन की अन्तिम चीख थी ।



वतन से डरी हुई रूह, उसके जिस्म पर लात मारकर ईश्वरपुरी जा पहुंची थी और अब इस प्रयास में थी कि यमराज अपने खाते-में उसकी एण्ट्री कर ले जब तक उसके शरीर को जलपोत के फर्श पर पड़ा देखकर वतन के मस्तक पर बल पड़ गया ।


हहिडयों से बने मुगदरं पर उसके खून का अंश आ गया था ।


वतन ने मुगदर छडी में ऱखा और निश्चित भाव से आगे वढ़ गया ।
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