antervasna चीख उठा हिमालय
03-25-2020, 01:27 PM,
#56
RE: antervasna चीख उठा हिमालय
इस मंजिल की शेष गौलरी में उसे कोई नहीं टकराया । सीढि़यां लय करता हुआ जब वह नीचे की मंजिल की तरफ़ बढ़ रहा था तो सीढियों के नीचे, खड़ा एक सैनिक सतर्क हो गया, किंतु', अभी वह अपनी सतर्कता का कोई लाभ भी नहीं , उठा पाया था कि हवा में संनाती हुई मुगदऱ ने कनपटी पर चोट करके उसकी रूह को भी शरीर त्यागकर ईश्वरपुरी की तरफ रवाना पर दिया ।।


पुन: मुगदर को छेड़ी में रखकर वतन आगे बढ गया ।


उस मंजिल को गैलरी में घूमतां वह एक हलि कमरे में गया ।

हाँल एकदम खाली था और हाँल जिस दरवाजे से अन्दर प्रविष्ट हुआ था, ठीक उसके सामने हाल का एक दूसरा दरवाजा चौपट खुला पडा़ था ।


हाँल मं से गुजरकर उस दरबाजे में से ही निकल जाने का निश्चय किया था वतन ने । अभी वह हाँल के ठीक बीचोबीच ही पहुँचा था कि बिधुत की सी गति से हाँल में खटाखट की आवाजें गुजं उठी ।


वतन ने देखा--पूरे-हॉल में अनगिनत दरवाजे उत्पन्न हो गये थे । प्रत्येक दरवाजे पर तीन-तीन सैनिक उसकी तरफ गन ताने खड़े थे ।


एक पल के लिये वतन ठिठका ।


चेहरे पर किसी भी प्रकार की घबराहट का एक भी चिन्ह न उभरा ।


अगले ही पल--वह इस प्रकार आगे बड़ गया मानो उसे किसी की उपस्थिति का आभास न हो ।


" वतन !"


इस आवाज ने विद्युत की सी गति से उसे पलटने पर विवश कर दिया ।



देखा-----एक नाटा चीनी खडा़ था । होठों पर कूर मुस्कान लिये वोला-----"मेरा नाम हवानची है ।"



वतन की दृष्टि हवानची के बराबर में खडे उस सैनिक पर स्थिर हो गई थी…जिसे वह अहिंसा का प्रयोग करता हुआ जीवित छोड़ आया था ।

हवानची के बराबर में खड़े उस चेहरे पर भी करीब-करीब हवानची जैसी मुस्कान थीं ।।


उसे घूरता हुआ वतन गुर्रा उठा…..."तुम जैसे व्यकित ही मेरे अहिंसा के सिद्धांत को ताक पर रखवा देते हैं ।"



"मूर्ख हो तुम, जो इस ज़माने में अहिंसा की पोटली को बांधे फिरते हो । सैनिक गुर्राया ।


उत्तर में तेजी के साथ उनकी तरफ बढा वतन ।


सहमकर सैनिक हवानची के पीछे आ गया ।


बेपैदी के लोटे की तरह घूमकर हवानची वतन की तरफ बढा, बोला-"हवानची है मेरा नाम ।"


एक पल के लिये वतन ठिठका, बोला---" तुम्हारा नाम नहीं पुछा मैंने ।"


"लेकिन मैंने बता दिया है।"
वतन ने वैसी दृढता के साथ ही उससे आगे बढ़करं कहा -----" तुम्हारा नाम कोई ऐसी तोप नहीं है, जिससे मैं डरूं । सच पूछो तो अपना नाम बताकर तुमने अपने अब तक के जीवन की सबसे बडी भूल की है । उम्मीद मुझे ये है कि यह तुम्हारे जीवन की अंतिम भूल सांवित होगी । इससे बड़ी या छोटी भूल करने के लिए मैं तुम्हें जिन्दा छोडुंगा नहीं । क्या बताया था तुमने अपना नाम एक बार फिर कहना ।



"हवानची ।" वह वतन से बिना तनिक भी प्रभावित हुए गुर्राया ।।


--"'हूं ।" जैसे जहर से बुझ गये वतन के के अधर ----" तो तुम हो वह हवानची जिसने अपनी जिदगी का आखिरी खून विकास का करने की कसम खाई है ? हुचांग का साला ? तुम । हत्या करोंगे विकास की ?"

पुन: मुस्कराया हवानची बोला----तुम्हें शक है कुछ ?"



" कभी देखा है विकास को ?" पूछा वतन ने ।



" मेरी कैद में है वह ।"



-"इसीलिये उसकी हत्या की बात सोच ली ।" वतन ने कहा---"स्वंतन्त्र होता तो स्वयं को बचाते फिरते!"




--"घवरांओ नहीं ।" हवानची ने कहा----" अपनी प्रतिज्ञा नहीं तोडुंगा विकास की हत्या मेरे द्वारा की गई अंतिम हत्या होगी । अब यह आवश्यक है कि उससे पहले मैं तुम्हें मारू ।


" ख्बाब देखने छोड दो हवानची !" वतन मुस्कराया ----"मुझे तुमसे हमदर्दी है । शायद इसलिये कि तुम विकार से अपने जीजां के खून का बदेला लेना चाहते हो । अपनी बहन की मांग का सिंदुर उजड़ने का बदला लेना चाहते हो , किंन्तु ये सोचो कि बिकास ने तुम्हारे जीजा की हत्या , इसलिये की हैं क्योंकी वह मानवता के मस्तक पर एक कलंक था । धरती मां उसका बोझ नहीं सह सकती थी । "



" वतन ।" हवानची दहाड उठा ।



"’चीखो मत, चीखने से कोई समस्या हल नहीं होती है ।" वतन ने शान्ति के साथ कहा----" सच्चाई बदल नहीं जायेगी । तुम्हारे चीखने से नर्कमें पड़ा तुम्हारा जीजा उछल कर स्वर्ग में नहीं जा गिरेगा ।"

मैं कहता जुबान सम्भालकर बात करो !"



'"दूसरे की नही, अपनी जुबान पर ध्याना-दो हबानची , शायद तुम जानते नहीं कि वह क्या-वया कह रही है !"



वतन ने कहा--"तुम्हें तो पता है हिंसा का प्रयोग सिर्फ उसी स्थिति में करता हूं मैं, जब अहिंसा से काम न चले !"


"क्या कहना चाहते हो ?"



"यह कि तुम लोगों के बीच मैं अकेला जरूर हूं , लेकिन वास्तव में अकेला हूँ नहीं हूं !" वतन ने कहा-"यह याद रखना कि अगर मुझे , इस जलपोत में कुछ हो गया तो इसे जलपोत की पेंदी में एक वडा छेद हो जायेगा । वह छेद कहाँ हुआ है, यह रहस्य भी तुम्हें उस समय पता लगेगा, जव जलपोत डूबने लगेगा ।"



कुटिलता के साथ मुस्कराया हवानचीं, बोला---इस किस्म की झूठी बातों में-फंसने वाला नहीं हूँ मैं ।" -



" सच को झूठ समझना सबसे बड़ी बेवकूफी है ।"'



"अौर सबसे वडी बेवकूकी है समझदाऱ आदमी के सामने झूठ बोलना ,जो उसके सामने चल न सके!" हवानवी ने कहा -" मैं दावे के साथ कह सकता कि कम-से-कम तुम्हारा आदमी इस जलपोत में कोई ऐसा छद नहीं करेंगे जिसके परिणामस्वरूप यह जलपोत डूबे । जानते हो, क्यों ? इसलिये कि तुम उन्हें कभी ऐसा आदेश दे ही नहीं सकते है क्योंकि तुम्हे: मालूम है कि इम जलपोत पर विकास भी है । हम जलपोत में डूवेंगे तो विकास भी बचा नहीं रहेगा !"


वतन के मस्तिष्क की एक झटका सा लगा ।

यह बात सच थी कि उसने झूठ बोला था है इस मकसद से कि इस झांसे में आकर वे किसी भी प्रकार की हिंसात्मक वारदात करने का साहस न कर सकें, किन्तु…किन्तु हवानची? वतन को लगा सचमुच हवानची एक खतरनाक जासूस है ।



मगर अपने किसी भी भाव को वतन ने चेहरे से स्पष्ट न होने दिया ।
वतन बोला--"कभी-कभी अपने ही दिमाग का कोई… ख्याल, अपने लिये मौत का कारण बन जाता है !" वतन ने कहा-मेरा सिद्धान्त यह भी है कि अगर सौ नीच व्यक्तियों की मारना हो और एक सच्चा इन्तान भी मारना आवश्यक तो-----"



"छोडो इन बातों को ।" उसने वतनं का रोक दिया ----"यह जलपोत डूबने लगेगा तो मैं स्वयं फैसला कर लूगा कि मुझे क्या करना है फिलहाल तुम मुझे यह बताओ कि इस जलपोत पर क्या करने आये हो ?"



"अपने दोस्त विकास को यहां से निकालने और फिल्में लेने जो इस समय तुम्हारे कब्जे मैं है ।"




--"'मुझे दुख है कि इनमें से तुम्हारा कोई भी ख्वाब पूरां नहीं होगा ।"



"और मुझे दुख है कि तुम्हारा लोटे जैसा शरीर मुझे रोक नहीं सकेगा !"



कहने को वतन ने कह तो दिया, किन्तु प्रतिक्रियास्वरू� � उसने जब हबानची का चेहरा देखा, जो किसी शुगरमिल के बायलर की तरह तप रहा था । नेत्र मानो मोटे-मोटे खून के गोले बन गये थे ।


वतन ने उसके चेहरे को एक बिचित्र सी अनुभूती के बीच तनते देखा ।

उसने यह भी देखा कि चारों . . तरफ खडे सैनिक, सतर्क हो गए हैं ।


वतन ने स्थिति को भांपा स्वयं भी सतर्क हुआ और बीला-----"क्या लोटा शब्द अच्छा नहीं लगता तुम्हें ?'"




" कोई फायर नहीं करेगा !" इतनी जोर है चीखा …हवानची कि सम्पूर्ण जलपोत कांपता सा महसूस हुया-------- बहुत नाम सुना है इसका । इसे मैं ही देखूंगा । सुना है विकास के बाद दुनिया का सबसे खतरनाक लडका यही है ।"



मुस्कान थी वतन के होंठों पर, बोला…"तुम शायद हिसा का सहारा लेना.........!"




"मिस्टर वतन !" जैसे शेर की मौत पर शेरनी दहाड उठे------" सुना है कि विकास के बाद, दुनिया के दूसरे खतरनाक लडके तुम हो है चाहूँ तो मेरे एक ही इशारे पर सैकडों गोलियां तुम्हारे शरीर में धंस जायें है"



"कोशिश करके देख लो !" वतन मुस्कराया ।
"कोशिश तो ये है कि मैं तुम्हारा वह खतरनाकपन देखना चाहता हूं !" हवानची गुर्रा उठा--------"तुम पर कोई गोली नहीं चलेगी । मेरे अलावा कोई तुम पर किसी प्रकार का हमला नहीं करेगा मुझसे बचना है तुम्हें यह देखना है कि यह लोटा ...........!"



और अपनी बात बीच में ही छोड़कर नाटा हवानची उछल पड़ा । ठीक इस तरह, मानो उसके पैरों में स्प्रिंग लगे हो । ठीक किसी कबूतर की भांति हवा में कलाबाजियाँ खाता हुआ वह वतन के ऊपर पहुंचा और अपनी दोनों टागों का वतन के चेहरे पर इतना तेज प्रहार किया उसने कि वतन के कंठ से चीख निकल गई ।

हवा में उछलकर वतन दूर जा गिरा । आँखों से चश्मा उतरकर गिर गया था !




दूसरे ही पल उठा सिंगही का वह शिष्य तो उसने देखा--------



ठीक उसके सामने बडी-बड़ी आँखों से आग उगल रहा था हवानची !



वतन की नीली झील-सी गहरी आंखों में पानी तैर रहा था ।


स्थिर से नेत्रों से उसने हवानची को देखा और बोला----"मुझे मेरे सिद्धांत के दूसरे पहलू पर आने के लिये विवश न करो हवानची !"



किन्तु उसकी बात का जबाव अपनी जुबान से देने के मूड में नहीं था हैवानची ।


सचमुच उसका शरीर किसी बिना पेंदी के लौटे को तरह जमीन पर लुढ़का और कब वह जोक की तरह आकर वतन की टांगों से चिपट गया, यह स्वयं वतन भी न जान सका !


उसे तो इस बात का आभास उस समय हुआ, जब बह धड़ाम से गिरा !
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