RE: antervasna चीख उठा हिमालय
"'देख लिया घुसकर तमाशा देखने का पारणाम ?"
विकास के गुलाबी होंठों पर शरारत युक्त मुस्कान दौड गई बोला---" देख तो-रहा हूं गुरु, हम तीनों मस्ती मना रहै है । ये चीनी चमगादड़ हमारे सामने उल्टा लटका हुआ है । बोलिए, क्या ये परिणाम हमारे हक का नहीं ?"
"प्यारे दिलजले !" एकाएक गम्भीर हो गया विजय --"‘पहले भी कई बार कह चुका हूं, आज फिर कहने की तमन्ना। है । "
"जरूर कहिए !"
" तुम पैदा हुए थे तो हमने ख्बाब सजाया था कि तुम्हें जासूस बनायेंगे---------दुनिया का सबसे बड़ा जासूस !"
" बन तो गया हूं गुरू --- अन्तर्राष्ट्रीय सीक्रेट सर्विस का चीफ है तुम्हारा बच्चा ।"
" होगें !" विजय ने कहा ---" ये भी मानता हूं कि दुनिया भर के मुर्ख जासूसों ने तुम्हें ---सबसे बड़े जासूस की उपाधी दे दी है । ये दुनिया भी मुर्ख है , जो तुम्हें इस सदी का सबसे बड़ा जासूस समझती है ।
----- मुझसे पुछो, मेरे दिल की गहराईयों से पुछो तो जासूसी की ए बी सी डी का भी पता नहीं है तुम्हें !
------ हां सबसे बहादूर , सबसे बड़े पहलबान और समय आने पर दुनिया के सबसे बड़े दरिन्दे होसकते हो तुम ! जासूस के पास दीमाग होता है, इस नाम की कोई चीज तुम्हारे पास नहीं है ।
----- जासूस किसी घटना पर भली भातिं बिचार करता है , फिर मैदान में आता है , किन्तु तुम ----- तुम उस समय सोचते हो जब फंस जाते हो , खैर छोड़ो इस बात को मैं अच्छी तरह जानता हूं कि तुम्हे भाषण पिलाने का कोई लाभ नहीं होने बाला है । देख रहा हू कि तुम्हारे पैरों में लड़खड़ाहट है, तुम्हारे मैदान में कूदने का परिणाम है ये !"
खूनी दृष्टी से पलटकर उल्टे लटके हबानची की तरफ देखा विकास ने !
हबानची के नाटे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गई ।
विकास गुर्राया ----" ये लंगडाहट इन मर्दों की मर्दानगी है की वजय से है ।। मुझे चारों तरफ से घेर कर मर्दानगी का परिचय दिया था इन्होंने ।। मैं जान भी ना सका कि मुझे किसने घेरा है कि इनकी गोलियां मेरे शरीर में धंस गई ।"
" इसी को तो जासूसी पैंतरा कहते हैं प्यारे दिलजले ! इन्हे पता था कि अगर इन्होंने तुम्हें सम्हलने का का अबसर दिया तो परिणाम क्या होगा ।"
किन्तु विजय की बात पर ध्यान कहां था बिकास का । वह तो उल्टे लटके हबानची पर गुर्राया-----" तू तो मुझसे अपने जीबन का आखिरी खून करने के लिए मिला हे । जो कुता अपने बाप की कब्र को मेरे खून से धोने के लिए निकला था , वह कहां चला गया ?"
कुछ बोला नही हबानची , चुपचाप लटका रहा ।
" सुना नहीं तुमने ?" ऐसी आबाज कि अगर फौलाद से टकराये तो उसमें भी दरार पड़ जाती----" क्या पूछ रहा हूँ मैं ?"
बेचारा हवानवी जवाब वया देता ?
चुप रहा ।
उत्तर में एक तीव्र ठोकर उस के चेहरे पर पड़ी हबानची के कंठ से चीख निकल गई । फिर विकास ने शुरू कर दिया अपनी द़रिन्दगी का दौर !! स्वयं हबानची तो हलाल होते हुए बकरे की तरह मिमिया ही रहा था, इधर विजय और वतन’ को भी आंखें बन्द कर लेनी पड़ी । विजय तो जानता ही था कि ऐसे मौके पर विकास को टोकने 'से कोई लाभ नहीं होता, लेकिन वतन ने टोका तो उसकी तरफ इस तरह पलटकर गुर्रापा विकास कि जैसे उसे फाड़कर खा जाएगा-----"बीच में मत बोलो वतन , अपने काम में अवरोध उत्पन्न करने वाले को मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता ।"
और विकास की इस गुर्राहट के बाद स्वयं वतन कां साहस नं हुआं कि वह कुछ कहे ।
कहते है कि बिकास अगर जुबान खुलवाने का प्रण कर ले तो पत्थर के टुकडों को भी बोलने पर विवश कर देता है । एक समय ऐसा अग्या कि हवानची को बोलना ही पड़ा---- "वे दोनों चीन पहुँच चुके हैं !"
--'"क्रिस माध्यम से ?" विकास ने पूछा ।
"विमान से ।"
" क्या वे 'वेवज एम व अणनाशक किरणों के फार्मुले फिल्में भी अपने साथ ले गए हैं ?"
-"हा । हवानची ने जवाब दिया ।
"हूं !" गुर्राया विकास----"तो चीन में तबाही मचाने का सामान वे अपने साथ ले गए हैं !"
"एक बार फिर समझो प्यारे दिलजले------इसे कहते हैं जासूसी ।" विजय ने कहा--"हमारा ध्यान इस जलपोत पर केन्द्रित करके फिल्मों सहित वे सुरक्षित अपने देश पहुंचने में सफल हो गए हैं ।"
--"यही तो मैं चाहता था चचा !" विकास के स्थान पर वतन बोल पड़ा----" अगर इसी-जलपोत पर फिल्में मेरे हाथ लग गई होतीं तो बेहद अफसोस होता मुझे !"
"इस ऊट पटांग बात का क्या मतलब है बटन प्यारे ?" विजय ने, आंखें निकाली ।
" मतलब सिर्फ इतना है चचा कि चीन में जाकर तहलका मचाना चाहता हूँ मैं ।" वतन ने कहा-"अगर फिल्में यहीं मिल जाती तो चीन जाने का बहाना समाप्त हो जाता, मेरी हसरतें दिल में घुटकर रह जाती !"
. "तुम्हें कोई नहीं समझ सकता ।" झुंझला उठा विजय ।
विकास हवानची से कह रहाथा किसी ओऱ के द्वारा किए गए शिकार को खाना विकास का सिद्धान्त नहीं है । इस समय मेरी सेवा में तुम्हें गुरु और वतन ने प्रस्तुत किया है । तुमने कसम खाई है कि अपनी जिन्दगी का आखिरी खून तुम, मेरा करोगे ! जब तक तुम्हें अपनी हसरत पूरी करने का एक मौका न दे दू, तब तक मरने भी नहीं दूगा । तुम्हें जिन्दा रखूंगा मैं, मौका दूगा कि तुम मेरी हत्या कर सको । उस प्रयास में स्वयं भी अपने जीजा के पास पहुंच जाओ तो यह तुम्हारा भाग्य होगा !"
न जाने क्या सोचकर दर्द से कराहते हवानची के कान की एक नस दबा दी विजय ने ।
हबानची बेहोश हो गया ।
विजय की तरफ पलटकर विकास ने पूछा…"इससेक्या लाभ हुआ ?" '3"
" इससे वही लाभ हुआ प्यारे दिलजले, जो जुकाम में विक्स बैपोरब लगाने से होता ।" अपनी ही टुन में विजय कहता चला गया----"होश में रहने परं अब यह मिमियाने के अलावा कर भी वया सकता था ! वैसे भी यह हमें अपसी मुहब्बत की बाते न करने देता ।"
"खैर, चचा, अब आदेश दीजिए कि हमें क्या करना है ?" वतन बोला ।
खा जाने वाली नजरों से विजय ने घूरा वतन को बोला "मेरे आदेश की जरूरत है तुम्हें ?"
"वयों नहीं गुरु ?" विकास ने शरारत की ।
" तो मेरा आदेश तो ये है प्यारो कि इसी जलपोत पर बैठकर अखण्ड कीर्तन करो ।" विजय ने कहा, " शरीफ भक्तों की तरह बैठकर हमारी झकझकियों का रसास्वादन करो । उनमें छूपे तथ्यों को समझो और जीवन में उनका अनुकरण करो।"
"खैर, चचा, अब आदेश दीजिए कि हमें क्या करना है ?" वतन बोला ।
खा जाने वाली नजरों से विजय ने घूरा वतन को बोला "मेरे आदेश की जरूरत है तुम्हें ?"
"वयों नहीं गुरु ?" विकास ने शरारत की ।
" तो मेरा आदेश तो ये है प्यारो कि इसी जलपोत पर बैठकर अखण्ड कीर्तन करो ।" विजय ने कहा, " शरीफ भक्तों की तरह बैठकर हमारी झकझकियों का रसास्वादन करो । उनमें छूपे तथ्यों को समझो और जीवन में उनका अनुकरण करो।"
कुछ देर उन्हें विजय की उस बकवास का सामना करना पड़ा जो एक बार शुरू होकर बंद होनी कठिन हो जाती है ।
विकास तो वैसे भी विजय की बकसास का जवाब बकवास में ही देने का के माहिर था । वह तो विजय के सामने अड़ा रहा, किन्तु वतन बुरी तरह बोर हो गया ।।
जब उस पर रहा न गया तो बोला-----------" कुछ काम की बातें भी करो चचा!"
" ये हुई शरीफ वच्चों वाली बात ।" यह सोचकर कि काफी देर मौज मस्ती हो ली है, विजय स्वयं ही लाइन पर आता हुअा बोला--- --" चचा के पास तो बचा ही क्या है व्रटऩ प्यारे तुम ही काम की बातें करो ।"
" ये जलपोत किधर जा रहा है ?"
" पीकिंग की तरफ ।"
'"क्या हम इसी जलपोत के माध्यम से चीन में प्रविष्ट होंगें ?" वतन ने पूछा।
" इस जलपोत के चालकों को तो हमारा यही आदेश है की वे सीधा पीकिंग के बन्दरगाह पर ही लंगर डाले ।" बिजय ने बताया----""लेक्रिन हम बन्दरगाह तक पहूंचने से पूर्व ही जलपोत छोड़ चुके होंगे !"
" हूं !" बाण्ड वागगरोफ नुसरत और तुगलक का क्या होगा ?"
" हां !" बिजय न कहा "यह प्रश्न अवश्य विचार योग्य है । अगर हमंने उ़न्हें उसी कक्ष में बंद छोड़ दिया--- तो अंत में चीनियों की कैद में होगें बे । उन्हें साथ लें, तब भी खतरा है । साथ रहै, सम्भव है हमारे साथ रह कर वे हमारे ही काम मे अबरोध उत्पन ना करें ।"
" एक राय दूं गुरू ? विकास बोला ।
" जरूर दो !" विजय ने कहा है
" क्युं ना हम अपने साथ साथ चचा बागरोफ को ले लें ।"
" क्यों ? चचा में क्या लाल जड़ें हैं ?"
" क्यों? चचा में ही क्या लाल जडे है ?"
"यह बात अन्तर्राष्ट्रिय गठ्बन्धन के आधार पर की हैं गुरु ।" विकास ने कहा--" चीन, पाकिस्तान और इंगलैण्ड एक है। रूस उनका विरोधी है ,हमारे साथ है । पाकिस्तान और इगलैण्ड की सरकार के अनुराध पर चीनं उंनके जासूसों को तो लौटा देगा, किन्तु चचा के मामले में गड़बडी़ कर
सकता है । सम्भव है चीनी सरकार चचा के साथ कोई अनुचित हरकत भी कर डाले । चचा के साथ अगर कुष्ट भी अनिष्ट होता है तो उसके जिम्बेदारं हम होंगे !"
"जिस आधार पर तुमने यह राय दी है प्यारे दिलजले उस दृष्टि से तो बिल्कुल सही है !" विजय ने कहा…......"इसमें कोई शक नहीं कि एक बार अपने पंजे मे फंसे बागारोफ को चीन सरकार मार भी डाल तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी ! किन्तु सोचना यह है कि इस अभियान में चचा का लक्ष्य भी बही है जो बाण्ड इत्यादि का है-फार्मूला
प्राप्त करना । सम्भव है कि हमांरे साथ रहकर भी चचा वही प्रयास करें?"
" निश्चित रूप से आपकी बात में दम है गुरु !"
"तुम्हारी इस बारे में क्या राय हे बटन मियां !" विजय ने वत्तन से पुछा।
गम्भीर स्वर में वतन ने कहा--"क्या आप सचमुच मेरी दिली राय जानंना चाहते चचा ?"
" स्पष्ट कंहो दोस्त ! क्या कहना चाहते हो तुम ?" बिकास बोला !
"चचा !" विजय पर दृष्टि गड़ाए वतन गम्भीर में कहा…"मेरी राय जानना चाहते हो तो सच्चाई ये है कि मैं अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों में कोई फर्क नहीं समझता ।।ये सभी राष्ट्र महाशक्तियाँ कहलाते हैं और करीब करीब इन सभी की नीति एक जैसी है । मैं इसे अच्छा नहीं समझता किं रुस अगर भारत के साथ है तौ हम उसे ठीक कहें ।। नीति उसकी भी वही हेै छोटी मछलियों को ग्रास बनाना !"
" तुम लो अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का कचूमर निकालने लगे बटन प्यारे !"
विजय ने कहा--- "यहां सबाल ये नहीं हैं कि किस महाशक्ति की नीति क्या है ! प्रश्न ये है कि चचा को साथ लें अथवा बाण्ड और नुसरत तुगलक के साथ उसी कक्ष में बन्द पड़ा रहने दे?"
" सिर्फ इसलिए मुझे बागरोफ चचा से कोई सहानुभूति नहीं हो सकती कि वे रूस के हैं ।" वतन ने स्पष्ट कहा------"लेकिन यह भी सच्चाई है कि अगर उन्हें चीन के हवाले किया गया तो उन्हें सिर्फ रूसी होने की सजी मिलेगी !"
" तुम्हारे कहने का मतलब ये है कि चचा को अपने साथ ही ले लेना चाहिए !"
…"यही समझ लीजिये ।"
" और अगर वे फार्मूला प्राप्त करने के लिए हमारे साथ ही गड़बड़ करे तो ?"
''जब वह वक्त आयेगा तो चचा से हम स्वयं निबट लेंगे ।" वतन ने कहा----"यह बात ज्यादा गलत होगी कि इस डर से उन्हें इन दरिन्दे चीनियों के हवाले कर दिया जाए ।"
"मैं बतन की बात का समर्थन करता हूं ।" विकास ने कहा…"और साथ ही यह राय भी देता हूं कि फिलहाल हम हबानची को भी अपने साथ रखें । चीन में वह एक कवच की तरह हमारी रक्षा करेगा ।"
-"क्या मतलब ?" विकास की उपर्युक्त राय पर विजय चौका----हमें गले में घण्टी बाँधने की क्या जरूरत है ?"
" आप समझे नहीं गुरु !" विकास ने कहा-"हमे क्रिस्टीना के यहां ही तो ठहरना है !"
"बेशक।"
" जब तक हम चीन में रहकर फार्मुला ना प्राप्त करें,, तब तक हवानची को अपनी कैद में रख सकते है !"
" लेकिन इससे लाम क्या होगा ?"
"बहुत से लांभ होगे !" विकास ने कहा---"पहला फायदा तो ये कि सांगपोकऔर सिंगसी के ठिकानों का पता बतायेगा ये । वे ही दोनों फिल्में ले गये है और उन्हीं को मालूम होगा कि फिल्में कहाँ हैं ! वैसे भी जब तक हवानची हमारे कब्जे मैं-रहेगा, हम सुरक्षित रहेगे !"
"बात उल्टी भी पड़ सकती है प्यारे दिलजले !" विजय ने कहा हवानची हमारे साथ-साथ क्रिस्टीना--- को भी फंसा सकता है !"
''मामला थोडा गडबड हो गया गुरु !" विकांस ने कहा--"अगर यहां हमें हवानची के स्थान पर सांगपोक टकराया होता तो एक वडी़ ही खूबसुरत चाल चली जा सकती थी । दिक्कत ये है कि इसके लोटे जैसा शरीर हममें से किसी के पास भी नहीं है !"
"तुम शायद यह कहना चाहते हो कि इसके स्थान पर यहां सांगपोक होता तो उसका मेकअप करके चीनी सीक्रेट सर्विस में धुस जाते ?"
"आपके बच्चे जियें गुरु !" विकास ने कहा… "काफी समझदार हो गये हैं आप ।''
सीना चौड़ा कर लिया विजय ने, बोला---" मूंग की दाल में भीमसेनी काजल मिलाकर खाना अपना खानदानी शोंक है प्यारे--- और यह तो तुम्हें पता है ही कि इनके सेवन से बुद्धि ऐड़ लगे हुए घोडे की तरह सरपट दौड़ती है । किन्तु सबाल ये हैकि हममें से किसी ने भी हवानची के शरीर जैसा हसीन जिस्म नहीं पाया है, अत: इसका मेकअप करने का तो कोई प्रश्न ही नहीं है ।"
''तो आप इस बात से सहमत नहीं है गुरु कि हबानची को अपने साथ रखा जाये !"
''एकदम नहीं ।" विजय ने कहा------"हां !"-----इस बात की तुम्हें पूरी छूट है कि जलयान छोड़ने से पूर्व तुम इससे जो भी जानकारी प्राप्त करना चाहते हो, प्राप्त कर सकते हो । जैसे सांगपोकं और सिंगसी का पता इत्यादि !"
" ठीक है !" कहकर विकास हवानची की तरफ धूम गया । अब वह हवानची को दुबारा होश में लाने का प्रयास कर रहा था ।
वतन कल्पना कर सकता था कि अब अगले कुछ समय में इस कक्ष में क्या कुछ होने जा रहा है !
वह सब कुछ अपनी आंखों से देखकर वतन में चुप रहने की ताकत नहीं थी ।
और न ही विकास का बिरोध करना चाहता था । अतः लम्बे-लम्बे कदमों के साथ वह कक्ष से बाहर निकल गया ।।।।
क्रिस्टीना ने वतन कौ देखा तो देखती ही रह गई । न जाने क्यों उसे ऐसा प्रतीत हुआ कि दो तीन बार जोंर-जोर से धड़ककर उसकी हृदय-गति वंन्द हो गई है ।
हालांकि वतन के साथ ही उसके फ्लैट में विजय, विकास और बागारोफ भी प्रविष्ट हुए थे, किन्तु उसकी दृष्टि वतन के चेहरे पर ही स्थिर होकंर रह गई थीं । गोंरा दूध जैसा, सेव की लाली लिये चेहरा ।
आंखों पर काला चश्मा ।
हाथ में छडी़ । जिस्म पर मौजूद सफेद कपडों पर न सिर्फ खून के धब्बेे लगे हुए थे बल्कि जगह-जगह फटे हुए भी थे !
उसे देखकर कोई भी कह सकता था कि भयानक जंग के बाद उसे कपड़े बदलने का मौका नहीं मिला है ।
" वतन की ही देखती रहोगी क्या---- क्रिस्टीना को बिकास की आबाज ने मानो स्वप्न से जगाया , " हम भी खडे़ है !"
" ओह !" अपनी मुर्खता का अहसास करके झेंप गई क्रिस्टीना -----" आओ-आओ !" कहने के साथ ही बह दरवाजे से हटी और उन्हें ड्राइंगरूम में पड़े सोफे पर बैठने का संकेत करने लगी !"
बांगारोफ भला ऐसे मौकें पर चुप रेहने वाला कहाँ था ! बोला---"लगता हैं, छोकरी इस हरामजादे पर फिदा हो गई हैं !"
सुर्ख हो उठा क्रिस्टीना का चेहरा !
'विजय ने कहा----" चचा, अपने बंटन का नाम सुनते ही मीरा की तरह दीवानी हो गई है क्रिस्टी ! जब हम यहां थे तो हम इसे बटन की मुहब्बत के बताशे फोड़-फोड़कर खाते देखा करते थे । अब स्थिति ये है कि इस बटन को क्रिस्टी अपने ब्लाऊज पर लगा लेना चाहती है !
वतन के अधरों पर एक विचित्र-से दर्द में डुबी मुस्कान उभर अाई थी ।
विकस ने कहा सच ---वतन् क्रिस्टी के लायक है ! क्रिस्टीना खडी न रह सकी वहाँ' ! तेजी के साथ मुडी और दूसरे कमरे में भाग गई !!
"लौ !" बागारोफ ने कहा पहले तो इस हरामजादे के दिल में मुहंब्बत की धण्टी बजा दी छिनाल ने, ओर अब खुद डंका बजाती चली गई !"
" डबलं चचा !" वतन ने 'गम्भीर स्वर मैं कहा---"यहाँ इतनी फुर्सत ही कहां है कि किसी से मुहब्बत कर सकू ।चीन में आया हूं, चीनियों को सबक देने से ही फुर्सत नहीं मिलेगी । तुम समझाना क्रिस्टी को । विजय चचा, तुम भी समझाना । जो कुछ आंप कंह रहे हैं सचमुच अपने लिए क्रिस्टी की आखों में मैंने वह सब कुछ देखा है । विकास! उसे तुम भी समझाना मेरे यार । कहना कि वतन के दिल को धडकन उसका देश बन चुका है --------चमन ।"
वतन के उन शब्दों के बाद एक सन्नाटा सा खिंच गया कमरे में ।
कुछ देर तक तो बागारोफ जैसे व्यक्ति की भी समझ में नहीं आया कि इस सन्नाटे को वहं कैसे तोडे परन्तु अधिक, देर तक वातावरण मे वह बोझिलता कायम न रह सकी जहां विजय और बागारोफ जैसे हो ऊट पटांग बातें करने वाले हों वहाँ भला संनांटा कितनी देरे टिक सकता है ?
परिणाम ये कि कुछ ही देर बाद वहां ठहाके लगने लगे । उधर क्रिस्टीना को चैन कब था ! उसवै बहाना ढूंढा ! किचन में जाकर फटाफट काफी तैयार की और एक ट्रै में ऱख ड्राइंगरूम में आ गई ! दृष्टि झुका रखी थी उसने ! इच्छा क्या तो थी किंतु उनमें से किसी से भी दृष्टि मिलाने का साहस नहीं था उसमें !!!
कोई कुछनहीं बोला ।
" बतन ने स्वयं ही कहा---- "चचा सर्वप्रथम कपडे बदलने की इच्छा है !"
" तुम्हारे कपड़े बंदलना कोई आसान बात तो है नहीं प्यारे !" बिजय ने कहा… "सफेद कपडों के अतिरिक्त किसी अन्य रंग का कपड़ा तुम पहनते नहीं और मियां चुकन्दर की दुम,, तुम्हारे लिए अब यहां सफेद कपडे आयें कहां से ?"
" मेरे पास है !" एकाएक क्रिस्टीना के मुंह से निकल पड़ा !
सभी ने चौककर क्रिस्टीना की तरफ देखा ।
लाज से दोहरी हो गई क्रिस्टीना ।
दृष्टि उठा न सकी !
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