RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
बेचन-- ठीक है, और कहते हुए खेत की तरफ निकल देता है।
सोनू खेत के झोपड़े में बैढा था, और उसे भुख भी लग रही थी रोज की तरह उसकी मां खाना लेकर आ जाती है।
सोनू-- बहुत सही टाइम पर आयी है, मा चल खोल जल्दी और दे मुझे।
ये सुनकर सुनीता हकपका जाती है।
सुनीता-- क....क्या खोलू। और क्या दू?
सोनू-- अरे खाना दे मां, मुझे भुख लगी है।
सुनीता ठंडी सास भरते हुए मन में-- हे भगवान इस लड़के ने तो मुझे डरा ही दीया, मुझे लगा ये कुछ और ही मांग रहा है, और फीर सुनीता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान ठहर जाती है।
सुनीता खाने की थाली सोनू के तरफ बढ़ा देती है।और वही सोनू के बगल में बैठ जाती है।
सोनू खाना खाने लगता है।
सुनीता-- सोच रही हूं अब तेरी शादी करा दू।
सोनू-- क्यूं मां इतनी जल्दी क्या है?
सुनीता-- अरे घर में बहु होगी तो तेरे लीये खाना बनायेगी, तेरी सेवा करेगी।
सोनू-- मां मै बुडढा नही हुआ हूं जो मेरी सेवा करेगी, और रही बात खाना की तो उसके लीये तू है ना।
सुनीता-- हां अब तू मुझे ही परेशान कर, उतनी दुर से तुझे खाना लाने में मेरा पांव दुखने लगता है।
सोनू-- अब तू मत लाया कर मां , मै खुद ही आ जाया करुगां॥ और वैसे भी अब तेरी उमर हो चली है, तू आराम कीया कर।
सुनीता-- क्यूं रे मैं तूझे बुडढी दीखती हूं?
सोनू-- नही, मां मेरे कहने का मतलब ये नही था।
सुनीता का चेहरा उतर गया था जो सोनू साफ साफ देख सकता था।
सुनीता-- सही है तेरे कहने का मतलब एक बुडढी को बुडढी नही तो और क्या बोलेगा?
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