RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
कल्लू इतना भी ना समझ नही था, वो समझ कया था की उसकी मां ने उसे उसकी गांड देखते हुए देख लीया था। और फीर होल वाली चड्ढी भी पहन ली और कुछ बोली नही, और अब इसे बैंगन खाना है।
कल्लू-- मां तूझे बैंगन कब से पंसद आने लगा?
मालती-- बेटा जब से सुनीता के घर में देखा तब से।
कल्लू हड़बड़ाया और सोचने लगा की इसने सुनीता काकी के घर में....कही सोनू ने तो नही दिखाया इसे( ये सोचकर ही उसकी गांड जलने लगती है)
क्यूकीं सोनू और उसकी बनती नही थी।
कल्लू-- मतलब तू मेरे दुश्मन के घर बैंगन देख कर आयी है, तो वही क्यूं नही खा ली?
मालती ये जानती थी की इसका सोनू से नही बनता,
मालती-- अरे तू नाराज़ क्यूं हो रहा है मेरे लाल, मैं बैंगन कहीं भी देखु लेकीन खाउगीं तो सिर्फ अपने घर की।
ये सुन कल्लू खुश हो जाता है॥
कल्लू-- मां मुझे भी तुझे अपना बैंगन खीलाने में बहुत मजा आयेगा।
मालती (शरमाते हुए)-- मुझे भी मजा आयेगा बेटा।
कल्लू -- मां तूझे ठंढ लग रही होगी मैं रज़ाइ ला देता हू फिर तू ओढ़ कर बैठ।
मालती-- ठीक है बेटा।
कल्लू अंदर से एक रज़ाइ ला कर दे देता है, मालती वो रज़ाइ ओढ़ कर बैठ जाती है।
मालती-- तूझे ठंढ़ी नही लग रही है क्या?
कल्लू-- लग तो रही है,
मालती-- अभी शाम होने में समय है। आजा तू भी रज़ाइ में थोड़ी तेर सो लेते है, तू भी तो कपड़े धो कर थक गया होगा?
कल्लू समझ जाता है की मां को बैंगन खिलाने का इससे अच्छा मौका नही मिलेगा, वो अपनी मां के साथ रज़ाई में घुस जाता है.....
कल्लू रज़ाई में अपनी मां के साथ लेटा था, उसका शरीर इकदम गरम हो गया था।
उधर मालती अपने बेटे की तरफ से कोइ प्रतीक्रीया चाहती थी, तभी उसे अपनी कमर पर कल्लू का हाथ महसुस हुआ,
मालती सीहर गयी, और अपनी आंखे बंद कर ली।
कल्लू ने उसकी कमर को थोड़ा अपने हाथ से मसला॥
मालती-- आ....ह बेटा क्या कर रहा है?
कल्लू-- कुछ तो नही मां॥
मालती-- मेरी कमर क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- वो तूझे ठंढी लगी है ना इसलीये। मैं दबाउं मां॥
मालती-- दबा लेकीन गलत जगह क्यूं दबा रहा है?
कल्लू-- फीर कहां दबाउं मां?
मालती कल्लू की तरफ अपना मुह करती हुइ बोली।
मालती-- चड्ढी में छेंद करना जानता हैं, और कहा दबाना है वो नही जानता तू।
कल्लू सुन कर थोड़ा मुस्कुरा देता है।
मालती-- हसं क्यू रहा हैं?
कल्लू-- हसं इसलीये रहा हू , की तूने फीर भी चड्ढी पहन ली।
मालती-- बेशरम....इक तो अपनी मां के चड्ढी में छेंद करता है और उपर से हस रहा है। बोल क्यूं छेद की थी तूने?
कल्लू(मालती के कान में)-- ताकी तेरा छेंद देख सकू।
तभी बाहर से आवाज आती है.....मालती अरी वो मालती।
दोनो आवाज सुनते ही घबरा कर अलग हो जाते है, मालती घर के बाहर नीकली तो उसे गांव की 3, 4 औरते दीखी,
मालती-- क्यां हुआ? रमा।
रमा-- अरे वो अपने सरपंच है ना, वो चल बसे।
मालती-- क्या? कैसे -
रमा-- पता नही सब वही गये है, हम भी जा रहे है, चल तू भी॥
मालती भी उन लोग के साथ चल देती है, और इधर कल्लू भी अपना सायकील उठा कर चल देता है।
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