RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
सरपंच के घर पर भीड़ लगी हुई थी, पुरा गावं के लोग भी इकट्ठा हुए थे। रोने बीलखने की आवाजें गुंज रही थी।
सोनू भी वही था, वो अपने बड़े पापा के पास खड़ा था।
रजींदर-- अरे सुना रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।
तभी वहा कार आकर रुकती है। उसमे से डाक्टर पारुल अपनी बेटी वैभवी के साथ उतरती है।
रजिंदर-- अरे सोनू जा कुर्सी ले के आ जल्दी।
सोनू सरपंच के घर में कुर्सी लाने चला जाता है, और दो कुर्सी ले के आता है। एक कुर्सी पारुल को देता है, और दुसरा कुर्सी वैभवी के तरफ बढ़ा देता है।
वैभवी-- कैसे हुआ ये?
सोनू-- पता नही सब तो यही कह रहे है की , रात को सोये तो सुबह उठे ही नही।
वैभवी-- लेकीन मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।
सोनू-- क्या लग रहा है?
वैभवी-- उसे तुमसे क्या वो मां डाक्टर है बता देगी। और वैसे भी मैं तुमसे बात क्यू कर रही हूं॥
सोनू (धिरे से)-- शायद प्यार हो गया हो मुझसे।
वैभवी-- प्यार और तुमसे....हं..कभी थोपड़ा देखा है आइने में। तुमने ही कहा था ना मैं बहुत खुबसुरत हूं॥
सोनू-- आप तो परी लगती है।
वैभवी-- तो परी के साथ , इसान का मेल नही होता।
सोनू-- हाय यही अदा तो अपकी मुझे पागल कर देती है।
वैभवी-- इडीयट् । बात करने की तमीज़ नही है क्या तुम्हे?
सोनू-- आप सीखा दो ना।
वैभवी कुछ बोलती इससे पहले ही उसके बड़े पापा बोले-
रजिंदर-- उधर क्या कर रहा है, चल जा ट्रेक्टर ले के आ मट्टी(लाश) लेके चलने का वक्त हो गया है,
सोनू वहा से जाकर ट्रेक्टर ले के आता है, और सब मट्टी के साथ गंगा कीनारे चल देते है।
शाम को सब घर वापस आ जाते है, सोनू थोड़ी देर सरपंच के घर पर बैठता है और फीर सीधा घर पर आ जाता है।
शाम के करीब 7 बज गये थे, और अंधेरा हो चुका था। घर में सुनीता के साथ साथ कस्तुरी और अनिता भी बैठे थे।
कस्तुरी-- अरे सोनू बेटा बाहर ही रह।
सोनू बाहर ही रुक जाता है,
सोनू-- क्यू चाची क्या हुआ?
कस्तुरी-- अरे मट्टी से आ रहा है, पैर धो ले और कपड़े बाहर उतार कर आ।
सोनू पैर धोता है, और फटाफट कपड़े बदल कर अंदर आ जाता है।
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