RE: Free Sex Kahani जालिम है बेटा तेरा
दूसरी तरफ रोहन लड़कपन दिखाते हुए खरगोश के पीछे पीछे भागता चला जा रहा था और तभी खरगोश उसकी आंखों के सामने एक घनी झाड़ियों के अंदर चला गया रोहन उस खरगोश को पकड़ लेना चाहता था इसलिए दबे पांव वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा उसके सामने घनी झाड़ियां थी। वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था उसे मालूम था कि इसी झाड़ियों के अंदर खरगोश दुबक कर बैठा हुआ है इसलिए वह घनी झाड़ियों के करीब पहुंचकर धीरे धीरे पत्तों को हटाने लगा लेकिन उसे खरगोश नजर नहीं आ रहा था वह अपनी चारों तरफ नजर दौड़ाने लगा लेकिन वहां खरगोश का नामोनिशान नहीं था वह निराश होने लगा वह समझ गया कि खरगोश भाग गया है और अब उसके हाथ में नहीं आने वाला लेकिन फिर भी अपने मन में चल रही इस उथल-पुथल को अंतिम रूप देते हुए वह अपने मन की तसल्ली के लिए अपना एक कदम आगे बढ़ाकर घनी झाड़ियों को अपने दोनों हाथों से हटाकर देखने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर भी परिणाम शून्य ही आया वह उदास हो गया वह अपने दोनों हाथों को झाड़ियों पर से हटाने ही वाला था कि उसकी नजर थोड़ी दूर की घनी झाड़ियों के करीब गई और वहां का नजारा देखकर एकदम सन्न रह गया।
रोहन को एक बार फिर से अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी बड़ी नंगी गांड थी उसका दिमाग काम करना बंद है कर दिया क्योंकि मैं जा रहा है उसके सामने इतना गरमा गरम था कि उसकी सोचने समझने की शक्ति ही खत्म होने लगी थोड़ी देर में उसे इस बात का अहसास हो गया कि उसकी मां वहां पर बैठकर मुत रही थी।
रोहन बार-बार अपनी आंखों को मलता हुआ उस नजारे की हकीकत को समझने की कोशिश कर रहा था।
उसे अपनी किस्मत पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि अब तक तो अपनी मां को नंगी देख चुका था लेकिन उसे बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह अपनी मां को अपनी आंखों से पेशाब करता हुआ देख रहा है। रोहन के मुंह में पानी आने लगा उसकी लार टपकने लगी खुशी अपनी किस्मत पर नाज होने लगा क्योंकि कुछ दिनों से उसकी किस्मत उसके पक्ष में चल रही थी जो वह सोचता था उसकी आंखों के सामने वैसा ही होता जा रहा था इस समय रोहन की आंखों के सामने उसकी मां की बड़ी-बड़ी गोरी गांड थी। जिसे सुगंधा हल्के से उठाए हुए थे और सुगंधा की इस हरकत का उसके बेटे पर बुरा असर पड़ रहा था पलभर में ही उसका लंड पजामे के अंदर तन कर लोहे के रोड की तरह हो गया था। जिसे रोहन अपने हाथों से मसलने लगा था सुगंधा की गुलाबी पुर के गुलाबी छेद में से पेशाब की धार बड़ी तेजी से निकल रही थी जिसकी वजह से उसमें से एक सीटी सी बजने लगी थी और इस समय सुगंधा की बुर से निकल रही सीटी की आवाज रोहन के लिए किसी बांसुरी के मधुर धुन से कम नहीं थी रोहन उस मादकता से भरे नजारे और बुर से आ रही है मधुर धुन में खोने लगा सुगंधा अपनी तरफ से पूरी एहतियात बरतते हुए अपनी चारों तरफ देख ले रही थी लेकिन अपने पीछे नजर नहीं बढ़ा पा रही थी वह इस बात से पूरी तरह से निश्चिंत थी कि उसे इस समय पेशाब करते हुए कोई नहीं देख रहा है लेकिन इस बात से अनजान थी कि उसका ही बेटा झाड़ियों के पीछे से चुपके से खड़ा होकर उसे पेशाब करते हुए देख रहा था। थोड़ी देर में सुगंधा पेशाब कर ली लेकिन उठते उठते वह अपनी गुलाबी पुर की गुलाबी पतियों में से पेशाब की बूंद को गिराते हुए हल्के हल्के अपने नितंबों को झटकने लगी।
लेकिन सुगंधा की यह हरकत बेहद ही कामुकता से भरी हुई थी क्योंकि रोहन खुद अपनी मां की इस हरकत को देखकर एकदम से चुदवासा हो गया था और जोर से अपने लंड को मसलने लगा था।
सुगंधा पेशाब करके खड़ी हो गई और एक हाथ से अपनी पीली रंग की पैंटी को ऊपर चढ़ाने लगी रोहन तो यह नजारा देखकर एकदम कामुकता से भर गया थोड़ी ही देर में सुगंधा अपनी साड़ी को नीचे गिरा दी और अपने कपड़े ठीक कर के जाने को हुई ही थी कि झुग्गी मैं से आ रही खिलखिला ने की आवाज सुनकर उसके कदम रुक गए वह एक पल के लिए झुग्गी की तरफ देखने लगी। तुरंत उसकी आंखों में चमक आ गई उसे वह दिन याद आ गया जब वह गेहूं की कटाई वाले दिन खेतों में आई थी और इसी तरह से झुग्गी मैं से आ रही हसने की आवाज सुनकर उत्सुकतावस अंदर झांकने की कोशिश की थी और अंदर का नजारा देखकर एकदम से सन में रह गई थी। उसे उस समय इस बात का बिल्कुल भी यकीन नहीं था कि झुग्गी के अंदर उनके खेतों में काम कर रहा मजदूर किसी औरत के साथ चुदाई का खेल खेल रहा है और आज ठीक उसी तरह की आवाज सुनकर एक बार फिर से सुगंधा का दिल जोरो से धड़कने लगा।
दूसरी तरफ रोहन अपनी मां को देखते हुए अपने लंड को मसल रहा था लेकिन उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसकी मां आखिर वापस जाते जाते वहीं रुक क्यों गई उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था और वह उन्हीं झाड़ियों के पीछे छुप कर देखने लगा
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