RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
( बारी-बारी से सभी लड़कियों ने मैडम की गांड की तारीफ में अपना मत व्यक्त करने लगे)
हां यार सच है, मैडम की गांड देख करके हम लड़कियों की हालत खराब हो जाती तो सोचो लड़कों का तो लंड ही खड़ा हो जाता होगा,,,,,,,
( इतना सुनते ही तो निर्मला की हालत खराब होने लगी उसने कभी सपने में भी नहीं सोची थी की लड़कियां इस हद तक इतनी गंदी बातें कर सकती हो इतने गंदे शब्दों का प्रयोग कर सकती है,,,,,, लड़कियों की गंदी बातों का असर निर्मला पर पूरी तरह से छा चुका था,,,,,, उसे अपनी जांघो के बीच बुर में से पानी जैसा रिसाव महसूस हो रहा था,,,, उनकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,, शर्म के मारे निर्मला का चेहरा सुर्ख लाल हो वह वहां से चली जाना चाहती थी लेकिन ना चाहते हुए भी उन लड़कियों की बातें सुनकर उनके कदम वही के वही ठीठक से गए थे।,,, लड़कियों की बातें खत्म ही नहीं हो रही थी,,,,
यार कसम से जब वह चलती है ना तो ऊनकी मटकती हुई गांड देखकर मुझे उनसे जलन होने लगती है,,,,,
( तभी फिर से एक लड़की बीच में चुटकी लेते हुए बोली)
तुझे किस बात की जलन होने लगी तेरी भी तो गांड बड़ी-बड़ी है।
हां वह तो है लेकिन मैडम की बात कुछ और ही है ऊनकि गांड का घेराव कितना गोल है,,, जब चलती है तो उनकी बड़ी-बड़ी गोल गांड कितनी थिरकती है,,, उस तरह की थिरकन अपनी गांड में कहां देखने को मिलती है,,,
हां यार यह भी सच है कुछ भी हो निर्मला मैडम की खूबसूरती और उनके बदन की बनावट खास करके उनकी चूचियां और बड़ी-बड़ी गांड उनकी उम्र की तो ठीक हम लड़कियों को भी पानी भरने पर मजबूर कर दे,,,,
( निर्मला तो लड़कियों के मुंह से अपनी तारीफ इस उम्र में भी इस हद तक सुन करके गर्वित हुए जा रही थी उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना था,,,,, लेकिन अपनी तारीफ सुनकर भी उसे अंदर ही अंदर शर्म सी महसूस हो रही थी,,,,, समय हो चुका था वह शर्म के मारे कमरे में अंदर जाने से हिचकीचा रही थी इसलिए कुछ देर के लिए आगे बढ़ गई,,,,,,, जब सारे विद्यार्थी कमरे में जाने लगे उसके बाद ही वह कमरे में दाखिल हुई,,,, लेकिन तब भी उसके चेहरे पर शर्म की लालिमा छाई हुई थी,,,,,,,, निर्मला की खूबसूरती की तारीफ का सिलसिला उस दिन से लेकर के आज तक चलता ही जा रहा था,,,
निर्मला अपनी कुर्सी पर खड़ी होकर के रोज की ही तरह ब्लैक बोर्ड पर मैथ्स के सवाल हल करने लगी, वह अपने कदम बड़े ही सहज भाव से बढ़ाती थी,,, ताकि उसकी गांड मे कम थिरकन ,कम हो,,,, लेकिन जैसे चढ़ती जवानी अपना असर दिखाने से बाज नहीं आती ठीक उसी तरह से मटकती गांड भी अपनी थिरकन दिखाने से बाज नहीं आती,,,,,,,
निर्मला के लिए रोज का हो गया था लेकिन फिर भी अपने आप को संभालने की वह पूरी कोशिश करती ही रहती थी। निर्मला इतनी शर्मीली थी कि वह जब भी ब्लैक बोर्ड पर लिखती थी तो शर्म के मारे वह पीछे मुड़कर कभी नहीं देख पाती थी कि कौन-कौन उसकी कांड की तरफ नजर गड़ाए हुए हैं,,,, ब्लैक बोर्ड पर लिखते समय उसके दिल की धड़कन हमेशा बढ़ जाती थी।
फिर जैसे तैसे करके वह स्कूल में अपना समय बिताती थी और स्कूल से छूटने के बाद तुरंत शुभम को लेकर घर के लिए निकल जाती थी। यही उसकी रोज की दिनचर्या थी,,,, एक यही स्कूल ही तो था जहां पर वह हंस बोल लेती थी उसकी सह अध्यापिका उससे मजाक कर लेती थी। उसके उदास चेहरे पर थोड़ी बहुत हंसी के फुहारे फुटने लगते थे और वह कुछ समय के लिए अपना दर्द भूल जाती थी। लेकिन घर पर पहुंचने के बाद फिर से एक अजीब सी बेचैनी उसके अंदर घर कर जाती थी। और वह फिर उदास हो जाती थी,,,,
घर पर लौटते-लौटते शाम हो जाती थी,,।
कोई सोच भी नहीं सकता कि निर्मला जैसी खूबसूरत और हसीन औरत भी प्यार के लिए तरस सकती है।
उसकी खूबसूरती देखकर हर इंसान यही सोचता होगा कि यह औरत इस दुनिया में सबसे ज्यादा खुश नसीब व होगी जो भगवान ने इसे इतनी ज्यादा सुंदरता तोहफे में दी है,,, बातें खुशनसीब है यही और वह लोग भी खुशनसीब होंगे जो इसके इर्द गिर्द और इससे रिश्ते में जुड़े होंगे,,,,, और सबसे ज्यादा नसीब वाला होगा ईसका पति,,,, जो इसके खूबसूरत बदन का दिन रात रसपान करता होगा इसको भोगता होगा,,,, उसके मखमली नाजुक रस से भरे अंगों को, अपने हाथों से छुता होगा,मसलता और रगड़ता होगा,, और अपने प्यासे होठों से उसके अंगों को चूमता होगा। निर्मला और उसके परिवार को बाहर से देखने वाले सभी यही सोचते होंगे लेकिन उन्हें इस बात का जरा भी आभास नहीं होगा कि बाहर से खुश दिखने वाली निर्मला अंदर ही अंदर ना जाने कितनी वेदनाए लेकर कितनी पीड़ा सहन करके जिंदगी गुजार रही है।
इस पीड़ा इस दर्द को निर्मला अकेले ही बरसों से सहन करती आ रही थी,,, अशोक तो अपनी दुनिया में ही मस्त था। अपनी पत्नी की तड़प उसके दर्द की बिल्कुल भी उसी परवाह नहीं थी,,,,, लोग तरसते थे पत्नी के रूप में निर्मला जैसी जीवनसाथी पाने के लिए उसके लिए पूजा पाठ व्रत करते थे,,, लेकिन यहां तो अशोक की झोली में बिन मांगे ही इतना अनमोल हीरा भगवान ने दे दिया था।
लेकिन उसकी रत्ती भर भी उसे क़दर नहीं थी।
रात के 10:30 बज रहे थे निर्मला डाइनिंग टेबल पर खाना लगा कर पत्नी धर्म निभाते हुए अशोक का इंतजार कर रही थी,,, शुभम खाना खाकर अपने रुम में जा चुका था। यह निर्मला की रोज की आदत थी वहां अशोक के घर आने से पहले कभी भी खाना नहीं खाती थी और अशोक के बाद ही खाना खाती थी लेकिन,,, ज्यादातर निर्मला को अकेले ही खाना खाना पड़ता था क्योंकि अशोक बाहर से ही खाकर आता था उसे इस बात की भी परवाह नहीं होती थी कि उसकी पत्नी देर रात तक उसका खाने की टेबल पर इसलिए इंतजार करती रहती थी की अभी वह खाना नहीं खाया होगा,,,,,
लेकिन अशोक निर्मला की भूख प्यास की बिल्कुल भी परवाह किए बिना ही अपना पेट भर लेता था।
निर्मला को अशोक का इंतजार करते करते 11:00 बज गए उसे नींद की झपकी भी आ रही थी कि तभी दरवाजे की घंटी बजी,,,,,, निर्मला उठकर दरवाजा खोली तो अशोक ही था,,,,, अशोक के घर में प्रवेश किया और निर्मला दरवाजे को बंद करते हुए बोली,,,,,,,
आप हाथ मुंह धो लीजिए मैं खाना लगा चुकी हूं जल्दी से खाना खा लीजीए,,,,,,
( लेकिन अशोक निर्मला का कहा अनसुना कर के बिना कुछ बोले जाने लगा तो एक बार फिर से निर्मला उसे रोकते हुए बोली,,,,,)
खाना लग गया है मैं आपका कब से इंतजार कर रही हूं और आप हैं कीे बिना कुछ बोले चले जा रहे हैं।।
देखो मैं थक चुका हूं और वैसे भी मैं बाहर से खाना खाकर ही आया हूं मुझे भूख नहीं है तुम खा लो,,,,,, ( इतना कहकर वह बिना निर्मला की तरफ नजर घुमाएं वह अपने कमरे की तरफ जाने लगा,,,, निर्मला की आंख भर आई अपने पति के द्वारा इस तरह के व्यवहार और लापरवाही की उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी,,, लेकिन शायद उसकी किस्मत में यही लिखा था अपने पति का बर्ताव देखकर उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह अपने पति को कमरे की तरफ जाते हुए देखती रह गई,,,,,, अशोक केे व्यवहार से उसकी भूख मर चुकी थी,,,, वह भी बिना कुछ खाए थोड़ी देर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठी रहीं और बैठे-बैठे अपनी किस्मत को कोसते रहि। वह भगवान से मन ही मन यही प्रार्थना करती रहती थी की हे भगवान कौन से जन्म का बदला मुझसे ले रहा है,,,,, मुझसे याद यह बिल्कुल भी सहा नहीं जाता मैं तंग आ गई हूं अपनी जिंदगी से जल्द से जल्द इसका कोई उपाय दिखाओ भगवान् या तो मुझे अपने पास बुला लो,,,,,, इतना कहकर वह मन ही मन रोने लगी,,,,
थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करके वह अपने कमरे की तरफ जाने लगी,,,, इतना कुछ होने के बावजूद भी मन में ढ़ेर सारी आशाएं लेकर के वह अपने कमरे में दाखिल हुई,,, अशोक अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था। दरवाजा बंद करते हुए निर्मला एक नजर अशोक पर रखी हुई थी कि वह भी उसे देखे लेकिन यह आशा भी उसकी निराशा में बदल गई, वह लेपटॉप से अपनी नजरें हटा ही नहीं रहा था।
पेट की भूख तो ठंडा पानी पीने से कुछ हद तक मिट ही जाती है लेकिन बदन की भूख कैसे मिटे,,, बदन की आग बुझाने के लिए तो प्रेम रूपी बारिश की जरूरत होती है,,,,,, लेकिन निर्मला की जिंदगी का सावन तो हमेशा सुखा ही रहता था। निर्मला का पति आनंद वर्षों से बादल बनकर बरसा ही नहीं, निर्मला की समतल जमीन पानी बिना सुख रही थी। बरसों से सुख रही जमीन को एक जबरदस्त सावन भादों का इंतजार था जो जी भर के उस पर बरसे,,,,,, और यही उम्मीद निर्मला के मन में हमेशा जागरुक रहती थी,,, आखिरकार वह भी एक औरत थी । दूसरी औरतों की तरह उसे भी बदन की भूख महसूस होती थी बिना खाए तो पेट की भूख शांत हो जाती है लेकिन बदन की भूख तो हमेशा बढ़ती ही रहती है । इसी भूख से वह भी तड़प रही थी । अशोक को आकर्षित करने का वह पूरा प्रयास करती थी लेकिन अशोक ना जाने किस मिट्टी का बना हुआ था कि निर्मला के कामुक हरकतों का विवाह बिल्कुल भी जवाब नहीं देता था । निर्मला भी कभी अपनी हद से ज्यादा आगे नहीं बढ़ी थी लेकिन फिर भी एक पतिव्रता पत्नी अपने पति को रिझाने के लिए जो कुछ कर सकती थी वह सब कुछ निर्मला करती थी। लेकिन अशोक के आगे सारे प्रयास में निष्फल ही जाते थे। निर्मला बदन की आग में जिस तरह से झुलूस रही थी उसे एक जबरदस्त संभोग की जरूरत थी। अपनी सीमित मर्यादा को लांघना होता तो वह कब से लांघ चुकी होती,,,,, लेकिन ऐसा करने से उसके मां-बाप के दिए हुए संस्कार ईजाजत नही देते थे। और वहां कोई ऐसा काम करना भी नहीं चाहती थी कि उसकी बेइज्जती हो, उसके खानदान की बेइज्जती हो । बरसों से बनाई हुई इज्जत मान सम्मान सब मिट्टी में मिल जाए।
निर्मला खुद अपनी किस्मत से हैरान देती थी की आज तक उसे ऐसा कोई भी इंसान नहीं मिला था जो उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हुए दो शब्द ना बोले हो। यहां तक कि औरतें उसकी सहेली और स्कूल की लड़कियां तक उसकी सुंदरता उसकी खूबसूरती की तारीफ करते थकती नहीं थी,,,,, लेकिन अशोक को ना जाने कौन से जन्म की दुश्मनी थी कि वह उसकी तारीफ में दो शब्द तो ठीक प्यार से उसकी तरफ देखना भी गंवारा नहीं समझता था।
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