Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:14 PM,
#8
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
। निर्मला की आधी नंगी जांघ को देख कर अशोक से रहा नहीं गया और वह पहले कि ही तरह एक बार फिर से निर्मला के ऊपर चढ़कर झुकने लगा और उसकी जांघों को फैला कर बिना प्यार कीए ही अपने खड़े लंड को सीधे निर्मला की बुर पर रखकर अंदर ही डाल दिया। निर्मला के अरमान की स्याही जो की बुर से बह रही थी वह सुख चुकी थी,,, इसलिए अशोक की इस हरकत की वजह से उसे दर्द होने लगा और उसकी आंख खुल गई लेकिन इस बार बिना कुछ बोले आंखों से आंसू बहाते हुए और अपने किस्मत को कोसते हुए अशोक के हर धक्के के साथ दर्द को झेलती रही,,, और अशोक जी निर्मला की प्यासी और दहकती हुई गरम बुर की दीवारों की रगड़ को ज्यादा देर तक सहन नहीं कर पाया और एक बार फिर से अपना हथियार नीचे रख दिया।

रविवार का दिन था। स्कूल में छुट्टी होने की वजह से आज निर्मला की नींद थोड़ा लेट में ही खुली थी। नींद खुली तो देखी थी बिस्तर पर अशोक नहीं था ।वह उठकर जा चुका था, वैसे भी अगर बिस्तर पर होता तो क्या हो जाता। उसके रहने ना रहने का कोई मतलब नहीं निकलता था। रात वाली बात से निर्मला का मन उदास ही था। निर्मला को रात की बात याद आ गई और खुद की गई हरकत के बारे में सोच कर ही निर्मला शर्मा गई,,, सबसे पहले तो उसे इस बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह ऐसी हरकत कर गई थी। जिस तरह से वह अपने कामुक बदन को उत्तेजनात्मक तरीके से अशोक के सामने पेश करते हुए रचनात्मक तरीके से अपने वस्त्रों को एक-एक करके अपने संगमरमरी बदन से उतारने का कार्यक्रम पेस की थी। यह उत्तेजक और उमदा कार्य निर्मला के बस के बिल्कुल भी नहीं था लेकिन जिस तरह से वह हिम्मत दिखाते हुए बड़े ही कलात्मक तरीके से वस्त्र त्याग का अभूतपूर्व कार्यक्रम पेश की थी वह बहुत ही काबिल ए तारीफ थी। अगर अशोक की जगह दुनिया का दूसरा कोई भी मर्द होता तो इतने में ही वह ना जाने कितनी बार पानी छोड़ देता,,,,,
यहां पर घर की मुर्गी दाल बराबर की कहावत को बिल्कुल सार्थक करते हुए अशोक ने अपनी पत्नी के इस कामुक प्रदर्शन को लगभग नजरअंदाज कर दिया था। हाय पल के लिए जरूर अशोक मचलता गया था तड़पता गया था निर्मला के बदन को पाने के लिए लेकिन संपूर्ण नग्नावस्था का नजारा दिखाने के बाद जैसे ही निर्मला ने अपनी नग्न बदन पर गाउन डालकर,, अपनी संग-ए-मरमरी बदन को ढंकी वैसे ही तुरंत निर्मला के बदन का नशा अशोक के ऊपर से उतर गया। और नतीजा यह निकला की निर्मला एक बार फिर प्यासी रह गई लेकिन निर्मला की भराव दार नितंबों ने अपना असर अशोक पर जरूर कर दिया,,, जिससे सोने से पहले अशोक निर्मला पर चढ़कर अपना अहम पूरा किया। लेकिन अशोक जिस तरह श्री निर्मला के संभोग करता था ऐसे संभव से ना तो संपूर्ण संतुष्टि अशोक को ही मिल पाती थी और ना ही निर्मला की प्यास बुझ पाती थी। लेकिन इस बात को अशोक नजर अंदाज कर देता था उसे तो निर्मला कि अब बिल्कुल भी फिक्र नहीं होती थी।
रात वाली बात को याद करके निर्मला की सूखी पड़ी बुर एक बार फिर से गीली होने लगी,,,,, निर्मला की प्यास एक बार फिर भड़के इससे पहले ही निर्मला जल्दी से बिस्तर पर से उठ कर सीधे बाथरूम में चली गई वहां जाकर के ठंडे पानी से स्नान करके अपने मन को कुछ हद तक हल्का कर ली ।
नहाने के तुरंत बाद वह डाइनिंग टेबल के करीब आए तो देखी की प्लेट में ब्रेड के कुछ टुकड़े पड़े हुए हैं जिससे वह समझ गई थी अशोक नाश्ता कर चुका है।
वह डाइनिंग टेबल के करीब खरीदी थी कि अशोक रसोई घर से बाहर आता हुआ दिखा तो निर्मला उससे बोली।

आप मुझे बुला ली होते तो मैं आपके लिए नाश्ता तैयार कर देती,,,,, इस तरह से आप अपने हाथ से लेकर के खाते हैं अच्छा नहीं लगता,,,,,,, आखिर मेरे होते हुए आप अपने हाथ से काम करें अच्छा नहीं लगता ना।

हा,,,,,, हां,,,,,,, ठीक है मुझे जल्दी जाना था तो,,,,,, इसलिए अपने हाथ से ले लिया। ( अशोक की बात सुनते ही निर्मला बोली।)

लेकिन आज तो संडे है ऑफिस में भी छुट्टी है तो आपको क्या जरूरी काम है।


देखो क्या जरूरी है क्या नहीं जरूरी है मैं तुम्हें बताना उचित नहीं समझता और काम अपना है इसमें छुट्टी कैसी।।।( अशोक शर्ट की बटन को बंद करते हुए बोला,,, अशोक की बात सुनकर निर्मला उदास हो गई वह जितनी भी ज्यादा मीठी बातें करके अशोक का मन बहलाने की कोशिश करती लेकिन अशोक हमेशा कड़वी जुबान से ही बोलता था। निर्मला उदास होकर के रसोईघर में चली गई और अशोक ऑफिस के लिए निकल गया। रसोईघर में निर्मला शुभम के लिए नाश्ता तैयार करने लगी और बाहर गाड़ी की आवाज सुनकर उसे यह पता चल गया कि अशोक जा रहा है। अशोक की लगातार बढ़ती नजरअंदाजी की वजह से निर्मला का मन खिन्न होने लगा था वह अशोक के ऊपर से ध्यान ना हटाकर नाश्ता तैयार करने में जुट गई। समय ज्यादा दे चुका था इसलिए वह समझ गई थी कि शुभम पूजा-पाठ कर चुका होगा और नाश्ता भी कर चुका होगा। लेकिन आज रविवार था इसलिए वह उसके लिए पराठे बना रही थी क्योंकि रविवार के दिन बाद ज्यादातर समय घर के बाहर मैदान पर क्रिकेट खेल कर दोस्तों के साथ ही बिताता था।
निर्मला का मन किसी काम में नहीं लगता था बड़ी मुश्किल से वह शुभम के लिए परांठे तैयार कर रही थी और मन में ढेर सारी वेदनाएं,,, दर्द,,,,, तड़प उसे पल-पल तड़पा रही थी। उसे इस बात का एहसास अच्छी तरह से हो गया था धीरे-धीरे करके समय रेत की तरह उसकी हथेली से निकल चुका था। वह तो भगवान की बड़ी कृपा थी कि अब भी उसकी खूबसूरती बरकरार थी। पराठा तैयार हो चुका था निर्मला ने अपने लिए कुछ भी नहीं बनाया क्योंकि उसे भूख ही नहीं थी और जिस चीज की भूख थी,,,, वह उस के नसीब में ही नहीं था या उसे पाने का उसने पूरी तरह से प्रयास ही नहीं की थी ।
कभी-कभी तो वह मां बाप से पाई हुई तहजीब और संस्कार को लेकर के भगवान से मन ही मन बोला करती थी कि भगवान तूने इतनी संस्कारी क्यों बनाया क्यों दूसरी औरतों के तरह थोड़ी सी बेशर्मी नहीं भर दी।
तहजीब और संस्कार किसी के लिए दुख का कारण बन सकते हैं,,, यह बात निर्मला से ज्यादा अच्छी तरह भला कौन जान सकता है ।
पराठा बन चुका था शुभम पढ़ाई में लगा हुआ था वह जानती थी कि शुभम थोड़ा लेट ही खाएगा इसलिए वह घर के काम में लग गई।

दूसरी तरफ अशोक अपनी ऑफिस में बैठा हुआ था घर से तो निकला था यह कहकर, कि काम बहुत है लेकिन यहां आराम से सिगरेट का कश लगाते हुए रीता का इंतजार कर रहा था। रीता उसकी पर्सनल असिस्टेंट थी। अशोक तीन चार साल से ज्यादा किसी को भी अपना पर्सनल असिस्टेंट नहीं रखता था। तीन चार साल से ज्यादा वह किसी को भी अपनी कंपनी में नहीं रखता था । उसने अभी तक आठ से दश लेडी असिस्टेंट को बदल चुका था। अशोक बड़ी बेसब्री से रीता का इंतजार कर रहा था अब तक उसने चार पांच सिगरेट पी चुका था। उसकी नजर एक बार बार ऑफिस के दरवाजे पर चली जा रही थी और बार-बार दीवार पर लगी हुई परियार पर टिक टिक करती सुईयों के साथ साथ उसकी नजरें भी घूम रही थी। तभी दरवाजे की घंटी बजी और अशोक बिना एक पल की भी विलंब किए बिना तुरंत कुर्सी पर से उठ करके दरवाजा खोलने गया और जैसे ही दरवाजा खोला,,,,, सामने २८ से ३० साल के लगभग खूबसूरत लेडी खड़ी थी। यह रीता ही थी जिसका इंतजार अशोक बड़ी बेसब्री से कर रहा था दोनों एक दूसरे को देखते ही मुस्कुराने लगे अशोक तो लगभग उसका हाथ पकड़ कर अंदर खींचते हुए उसे अपनी बाहों में भर लिया। छरहरे गोरे बदन की रीता अपने आप को ऊसकी बाहों कें सुपर्द करके एकदम से सिमट गई और अपने होंठ को अशोक के हॉठ पर रखकर चूसने लगी। राहुल का हांथ रीता की पीठ पर से होता हुआ उसके कमर के नीचे उसके नितंबों पर चला गया,,,, और जैसे ही अशोक की दोनों हथेलियां रीता के ऊभारदार नितंबो पर गए अशोक ने तुरंत उसे अपनी दोनों हथेलियों में दबोच लिया,,,,

आऊच्च,,,,,,, क्या कर रहे हो मुझे दर्द हो रहा है।

ओहहहहह मेरी जान मेरी तो मुझे कितना दर्द हो रहा है इसका तो तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कितनी देर से मैं यहां तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं और तुम हो कि ना जाने किस दुनिया में खोई हुई हो,,,,,,,
( अशोक की बात सुनकर रीता हंसने लगी और हंसते हुए बोली।)

क्या अशोक रोज तो तुम्हारे साथ ही रहती हूं फिर भी मेरे इंतजार में तुम इतने पागल हो जाते हैं कि एक पल भी मेरे बगैर गुजार पाना तुम्हारे लिए मुश्किल हुआ जाता है।

क्या करूं रानी तुम माल ही कुछ ऐसी हो की तुम्हारे बिना एक पल भी गुजार पाना मेरे लिए मुश्किल हो जाता है। ( अशोक रीता को फिर से अपनी बाहों में भऱते हुए बोला। )


क्या करूं अशोक मेरा शराबी पति दिन रात मुझसे झगड़ते रहता है आज भी यहां आने से पहले मेरे साथ झगड़ा हो गया और उसी झगड़े के चक्कर में लेट हो गई।
( अशोक कुछ सोचते हुए बोला)

मेरी जान तुम जैसी बीवी पाकर के तो तुम्हारे पति को खुश होना चाहिए और उल्टा वह तुमसे झगड़ा करते रहता है साला नासमझ है जो एक कोहिनूर हीरे की कदर नहीं कर पा रहा है।।
( रीता अशोक की यह बात सुनकर खुश हो गई हो अपनी खुशी का जिक्र उसने अपने होठों को अशोक के होठ पर रखकर उसे किस करते हुए बोली।)

खुशनसीब तो तुम अभी हो सर जो तुम्हें इतनी खूबसूरत बीवी मिली है।( रीता की बात सुनकर अशोक रीता की आंखों में देखने लगा) मे देखी हूं तुम्हारी बीबी को ऐसा लगता है कि मानो स्वर्ग से कोई अप्सरा उतर के नीचे आ गई हो,,,,, बहुत खूबसूरत है।


अरे यार एैसे रोमांटिक मौसम में तुमने किसका नाम ले ली ।

क्यों क्या हुआ सर (रीता आश्चर्य के साथ बोली)


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