Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:16 PM,
#16
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला आकर्षण के चलते यह भी भूल गई कि वह शुभम को रसोई में मदद करने के लिए बुलाने आई थी लेकिन यहां आकर के शुभम की हालत को देखकर वह सब कुछ भूल गई। शुभम की गठीले पतन और चड्डी में बने तंबू का आकर्षण का खुमार पूरी तरह से निर्मला की आंखों में उतर आया था। निर्मला ललचाई आंखों से अपने बेटे को ही निहार रही थी। निर्मला जीस तरह से ऊन्माद और कामोतेजना का अनुभव करते हुए अपने बेटे को ललचाई आंखों से देख रही थी यह उसकी प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था। लेकिन इस समय वह सब कुछ भूल चुकी थी खिड़की के बाहर खड़ी होकर के वह अपने बदन में चुदास पन का बेहद तीव्र गति से अनुभव कर रही थी।
उसकी नस-नस में लहू की जगह उन्माद और कामोत्तेजना का संचार हो रहा था। निर्मला आज बिल्कुल अलग और अजीब किस्म के सुखद अहसास का अनुभव कर रही थी। जिसके बारे में उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।
शुभम बार-बार अपनी चड्डी में तने हुए तंबू को देख रहा था और डंबल को ऊपर नीचे करते हुए कसरत भी किए जा रहा था उसका पूरा बदन पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति तेज चल रही थी। जिसकी वजह से उसका चौड़ा सीना बड़े ही उन मादक तरीके से सांसो के साथ साथ ऊपर नीचे हो रहा था जिसे देखकर निर्मला की बुर गिली हुई जा रही थी।
शुभम कसरत करते हुए एकदम डंबल को नीचे रख दिया,,,, और बड़ी ही प्यारी नजर से अपनी चड्डी की तरफ देखने लगा यह देख कर निर्मला की भी उत्सुकता बढ़ने लगी उसके मन में एक अजीब सी चाहत ने जन्म लेना शुरु कर दिया था। निर्मला अपने बेटे के तने हुए लंड को देखना चाहती थी। वह देखना चाहती थी कि उसके बेटे का खड़ा लंड कैसा दिखता है कितना लंबा है कितना मोटा है उसका सुपाड़ा किस आकार का है यह सब बातें जानने और देखने की उत्सुकता ने निर्मला को एकदम से चुदवासी बना दिया था। उसकी बुर से काम रस की बूंदे धीरे-धीरे टपक रही थी जिसकी वजह से उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी वह बार-बार उसी स्थान पर हाथ लगाकर अपनी बुर की स्थिति का जायजा लें ले रही थी। काम रस की बूंदों ने जिस तरह से निर्मला की पैंटी को गीली कर दी थी अगर किसी और की नजर उसकी पैंटी वाले हिस्से पर पड़े तो वह यही समझेगा कि निर्मला पेशाब कर दि है।

निर्मला की कामोत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी और कमरे के अंदर एक हाथ में डंबल लिए शुभम कसरत करते हुए अजीबो किस्म की कशमकश में लगा हुआ था। बार-बार उसका हाथ तंबू के करीब आ कर के फिर पीछे हट जा रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें। और शुभम की यही कश्मकश को देखकर निर्मला की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उसे लगने लगा था कि शुभम जरूर कुछ करेगा। निर्मला की दिली ख्वाहिश यही थी कि शुभम अपने हाथों से अपनी अंडरवियर को नीचे सरका कर अपने खड़े लंड को नंगा कर दे ताकि वह अपने बेटे के लंड को जी भर कर देख सके। निर्मला के साथ-साथ शुभम की भी उत्सुकता अपने लंड को लेकर के बढ़ती जा रही थी क्योंकि उसने भी आज तक अपने खड़े लंड का दीदार नहीं किया था।
सिर्फ पेशाब करते समय उसे अपने हाथों में ले करके उसकी गर्मी को महसूस किया था लेकिन बस औपचारिकतावश इससे आगे शुभम को कुछ भी महसूस हुआ और ना ही कुछ अनुभव ही मिला। जिस तरह की कशमकश कमरे के अंदर थी उससे भी ज्यादा खत्म कर कमरे के बाहर खिड़की पर थी क्योंकि शुभम तो नादान था नासमझ था। कामावेश के अध्याय से बिल्कुल भी अनजान वह अपने अंदर मच रही खलबली को कैसे शांत करें इसमें लगा हुआ था लेकिन बाहर खड़ी निर्मला तो अनुभवी थी। वह अच्छी तरह से जानती थी कि कमरे के अंदर जिस तरह की प्रकृति से उसका बेटा गुजर रहा है वह कामातुर हो चुका है उत्तेजना की पराकाष्ठा उसके बदन में गुदगुदी मचा रही है। वह पुरी तरह से चुदवासा हो चुका है ।
शुभम बार बार अपना हाथ अंडर वियर पर लाकर हटा दे रहा था उसकी स्थिति को निर्मला अच्छी तरह से भांप चुकी थी। वह अच्छी तरह से समझ चुकी थी कि काम के ज्ञान में जिस तरह से वहां इस उम्र में आकर भी अज्ञानी है उसी तरह शुभम भी जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए इस अध्याय में अभी बिल्कुल अनजान है। दोनों की स्थिति को देखकर साफ-साफ लग रहा था कि दोनों एक ही नाव में सवार है। काम नाव की पतवार दोनों में से किसी के भी हाथ में नहीं थी । यह नाव अपने आप ही उत्तेजना के समंदर में गोते लगाते हुए किस छोर पर ले जाएगी दोनों इस बात से बिल्कुल भी अनजान थे।
बाहर प्यासी निर्मला उत्सुक थी अपने बेटे के खड़े लंड का दीदार करने के लिए और कमरे के अंदर शुभम को आगे क्या करना है इस बात से बिल्कुल भी बेखबर था लेकिन फिर भी उसकी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी बार-बार उसका हाथ अंडरवियर तक आ करके वापिस चला जा रहा था। लंड के सुपाड़े वाला स्थान पूरी तरह से भीग चुका था। वह भी अपने अंडर वियर पर चिपचिपा सा महसूस कर रहा था। निर्मला की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसका भी हाथ बार-बार जांघो के बीच पहुंचा रहा था। वह अपनी हथेली से बुर वाले स्थान को दबा दे रही थी जिससे उसकी कामाग्नि और ज्यादा बढ़ जा रही थी। निर्मला आज खुद अपने स्थिति को ले करके बहुत ज्यादा परेशान हो चुकी थी क्योंकि उसे आज तक ऐसी स्थिति का सामना कभी नहीं करना पड़ा था। इस समय जिस प्रकार की उत्तेजना और चुदासपन का अनुभव अपने बदन में कर रही थी ऐसा अनुभव ऊसे पहले कभी नहीं हुआ था ।वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी उसकी गीली और प्यासी बुर में खलबली सी मची हुई थी।
शुभम के मन में ना जाने क्या हुआ कि उसने दूसरे डंबल को भी नीचे रख दिया। उसका बदन पूरी तरह से पसीने से तरबतर हो चुका था सांसो की गति बड़ी तेज चल रही थी। उसकी मां को लेकर उसके मन में द्वंद युद्ध चल रहा था। उसके लंड के खड़े होने का एक ही कारण था कि बार-बार उसकी आंखों के सामने उसकी मां के गोरे बदन और उसकी बड़ी बड़ी चूचियां और भरावदार गांड नजर आ जा रही थी जिसकी वजह से ना चाहते हुए भी उसका लंट टनटना कर खड़ा हो चुका था । ऐसे हालात की वजह से उसकी हालत खराब होते जा रहे थे उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह अपनी मां के बारे में इस तरह की गंदे ख्याल अपने दिमाग में जाएगा लेकिन उसके दोस्तों की बातों ने उसका मन पूरी तरह से बदल दिया था वह ना चाहते हुए भी अपनी मां के अंगों के बारे में सोचने लगा था। यह निर्मला के खूबसूरत बदन और उसके उभार दार और कामुकता से भरे हुए कटावदार अंगों का ही कमाल था कि शुभम का लंड ढीला पड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था ।
बाहर निर्मला जो रह रहकर अपनी जांघो के बीच हाथ लगा ले रही थी अब वह कामोत्तेजना के असर में पूरी तरह से बहकर हल्के हल्के से अपने बुर को साड़ी के ऊपर से ही लना शुरु कर दी थी,, जिसकी वजह से उसकी उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी।

निर्मला का दिल जोरो से धड़क रहा था उसकी सांसे भारी हो चली थी। सांसों के बहाव में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां भी बड़े ही उत्तेजक तरीके से ऊपर नीचे हो रही थी। निर्मला को इंतजार था सुभम के लंड के देखने के लिए जो कि उसकी तरसीे निगाहें शुभम पर ही टिकी हुई थी वह चाहती थी कि शुभम जल्द से जल्द अपने लंड का दीदार कराएं लेकिन सुबह में था कि अपने अंदर बीयर को नीचे उतारने में भी घबरा रहा था उसके अंदर अजीब सी घबराहट हो रही थी। वह बार-बार अपनी मां का ख्याल करके उत्तेजित हुए जा रहा था। यही उत्तेजना के चलते उससे रहा नहीं गया और वह अपने दोनों हाथ को अपने अंडर वियर के अगल-बगल रखकर
अंडरवियर को सरका कर अंदर का नजारा देखने के लिए तैयार हो चुका था। शुभम की इस हरकत ने निर्मला के अंदर गुदगुदी सी फैलाने लगा। उसके बदन में उत्तेजना से कम चार बड़ी तेजी से हो रहा था वह सबसे ज्यादा जांघों के बीच बुर के अंदर चुनचुनाहट मची हुई थी जिसे वह अपनी हथेली से मसल रही थी।
शुभम का गला उत्तेजना के मारे सुख रहा था। और वह धीरे-धीरे अपने अंडर वियर को नीचे करने लगा,,,, यह देखकर निर्मला के मुंह से गरम आहे निकलने लगी।
तभी शुभम ने अपनी अंडरवियर को एक झटके से जांगो तक सरका दिया। चड्डी के नीचे सरकते ही जो नजारा सामने आया उसे देखकर शुभम आश्चर्यचकित हो गया उसके मन में घबराहट सी होने लगी,,,,,, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि यह क्या हो रहा है लेकिन खिड़की के बाहर खड़ी निर्मला सब कुछ समझ गई थी कि क्या हो रहा है। उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह हकीकत देख रही है या सपना। इतना मोटा तगड़ा और लंबा लंड भी हो सकता है वह कभी कल्पना भी नहीं कर पाई थी क्योंकि उसने आज तक अशोक के ही लंड को देखी थी और उसी से काम चला रही थी जोकि शुभम के लंड से आधा ही था और पूरी तरह से टनटना कर खड़ा था। उसके लंड में जरा सा भी लचक नहीं था जरा सा भी ढीला पन नजर नहीं आ रहा था। उसका सुपाड़ा ऊपर छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था।
यह नजारा देखकर उत्तेजना के मारे निर्मला भी पसीने से तरबतर हो चुकी थी। उसकी हथेली जोर-जोर से बुर ं पर चल रही थी,,,, उसकी पैंटी लगातार काम रस के रिसाव की वजह से गीली होती जा रही थी।
शुभम को कुछ समझ में नहीं आ रहा था वह कांपती उंगलियों को खड़े लंड की तरफ बढ़ाया और उस पर हल्कैसे रखा ही था कि उसका कड़कपन और गर्माहट महसूस करके वह एक दम से चौंक गया और झट से अपना हाथ हटाकर के अंडरवीयर को फिर से पहन लिया,,,,, और दो कदम पीछे जाकर के बिस्तर पर बैठकर हांफनें लगा,,,,,
बाहरी निर्मला जी भरकर इस नजारे को देखने से पहले ही परदा पड़ चुका था उसके लिए अब खिड़की पर ज्यादा देर तक खड़े रहना उचित नहीं था इसलिए वह अपनी प्यास और ज्यादा बढ़ा कर वापस लौट गई।


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