RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
नहीं मम्मी मुझे कुछ तो काम बोलो करने के लिए मैं आपका हाथ बटाना चाहता हूं।।। मुझे भी अच्छा लगता है जब मैं आपका हाथ बटाता हूं तो,,,,,, वैसे भी आप अकेले काम कर कर के थक भी जाती हैं और बोर भी हो जाती होंगी,,,,,
( शुभम की बात सुनकर निर्मला मुस्कुराने लगीे और बोली,,,)
अच्छा ठीक है तू मेरा हाथ बट़ाना चाहता है तो,,,, एक काम कर जाकर उस डीब्बे में से आटा निकाल कर ले आ,,,,,,
( निर्मला उंगली से निर्देश करते हुए शुभम से बोली लेकिन बोलते समय उसकी नजर शुभम की जांघों के बीच चली गई जहां पर उसने उत्तेजित कर देने वाला लंबा सा तंबू देखी थी।
जिसे देखते ही उसके बदन में कामोतेजना की लहर फैल गई थी जिसका असर उसे अब भी अपने बदन में देखने को मिल रहा था। हालांकि इस समय तो शुभम की जांघों के बीच का वह उभार शांत था।लेकिन फिर भी ऊस जगह पर निर्मला की नजर जैसे गई उसके बदन में एक बार फिर से उन्माद से भरी हुई हलचल होने लगी,,,,,,,, निर्मला झट से अपनी नजरें घुमा ली,, शुभम अपनी मां की बात सुनकर डीब्बे मै से आटा लेने के लिए गया। वह किचन के नीचे बड़े ड्रोवर में रखे हुए डिब्बे को बाहर निकाल कर ऊसमे से आटा निकालने लगा,,,,, और निर्मला आटा गूथने के लिए बर्तन किचन पर रखने लगी,,,,
बर्तन को किचन पर रखने की वजह से बार-बार निर्मला की हाथों की चूड़ियां खनक रही थी जिस पर शुभम का ध्यान जाते ही वह हटा निकालते हुए हैं नजरें घुमा कर अपनी मां को देखने लगा,,,,,, जैसे ही वह अपनी मां की तरफ देखा उसकी नजर सीधे निर्मला की बड़ी-बड़ी और भरावदार गांड पर गई,,,,, जो कि काम करने की वजह से बदन की हलन चलन उसके नितंबों में एक बड़े ही कामुक तरीके की थिरकन पैदा कर रही थी। जिससे उसकी बड़ी-बड़ी और नरम नरम लचीली गांड स्प्रींग की तरह हल्के हल्के ऊपर-नीचे हो करके एक अद्भुत उभार और थिरकन पैदा करते हुए माहौल को गर्म कर रही थी।
शुभम को तुरंत उसके दोस्तों की कही गई बात याद आने लगी जो कि उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड के बारे में ही कह रहे थे। निर्मला अपनी साड़ी के किनारे को एक्साइट करके कमर में डाली हुई थी जिसकी वजह से वहां और भी ज्यादा खूबसूरत और कामुक लग रही थी। शुभम जो देखा तो देखता ही रह गया। वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं करता लेकिन उसके दोस्तों की कही गई बात याद आते ही उसकी नजर उसकी मां की खूबसूरत नितंबों से हट ही नहीं रही थी।
वह मंत्रमुग्ध सा अपनी मां की खूबसूरत बदन और उसकी बड़ी बड़ी गांड को ही निहारने लगा,,,,,,, डिब्बे से आटा निकालना तो वह भूल ही चुका था। शुभम की जांघों के बीच उसके हथियार में जो की कुछ देर पहले ही शांत हुआ था एक बार फिर से सुरसुराहट होने लगी।
दूसरी तरफ निर्मला अपने बेटे के लंबे तगड़े लंड को याद करके फिर से उत्तेजित होने लगी थी,,,, वह जानती थी कि उसका बेटा उसके ही पीछे बने बड़े ड्रोवर में से आटे का डिब्बा निकालकर उसमें से आटा निकाल रहा है ।लेकिन वह फिर भी उससे नजरें मिलाने में शर्मा रही थी अजीब सी उत्तेजना का अनुभव करते हुए निर्मला का बदन कसमसा रहा था। फिर से उसकी बुर से नमकीन पानी का रिसाव होना शुरू हो गया था।
शुभम को आटा निकालने मे कुछ ज्यादा ही समय लग रहा था। इसलिए वह नजरें घुमा कर पीछे की तरफ देखीे तो वह शुभम को अपनी ही तरफ देखता हुआ पाई,,,,,, लेकिन जैसे ही निर्मला ने शुभम की नजरों के सिधान पर गौर की तो उसके बदन में हलचल सी मच गई क्योंकि उसके नजरों का सीधान सीधे ही उसकी बड़ी बड़ी गांड पर ही जा रहा था। निर्मला के बदन में हलचल सी मच गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार शुभम वाकई में उसके नितंबों को ही देख रहा है या कुछ और,,,,,,, फिर से गौर करने पर वह अच्छी तरह से समझ गई कि शुभम उसके बड़े बड़े नितंबो को ही घूम रहा था। एक पल के लिए तो इस तरह से अपने बेटे को अपनी नितंबों को घूरता पाकर उसके बदन में प्रचंड उत्तेजना का वेग दौड़ने लगा,,,,, उत्तेजना के मारे उसकी बुर फूलने पिचकने ं लगी उसकी आंखों के सामने एक बार फिर से उसके बेटे का टनटनाया हुआ लंड तैरने लगा। उत्तेजना पल पल उसके बदन को अपने कब्जे में ले रही थी और यही हाल
शुभम का भी था ।वह भी अपनी मां के नितंबों को देखकर एकदम से कामुक हो गया था ।बार-बार उसके दोस्तों की कही गई गंदी बातें जो कि उसकी मां के बारे में ही थी,,, वह याद आ रही थी और ऊन बातों का असर उसके बदन पर पूरी तरह से छाने लगा था। वह अपनी मां के आकर्षक नितंबों को देखने में ऐसा मत भूल हुआ कि उसे इस बात का जरा भी एहसास ही नहीं हुआ कि उसकी मां उसे देख रही है।
इसमें कोई शक नहीं था कि निर्मला बेहद खूबसूरत और बेहद ही गठीले और आकर्षक बदन की मालकिन थी। जिसे कोई भी देख ले तो बस देखता ही रह जाए। शुभम के साथ ऐसा कभी नहीं हुआ था,,, लेकिन आज मैदान में दोस्तों की बातों ने उसके मन को भी पूरी तरह से बहका दिया था।
यह पल बड़ा ही नाजुक पल था । दोनों ही एक-दूसरे के बदन के प्रति आकर्षित हो रहे थे। दोनो पूरी तरह से गर्म हो चुके थे एक हल्की सी भी चिंगारी उनके पवित्र रिश्ते को तार तार कर देने में सक्षम हो सकती थी। शुभम तो जैसे किसी ख्यालों में खो सा गया था वह आटे के डिब्बे में खाली अपना हाथ डाले अपनी मां के भरावदार बदन और उसके नितंबों को घुरे जा रहा था।
निर्मला के लिए भी यह पल बर्दाश्त के बाहर था उसके बदन में भी कामोत्तेजना पूरी तरह से अपना कब्जा जमा चुकीे थी।
लेकिन तभी वह अपने आप को संभाल ली और बोली,,,,
शुभम कितनी देर लगा रहे हो जल्दी लाओ रोटियां बनानी है।
( निर्मला शुभम की तरफ से अपनी नजरें हटाकर वापस बर्तनों को इधर उधर करने में लग गई क्योंकि मुझे शर्म सी महसूस हो रही थी ।शर्म और उत्तेजना के मारे उसका चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था,,,, वाह अपने बेटे को उसकी हरकत के लिए डांट भी नहीं सकती थी क्योंकि शुभम जो हरकत किया था,,,,,, इस हरकत के बारे में उसे एहसास दिलाने में भी निर्मला को शर्म सी महसूस हो रही थी वह अपने बेटे को डांटे भी तो किस बात के लिए जाते या उसके मुंह से निकल पाना बड़ा असंभव सा लग रहा था। इसलिए तो वह अपनी नजरें दूसरी तरफ फेरकर शुभम को आटा जल्दी लाने के लिए बोली थी और शुभम भी जैसे मेरे से ज्यादा हो अपनी मां की बात सुनकर,,,,,, डीब्बे मै से जल्दी-जल्दी आटा निकालने लगा,,,,,, और जल्दी से वह घबराते हुए अाटा ला करके अपनी मम्मी को थमा दिया,,,,,, आटा थामते समय जैसे ही निर्मला की नजर शुभम की टांगों के बीच गई तो एक बार फिर से उसका बदन गनंगना गया। शुभम के पजामे मे फिर से लंबा सा तंबू बना हुआ था। जिसका एहसास होते ही शुभम शर्मा के रसोई घर से बाहर चला गया।
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