RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शीतल की बात सुनकर निर्मला की हालत खराब हुए जा रही थी। जब शीतल के मुंह से उसने यह बात सुनी कि जब एक मोटा ताजा लंबा बैगन बुर में घुसेगा तो कितना मजा देगा इस बात को सुनते ही,,,, निर्मला की रसीली बुर कुलबुलाने लगी और तुरंत उत्तेजना के मारे उसमें से मदन रस की बूंदे टपकने लगी जिससे निर्मला को बेहद ही अजीबो किस्म की सुख की अनुभूति हो रही थी। निर्मला शीतल की यह बात सुनकर क्या जवाब दे यह तो उसके समझ के भी बाहर था। शीतल उसे बहुत ही कामुक तरीके से बता रही थी। जिसे सुनकर निर्मला पल-पल उत्तेजना की खाई में उतरती ही जा रही थी।,,,, बात को आगे बढ़ाते हुए शीतल बोली।
सच निर्मला जब मैं पहली बार इस तरह की हरकत की थी तो मैं तो खुशी से झूम ही उठी थी। अब मैं तुझसे कुछ नहीं छुपाऊंगी,,,, वह क्या है कि एक ही लंड से बार बार चुदने पर इतना मजा नहीं आता और तो और जैसे-जैसे हम मैच्योर होते जाते हैं,,, अपने हम उम्र की औरतों की प्यास और भी ज्यादा बढ़ने लगती है और उस प्यास को बुझाने के लिए,,,, मोटा ताजा और जवान लंड की जरूरत होती है। लेकिन इस उम्र में तो पति का लंड ऊतना मजा नहीं दे पाता है जितना कि जवानी के दिनों में देता था। और तो और उसकी लंबाई चौड़ाई भी अपनी प्यास के मुताबिक और कम लगने लगती है। सच कहूं तो मुझे अपने पति से चुदने ऊतना में मजा नहीं आता जितना मजा मुझे बैंगन मूली और केले से मिल जाता है। ( शीतल की खुली बातें सुनकर तो निर्मला की हालत और खराब होने लगी उसकी सांसे तेज चलने लगी उसका चेहरा शर्म के मारे सुर्ख लाल होने लगा। वह यकीन नहीं कर पा रही थी कि कोई सब्जी और फलों के सहारे से भी अपनी प्यास बुझा सकता है। शीतल भी ये सब करती होगी इस बात पर ऊसे विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन जिस आत्मविश्वास के साथ वह बता रही थी इससे बिल्कुल साफ था कि शीतल भी एेसा जरुर करती होगी तभी तो उसे इसके उपयोग के बारे में इतनी बारीकी से मालूम है। शीतल को भी बताते बताते उत्तेजना का अनुभव होने लगा था उसका भी चेहरा सुर्ख लाल हो रहा था। निर्मला को तो कल के बारे में जानना था कि वह बैगन का उपयोग सच में करी थी कि नहीं,,,,, वह सीधे सीधे खुलकर तो पूछ नहीं सकती थी क्योंकि उसे ऐसा करने में अभी भी शर्म महसूस हो रही थी। इसलिए एक बहाने से बात को घुमाते घुमाते बोली,,,,,,
शीतल कल रात भर जागकर क्या करी? ( निर्मला हिचकीचाते हुए बोली,,,, निर्मला की बात सुनकर शीतल मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली।।)
अरे वही तो बता रही हूं कल वैसे भी मुझे मस्ती चढ़ी हुई थी।
अब अपनी प्यास बुझाने के लिए जवान लंड कहां से लाऊ,,,,,, मिल तो जाए लेकिन बदनामी का डर बना रहता है। और जवान लंड घर में ही पर उपलब्ध होता तोउस का भरपूर उपयोग करती,,,,,,,( इतना कहने के साथ ही वह कुछ देर खामोश रहकर गाड़ी की तरफ इशारा करते हुए) निर्मला तुम्हारे पास तो जवान लंड उपलब्ध है,,,,, तुम तो उसका पूरा फायदा उठा सकती हो,,,,,, तड़पना तो हम जैसी औरतों के ही किस्मत में है। ( शीतल बात बात में बहुत बड़ी बात कह गई थी लेकिन इस समय उत्तेजना के असर की वजह से निर्मला ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दी और शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,,) हां तो में यह कह रही थी कि मेरे बदन में चुदाई की आग भड़की हुई थी और ऐसे में मेरे पति घर पर नहीं थे और घर पर होते भी तो शायद ऊनकी चुदाई से मेरी प्यास बुझने वाली नहीं थी,,,, इसलिए मैं रात को सोने से पहले एक अच्छा मोटा और तगड़ा जिसकी लंबाई लंड से दो गुनी थी,,,, उसे पानी से साफ करके अपने साथ कमरे में ले गई। सच कहूं तो निर्मला उस बैगन को हाथ में लेते ही मेरी बुर कुलबुलाने लगी थी। कमरे में जाते ही मैंने अपने सारे कपड़े उतार कर एक दम नंगी हो गई और उस बैगन पर जो की कुछ ज्यादा ही मोटा था उस पर नारियल का तेल लगा कर उसे चिकना कर दी,,,,,( शीतल की बातें सुनकर तो निर्मला कि सांसे ऊपर नीचे हुए जा रही थी । उसकी पैंटी बुर के मदन रस की वजह से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी। जिसके गीलेपन का एहसास उसे अच्छी तरह हो रहा था लेकिन वह जानबूझकर अपना हाथ जांघों के बीच नहीं ले जा रही थी। शीतल अपनी बात बताते हुए निर्मला को और भी ज्यादा उत्तेजित किए जा रही थी।)
अब क्या था मैं तो पूरी नंगी हो कर के अपने बिस्तर पर लेट गई। मेरे बदन में कितनी ज्यादा उत्तेजना फैली हुई थी कि मेरी सांसे ऊपर नीचे चल रही थी। मेरी सांसो के साथ साथ मेरी ये ( अपनी छातियों की तरफ देखते हुए) बड़ी बड़ी चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी,,,, जिसे देख कर मेरी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ने लगी और मैं तुरंत अपनें एक हाथ से अपनी चूची को पकड़कर दबाने लगीे और एक हाथ में बैगन को ले करके उसे अपनी बुर पर रगड़ने लगी। ( शीतल कि यह गरम और उत्तेजक बातें सुनकर निर्मला का गला सूखने लगा था उसे पेट ठीक से थुक भी नहीं निगला जा रहा था। ) सच कहूं तो निर्मला मुझे सिर्फ बैगन को रगड़ने मात्र से ही ईतना आनंद मिल रहा था तो सोचो जब मैं उसे अपनी बुर में डाल ती तो कितना मजा मिलता। ( शीतल की बात करते तो निर्मला के होश उड़ चुके थे वहां आश्चर्यचकित होते हुए बोली।)
सच शीतल,,,,,
हां यार मैं बिलकुल सच कह रही हूं जब मैं उसे धीरे धीरे अपनी बुर में डालने लगी तो मेरा बदन उत्तेजना के मारे ऐसा लग रहा था कि हवा में उड़ रहा हो,,,,, मैं बैगन को जितना हो सकता था उतना अपनी बुर में डाल दी,, मेरी बुर में बैगन पूरी तरह से समाने के बाद भी 5 इंच बाहर ही था। ( यह सुनकर केतु निर्मला के होश ही उड़ गए उसे यकीन नहीं आ रहा था कि शीतलने सचमुच ऐसा कारनामा कर दी है। लेकिन उसकी बात कर पर निर्मला को यकीन करना ही पड़ा क्योंकि उसे मालूम था कि वह इस मामले में बिल्कुल भी झूठ नहीं बोल रही थी। )
निर्मला एक बार बैगन पूरी तरह से मेरी बुर में घुसा तो मैं उसे अंदर बाहर करते हुएे अपने मन में कल्पना करने लगी कि कोई मुझे चोद रहा है जिसका लंड मोटा और लंबा है। सच कहूं तो निर्मला मुझे बहुत मजा आया,,,, और मैं रात भर लगभग पांच छ: बार झड़ी,,,,, बस एक बात का मलाल हमेशा रह जाता है।
कौन सी बात,, ? ( निर्मला गले मे थुक निगलते हुए बोली।)
अरे यार यही कि काश ऐसा कोई मर्द होता है,,, जिसका बैगन जितना ही लंबा तगड़ा लंड होता,,,, जो मेरी बुर में अपना लंड डालकर मुझे चोदकर मेरी प्यास बुझाता।
( निर्मला तो शीतल की ऐसी गंदी और खुद ही बातें सुनकर एकदम से बेहाल हुए जा रहीे थी,,,, शीतल की यह बात सुनकर निर्मला को तुरंत उसके बेटे की याद आ गई क्योंकि जिस तरह के लंड के साइज की वह बात कर रही थी वैसा ही बेगन जैसा लंड शुभम का था। शुभम की याद आते ही निर्मला की आंखों में चमक आ गई एक पल को तो उसे ऐसा लगा की वह शीतल को अपनी बेटे के हथियार के बारे में बता दें लेकिन ऐसा कहना उसे उचित नहीं लगा तो वह खामोश ही रह गई। हां लेकिन शीतल के मुंह से अपनी दिली ख्वाहिश को जानकर यह ख्वाहिश निर्मला के मन में भी जगने लगी,,,, जिन शब्दों में शीतल ने बैगन की उपयोगिता को बताई थी वह सुनकर निर्मला का भी मन डोलने लगा,,,, उसे भी याद आ गया कि वह भी मार्केट से लंबे मोटे बेगन को खरीदकर फ्रीज में रखी हुई है। दोनों का चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था फिर दोनों को वहां खड़े खड़े बातें करते काफी टाइम भी हो गया था। शीतल अपनी कलाई में बड़ी घड़ी की तरफ देखते हुए बोली।
काफी समय हो गया निर्मला अब हमें चलना चाहिए,,,,,
( शीतल की बात सुनकर निर्मला ने भी अपनी कलाई मे बंधी घड़ी की तरफ देखी और फिर अपनी गाड़ी की तरफ जिसमें शुभम बैठा हुआ था और बोली।)
हां समय तो काफी हो गया है,,,,,,,,,,,, ठीक है अच्छा मैं चलती हूं। ( इतना कहकर वह गाड़ी की तरफ कदम बढ़ाना ही वाली थी कि शीतल बोली,,,,,,)
निर्मला मेरी बात मानो तो तुम भी एक बार बैगन जरूर ट्राई करना फिर देखना तुम्हें कितना मज़ा आता है। ( इतना कहने के साथ ही वह गाड़ी की तरफ देखते हुए ) हां लेकिन तुम्हें बैंगन की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि तुम्हारे घर में ही जवान लंड है। ( इतना कहने के साथ ही वह हंसने लगी और उसे हंसता हुआ देखकर और उसकी बात का मतलब समझ कर निर्मला बोली।)
धत्त,,,,,, कितनी गंदी हो तुम,,,,,,,
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