RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
शुभम कभी भी अपनी मां के सामने सिर्फ टावल पहनकर नहीं आता था लेकिन आज उसे इस अवस्था में देखकर निर्मला भी हैरान थी,,, शुभम की नंगी चोड़ी छातियां और मजबूत बांहें देखकर निर्मला के मन में गुदगुदी होने लगी थी। खास करके जांघों के बीच हथियार वाली जगह पर हल्का सा उभार था और इस उभार को निर्मला अच्छी तरह से समझती थी। निर्मला उसी स्थान पर नंगे तगड़े और खड़े लेने की कल्पना कर के अंदर ही अंदर मचलने लगी। शुभम अपनी मां से दवा के बारे में पूछ रहा था लेकिन वह उसके खूबसूरत और मजबूत बदन को देखकर पिघलने लगी थी। वैसे भी निर्मला पुरुष संसर्ग के लिए तड़प रही थी। निर्मला की बातें उसके गले में ही जैसे अटक सी गई थी वह बस हक्की-बक्की सी अपने बेटे के बदन को ही देखे जा रही थी। शुभम अपनी मां को इस तरह से अपने बदन को निहारता हुआ देखकर अंदर ही अंदर खुश हो रहा था। वह फिर से अपनी मां से बोला।
मम्मी मैं कुछ पूछ रहा हूं आप बता क्यों नहीं रही है।
( शुभम की बात सुनते ही जैसे उसे होश आया हो इस तरह से हड़बड़ाते हुए फिर बोली।)
ओ ओ ओ हां वही तो पूछ रही हूं तू मुव और आयोडेक्स का करेगा क्या?
आप मम्मी बस दे दो मुझे लगाना है।
लगाना है,,,,,,,, लेकिन कहां,,,,,,,,, लगाना है कहां तुझे चोट लग गई,,,,,, कुछ बताएगा,,,,
( एक मां होने के नाते उसे अपने बेटे की फिक्र भी हो रही थी और उसके मदमस्त बदन को देखकर वह अंदर ही अंदर मस्त भी हो रही थी। )
मैं लगा लूंगा मम्मी बस आप मुझे बता दो हैं कहां ? जल्दी करो मुझे लगाना है जलन सी महसूस हो रही है ।
जलन सी हो रही है लेकिन कहां जलन सी हो रही है मुझे बताओ तो सही मैं खुद उसे लगाकर मालिश कर देती हूं।
( निर्मला की बातों में शुभम के लिए फिक्र साफ झलक रही थी और वह शुभम से बार बार चोट के बारे में पूछ भी रही थी लेकिन शुभम था की जानबूझकर बता नहीं रहा था। क्योंकि वह भी यही चाहता था वह थोड़ा सा अपनी मां को परेशान करना चाहता था। इसलिए वह बोला।)
मम्मी मैं अब बड़ा हो गया हूं अपने हाथ से लगा लूंगा और वैसे भी जंहां लगाना है उसके बारे में आपको बताया नहीं जा सकता।
( अपनी मां से बात करते समय शुभम की भी नजरें उसके कामुक बदन पर इधर उधर चली जा रही थी। जिसकी वजह से उसके लंड का तनाव बढ़ता ही जा रहा था। और टावल तंबू में तब्दील होता नजर आ रहा था। शुभम की बात सुनकर निर्मला आश्चर्य के साथ बोली,,,।)
हां देख रही हुं कि तू बड़ा हो गया है,,,( यह शब्द कहते हुए निर्मला की नजर टॉवल में बन रहे तंबू पर थी) और ऐसी कौन सी जगह पर तुझे चोट लग गई है कि तु उसके बारे में मुझे बता नहीं सकता है। तुम मुझे जल्दी बता मुझे यूं परेशान मत कर मुझे तेरी फिक्र हो रही है।
मम्मी अब मैं तुम्हें कैसे बताऊं (इतना कहते हुए शुभम अपनी नजरों को इधर उधर फेर कर अपने अंदर आई शर्म को बयां कर रहा था। वह जानबूझकर अपनी मां को ना बताने का नाटक कर रहा था बल्कि अंदर से वह खूद उसे सब कुछ बताना चाहता था क्योंकि यही तो उसका आईडिया था। लेकिन वो इतने जल्दी बताना भी नहीं चाहता था क्योंकि अगर वह तुरंत बता दें इस तरह के संस्कार उसके थे नहीं लेकिन वासना और मन में ऊठ रहे ऊन्माद की वजह से वह भी अपने आप से एकदम मजबूर हो चुका था। )
अब देख ईतना भी तू बड़ा नहीं हो गया है कि अपनी मां को कुछ बता ना सके चल बता मुझे पता तो चले कि तकलीफ कैसी है कहीं ऐसा ना हो कि शर्म के मारे तो मुझे कुछ बताए नहीं और धीरे-धीरे वह तकलीफ बड़ी समस्या में बदल जाए।
( शुभम के चेहरे पर आई शर्म की रेखाओं को देखकर निर्मला को इतना तो समझ में आ गया था की समस्या उसके गुप्त भाग को लेकर ही थी और इस बात को मन में समझते ही निर्मला के मन में अजीब प्रकार की गुदगुदी होने लगी थी। )
बता भी दे बेटा,,, मैं दवा लगा देती हुं।
मम्मी मैं कैसे बताऊं मुझे शर्म आ रही है आप मुझे दवा दे दो मैं लगा लूंगा आप चिंता मत करो।
अरे ऐसे कैसे चिंता ना करो मेरे बेटे को चोट लगी है उसे दर्द हो रहा है और मैं चिंता ना करु। ऐसे कैसे हो सकता है भला।
( मां बेटे दोनों के मन में गुदगुदी हो रही थी शुभम को आज ऐसा लगने लगा था कि वह अपनी मम्मी को जो चाहता है वह दिखा ही देगा,,,,, और उसकी दोस्तों की बातें कहीं सच है,,, तो उसके सारे अरमान पूरे भी हो जाएंगे। और निर्मला के मन में इस बात से बिल्कुल भी मची हुई थी कि अगर उसका सोचना सच हुआ तो आज उसे भी उसके बेटे के दमदार लंड को नजदीक से देखने का सुनहरा मौका मिल जाएगा और अगर किस्मत अच्छी हुई तो शायद आज उसे वह अपने हाथों से स्पर्श भीे कर पाएगी,,,, उस की गर्माहट, उसके कड़कपन को वह अपनी हथेली में महसूस कर पाएगी यह सब सोचकर ही निर्मला की बुर गीली होने लगी थी। वह एक बार फिर से अपनी बात को दोहराते हुए बोली।)
रोहन जल्दी बता बेटा हो सकता है मैं तेरी कुछ मदद कर सकूं।
( इतना पूछने के बाद शुभम को लगने लगा था कि आप उसकी मां को बता देना चाहीए था। अब समय आ गया था अपनी युक्ति को आजमाने का,,,,, शुभम का दिल जोरों से धड़क रहा था। निर्मला की नजर अपने बेटे पर ही टिकी हुई थी खास करके उसकी जांघों के बीच उभरते हुए उस हिस्से पर जिसके लिए वह बरसों से प्यासी थी। शुभम अपनी नजरें झुका कर शरमाते हुए हिचकीचा रहा था,,,, लेकिन अपनी मां को बताना भी तो था आखिर वह भी तो यही चाहता था इसलिए धीरे से बोला।)
मम्मी,,,,,,,, मम्मी अब,,,,,,,, मैं कैसे बताऊं तुम इतना जिद कर रही हो तो। ( ईतना कहते हुए अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिया।) आप दे ही देती तो अच्छा था,,,,,, ( फिर से ऐसा जताते हुए बोला ताकि उसकी मां को लगे कि वह सच में शर्मा रहा है। )
तू बहुत जिद कर रहा है शुभम अगर बताना नहीं था तो मेरे पास आया क्यों ढूंढ लेता कहीं से भी,,,,,,, ( निर्मला की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उस जगह के बारे में जानने के लिए जिसके बारे में बताने से शुभम इतना शर्मा रहा था। और वैसे भी लड़के उस जगह के बारे में बताने से तभी शर्माते हैं जब चोट यां कोई समस्या उनके लंड से संबंधित हो,, और इसीलिए निर्मला की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उस अंग के बारे में जानने के लिए लेकिन शुभम की ना नुकुर की वजह से उसे गुस्सा भी बहुत आ रहा था। अपनी मां को इस तरह से नाराज़ होता देखकर शुभम को अब पर्दा उठाना ही उचित लगा इसलिए वह बोला।)
मम्मी गुस्सा मत करो मैं क्या करुं मैं भी मजबूर हूं मेरी जगह अगर कोई और होता तो वह भी शायद इसी तरह से बर्ताव करता।
मुझे पता है बेटा लेकिन बेटे का भी तो फर्ज़ होता है अपनी मां को अपनी समस्या के बारे में बताने का तू नहीं समझ रहा है अगर छोटी सी समस्या को तू अपने अंदर दबाकर रखेगा तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि वह छोटी सी समस्या बड़ी मुसीबत बन जाए और उसके बाद तो,,, तुझे और हमें ही भोगना पड़ेगा। ( निर्मला अपने बेटे को फुसलाते हुए बोली और वैसे भी अगर निर्मला इतना मस्का नहीं लगाती तो भी शुभम बताने ही वाला था क्योंकि यही तो उसके मकसद में कामयाब होने का पहला चरण था। )
हां मम्मी बताता हूं। वो,,,, वो,,, क्या है कि क्रिकेट खेलते समय मुझे बोल लग गई थी लेकिन उस दिन तो कुछ नहीं हुआ आज सुबह से हल्का हल्का दर्द कर रहा है। इसलिए मैं तुमसे दवा मांग रहा हूं।
बोल लग गई लेकिन कहां लग गई?
मम्मी वही तो मै बता नहीं पा रहा हूं बोल भी एसी जगह लगी है कि बताने में मुझे शर्म आती है।।
( शुभम के मुंह से इतना सुनते ही निर्मला के मन में गुदगुदी सी होने लगी उसका अंदाजा सही लग रहा था चोट उसके लंड पर ही लगी थी जिसे वह बताने में शर्मा रहा था। उसका मन अंदर से अति प्रसन्न होने लगा था। उसे अपना सपना सच होता नजर आ रहा था। उसकी आंखों के सामने एक बार फिर से शुभम का नंगा खड़ा लंड लहराने लगा जिसके बारे में सोचते ही उसकी बुर अंदर ही अंदर पसीजने लगी। अपनी कामोत्तेजना को अपने अंदर ही समेटे हुए वह बोली।)
बेटा मैं तेरे अंग अंग से वाकीफ हुं। शर्मा मत बता दे मुझे वैसे भी मैं गैर थोड़ी हूं जो मुझे बताने में शर्म आ रही है।
( निर्मला चाहती थी कि सुभम जल्दी से जल्दी बता दें क्योंकि उस बारे में जानने की उत्सुकता उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी। )
मम्मी तुम कहती हो तो मैं बता दे रहा हूं लेकिन यह बात पापा से मत बताना मुझे शर्म आएगी।
ठीक है उन को नहीं बताऊंगी तु मुझे तो बता।
ठीक है मम्मी मुझे वह गेंद इस जगह पर लगी थी।( तौलिए के ऊपर से ही अपने लंड की तरफ उंगली से इशारा करते हुए।)
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