Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:22 PM,
#41
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
दोनों एक दूसरे को अपनी बाहों में ऐसे जकड़े हुए थे मानो कि एक दूसरे के अंदर समाने की कोशिश कर रहे हो। कमरे का माहौल पूरी तरह से खराब हो चुका था। बरसों से निर्मला जिस चीज को लेने के लिए तड़प रही थी वह चीज उसकी बुर के अंदर समाया हुआ था। वह जोर-जोर से अपनी मां को चोद रहा था पूरा पलंग उसके हर धक्के के साथ हील रहा था। थोड़ी ही देर में वह दोनो अपनी चरम सुख के करीब पहुंचने लगे थे। शुभम जोर जोर से धक्के लगाने लगा था।
तभी दोनों का बदन अकड़ने लगा और शुभम की एक जबरदस्त प्रहार के साथ ही,,,,, निर्मला की चीख निकल गई और वह भलभलाकर झड़ने लगी,,,,, वह चीख के साथ ही उठ कर बैठ गई,,,,, बैठकर जब गौर की तो वहां शुभम नहीं था,,,, बगल में अशोक बेसुध होकर सोया हुआ था,,,,, ऊसका गाउन कमर तक चढ़ा हुआ था और उसकी उंगलियां बुर के अंदर समाई हुई थी,,,,,, बहुत जोर जोर से सांसे लेते हुए हाथ रही थी दूर से निकल रहा नमकीन पानी उसकी हथेली को पूरी तरह से भीगो चुका था। अपनी हालत को देखकर वह हैरान थी,,,,,, लेकिन फिर अपनी हालत और हकीकत का ख्याल होते ही उसे अपने आप पर ही हंसना आ गया,,,,,
पंखा चालू होने के बावजूद भी उसके बदन से पसीने की बूंदे टपक रही थी उसे इस बात से राहत थे कि इतना कुछ होने के बावजूद भी अशोक की आंख नहीं खुली थी। वरना उसकी तेज चल रही सांसो की आवाज से अभी भी पूरा कमरा गूंज रहा था। अपने बेटे के साथ संभोग सुख लेते हुए इस प्रकार का सपना देख कर निर्मला पूरी तरह से हैरान भी थी और उत्तेजित भी।,,,, उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि इस तरह के भी सपने उसे आ सकते हैं। सपना देखते ही होगा तो यह सोच रही थी कि आज बरसो की तपस्या पूरी होने को आ गई थी। लेकिन आंख खुलते ही उसका सपना टूट गया था। वह मन ही मन सोचने लगी कि,,,, अगर सपना इतना कामोत्तेजना से भरा हो सकता है तो हकीकत कितनी रंगीन होगी,,,,, यह ख्याल मन में आते ही उसकी बुर सुरसुराने लगी,,,, और वह फिर से हथेली को अपनी गर्म बुर पर रख कर सो गई।।

शीतल की शादी की सालगिरह को बस 2 दिन ही बचे थे।
उसे अपने हाथों में मेहंदी लगाना था वैसे भी वह मेहंदी बड़ी अच्छी रचना देती थी इसलिए वह बैठकर अपने हाथ में मेहंदी लगाने लगी,,,, मेहंदी लगाते हुए उसे अपने बेटे से जुड़ी सारी उत्तेजना से भरपूर बातें याद आने लगी,,, बार बार उसकी आंखों के सामने फिर से उसके बेटे का खड़ा लंड तेरने लग जाता था,,,, बार-बार उसे उसके बेटे के लंड से निकलती हुई पिचकारी नजर आने लग रही थी,,,, जिसके कारण वह अपने बदन में कामोत्तेजना का अनुभव कर रही थी। और वहां पकने वाली बात तो उसे काफी परेशान किए हुए थी बार-बार वही सोच रही थी काश वो सपना सच हो जाता,,,,,,


कभी अपने एक हाथ में मेहंदी लगाते लगाते उसके मन में आईडिया सुझा,,, और वह तुरंत अपने बेटे को आवाज लगाने लगी,,,,, वह आवाज लगाती रही थी और दूसरे हाथ से अपने ब्लाउज के दो तीन बटन को खोल भी चुकी थी कंधे पर रखा पल्लू नीचे की तरफ सरका दी थी,,,, जिससे कि उसकी भरपूर जवानी किसी फिल्म. की तरह पर्दे पर नजर आ रही थी। घर पर केवल शुभम और निर्मला ही थे। निर्मला के हाथ में पूरी तरह से मेहंदी लग चुकी थी। तभी शुभम अपने कमरे से निकल कर बाहर आया और बाहर आते ही अपनी मां को बोला।

क्या हुआ मम्मी (इतना कहने के साथ ही उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी तो अपनी मां को देख कर उसकी आंखें चौंधिया गई,,, इसमें शुभम का भी कोई कसूर नहीं था यह तो निर्मला तू इतनी खूबसूरत की सादगी में भी सबकी नजरें उसके ऊपर ही टिकी रहती थी और इस समय तो वह कयामत लग रही थी,,,, रेशमी बाल खुले हुए हवा में लहरा रहे थे,,,, काली कजरारी आंखें बार बार पलक झपकने की वजह से ऐसा लग रहा था कि बादल में तारे टिमटिमा रहे हैं,,, कुदरती लाल लाल होंठ हल्के से खुले हुए जिसके बीच में थोड़ा सा सफेद मोतियों सा चमकता दांत नजर आ रहा था। जो आपको निर्मला की खूबसूरती का वर्णन था बाकि जिस तरह से किसी धातु पर सोने का पानी चढ़ा कर उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार मिलाया जाता है उसी तरह से,,, निर्मला की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले खूबसूरत अंग तो और भी ज्यादा कयामत ढा रहे थे,,,, साड़ी का पल्लू जो कि माथे पर या कंधे पर होने की वजह से औरत की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ जाती है लेकिन जब यह पल्लू कमर से सरक कर नीचे आ जाए तो,,, खूबसूरती के सांचे में ढाला असली कयामत नजर आने लगता है,,,, यही हाल निर्मला का भी था निर्मला का बजन कितना खूबसूरत था उतना ही कयामत ढाने वाला भी था ब्लाउज के ऊपर के तीनों बटन खुले हुए थे। जिसमें से उसकी आधे से भी ज्यादा चूचियां नजर आ रही थी,,,, और चूचियों के बीच की गहरी लकीर तो अलग ही बखेड़ा खड़े किए हुए थी। गोलाईयों के इर्द-गिर्द ऊपसी हुई ऊपरी सतह गजब का स्तन दर्शन करा रही थी,,,,, कुल मिलाकर निर्मला खूबसूरती,,, आकर्षण और कामोत्तेजना की परिभाषा नजर आ रही थी। शुभम तो बस देखता ही रह गया वह भी भूल गया कि उसकी मां ने उसे बुलाई थी,,, और वह यही पूछने के लिए आया था कि वह क्यों बुला रही है लेकिन वह अपनी मां का रूप रंग देखकर एकदम दंग रह गया था और पूछना ही भूल गया,,,, अपने बेटे को इस तरह से ललचाई आंखों से अपने बदन को घूरता हुआ देखकर निर्मला मन ही मन प्रसन्न होने लगी,,, शुभम अपनी मां के बदन के आकर्षण में पूरी तरह से खो चुका था। निर्मला ही अपने बेटे का ध्यान भंग करते हुए मुस्कुरा कर बोली।
बेटा तुझे तो मालूम ही है की पीतल की शादी की सालगिरह कल ही है,,, इसलिए मैं वहां जाने की तैयारी कर रही थी एक हाथ में तो मेहंदी लगा चुकी हूं( मेहंदी वाले हाथ को शुभम की तरफ बढ़ा कर) लेकिन मेरा सर दुखने लगा है।

मुझ से दूसरे हाथ में मेहंदी लगाई नहीं जाएगी इसलिए तू ही लगा दे,,,,,
( निर्मला की बात सुनकर जैसे होश में आया हो इस तरह से बोला।)

मममममम,,,,, पपपपप,,,, पर मम्मी मुझे तो आता ही नहीं,,,,

अरे मुझे पता है तुझे थोड़ा बहुत आता है,,,,, एक दिन तू ने ही तो मेरे हाथों में लगाया था,,,,, चल अब जल्दी लगा मेरा सर भी दर्द कर रहा है।
( थोड़ा-बहुत शुभम को मेहंदी लगाना आता था इसलिए वह
बिना कुछ बोले वहीं बैठ गया और मेहंदी से अपनी मां के हाथों की खूबसूरती को बढ़ाने लगा,,,,, नरम नरम हाथ को अपने हाथ में पकड़कर शुभम की हालत खराब होने लगी बार-बार मेहंदी लगाते हुए उसकी नजर निर्मला की बड़ी बड़ी चूची ऊपर चली जा रही थी जोकि ब्लाउज में तीन बटन खुले होने की वजह से उसमें समा नहीं रहे थे बाकी के बचे ब्लाउज के बटन चूचियों के वजन की वजह से तन चुके थे,,, ब्लाउज की हालत देख कर ऐसा लग रहा था कि कभी भी ब्लाउज के बटन टूट जाएंगे और उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चुचीयां नंगी होकर,,, शुभम की आंखों के सामने तनकर खड़ी हो जाएंगी,,,, शुभम मेहंदी लगाते हुए बराबर अपनी मां की छातियों पर नजर गड़ाए हुए था जोकि निर्मला इस बात से बिल्कुल भी बेखबर नहीं थी वह तो शुभम की इस हरकत से अंदर ही अंदर खुश हो रही थी। कुछ ही देर में उत्तेजना के मारे सुभम का लंड पैंट के अंदर तन कर खड़ा हो गया,,,, चूचियों की गोलाई देखकर ब्लाउज की स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रही थी। शुभम तो मन ही मन यही आस लगाए बैठा था कि काश यह ब्लाउज के बटन टूट जाते तो उसकी आंखों को गरमी मिल जाती,,,, निर्मला को भी अपनी बेटी के सामने अपने बदन की नुमाइश करने में बेहद आनंद मिल रहा था।
धीरे धीरे करके निर्मला की पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और यही हाल शुभम का भी था उसका लंड पेंट में तंबू बनाए हुए था।
दोनों के बदन में उत्तेजना की काम लहर पूरी तरह से छा चुकी थी। अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव करते हुए और अपनी आंखों को अपनी मां की खूबसूरत और कामुक बदन को देख कर सेक रहा था। निर्मला के दोनों हाथों में मेहंदी लग चुकी थी,,,,

बस मम्मी देखो तो अब मैं भी कैसी लगी है। ( शुभम इतना कह कर वहीं बैठा रहा उठा बिल्कुल भी नहीं क्योंकि वह जानता था कि उठने पर उसके पैंट में बना तंबू उसकी मां जरूर देख लेगी,,,, और यही निर्मला भी देखना चाहती थी इसलिए बोली,,,,)

बहुत अच्छा तो लगाया है तूने अच्छा एक काम कर ड्रावर में से बाम लाकर मेरे माथे पर लगा के थोड़ी मालिश कर दे,,,
( दरअसल निर्मला का यह बहाना था वह तो शुभम की पेंट का तंबू देखना चाहती थी अपनी मां की बात सुनकर मैं थोड़ा सा परेशान हो गया था लेकिन क्या करता है बाम कर लगाना भी जरूरी था इसलिए बेमन से वह खड़ा हुआ लेकिन खड़े होकर वह अपने पेंट के तंबू को छिपा ना सका,,,, और जल्दी से ड्रोवर की तरफ बढ़ गया लेकिन निर्मला ने उसके पैंट में बने तंबू को देख ली थी,,, और मन ही मन खुश होने लगी,,,,,
पेंट में बने तंबू को देखकर वह फिर से अपने बेटे के लंड के बारे में कल्पना करने लगी,,,,, कल्पना करते ही उसकी बुर से पानी रिसने लगा,,,, तब तक शुभम ड्रोवर मै से बाम तो नहीं लेकिन विक्स की छोटी डीबिया जरूर ले आया,,,,

मम्मी बाम तो नही मिला लेकीन विक्स ले आया,,


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