RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला बारिश के बंद होते ही तुरंत अपनी गाड़ी हाइवे पर लाकर अपने घर की तरफ बढ़ा दी रास्ते भर दोनों एक दूसरे से नजर नहीं मिला पा रहे थे। निर्मला को इस बात का पछतावा बिल्कुल भी नहीं था कि उसने अपने बेटे के ही साथ संभोग सुख का आनंद ले ली है । बल्कि वह अपने बेटे से शर्म के मारे नजरें नहीं मिला पा रही थी। शुभम मन-ही-मन अति प्रसन्न हो रहा था आज उसके मन की बात सच हो गई थी।
आज जो कुछ भी होगा उसके लिए शायद दोनों ही पूरी तरह से तैयार नहीं थे वह तो पार्टी के लिए निकले थे लेकिन हालात ने उन्हें उस एकांत जगह पर रुकने को मजबूर कर दिया था। तूफानी बारिश एकदम थक चुकी थी मौसम धीरे धीरे साफ होने लगा था दूर सूरज की लालिमा हल्के हल्के धरती से जैसे बाहर आ रही हो,,,, निर्मला आराम से गाड़ी चलाते हुए,,, यह सोच रही थी कि अब शीतल उससे ना आने का कारण पूछेगी तो वह क्या बताएगी तभी वह अपने ही सवाल का जवाब मन में ढूंढते हुए मन में ही बोली थी वह भी तो जान ही रही होगी कि तूफानी बारिश किस तरह से पूरे शहर को अपने कब्जे में ले ली थी हाईवे तक सुनसान सा हो चुका था ऐसे में भला कैसे उसके घर पहुंच पाते,,,,, वह मन ही मन शीतल के सवाल का जवाब ढूंढ ली थी।
थोड़ी ही देर में निर्मला की गाड़ी घर के गैराज में प्रवेश की और उसमें से शुभम उतर कर बिना कुछ बोले अपने कमरे की तरफ चला गया निर्मला भी धीरे धीरे कुछ सोचते हुए अपने घर में प्रवेश की तो सामने से ही अशोक तैयार होकर सीढ़ियों से नीचे उतरता हुआ नजर आया उसे देखते ही निर्मला बोली,,,,,
अरे आप तैयार हो गए रूको भी नाश्ता बना देतीे हुं।
नहीं कोई जरुरत नहीं है मैं ऑफिस में कर लूंगा मुझे देर हो रही है।
लेकिन आप आज बहुत जल्दी जा रहे हैं,,,,
( निर्मला के ईतने कहने के साथ ही अशोक आगे बढ़ गया और जाते-जाते बोला।)
मुझे आज ऑफिस में जरुरी काम है इसलिए जल्दी जाना है। ( और इतना कहने के साथ यह वह घर से बाहर चला गया।,,, निर्मला उसे घर के बाहर जाते हुए देखती रही,,,, निर्मला उसे गुस्से की नज़र से देखने लगी और मन ही मन उसे कोसते हुए बोली,,,,, अगर तू मुझ पर ध्यान दिया होता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता,,,,, इतना कहने के साथ ही वहां पास में पड़ी कुर्सी पर बैठ गई और रात की घटना के बारे में सोचने लगी,,,, उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि उसने कुछ ऐसा कदम उठा ली है जो कि उसकी जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख सकती है। एक मन ऊसका कह रहा था कि निर्मला तूने जो कि वह बिल्कुल गलत है,,, तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था तूने मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते को तार तार कर दी है तूने वह शर्मनाक काम कर दी है जिसके बारे में सोचना भी पाप है। यह ख्याल मन में आते ही निर्मला का मन ग्लानी से भर जा रहा था,,,, उसे सच में लगने लगा कि उसने जो की है वह सच में बेहद गलत है उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था लेकिन तभी उसका दूसरा मन कहता कि तूने जो की है उसमें कोई गलती नहीं है जो कुछ हुआ वह हालात की वजह से हुआ,,,, ईस तरह से एकांत में बरसती बारिश में उन दोनों की जगह कोई भी होता तो उनके साथ भी यही होता आखिरकार निर्मला सबसे पहले एक औरत है जो कि बरसों से अपने पति के प्यार के लिए तरस रही थी जिसने अभी तक अपने पति से संभोग सुख का पूरा आनंद भी नहीं लेता इतने वर्षों से ऊषकी बुर प्यासी थी,,,, जो कि एक मोटा और तगड़ा लंड के लिए तड़प रही थी और ऐसा दमदार लंड उसके बेटे के पास था जिसे वह अपने हाथों में लेकर बारीकी से उस का निरीक्षण कर चुकी थी,,,, शुभम भी जवान हो रहा गठीले बदन का मर्द था। जिसके अंदर जवानी का जोश हिलोरे मार रहा था। जिसकी नजरे मदमस्त बदन वाली औरतों के अंगो ऊपांगो पर घूमने लगी थी ऊन्हें देख कर उसके लंड में भी तनाव आना शुरू हो गया था और तो और वह खुद ही अपनी मां की खूबसूरत बदन से पूरी तरह से आकर्षित हो चुका था। ऐसे में उस की उत्सुकता औरतों को और भी अच्छे से जानने की बढ़ती ही जा रही थी,,, और जिस हालात में वह रात भर तूफानी बारिश में रुका था,,, कार के अंदर अपनी खूबसूरत और सेक्सी बदन वाली निर्मला को वह सिर्फ औरत की ही नजर से देख रहा था। ऐसे में बरसों से प्यासी एक पत्नी अपने पति से जरा भी प्यार ना पाने की वजह से,,,, एक प्यासी औरत बन चुकी थी जो किसी भी तरह से अपनी प्यास बुझाना चाहती थी और दूसरी तरफ जवान हो रहा लड़का,,, जो औरतों के बदन से आ रही मादक खुशबू को अपने सीने में उतारना चाहता था।। ऐसे में दोनों के बीच मां बेटे के रिश्ते की जगह केवल औरत और मर्द का यह रिश्ता रह गया था इसलिए दोनों सब कुछ भूल कर एक दूसरे में समाते हुए सारे रिश्ते नातों को तोड़कर संभोग सुख की असीम आनंद कीें गाथा को लिखने में जुड़ गए । उस पल को याद करके निर्मला कीबुर फिर से पानी पानी हुए जा रही थी,,, सारी रात जागने की वजह से वह थक चुकी थी उसे अपने बदन में थकान सी महसूस हो रही थी,,, और जिस आनंद को पाने के लिए वह बरसों से तरस रही थी उसके लिए तो जगना भी जरूरी था,,, बिना कर्म किए बिना मेहनत किए कभी भी फल नहीं मिलता,,,, और निर्मला तो बरसों से प्यासी थी अपनी प्यास बुझाने के लिए अगर उसने महीनों जागना भी पड़ता तो भी उसके लिए वह तैयार थी।
निर्मला कुर्सी पर बैठकर यही सब याद करते करते कब उसकी आंख लग गई उसे पता नहीं चला।
यही हाल शुभम का भी था उसे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि रात को कार में उसने अपनी मां को चोदा है। और यकीन भी कैसे करता यह तो उसके लिए एक सपना ही था अपनी मां के खूबसूरत बदन को देख देखकर उसके कल्पनाओं का घोड़ा ना जाने कितनी तीव्र गति से कहां-कहां दौड़ आया था। निर्मला की बड़ी बड़ी चूचियां उसके बड़े बड़े नितंब को याद करके ना जाने कितनी बार उसने अपने लंड को अपने ही हाथों से शांत किया था। शुभम को वह पल बराबर उसके जेहन में बस गया था जब उसने अपनी मां की रसीली बुर को पहली बार कार के अंदर देखा,,,, वह अभी तक उस अंग के बारे में केवल कल्पना ही करता आया था।
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