RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
दोनों ने एक बार फिर से संतुष्टि भऱा एहसास अपने बदन में महसूस कर चुके थे। निर्मला अपने बेटे के लंड के ऊपर सवार होकर भल भला कर झड़ने के बाद उसके ऊपर से उतर कर उसे से नजरें मिलाए बिना ही अपने कपड़े समेटे और उसे बिना पहने ही उसके कमरे से बाहर निकल गई लेकिन जिस तरह से निर्मला अपने कपड़ों को समेट कर ले कर जा रही थी बिस्तर पर लेटे लेटे शुभम अपनी मां को जाते हुए देख रहा था,,, उस की प्यासी नजर निर्मला की मटकती हुई गोल गांड पर ही टिकी हुई थी जो कि इस समय बेहद मादकता से भरा हुआ प्याला लग रहीे थी। निर्मला अच्छी तरह से जानती थी कि शुभम और उसके सिवा इस समय घर पर कोई भी नहीं था इसलिए वह बेझिझक अपने कपड़े पहने बिना ही वह कपड़ों को समेट कर कमरे से बाहर निकल गई और बिल्कुल नंगी ही चहल कदमी करते हुए बाथरुम के अंदर घुस गई।
घर का वातावरण पूरी तरह से बदल चुका था मां बेटे का रिश्ता अब वासना के समंदर में गोते लगाता हुआ ना जाने किस साहिल से टकरा रहा था या तो ना निर्मला ही जानती थी और ना ही शुभम,,,,, लेकिन दोनों इस नए रिश्ते से बेहद खुश हैं क्योंकि उनके चेहरे से साफ मालूम पड़ रहा था।
निर्मला की बुर से निकला मदन रस और शुभम के लंड से निकला पानी का फव्वारा दोनों मिलकर शुभम के लंड को पूरी तरह से भी हो चुके थे। शुभम अपने लंड की तरफ देख कर मन ही मन मुस्कुरा रहा था उसे अभी भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि जिस बंदे को अपनी मुट्ठी में भरकर आगे पीछे हिलाते हुए अपनी ही मां को चोदने की कल्पना करते हुए पानी निकालता था आज वही लंड हकीकत में उसकी मां की बुर के अंदर सैर सपाटा कर के बाहर आ चुका था। अपनी मां की मटकती हुई गांड को याद करके शुभम अपने लंड पर लगे मदन रस को चादर से साफ करने लगा।
दोनों के बीच अब कोई भी रिश्ते और मर्यादा की दीवार नहीं बची थी सारे रिश्ते नाते संस्कारों और मर्यादा की दीवार को दोनों एक साथ लांघ चुके थे। निर्मला का बदन संतुष्टि और प्रसन्नता के कारण और भी ज्यादा निखर चुका था। आज दोनों की छुट्टी थी क्योंकि रात भर की थकान के कारण सुबह स्कूल जाना संभव नहीं था इसलिए अपने बेटे का प्यार पाकर निर्मला बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होकर अपने बेटे के लिए खाना बनाई। थोड़ी देर बाद शुभम भी नहा धोकर तैयार होकर नीचे आ गया लेकिन वह अपनी मां से नजर नहीं मिला पा रहा था। और मिलाता भी कैसे क्योंकि कुछ ऐसा दोनों के बीच हो गया था कि दोनों एक दूसरे से नजर मिलाने में कतरा रहे थे लेकिन दोनों बार चुदाई का सुख बराबर हासिल करने के लिए एक दूसरे के बदन में समा जाने तक की ताकत लगा दिए थे। दोनों टेबल पर बैठ कर खाना खा रहे थे और एक दूसरे को कनखियों में देख रहे थे अपनी मां के बदन पर शुभम की नजर रह-रहकर घूम जा रहे थे जिसकी वजह से उसके लंड का तनाव फिर से बढ़ने लगा था। निर्मला की बुर एक बार फिर से फूल पीचक रही थी। इसमें दोनों का कोई दोष नहीं था मौसम का सावन तो था नहीं कि साल में बस एक ही बार आए,,,,,,, यह तो आकर्षण और रिश्तो के बीच बासना का तूफान था जोंकि बार-बार आना था।
दो दो बार अपने बेटे के लंड से चुदने के बाद भी उसकी बुर की खुजली नहीं मिली थी और मेीटती भी कैसे उसकी बुर तो बरसों से प्यासी थी। जिसकी खुजली एक दो बार की चुदाई से नहीं जाने वाली थी। निर्मला खाना खाते हुए अपने बेटे के चेहरे की तरफ देखे जा रही थी जिसे देखकर बिल्कुल भी नहीं लगता था कि उसने ही दो बार में उसकी बुर के आकार को बदल कर रख दिया है। निर्मला से तो रहा नहीं जा रहा था वह तो चाहती थी कि खाना खाते समय भी शुभम उसकी बूर में अपना लंड डालकर उसे चोदे,,,,, लेकिन शुभम तो इतना शर्मा रहा था कि उसे से ठीक से नजरें तक नहीं मिला पा रहा था। निर्मला उससे कुछ कह पाती इससे पहले ही वह जैसे तैसे करके अपना खाना खत्म किया और बिना बोले ही घर से बाहर निकल गया निर्मला प्यासी नजरों से उसे जाता हुआ देखती रह गई लेकिन उसे रोकने के लिए आवाज नहीं दे पाई।
निर्मला ईस बात से बेहद खुश थी की,, अब उसे बिस्तर पर प्यासी रहकर अपनी एड़िया नहीं रगड़नी पड़ेगी,,,,, उसकी प्यास बुझाने वाला उसके घर में ही मौजूद था अब अशोक पर पूरी तरह से उसे आश्रित नहीं रहना पड़ेगा। जो कि खुद उस ने आज तक उस की प्यास पूरी तरह से नहीं बुझा पाया था। वह मन ही मन सोच रही थी कि घर में अशोक शुभम और उसके सिवा कोई भी नहीं था और यही तो उसके लिए पूरी तरह से लाभदायक था क्योंकि अशोक अधिकतर घर से बाहर ही रहता था और ऐसे मैं घर पर सिर्फ शुभम और निर्मला ही रह जाते थे। निर्मला ऐसे में जब चाहे तब अपने बेटे के लंड से अपनी प्यास बुझा सकती थी ना किसी को कभी भी कोई शक होगा और ना ही किसी को पता चलेगा,,,,
और तो और अशोक महीने में एकाद दो बार बिजनेस के सिलसिले में शहर से बाहर ही रहता था और ऐसे मैं रात रंगीन करने का उसके पास पूरा मौका था। यही सब सोचकर निर्मला मन ही मन प्रसन्न हुए जा रहेी थी। वह टेबल पर से झूठे बर्तन को समेटकर किचन में ले गई और वहां पर उसे साफ करने लगी। उसकी बुर की कुलबुलाहट बढ़ती जा रही थे वह फिर से अपने बेटे से चुद़ना चाहतीे थी। उसे ऐसा लग रहा था कि अभी थोड़ी देर बाद उसका बेटा घर पर आएगा तब वह एक बार फिर से अपने बेटे से चुदवाएगी,,,, इसलिए वो जल्दी जल्दी घर का सारा काम करके अपने कमरे में बैठकर अपने बेटे का इंतजार करने लगी। घड़ी की सूई अपनी धुरी पर घूमती रही समय रेत की तरह निर्मला के हाथ से फिसलता रहा,, इंतजार कर कर के निर्मला की तड़प बढ़ती जा रही थी। वह पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी,,,, लेकिन शुभम घर पर वापस नहीं आया वह बाहर ही अपने दोस्तों के साथ खेलता रहा क्योंकि घर आने में उसे शर्म महसूस हो रहे थे भले ही वह ताबड़तोड़ अपने लंड का प्रहार करते हुए अपनी मां की जबरदस्त चुदाई कर चुका था । लेकिन वहां उस समय का बासना का तूफान था जो कि रोकने से भी रुक नहीं पाता,,,,, लेकिन इस समय खेल के मैदान में उसका दिमाग शांत हो चुका था इसलिए बीती बातों को याद करके वह मन ही मन शर्म सा महसूस कर रहा था कि कैसे वह अपनी मां से आंख मिलाएगा केसेे वह उससे बातें करेगा,, उसकी मां उसके बारे में क्या सोचेगी कि कैसे वह बिना शर्म कि उसकी बुर में अपना लंड पेल कर बिना रुके धड़ाधड़ उसकी चुदाई किए जा रहा था। वह सोचेगी की एक बार भी उसने उसे रोकने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं किया। लेकिन यदि उसके दिमाग में ख्याल आ रहा था कि जब उसकी मां ने ही खुद को नहीं रोक पाए तो वह क्यों उसे रोके,,, उसकी मां भी यही चाहती हो तो वह क्या कर सकता है। अगर इसमें कुछ गलत होता तो उसकी मा ही उसे खुद रोक दी होती। उसकी मां भी यही चाहती थी कि वहं उसे जमकर चोदे,,,,, तभी तो एक बार शायद गलती हो सकती है क्योंकि कार में एकांत का वातावरण भी कुछ हद तक खुद के पक्ष में ही था इसलिए कार के अंदर जो उसकी मां ने उसके साथ चुदवा कर सारी मान मर्यादा भूल गई यह हो सकता है कि माहौल के हिसाब से ना चाहते हुए भी गलत हो गया हो,,, लेकिन जो कमरे में हुआ,,,, वह गलती से नहीं हो सकता क्योंकि वह अपने कमरे में सो रहा था उसकी मां भी पूरे कपड़े पहनी हुई थी लेकिन जब बिस्तर पर उसके ऊपर चढ़ी थी तो उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। वह पूरी तरह से नंगी थी और खुद ही उसके लंड पर बैठ कर,,, पूरे लंड को अपनी बुर में ले कर उठ बैठकर लंड को अंदर बाहर कर रही थी यह गलती से नहीं बल्कि जानबूझ कर कर रही थी इसका मतलब यही है कि वह उससे चुदना ही चाहती थी। पूरी तरह से जांच परख लेने के बाद शुभम इसी निष्कर्ष पर आया कि जो भी हो रहा है वह एक तरह से ठीक ही हो रहा है। यह सब सोचकर वह देर से घर पर लौटा शाम ढल चुकी थी। निर्मला रसोई घर में रसोई तैयार कर रही थी तभी दरवाजे पर बेल बजी,,,, घंटी की आवाज सुनते ही वह समझ गई कि शुभम खेल कर आ चुका है क्योंकि अशोक ईस समय आता नहीं था वह देर रात को ही आता था। निर्मला जल्दी से जानबूझकर अपने ब्लाउज की दो बटन को खोल दी और साड़ी को पूरी तरह से अस्तव्यस्त कर दी ताकि उसके बदन का ज्यादातर भाग शुभम को दिखाई दे। साड़ी को थोड़ा सा ऊपर करके कमर में खोज दी जिसकी वजह से उसकी गोरी चिकनी टांग नजर आने लगी। सुबह जल्दी से दरवाजे पर गई तब तक शुभम तीन चार बार बटन दबा चुका था। दरवाजा खोलते ही वह बोली।
क्या बेटा मैं खोल तो रही थी तुझे बहुत जल्दी पड़ी है। ठीक से खोल तो लेनें दिया कर,,,,,, ( निर्मला दो अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग कर रहे थे लेकिन शुभम समझ नहीं पा रहा था पर दरवाजा खुलते ही जो नजारा उसकी आंखों के सामने नजर आया उस नजारे को देखकर उसके लंड में हरकत होने लगी। वह सूख को निकलता हुआ अपनी आंखों को निर्मला की चूचियों पर गड़ाए हुए बोला।
सॉरी मम्मी मुझे लगा कि आप बिजी होंगी तो ध्यान नहीं देंगेी इसलिए मैं दो चार बार बटन दबा दिया,,,,,
आजकल तुझे दबाने में कुछ ज्यादा ही मजा मिल रहा है। ( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली लेकिन अपनी मां की यह बात सुनकर शुभम झेंप सा गया,,,,, और झेंपते हुए बोला,,,,)
क्या मम्मी,,,,,,
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