Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:40 PM,
#75
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला की बुर में गुदगुदी हो रही थी। उसके मन में गुब्बारे फूट रहे थे क्योंकि शुभम का कमरा कुछ ही दूरी पर था और वहां पहुंचते ही वह उसकी बाहों में सिमट जाना चाहती थी उसकी लंबी चौड़ी छातीयों में सो जाना चाहती थी उसके मर्दाना हथियार से अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों को पसीज देना चाहती थी। वह बड़े ही उत्सुकता से अपने बेटे की कमरे की तरफ चले जा रही थी। वह चलते हुए अपने बेटे से चुदने के ख्याल से ही मस्त हुए जा रही थी। उसकी बुर की गुलाबी फांके उत्तेजना के मारे कंपकपा रही थी। तकरीबन 11:30 का समय हो रहा था वह पूरी तरह से निश्चिंत हो गई थी कि अब शायद अशोक नहीं आएगा इसलिए वह चुदवासी होकर अपने बेटे के कमरे की तरफ आगे बढ़ रही थी। जब एक औरत काम वीह्लल हो जाती है तो वह कुछ भी करने पर उतारू हो जाती है । वासना की चिंगारी सोला का रूप धारण कर चुकी थी। जिसके तपन में निर्मला और शुभम दोनों ही तप रहे थे। जो हाल निर्मला का था वही हाल शुभम का भी था वह भी अपने कमरे में करवटें बदल रहा था उसके जेहन में बस उसकी मा ही बसी हुई थी जिसके खूबसूरत बदन की कल्पना करके पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और अपने हाथ से ही अपने लंड को हिला रहा था उसके मन में भी ढेर सारे सवाल और जवाब खुद-ब-खुद उमड़ रहे थे। वह इतना तो समझ गया था कि उसकी मां पूरी तरह से चुदवाती हो चुकी हे तभी तो एक ही दिन में तीन तीन बार अपने ही बेटे के लंड से चुद चुकी थी। वह यह भी जान चुका था कि उसकी मां बेहद प्यासी औरत है,,, लेकिन यह उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पहले वह इस तरह की नहीं थी कुछ दिन में ऐसा क्या हुआ कि वह बदल गई,,,, पहले वह अपने बदन का एक भी अंग खुला नहीं रखती थी बड़े सलीके से कपड़े पहना करती थी लेकिन कुछ दिनों से उसके पहरावे और रहन सहन में भी बदलाव आ चुका था। और यह बदलाव कुछ हद तक सीमित ना रहकर अपना विस्तार फैला चुका था। और यही मर्यादा भंग करने में कारण रूप भी था।
यह सब सोचते हुए शुभम हैरान भी बहुत था और जो उन दोनों के बीच तीन तीन बार घटित चुका था उस बात को लेकर जब उसके सिर से वासना का भुत ऊतरता तो बहुत पछतावा महसूस करता था। उस बात को लेकर उसके अंदर का मर्द दूर-दूर तक नजर नहीं आता था और एक उसके अंदर का बेटा जाग जाता था। यह ख्याल उसके मन में कई बार आया कि वह अपनी मां को इस बात को लेकर जरुर समझाएगा,,,, क्योंकि जिसके साथ वह इस तरह के शारीरिक संबंध बना चुका था वह उसकी खुद की मां थी और अपनी मां के साथ इस तरह के संबंध बनाना पाप की श्रेणी में आता है इस बात का ज्ञात होते ही वह बहुत परेशान हो जाता था और उसके मन में ढेर सारे सवाल पैदा होने लगते थे कि आखिरकार वह उसका बेटा होने के बावजूद भी क्यों अपनी ही मां के साथ संबंध बनाया यह ख्याल मन में आते ही वह बेहद परेशान और अंदर से टूटने लगता था लेकिन जब उसके जेहन में उसकी मां की खूबसूरत बदन उसकी मखमली काया का एहसास होता,,,, उसके खूबसूरत बदन के उभार और कटाव की रेखा कृति उसकी आंखों के सामने आती और वह मखमली एहसास जब उसका हथियार उसकी मां की खूबसूरत और बेहद नरम अंग के अंदर प्रवेश करता और उसके खूबसूरत गोल गोल बड़ी-बड़ी मखमली गद्देदार नितंब जब ऊसकी जांघों से रगड़ खाती तो उसके अंदर का बेटा मरकर एक मर्द जाग जाता था जो कि अपनी मां को बेटे की नजर से नहीं बल्कि एक मर्द की नजर से उसके अंदर एक औरत को ही ढूंढता रहता था। यह सब ख्याल उसके अंदर से सारे वाद-विवादों को एक तरफ करके जो एक मर्द और औरत के ही रिश्ते को कायम करने की सोचने लगता और यही सब सोचते हुए अपने कमरे में वह अपने लंड को हिला रहा था।
दूसरी तरफ निर्मला पूरी तरह से कामातुर होकर अपने पति की गैरहाजिरी में अपने बेटे से चुदने की आतुरता लिए उसके कमरे की तरफ बढ़ रही थी और अगले ही पल वह शुभम के कमरे के बाहर खड़ी थी। उसका दिल जोरो से धड़क रहा था वह अपने बेटे के साथ पूरी तरह से निश्चिंत होकर के अपनी रात रंगीन करना चाहती थी। बुर का इस तरह से कामोत्तेजित हो कर फुदकना उसे अच्छे संकेत लग रहे थे वह पूरी तरह से आश्वस्त थी कि कमरे के अंदर उसका बेटा आज उसको जी भर के रगड़ेगा। जैसा वह चाहती है उसका बेटा वैसा ही उसके साथ करेगा। यही सोचकर धड़कते दिल के साथ वह अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए हाथ उठा रही थी कि तभी दरवाजे की बेल बज गई। दरवाजे पर बेल बजते ही वह पूरी तरह से चौंक गई,,,,,,, उसका हाथ जोकि अपने बेटे के दरवाजे पर दस्तक देने के लिए उठा था वह उठा का उठा ही रह गया,,,,, उसके सारे अरमान बूर के नमकीन पानी में बह गए,,,,,, उसके अंदर ही अंदर बेहद क्रोध की प्रतीति होने लगी। वह समझ गई कि उसका नाश पीटा पति अशोक वापस आ गया है। आज निर्मला के मन में ऐसी इच्छा हो रही थी कि वह अपने पति को आज जी भर के गालियां दे लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकती थी बस मन में ही दो चार गाली देकर अपना मन मार कर अपने बेटे के कमरे के बाहर से दरवाजे की तरफ दरवाजा खोलने के लिए जाने लगी जब तक वह दरवाजे पर पहुंचती अशोक बार-बार बेल बजाए जा रहा था।

हां हां दरवाजा खोल रहीे हुं इतना बजाने की जरूरत नहीं है। ( वह मन ही मन में बड़बड़ाते हुए दरवाजा खोली,,,, और दरवाजा के खुलते ही अशोक घर में प्रवेश करते हुए बोला।)

इतनी देर लगती है दरवाजा खोलते हुए,,,, कब से मैं घंटी बजा रहा हूं।

मुझे क्या पता था बस जरा सी आंख लग गई थी। ( निर्मला अपने व्यवहार में नरमी लाते हुए बोली।)
आप हाथ मुंह धो कर फ्रेश हो जाइए मैं आपके लिए खाना लगा देती हुं।

कोई जरूरत नहीं है मैं खाना खा चुका हूं और वैसे भी मैं थका हुआ हूं मुझे सोना है। ( इतना कहते हुए वह सीढ़ियां चढ़ने लगा और निर्मला वहीं खड़ी होकर अपने पति को जाते हुए देखती रही हो मन ही मन में सोचने लगी कि जो इंसान उसके साथ ठीक से बात भी नहीं कर रहा है वह उसे प्यार क्या खाक करेगा। लेकिन अब उसके लिए अशोक का प्यार कुछ मायने नहीं रखता था एक ही दिन में वह अपने बेटे की दीवानी हो गई थी। क्योंकि आज भले ही यह मौका उसके हाथ से ज्यादा रहा लेकिन अब तो ईस तरह के मौके उसे बार-बार मिलने वाले थे। और उन मौकों का बड़े ही गरम जोशी के साथ स्वागत करने के लिए वह पूरी तरह से तैयार थी।
लेकिन इस समय उसके बदन की गर्मी पूरी तरह से ठंडी हो चुकी थी उसके चुदास पन में तप रहा ऊसका बदन अब उसके पति के ठंडे प्रतिभावं के कारण और इस तरह से आ जाने के कारण,,, ठंडा हो गया था उसका मूड पूरी तरह से ऑफ हो गया था। वह गर्म आहें भरते हुए एक नजर अपने बेटे के कमरे की तरफ घूम आई और सीढ़ियां चढ़ने लगी।
बिस्तर पर पहुंचते ही वह करवट लेकर एक हाथ गाउन के ऊपर से ही अपने बुर पर रखकर उसे रगड़ते हुए सो गई।

दूसरे दिन स्कूल में शीतल से मुलाकात होते ही शीतल इस तरह से उससे लिपट गई जैसे कि बहुत दिन बाद मिली हो,,,
अपने शादी की सालगिरह पर ना आने की वजह से वह निर्मला से नाराज थी जबकि निर्मला ने उसे पूरी बात बता भी दी थी।

निर्मला तू मेरी शादी की सालगिरह पर मैं यही मुझे बहुत बुरा लगा।

क्या शीतल तुझे मैं फोन पर बाताई तो थी कि किस तरह से हम लोग बारिश में फंस गए थे।

हां मैं जानती हूं तभी तो मैं बस नाराजगी जाहिर कर रही हूं। वरना मैं तुझ से बात ही नहीं करती।

यार क्या करुं शीतल बरसात ही इतनी तूफानी थी कि मैं ना तो घर वापस लौट सकी और ना ही तेरे घर आ सकी,,,

चल कोई बात नहीं निर्मला लेकिन जिस तरह से क्यों तूफानी बारिश में कार के अंदर फसी हुई थी मुझे तो बड़ा रोमांटिक लग रहा था। सोच एक औरत के लिए कितना मदहोश कर देने वाला मौका होता है जब इस तरह की बारिश हो और वह भी सुनसान जगह पर और कार में केवल एक खूबसूरत औरत (निर्मला की तरफ इशारा करते हुए) और एक जवान हो रहा लड़का जिसका हथियार न जाने कितना तगड़ा होगा (हथियार का जिक्र आते ही निर्मला की आंखों के आगे शुभम का लंबा लंड झुलतें हुए नजर आने लगा।) यार निर्मला तू पूरा का पूरा फायदा उठा सकती थी तु जरा सोच अगर ऐसे हालात में तेरे और तेरे बेटे के बीच में शारीरिक संबंध बन जाता तोभी दुनिया को कहां पता चलने वाला था कि तुम दोनों के बीच क्या है।
( शीतल की ईस तरह की बाते सुनकर निर्मला बड़े असमंजस मे थी। वह समझ में नहीं पा रही थी कि शीतल को क्या जवाब दें क्योंकि जिस तरह की शीतल आशंका जताते हुए उस मौके का फायदा उठाने के लिए उसे बोल रही थी ठीक उसी तरह का भरपूर फायदा उसने उठा चुकी थी और तूफानी बारिश में ही नहीं बल्कि घर पर भी दो बार अपने बेटे से शारीरिक संबंध बना चुकी थी। शर्म के मारे निर्मला शीतल से ठीक से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी। वह अपनी आंख चुराते हुए अपनी क्लाश की तरफ बढ़ने लगी,, और आगे बढ़ते हुए बोली।)


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