RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
कुछ दिन तक यूं ही चलता रहा मां बेटे दोनों को किसी और की घर में युं दखलगिरि रास नहीं आ रही थी,,,, उत्तेजना और उन्माद की पराकाष्ठा दोनों को वासना की आग में झुलसा रही थी। दोनों के तन बदन मिलन को तरस रहे थे। अशोक भी घर में सास के होने की वजह से ज्यादातर समय बाहर ही रहता था अब तो वह रात को भी अपनी असिस्टेंट के साथ ही गुजारता था। निर्मला की मां को मोतियाबिंद का जिसका ऑपरेशन कराना था और वह डॉक्टर के वहां अपनी मां को ले कर दी गई लेकिन अभी भी डॉक्टर ने उसे दो दिन बाद ही ऑपरेशन करने को कहा,,, यहां तो एक-एक पल दोनों के लिए महीनों की तरह गुजर रहे थे ऊपर से यह 2 दिन,,, सोच कर ही इन दोनों के सब्र का बांध जवाब देने लगता।,,,
आखिर ऐसा क्यों ना हो,, ऐसा होना भी लाजमी था,,,, आखिरकार बरसों के बाद उसकी जिंदगी में पहली बार किसी जवान लड़के का और वह भी खुद के ही लड़के का,,
जबरदस्त तगड़ा मुसल जैसे लंड से चुदने को जो मिल रहा था। और शुभम जो जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही पहली बार जवानी का रस चख रहा था। और वह भी एक ऐसी मदमस्त कर देने वाली गुदाज बदन की महारानी निर्मला जोकी उसकी खुद की ही सगी मां थी,,,, जिसकी बदन से फूलों से चुराया हुआ मदन रस टपकता था। जिसके मदन रस में डुब के शुभम सारी दुनिया को भूल चुका था,,,, भला ऐसी औरत की जवानी का रस चखने के बाद शुभम अपने ऊपर तब तक सब्र रख पाता,,,,,, इसलिए तो वह व्याकुल था अपनी मां के खूबसूरत बदन के साथ मस्ती करने के लिए। लेकिन मस्ती करने के लिए उन दोनों को भी किसी प्रकार का मौका नहीं मिल पा रहा था इसलिए दोनों व्यथीत हो चुके थे। ऐसे ही एक दिन शुभम निर्मला और उसकी मां तीनों कमरे में बैठ कर बातें कर रहे थे,,,, लेकिन निर्मला और शुभम बातें तो जरूर कर रहे थे लेकिन दोनों का ध्यान बातो पर ना हो करके एक दूसरे को आंखों से इशारा करने में लगा हुआ था। निर्मला की मम्मी बिस्तर पर बैठी हुई थी और वह खुद कुर्सी पर बैठ कर बातें कर रही थी और शुभम अपनी मां के सामने वाली कुर्सी पर बैठ कर अपनी आंखों से अपनी मां के खूबसूरत बदन का रसपान कर रहा था। शुभम से बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था बार-बार वह नजर बचाकर अपने पैंट में बने तंबू को हाथों से मसल दे रहा था और मसलने के साथ ही,,, अपनी मां को आंखों से इशारा करके दूसरे कमरे में चलने के लिए कह रहा था। और निर्मला थी कि अपनी मां के पैर दबाती हुई उसे सिर हिलाकर ना में जवाब दे रही थी। यह नजारा देखने में भले ही सामान्य था लेकिन इस नजारे में कामोत्तेजना पूरी तरह से भरी हुई थी। छेड़छाड़ और वह भी आंखों से,,,, एक दूसरे के बदन में उतर जाने वाले बदन भेद ईसारे,,,ऊफ्फ्फ्फ,,,, ऐसा लग रहा था मानो दोनों एक दूसरे को अपनी आंखों से ही चुदाई का पूरा सुख देना चाहते हो,,,,, निर्मला में भी कामोत्तेजना पूरी तरह से भर चुकी थी,,,,, वह बार-बार अपनी बेटी की नजरों से हो रहे उन्मादक इशारों का मतलब मन में ही भांपकर,,, पूरी तरह से चुदवासी होने लगी थी उसकी पैंटी अपनी रंगत मदन रस के रीसने की वजह से खो रही थी। निर्मला की मां थी कि उसे गांव का हाल समाचार बता रही थी जिस पर ना तो निर्मला का ही ध्यान था और ना ही शुभम का बस दोनों एक दूसरे को नज़रों ही नज़रों में खा जाने वाले इशारे कर रहे थे। शुभम के इशारे और निर्मला की ना नुकुर को देखते हुए ऐसा लग रहा था कि मानो,,, एक बहू अपनी सास का पैर दबा रही हो और,,, और उसी कमरे में बैठा उसका पति एकदम से कामाग्नि में जलकर अपनी पत्नी को दूसरे कमरे में चलने के लिए आंखों से इशारा कर रहा है और उसकी पत्नी शर्मो हया का गहना पहने अपनी सास की हाजिरी में दूसरे कमरे में जाने से इंकार कर रही हो,,,,, जबकि निर्मला का भी मन पूरी तरह से अपने बेटे से चुदवाने का हो चुका था लेकिन अपनी मां की हाजिरी में वह दूसरे कमरे में जाकर चुदवाना उचित नहीं समझ रही थी क्योंकि ऐसे में उसकी मां को शंका भी हो सकती थी और. वह उन लोगों को उस संभोग की स्थिति में देख भी सकती थी।,,, दोनों को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें कैसे अपने तन बदन की प्यास बुझाए,,, शुभम का लंड. ऊसके पजामे में पूरी तरह से लोहे का रॉड बन चुका था। जिसे बार-बार वापस जाने के ऊपर से निकल दे रहा था और निर्मला की नजर उस पर चली जा रही थी जिसकी वजह से उसके बदन की भी कामाग्नि पूरी तरह से भड़क चुकी थी। शुभम के इशारे अभी भी लगातार जारी थे वह अपनी मां को किसी भी तरह से मनाना चाहता था ताकि वह बगल वाले कमरे में जाकर के चुदवा सके,,, लेकिन यह निर्मला के लिए शायद संभव नहीं था,,, शुभम अभी अपनी मां को मनाने में लगा हुआ ही था कि तभी उसकी नानी बोली,,,
शुभम बेटा
जी नानी,,,
बेटा जरा मेरी आंखों में दवा तो डाल दे काफी जलन महसूस हो रही है,,,,
जी नानी अभी डाल देता हूं,,,,,( इतना कहकर वह बेमन से टेबल पे रखी हुई आंखकी दवा को लेकर अपनी नानी के पास पहुंच गया और उसकी नानी ने तुरंत अपनी आंखों पर लगा चश्मा उतारकर पास में ही बिस्तर पर रख दी,,,,,, शुभम ने उसे आंख की दवा को लेकर उसमें से दो दो बूंद दोनों आंखों में डाल दिया,,,,, और वहीं अपनी नानी के पास ही बैठ गया,,,, निर्मला उठ कर पास में ही लगे आदमकद शीशे के सामने खड़ी होकर के अपने आप को संवारने में लग गई,,,,,
जैसे ही वह अपने बालों में लगी क्लिप को खोलें उसके रेशमी घने काले मुलायम बाल खुलकर हवा में बिखरने लगे,,,,, ऐसा लगने लगा मानो की,,, खुले आसमान में एकाएक काले घने बादल छा गए हो,,,,, खुले बालों में निर्मला का खूबसूरत चेहरा और भी ज्यादा खूबसूरत लगने लगा,,, उसको पहले से ही शुभम का बाघ ने की ज्वाला में झुलस रहा था और उस पर अपनी मां की खूबसूरती को देख कर एक बार फिर से अपने आप को संभालना उसके लिए मुश्किल होने लगा,,,,, बाल को संभालते हुए अनजाने में ही उसके कंधे पर से साड़ी का पल्लू नीचे गिर गया,,,,, और शुभम को उसकी मां की बड़ी बड़ी चूचियां एकदम खुली भले ही ब्लाउज में कैद थी,,,, लेकिन निर्मला ने अंदर ब्रा नहीं पहनी थी जिसकी वजह से उसकी चूचियों ब्लाउज के अंदर होने के बावजूद भी साफ साफ नजर आ रही थी। शुभम तो उन्हें देखते ही एकदम अपने आपें से बाहर हो गया,,,, और एक नजर अपनी नानी पर डाला जो कि अभी आंख बंद किए हुए थी,,,, अपनी नानी को इस तरह से आंख बंद किए हुएे देखकर उसके में थोड़ी सी हिम्मत हुई और वह,,, बिस्तर पर से उठ कर सीधे अपनी मां के पीछे जाकर खड़ा हो गया और उसे बिना सोचे समझे ही अपनी बाहों में भर लिया,,,,, आईने मे शुभम को और खुद को उसकी बांहों में पाकर वह अपनी मां की मौजूदगी में एकदम से हड़बड़ा गई,,,, और अपने आप को छुड़ाते हुए दबी आवाज में बोली,,,,
शुभम तू पागल तो नहीं हो गया है क्या कर रहा है देख रहा है कमरे में मम्मी है तो भी तू,,,,
मम्मी तुम्हारा यह खूबसूरत बदन अरे तुम्हारी जवानी देख कर मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा है,,,,
अरे मैं भागी नही जा रही हूं आज नहीं तो कल हम दोनों को मौका मिलेगा तो कर लेना लेकिन शर्म कर तेरी नानी कमरे में है अगर उन्होंने हम दोनों को देख लिया तो,,,,,( शुभम के दोनों हाथ पकड़ कर अपने आप को छुड़ाते हुए बोली,,,)
नहीं देख पाएंगी मम्मी अभी देखो ना नानीं आंखें बंद की हुई है। ( इतना कहते हो गए शुभम जबरदस्ती अपनी मां के ब्लाउज में हाथ डालकर चूची को दबाने लगा,,,,,) मम्मी बस आाज कर लेने दो जब तक वह ठीक हो जाएगी तब तक अपना काम हो चुका होगा,,,,
सससससहहहहहह,,,,, ऐसे मत दबा दर्द कर रहा है,,,,, एकदम पागल हो गया है छोड़ मुझे,,,,,( निर्मला अपने आप को छुड़ाने की कोशिश लगातार कर रही थी और शुभम था कि अपने हाथ से अपनी मां के ब्लाउज के बटन को खोल चुका था और दूसरे को खोलने की तैयारी कर रहा था कि तभी उसकी मां उस पर अपना हाथ रखकर उसे रोकते हुए बोली,,।)
शुभम प्लीज अभी रहने दे मेरा भी बहुत मन कर रहा है लेकिन क्या करूं मेरे मजबूर हूं तू इस तरह से करके हम दोनों को बदनाम करवा देगा और एक बार हम दोनों बदनाम हो गए तो कभी भी किसी के सामने नजरें तक नही ं मिला पाएंगे,,,,,। ( वह शुभम को लोक लाज क्या डर दिखाते हुए अपने आप को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन शुभम पूरी तरह से कामांध हो चुका था अपनी मां की खूबसूरती देखकर वह एक दम से तड़प चुका था,,, इसी दौरान वह अपने पैंट में बने तंबू को अपनी मां के नितंबों के बीच की दरार में साड़ी के ऊपर से ही उसका दबाव बढ़ाने लगा,,, निर्मला भी अपने बेटे के मुसल जेसे लंड के कड़क पन को अपने नितंबों के बीच महसूस करके एकदम से चुदवासी हो गई,,,, वह बार बार अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए अपनी मां की तरफ देख ले रही थी जो कि अभी भी आंखें बंद करके बैठी हुई थी। थोड़ी ही देर में शुभम की हरकतों ने निर्मला को भी पूरी तरह से चुदवासी बना दिया,,,, उसके ऊपर का भी कंट्रोल वह खोने लगी,,,,, विरोध कर रहे उसके बदन के साथ-साथ उसका मन भी कमजोर पड़ने लगा। शुभम की कामोत्तेजना और उसकी उन्मादक हरकतों ने निर्मला के भी सब्र के बांध के साथ-साथ शर्मो-हया की दीवार को भी तोड़ने लगी,,,, बातों ही बातों में शुभम ने अपनी मां के ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए और ब्लाउज के अंदर फड़फड़ा रहे दोनों कबूतर पंख फैलाकर हवा में उड़ने को पूरी तरह से तैयार हो गए वह हवा में उड़ते इससे पहले ही शुभम ने उन्हें अपनी हथेली में दबोच लिया,,,, और उन्हें मसलना शुरु कर दिया,,,, इस तरह से मसल ने से अगर पंख वाले कबूतर होते तो सच में उनकी प्राण पखेरु उड़ जाते लेकिन यह तो ब्लाउज के अंदर के रहने वाले कबूतर थे जो कि इस तरह से मसले जाने पर उनमें जान आ जाती है,,,, तभी तो इन कबूतरों का रंग सुर्ख लाल होने लगा और इनके आकार में भी वृद्धि होने लगी,,,, चॉकलेटी रंग की निप्पलनुमा
चोंच और भी ज्यादा नुकीली हो कर के,, ऐसा लग रहा था मानो कमान के ऊपर आक्रमण के लिए पूरी तरह. से तैयार है ।
उस तीर से घायल होने के बाद शायद प्राण बच भी जाएं,,, लेकिन बदन रोटी कमान से निकला यह बाण जिसको लग जाए तो उसका बचना असंभव ही है। यह बदन में इस तरह से प्रवेश करता है कि मन के ऊपर लिपटी हुई संस्कार और शर्म मर्यादा की चादर सब कुछ भेदकर इस पार से उस पार निकल जाता है। शायद यही शुभम पर भी हो रहा था तभी तुम शर्म ओ हया को त्याग कर अपनी नानी की कमरे में मौजूदगी को भी नजरअंदाज करते हुए उनकी ही बेटी के साथ संभोग सुख लूटने में लगा हुआ था। आईने में दोनों का प्रतिबिंब नजर आ रहा था निर्मला आईने में अपनी नग्न चूचियों को अपने बेटे की हथेली में देखकर शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी,,,,, निर्मला से अब शुभम को रोक पाना मुश्किल हो जा रहा था वह बार-बार अपनी मां की तरफ नजर उठाकर देख ले रही थी,,, उन दोनों को यह बात अच्छी तरह से मालूम थी कि,,, जैसे ही उनकी आंख खुलेगी उनकी नजर सीधे उन दोनों पर ही पड़ेगी तब उन दोनों का क्या होगा लेकिन इस बात की फिक्र उन दोनों को बिल्कुल भी शायद नहीं थी बस थोड़ा सा डर था और वैसे भी जब वासना सिर ऊतपर सवार हो जाती है तो किसी भी बात का डर और किसी भी बात की फिक्र नहीं रह जाती। यही शुभम और निर्मला के साथ भी हो रहा था शुभम अपनी मां की खूबसूरत बदन को ऊपर से नीचे तक पूरी तरह से टटोलता जा रहा था।ईस टटोलाहत मे निर्मला को भी मजा आ रहा था।,,,, निर्मला भी इस शुभारंभ का अंत नहीं होने देना चाहती थी फिर भी ऊपरी मन से अपने बेटे को रोकने की कोशिश करते हुए बोली,,,,,
बेटा रहने दे मौका मिलते हीै बाद में मैं सब कुछ तुझे दे दूंगी लेकिन अभी रहने दे,,,,,,
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