RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
एक बार फिर से अद्भुत अदम्य,, अविस्मरणीय अथाग आनंद से भरपूर संभोगनीय कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपूर्ण हो चुका था। लेकिन यह कार्यक्रम संपूर्णताह समाप्ति की ओर नहीं बल्कि उद्गमता की तरफ आगे बढ़ रहा था,,,, यह तो एक शुरूआत थी,,, चार पांच बार निर्मला और शुभम संभोग सुख के सागर में डुबकी लगा चुके थे लेकिन अभी भी,,,, शुभम निर्मला के खूबसूरत बदन के मदन रस से भरा हुआ मीठे जल सरोवर का उत्तम तैराकू नहीं बना था,,,, क्योंकि अभी भी इस सरोवर ने शुभम को पूरी तरह से ईतना मौका ही नहीं दिया था कि वह,,, इतनी जल्दी एक कुशल तेराकु बन सके,,, एक अच्छे तेराकु के लिए,,, नदी और सरोवर के पानी की गहराई उसके विस्तार के बारे में अच्छी तरह से पता होना चाहिए,, किसी भी मौसम का उस पर किस तरह का प्रभाव पड़ता है इस बारे में पता होने के बाद ही तेराकु अपनी तैराकी दिखाने के लिए नदी में उतरता है और वही अच्छा और कुशल तेराकु कहलाता है। लेकिन निर्मला तो मदन रस का महासागर थी उसमें अपना कौशल्य दिखाने के लिए शुभम को अभी अपने आप को पूरी तरह से तैयार करना था। निर्मला के संपूर्णतह बदन के विस्तार के बारे में तो 5 बार बार उसे भोग चुका शुभम भी अच्छी तरह से वाकिफ नहीं था। औरत के किस अंग से खेलने मैं उसे बेहद आनंद की अनुभूति होती है इस बात से अभी शुभम पूरी तरह से अनजान था। उसने अब तक अपने औजार को सिर्फ औरत के नाजुक अंग में अंदर बाहर करके चोदना और हम की चूचियों को दबा दबा कर मजे लेना बस इतना भर ही जान पाया था। संभोग की परिभाषा का पूरा अध्याय अभी भी उसके ज्ञान से कोसों दूर था। निर्मला,,, संभोग के अध्याय के सारे पन्नो को पलट कर देख चुकी थी लेकिन उसका अध्ययन अभी भी वहं ठीक तरह से नहीं कर पाई थी। लेकिन वह इतना जरूर जानती थी कि मर्द औरत के साथ उनके अंगो के साथ क्या क्या करता है और औरत को मर्द की कौन सी हरकत से ज्यादा आनंद की अनुभूति होती है। लेकिन समय के अभाव और अपने संस्कार की वजह से वह अभी तक शुभम के साथ सभोग की क्रिया करते समय मुख्य आदेश का निर्देश शुभम को नहीं दे पाई थी।
ईसलिए दोनों अभी भी प्यासे ही थे एक अपने अज्ञान की वजह से और दूसरी अपनी शर्म और संस्कार की वजह से,,,
शुभम को अभी बहुत कुछ सीखना था और निर्मला को ढेर सारा अनुभव के साथ साथ आनंद भी लेना था जोकि वक्त के साथ ही मिल सकता था।
दूसरे दिन शुभम अपनी मां को घर में इधर-उधर ढूंढने लगा लेकिन वह घर में कहीं भी दिखाई नहीं दी,,,, उसकी नानी कुर्सी पर बैठकर शुभम की बेचैनी देख कर उसे बोली,,,
क्या हुआ शुभम तू इधर क्या ढूंढ रहा है,,,,
कुछ नहीं नानी मैं तो मम्मी को ढूंढ रहा हूं,,,,,,,, मम्मी कहां गई है?
तेरी मम्मी छत पर सूखे हुए कपड़े लेने गई है,,,,
ठीक है नानी मैं अभी छत पर जाता हूं,,,
( इतना कहने के साथ ही वह छत पर चला गया जहां पर निर्मला एक एक करके रस्सी पर डाले हुए कपड़े उतार रही थी और उसे बड़े सलीके से रख रही थी,,,,, शुभम जैसे ही छत पर पहुंचा तो उसकी नजर सीधे ही उसकी मां पर गई,,,, जोकि रस्सी पर डाले हुए कपड़े की वजह से उसके बदन का सिर्फ चूचियों के नीचे वाला हिस्सा नजर आ रहा था,,,, बाकी का हिस्सा रस्सि पर कपड़े टंगे होने की वजह से ढका हुआ था। जिसके पीछे खड़ी होकर निर्मला कपड़े उतार रही थी।
छत पर पहुंचते ही शुभम की नजर जैसे ही उसकी मां की खुले चीकने और गोरे गोरे माल पेट पर पड़ी तो ऊसका पूरा बदन उत्तेजना के कारण गनगना गया,,, शुभम अपनी मां की गहरी नाभि को देखा तो देखता ही रह गया गजब की नाभि का आकार था हल्की हल्की गहरी जिसे देखने पर,,, दुनिया का कोई भी मर्द उत्तेजित हो जाए,,,, और उस नाभि की गहराई में अपनी जीभ डाल कर घंटो तक उसे चाटता ही रहे,,,
शुभम तो अपनी मां की नाभि की गहराई की खूबसूरती देखकर एकदम अचंभित हो गया,,,,ऊसका मांसल चिकना पेट उसके हलन चलन की वजह से उसमे हो रही थिरकन की वजह से बड़ा ही काम भूख लग रहा था ऐसा न जा रहा है शायद शुभम ने अपनी जिंदगी में पहली बार देखा था और यह तो पहली बार ही ऐसे नजारे पर उसका ध्यान केंद्रित हुआ था। सुबह अपनी मां को रस्सी पर से कपड़े उतारते हुए देख. रहा था। शुभम से यह नजारा कामोत्तेजना की वजह से ज्यादा देर तक सब्र करने लायक नहीं छोड़ा था इसलिए वह तुरंत आगे बढ़कर के सीधी अपनी हथेली को अपनी मां की नाभि पर रखकर उसे अपनी मुट्ठी में भरते हुए दबोच लिया,,,
एकाएक अपनी नाभि पर इस तरह से हथेली का स्पर्श पाकर निर्मला एकदम से डर गई और जैसे ही डर के मारे पीछे कदम बढ़ाने के लिए वह अपने बदन को हरकत दी कि तभी,, शुभम अपना दूसरा हाथ उसकी चिकनी कमर पर रखकर उसे अपनी तरफ खींच लिया लेकिन उसे नहीं मालूम था कि इस तरह से करने पर उसकी मां उसकी बांहों में आ जाएगी,,,, और निर्मला तुरंत उसकी बाहों में समा गई लेकिन अभी भी उसके चेहरे पर रस्सी पर डाले हुए कपड़े थे,,, जिसकी वजह से वह देख नहीं पा रही थी कि आखिरकार ऐसी हरकत कौन कर रहा है,,,,
आऊच,,,,, छोड़ मुझे,,,,,,,छोड,,,,,, ( लेकिन इस तरह से अपनी बाहों में अपनी मां को आया हुआ देखकर उसकी कामोत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई और वहां एक हाथ जो की उसके कमर पर थी उसे नीचे ले जाकर अपनी हथेली में उसके भरावदार नितंबों का भारी भरकम हिस्सा उसमें दबोच लिया,,,,,,,,
( इस हरकत पर तो निर्मला के भजन में उत्तेजना की चीटियां रेंगने लगी उसे इस बात का एहसास तो हो गया था कि ऐसी हरकत करने वाला उसका बेटा सुभमं ही है,,,, वह कुछ बोल पाती इससे पहले ही शुभम कसकर अपनी मां को अपनी बाहों में भरते हुए बोला,,,,,
ओहहहह,,,, मम्मी तुम बहुत खूबसूरत हो,,,,,
अरे पागल हो गया है क्या छोड़ मुझे,,,,( इतना कहते हुए वह अपने दोनों हाथ में लिए कपड़ों को एक हाथ में लेते हुए दूसरे हाथ से चेहरे पर आए कपड़े को हटाते हुए बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,) तू पागल हो गया है क्या,,, छत पर इस तरह से मुझे पकड़ेगा तो अगर कोई देख लिया,,,ना,,, गजब हो जाएगा,,,,,
कोई नहीं देखेगा मम्मी और वैसे भी अपनी छत पर किसी की नजर पहुंच ही नहीं पाते क्योंकि चारों तरफ ऊंची ऊंची दीवारें हैं,,,,,,
कुछ भी हो लेकिन तुम मुझे इस तरह से मत पकड़ कभी किसी की नजर पड़ गई तो खामखां सब भांडा फूट जाएगा,,,
( अपनी मां की बात सुनकर शुभम जोर से अपनी हथेली में उसके नितंबों का भारी भरकम हिसाब फिर से एक बार अपनी हथेली में दबोचते हुए बोला,,,)
मम्मी मुझे छोड़ने की बिल्कुल भी इच्छा नहीं कर रही है,,,
( अपने बेटे की हरकत और उसकी शरारत की वजह से वह मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)
मुझे मालूम है कि तेरी इच्छा बिल्कुल भी नहीं कर रही है लेकिन तुझे छोड़ना ही पड़ेगा वरना जो कार्य हम दोनों ने शुरू किया है,,, अगर किसी की नजर हम पर पड़ गई तो उसे स्थगित करना पड़ेगा,,,,
( शुभम को लगने लगा कि उसकी मां जो बात कह रही है बिल्कुल सच है और वह अपने इस रिश्ते को यहीं खत्म करना नहीं चाहता था इसलिए वह ना चाहते हुए भी अपनी मां को अपनी बाहों से आजाद करने लगा लेकिन निर्मला की इच्छा शायद उसकी बाहों से दूर होने की नहीं थी,,,, इसलिए वह पीछे हटने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रहीे थी।
छत पर ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। जिसकी वजह से उसके मुलायम बालों की लट इन हवा में लहरा रही थी जिसकी वजह से उसका चेहरा और भी ज्यादा खूबसूरत लग रहा था वह एक टक अपने बेटे में आई इस तरह की हरकत करने की हिम्मत को देख कर उसे देखने लगी,,, तभी उसके चेहरे को एकटक देखते हुए उसे कल कमरे में उसकी मां की उपस्थिति में हुई उसकी जबरदस्त चुदाई याद आ गई,,,, और तुम तो उसके चेहरे पर शर्मो हया की लाली छाने लगी वह शर्मा कर अपना चेहरे को दूसरी तरफ घूम आते हुए फिर से मुस्कुराते हुए रस्सी पर से टंगे हुए कपड़े उतारने लगी,,, अपनी मां को यूं शरमाता हुआ देखकर शुभम बोला,,,)
मम्मी तुम मुझसे युं मुंह क्यों फैर रही हो,,,,
मुझे शर्म आ रही है।
शर्म आ रही है और वह भी मुझसे ऐसा क्यों? ( शुभम आश्चर्य के साथ अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोला,,,, और उसकी मां कपड़ों को रस्सी पर से उतरते हुए मुस्कुरा कर बोली,,,)
क्योंकि आप तो बड़ा हो गया है,,, (वह नीचे नजरें झुका कर बोली,,,)
मम्मी यें कोई बात तो नहीं हुई,,,, बड़ा तो मैं कब से हो गया हूं लेकिन आज मुझसे शर्म कैसी मैं हूं तो तुम्हारा बेटा ही,,,,
हां मुझे मालूम है कि तू बड़ा हो गया है और मेरा ही बेटा है लेकिन तू अब इतना बड़ा हो गया है कि,,,,,,( इतना कहकर वह फिर से शर्मा गई और अपनी बात को अधूरी छोड़कर वापस कपड़े उतारने लगी,,,,,)
मम्मी में कितना बड़ा हो गया हूं कुछ दिन पहले जितना बड़ा था उतना आज भी हूं,, फीर आज यह मुझसे शर्म कैसी,,
( शुभम को उसकी मां की बातों का मतलब समझ में नहीं आ रहा था इसलिए वह आश्चर्य के साथ और उससे उत्सुकता के साथ अपनी मां से पूछा,,, और उसकी मां उसके सवाल का जवाब देते हुए बोली,,,,)
बेटा तू क्यों नहीं समझता मेरे कहने का मतलब यह है कि तू बड़ा तो हो गया है लेकिन अब बिस्तर में भी बिल्कुल बड़ा हो चुका है। ( निर्मला इतना कहकर जैसे ही रस्सी पर टंगी अपनी साड़ी को उतारने लगी कि तभी साड़ियों के नीचे छुपा कर सुखने के लिए रखी हुई उसकी गुलाबी रंग की पैंटी नीचे गिर गई,, शुभम को उसकी मां की कही बात का मतलब समझ में आया कि नहीं आया उसकी नजर सीधे फर्श पर गिरी उसकी मां की गुलाबी रंग की पेंटी पर गई और वह तुरंत नीचे झुक कर उसे उठाने लगा,,, उसकी मां भी हाथ आगे बढ़ा कर अपनी गिरी पैंटी को उठाने ही वाली थी कि उससे पहले वह पेंटी शुभम के हाथों में आ गई,,,, और वह शर्म के मारे जल्दी से उसके हाथों से छीनने चली,,की शुभम अपनी मां की पैंटी को अपने पीछे कर लिया,,,,,
क्या कर रहा है शुभम देना,,,( निर्मला हल्की मुस्कुराहट और शर्म का हावभाव चेहरे पर आया देखकर अपनी नजरों को दूसरी तरफ फेरते हुए बोली,,,)
नहीं यह तो नहीं दूंगा,,,,,( शुभम अपनी मां से चार पांच कदम की दूरी पर खड़े होकर उस मखमली पेंटिंग को अपने दोनों हाथों में लेकर उसे दिखाते हुए बोला,,,, और निर्मला अपने बेटे के हाथों में अपने गुलाबी रंग की पैंटी को देखकर शर्म से पानी-पानी हुई जा रही थी,,,,)
देख सुबह मुझे परेशान मत कर भला ऐसा भी कोई बेटा करता है क्या,,,,( निर्मला शरमाते हुए बोली,,,)
मै भी करना नहीं चाहता था लेकिन मम्मी तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हारी पेंटी भी मुझे बहुत खूबसूरत लगती है देखो तो सही कितनी नरम नरम और मुलायम है,,,,( पैंटी को अपनी नाक से लगाकर खास करके उस जगह को जिस जगह पर बूर होती है,,,)ऊममममम,,,,, कितनी मादक खुशबू आ रही है इसमें से,,,,,( अपने बेटे की इस हरकत पर तो निर्मला शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी और शुभम कि इस तरह की हरकत की वजह से उसके बदन में उत्तेजना की लहर भी दौड़ रही थी जिसकी वजह से उसकी बुर में भी पानी का रिसाव होना शुरू हो गया था।) आहहहहहहह,,,, मम्मी जी कर रहा है कि इसको,,,,( उस जगह पर जीभ लगा कर,,,,) चाट जाऊ,,,,
( शुभम को जीभ लगा कर पैंटी को चाटते हुए देखकर उसका पूरा बदन कामोत्तेजना के असर में पूरी तरह से गनगना गया,,,,,, तभी उसके मन में ख्याल आया कि जहां पर अपनी जीभ लगा कर चाटना चाहिए उधर तो चाटता ही नहीं,,, सिर्फ पेंटी पर प्यार लुटा रहा है,,, यह नजारा देखकर निर्मला की बुर से अमृत की बूंदे टपकने लगी थी। लेकिन भला पूरी तरह से कामोत्तेजित हुए जा रही थी एक बार तो उसका मन कहा कि वह अपने बेटे से साफ साफ शब्दों में कह दे कि पेंटि क्यों चाटता है,चाटना ही है तो मेरी बुर चाट,,,, लेकिन निर्मला अपनी बेटे से यह नहीं कह सकती थी इसलिए वह जानबूझकर ऊपरी मन से उसे रोकते हुए बोली,,,,)
बेटा ऐसा मत कर प्लीज तू जानता है अगर कोई देख लिया तो क्या हो जाएगा,,,( ऐसा कहते हुए वहां से बंद के पीछे अपनी पैंटी लेने के लिए जाने लगी और शुभम उसे एक ही जाने के लिए उसे पेंटी दिखाते हुए दूर दूर जाने लगा,,,, छत पर मां बेटे का इस तरह से पकड़म पकड़ाई वाला खेल चल रहा था। जिसने अंततः दोनों को आनंद की अनुभूति भी हो रही थी और दोनों के बदन में उत्तेजना की लहर भी दौड़ रही थी,, एक का लंड तनाव से परिपूर्ण हो कर पेंट में तंबू बनाए हुए था तो दूसरी की मधुशाला समान रसीली बुर से नशीली शराब के सामान कसैली बूंदे टपक रही थी,,, जिसका स्वाद स्वादिष्ट मध से भी ज्यादा मीठा था। इसी पकड़म पकड़ाई के दौरान निर्मला अपने बेटे की बिल्कुल करीब आ गई और उससे अपनी पैंटी छीनतेे हुए,,,, इतनी करीब आ गई कि एक बार फिर से वह अपने बेटे की बाहों में समा गई,,,,, शुभम इस बार भी मौके का फायदा उठाते हुए एक बार फिर से उसे कसके अपनी बाहों में भर लिया,,,, पेंटि अभी भी सुभम के हाथों में ही थी लेकिन अपने आपको अपने बेटे की बाहों में पाकर एक बार फिर से वह सब कुछ भूल गई और बड़े ही नशीली अंदाज में अपने बेटे की आंखों में देखने लगी,,, शुभम जी बड़े ही उन्मादक ढंग से अपनी मां को देख रहा था पेंट में बना तंबू सीधे जाकर के निर्मला के पेट के नीचे के अंग में ठोकर मार रहा था,,,,, और उस तंबू के ठोकर का गहरा असर निर्मला की बुर की गहराई में हो रहा था जिसकी वजह से उसकी पैंटी पूरी तरह से गिली होने लगी थी,,, कुछ सेकंड के अंतराल में नहीं दोनों एक दूसरे की बाहों में होते हुए एक दूसरे की आंखों में डूबने लगे शुभम धीरे धीरे अपनी हथेलियों को उसके कमर पर से नीचे की उन्नत उभारों पर ले आया और एक बार फिर से भरावदार नितंबों का गुच्छा अपनी हथेलियों में भर लिया जिसकी वजह से निर्मला के मुंह से हल्की सी कराहने की आवाज निकल गई,,,,,, लेकिन उस कराहने में भी आनंद की उपस्थिति का पूरा आभास हो रहा था,,,, शुभम अपनी मां के नितंबों को अपनी दोनों हथेलियों में भरता हुआ बोला,,,,।
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