Sex kahani अधूरी हसरतें
03-31-2020, 03:46 PM,
#95
RE: Sex kahani अधूरी हसरतें
निर्मला और शुभम की नजरों में असंभव सा काम संभव होता जा रहा था। उन दोनों को अपने आप पर इतना विश्वास बिल्कुल भी नहीं था और ना ही इस हद तक वह किसी भी प्रकार का खतरा उठाने के लिए तैयार थे जबकि घर में निर्मला की मां मौजूद थी फिर भी यह सब कैसे हो जा रहा था उन दोनों को भी इस बात का आश्चर्य हो रहा था। निर्मला जो कि एक अच्छे परिवार में पली-बढ़ी थी। संस्कार का सिंचन उसके माता-पिता ने अपनी बेटी निर्मला में बखूबी किया था।

और निर्मला भी अपने मां-बाप के द्वारा दिए गए संस्कार का उपयोग उसका सही इस्तेमाल समाज के रीति रिवाजों के साथ अपने आप को ढालने में करती आ रही थी। मन में ढेर सारे उमंग और भावनाओं के बावजूद भी पति का प्यार ठीक तरह से ना पाते हुए भी वह अपने परिवार के प्रति अपना फर्ज बखूबी निभा रही थी,,,, पति से सुखद शारीरिक सुख की अपेक्षा नहींवत के बराबर हो चुकी थी फिर भी वह अपने पति से इस बारे में किसी भी प्रकार की शिकायत नहीं करती थी,,, यह सब वह अपने दिल से स्वीकार कर चुकी थी उसे यकीन था कि यह सब ऐसे ही चलता ही रहेगा इसलिए तो वह अपने सपनों को अपने फर्ज के तले कुचल कर आगे बढ़ रही थी,,,,। लेकिन वह कभी इस बात को सपने में भी नहीं सोची थी कि उसके बेरंग जिंदगी को फिर से रंगीन करने उसका ही बेटा ऊसकी जिंदगी में आएगा,,,,।,,,, शुभम की वजह से वह फिर से एक बार सपने देखना शुरु कर दी थी।
संभोग की असली परिभाषा क्या होती है यह शुभम से ही पता चला था उसके हर धक्कों के साथ किस तरह से बदन हवा में गोता लगाने लगता है यह एहसास भी शुभम ने हीं कराया था। धीरे-धीरे इस राह पर वहां इतने आगे निकल गए कि उधर से पीछे मुड़कर देखने का भी समय नहीं रह गया था। निर्मला के लिए इस रिश्ते को रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया था इस रिश्ते में वासना पूरी तरह से घूल चुका था। और वासना कोई गेहूं में से कंकड़ बिननें जैसा नहीं था,,, की जब चाहे उसे हाथों से छांटकर बाहर फेंक दिया यह तो एक जहर की तरह होता है जो कि,,,, मनुष्य के शरीर में घुसकर उनकी नसों के साथ साथ उनके मन मस्तिष्क में भी अपना जाला बुन देता है पूरी तरह से पूरे शरीर में उतर जाता है जिसे अपने अंदर से बाहर निकाल पाना नामुमकिन सा हो जाता है। बरसों से देख रही दुखों के बादल को और बरसो की प्यासी अंतरात्मा को मिले इस सावन की बौछार में अपने आप को पूरी तरह से भिगोए बिना वह खुद ही जाने देना नहीं चाहेगी,,,,,, पहली बार तो उसे महसूस हो रहा था कि औरत जब मस्त होने लगती है तो उसकी बुर में मदन रस का छोटा सा तालाब बन जाता है,,,,


उत्तेजना में फूल कर वह कचोरी जेसी हो जाती है। पुरुष के हाथों से हो रही स्तन मर्दन की वजह से बदलने की उत्तेजना से मिल जाती है कि उनकी आकार में निरंतर बढ़ोतरी होती रहती हैं,,,, निर्मला को इस बात की भी जानकारी शुभम के साथ संभोग करने के पश्चात ही हुई की एक संपूर्ण मर्द का लंड काफी लंबा होता है जिसका हर धक्का बच्चेदानी पर चोट करता है।,,, और सही मायने में तभी जाकर के औरत को संपूर्ण सुख की प्राप्ति भी होती है। इसलिए तो निर्मला बिश्नोई रिश्ते से बिल्कुल खुश थी भले ही वह अपने बेटे के साथ ही संबंध क्यों न लगती हो बड़ी मुश्किल से आए इस खुशियों पर वह किसी भी प्रकार का ग्रहण नहीं लगने देना चाहती थी। इसलिए तो वहां इन सब बातों का किसी को पता ना चल जाए इसका ख्याल रखती थी लेकिन उसे इस बात का भी पता चल चुका था कि सर पर अगर वासना पूरी तरह से फरार हो जाती है तो फिर किसी का भी डर नहीं रह जाता तभी तो वह अपनी मां की मौजूदगी में भी उसी कमरे में अपने बेटे के साथ संभोग सुख की असीम प्राप्ति को महसूस की और तो और एक ही बिस्तर पर पास में सो रही अपनी मां की उपस्थिति में भी वह कमरे में अपने बेटे को बुलवाकर मस्ती के साथ चुदाई का संपूर्ण आनंद उठाई,,,। एक बात उसे अभी भी अधूरी लगती थी तो वह यह थी कि उसने अपने बेटे के साथ खुलकर चुदाई का पूरी तरह से आनंद नहीं उठा पाई थी अभी भी उसे बहुत कुछ करना बाकी था लेकिन उसके लिए दोनों को बिना किसी डर के एकांत की जरूरत थी,,, और इसके लिए निर्मला की मां का घर से वापस गांव लौट आना बहुत जरूरी था क्योंकि उनके चलते वह दोनों घर में किसी भी तरह का खुलकर आनंद उठाने में असमर्थ ही साबित हो रहे थे बार बार यह डर लगा रहता था कि कहीं वह देख ना ले,,, इसलिए तो निर्मला जल्द से जल्द अपनी मां की आंखों का इलाज करा कर उसे वापस गांव भेज देना चाहती थी और इसीलिए वह आज अपनी मां को आंखों के ऑपरेशन के लिए डॉक्टर के वहां ले जा रही थी और शुभम को आज भी अकेले स्कूल जाना था।,,


दूसरी तरफ से तरफ भी पूरी तरह से शुभम के प्रति आकर्षित हो चुकी थी बार-बार उसे अपने नितंबों के बीच शुभम के लंड के कड़क पन का एहसास हो जाता था जिसकी वजह से बार-बार उसकी बुर गीली हो जा रही थी,,, शुभम को याद करके उसके तकरीर लंड को याद करके उसने ना जाने कितनी बार अपनी बुर के अंदर बैगन का उपयोग कर चुकी थी,,,, लेकिन देवगन की लंबाई और चौड़ाई उसकी बुर को संपूर्ण रुप से संतुष्ट करने में असमर्थ साबित हो रही थी क्योंकि उसे भी अब जीते-जागते मोटे तगड़े लंड की जरूरत थी जो कि उसे शुभम की जांघों के बीच ही लटकता हुआ नजर आ रहा था। निर्मला की तरह शीतल भी बहुत प्यासी थी,,, खुले विचारों की होने के बावजूद भी उसने अब तक गैर मर्द को अपने करीब भी भटकने नहीं दी थी हालांकि उसकी बातों से ऐसा ही लगता था कि वह गैर मर्दों के साथ भी संबंध रखती है लेकिन वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था बल्कि वह इन सब बातों के जरिए अपने मन के दुख को दबा देती थी,,, शुभम के हट्टे-कट्टे शरीर उसकी भोली सूरत और खास करके जब उसके हथियार का कड़कपन सीतल ने अपने नितंबों के बीच में महसूस की तब से वह शुभम की पूरी तरह से दीवानी हो चुकी थी,,, वह किसी भी हालत में शुभम को प्राप्त करना चाहती थी और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहती थी। सुबह-सुबह बाथरूम में नहाते समय उसके जेहन में शुभम का ही ख्याल आ रहा था जिसकी वजह से उसके तगड़े लंड की कल्पना करते हुए शीतल पूरी तरह से गरमा गई,,,, और जब तक वह अपनी बुर में अपनी दो उंगलियां डाल कर अंदर बाहर करते हुए अपना पानी नहीं निकाल दी तब तक उसके मन को तसल्ली नहीं मिली,,। नहाने के बाद वह तैयार होकर,, स्कूल के लिए निकल गई दूसरी तरफ शुभम को अकेले ही स्कूल जाना था क्योंकि आज उसकी नानी की आंखों का ऑपरेशन था और जिसे लेकर,,, उसकी मां अस्पताल जा रही थी। घर से निकलते निकलते अपनी मां से नजरें बजाते हुए निर्मला शुभम को अपनी बाहों में भरकर उसके होठों को चूम ली,,, शुभम के जी में आया कि वह अपनी मां को बाहों में भर कर अपनी दोनों हथेलियों से उसकी गांड को दबोच ले लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाया सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया और दोनों घर से बाहर आकर अलग अलग दिसा मे चले गए,,,,।

स्कूल में जब शुभम पहुंचा और अपनी क्लास की तरफ जा रहा था कि तभी शीतल ने उसे आते देख ली,,, वह अकेला ही था इसलिए उसे अपने पास बुलाई,,,,

क्या हुआ शुभम तुम आज फिर से अकेले ही आ रहे हो तुम्हारी मम्मी कहां है,,,,( शुभम की नजर एक बार फिर से पीतल के खूबसूरत बदन पर घूमने लगी उसे उस दिन की घटना याद आ गई जब वह अचानक ही नीचे झुक कर टिफन उठा रही थी,,,, और वह भी अपने आप ही अचानक ठीक उसके नितंबों से आकर के सट गया,,, उसके भरावदार बड़े-बड़े नितंबों की गर्माहट व अभी भी महसूस करके एकदम से गन गना जाता है। वह घटना भी शुभम के लिए अद्भुत सुख के एहसास कराने वाली कल्पना में रचने के लिए काफी था,,, वह की कल की बात पर ध्यान ना देकर उसकी खूबसूरती के रस को आंखों से ही पीने लगा जब उसकी तरफ से कोई जवाब नहीं मिला तो शीतल मुस्कुरा कर फीर से बोली,,,)

ऐईईईई,,,,, कहां खो गए मैं तुमसे कुछ पूछ रही हूं,,,,

( शीतल की आवाज जैसे ही उसके कानों में गई तो ऐसा लगा कि जैसे उसे किसी ने नींद से जगाया हो वह एकदम से हड़ बड़ाते हुए बोला,,,,,)

ककककक,,,, क्या पूछ रही हो आप मैं ठीक से सुना नहीं,,,,

( शीतल उसकी हड़बड़ाहट देख कर मुस्कुराने लगी,,, और हंसते हुए बोली,,,,,)

अरे सुनोगे कैसे तुम्हारा ध्यान तो किसी और चीज पर है,,,,

( शीतल की बात सुनते ही शुभम झेंप सा गया,,, क्योंकि उसे भी इस बात का पता चल गया कि शीतल को इस बात की खबर हो गई कि वह उनके बदन को ही घूर रहा था,,,, शीतल बात को आगे बढ़ाते हुए बोली।)

मैं बोल रही थी कि तुम आज भी अकेले आए हो तुम्हारी मम्मी कहां है उनकी तबीयत तो ठीक है ना,,,,

मम्मी बिल्कुल ठीक है मैं आपको बताया था ना कि नानी के आंख का ऑपरेशन कराना है इसलिए उन्हें आज अस्पताल लेकर गई है,,,।

ओहहहह,,, तो यह बात है फिर तो आज भी तुम अपना लंच बॉक्स लेकर नहीं आए होंगे।

जी,,,,,

तो एक काम करना रीशेष में फिर से मेरे क्लास में चले आना,,

ठीक है मैम,,,,

गुड बॉय,,,, ( इतना कहकर वह शुभम के सर पर हाथ रखते हुए उसके बालों में,, अपनी उंगलियां घुमा कर मुस्कुराते हुए अपनी क्लास में चली गई,, शुभम वही खड़ा शीतल को क्लास में जाती देखता रहा,,,, और उसकी प्यासी नजरें शीतल की मटकती हुई गांड पर ही टिकी हुई थी जो की बहुत ही कामोत्तेजना का अनुभव करा रही थी।
क्लास में बैठकर शुभम शीतल के बारे में ही सोचता रहा बार-बार उसकी आंखों के सामने उसके बड़े बड़े नितंब मटकते हुए नजर आ रहे थे,,, शुभम औरत की चुदाई कर चुका था इसलिए,,, वह औरत को भोग चुका था,, औरत को भोगने मे किस तरह का अद्भुत सुख का एहसास और मजा आता है इसके बारे में बखूबी जानता था। इसलिए तो शीतल के खूबसूरत बदन के बनावट और उसके उतार चढ़ाव को देखकर उसकी आंखों में नशा उतरने लगा था। उसके मन में भी शीतल को भोगने की इच्छा जागने लगी थी। उसे भी अब रिसेस होने का इंतजार बड़ी बेसब्री से होने लगा। आखिरकार की घंटी बज गई और वहां मन में ढेर सारे अरमान लिए शीतल की क्लास की तरफ जानेलगा

शीतल भी अपनी क्लास में बैठ कर उसका ही इंतजार कर रही थी सभी विद्यार्थी क्लास से बाहर जा चुके थे तभी उसे शुभम क्लास में आता नजर आया और वह खुश हो गई,,,,
लेकिन तभी उससे बोली,,,,

शुभम मैं अपना लंच बॉक्स गाड़ी की डिक्की में ही भूल गई हूं प्लीज तुम जा कर के ले कर आ जाओ,,,, यह लो डीक़्की की चाभी,,,,

( शुभम चाबी लेने के लिए हाथ बढ़ाया और जानबूझकर शीतल अपनी नरम-नरम उंगलियों को उसके हाथ से स्पर्श करा दी जिसका इस पर सोते ही शुभम के बदन में करंट लगने जैसा एहसास होने लगा,,,, वह जल्दी से शीतल के हाथों से चाबी लेकर क्लास के बाहर चला गया,,,, पार्किंग में जाकर वह गाड़ी की डिक्की खोल कर अंदर इधर उधर ढुड़ते हुए उसे प्लास्टिक की थैली मिली जिसमें लंच बॉक्स रखा हुआ था वह हथेली में हाथ डालकर जैसे ही टिफिन को निकालने लगा की थैली में रखे हुए नरम नरम कपड़ों का एहसास उसे होने लगा और वहां उत्सुकतावश उन कपड़ों को उस हथेली में से बाहर निकाल कर देखा तो उसके बदन में उत्तेजना की लहर दोड़ने लगी,,, ऊसके लंड. में एकाएक तनाव आने लगा। वह उन कपड़ो को हाथों में लेकर ध्यान से देखने लगा उसे समझते देर नहीं लगी कि वह नरम मुलायम कपड़ा शीतल मैडम की पैंटी और ब्रा थी। मरून रंग की ब्रा और पैंटी एकदम मखमल के जैसे मुलायम थी। वह बार बार उन कपड़ों पर अपनी उंगलियों से पकड़कर सहलाता,,,, वह आज दूसरी बार किसी औरत की ब्रा और पैंटी को हाथों में ले रहा था इससे पहले वह अपनी मां की पैंटी को हाथों में ले चुका था जिसका एहसास अब तक उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ा दे रहा था,,,, आज दूसरी बार उसके हाथों में किसी औरत की पैंटी और ब्रा दोनों आई थी,,,, इसलिए उसके लंड का तनाव कुछ ज्यादा ही बढ़ चुका था। वह शीतल की ब्रा को हाथों में लेकर के उसके कप साइज को अपनी हथेलियों से नापता हुआ यह सोच रहा था कि,, शीतल की बड़ी-बड़ी गोल चूचियां इतने छोटे से कप. में कैसे आती होगी,,,, वाह कल्पना में ही शीतल की नंगी चूचियों को देख कर मस्त होने लगा,,,, कामातुर हो चुका शीेतल की ब्रा के कप को अपनी मुट्ठी में दबोच कर ये एहसास अपने बदन को कराता कि वह शीतल की चुचियों को अपनी हथेली में दबा रहा है,,,, शुभम पूरी तरह से उत्तेजना से भर चुका था वह शीतल की पैंटी को हाथों में लेकर,, पेंटी के चारों तरफ अपनी उंगलियों का स्पर्श करा कर उत्तेजित हुआ जा रहा था। पैंटी की साइज देखकर वह शीतल के भरावदार नितंबो की कल्पना करके मस्त हुआ जा रहा था। उसे देखकर वह मन ही मन में सोच रहा था कि शीतल की बड़ी-बड़ी गांड ईसके अंदर कैसे समाती होगी,,,,। शुभम की कल्पना करने की शक्ति भी बड़ी अद्भुत थी वह कल्पना करते हुए शीतल को खुद ही अपनी पैंटी उतारता हुआ देख रहा था,,,, और उसकी बुर जो की कचोरी की तरह थोड़ी हुई थी जिस पर बालों का नामोनिशान तक नहीं था इस तरह की कल्पना करते हुए उसके लंड से पानी की दो चार बूंदें टपक गई। शुभम से बिल्कुल भी रहा नहीं जा रहा था,,,, वह एक बार चारों तरफ नज़र घुमा कर इस बात की तसल्ली कर लिया कि कोई यहां देख तो नहीं रहा है जब उसे पूरा यकीन हो गया कि किसी की भी नजर उसकी तरफ बिल्कुल भी नहीं है तो वह डिक्की में झुक कर,, शीतल की पेंटिं को सीधे ही अपनी नाक पर लगाकर खास करके उस जगह पर जिस जगह पर शीतल की बूर होती है वह जोर से नथुनों से उसकी खुशबू अपने अंदर भरने लगा,,, पेंटी से आ रही शीतल कीे बुर की मादक खुशबू उसके बदन में कामोत्तेजना का सैलाब भर दी,,, पेंट के अंदर उसका लंड ठुनकी मारने लगा,,,,, वह जितना हो सकता था उसने जोर जोर से पैंटी की खुशबू अपने नथुनों के जरिए अपने सीने में उतारने लगा,,, शुभम एक दम मस्त हो चुका था उसकी इच्छा उस स्थान को जीभ से चाटने की कर रही थी लेकिन उसे कुछ ज्यादा ही देर हो चुकी थी इसलिए उसका जाना जरूरी था वह जल्दी से ब्रा और पैंटी जिस तरह से हथेली में पड़ा था उसी तरह से रख कर,,, डिक्की बंद कर दिया और क्लास की तरफ जाने लगा,,,,


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RE: Sex kahani अधूरी हसरतें - by sexstories - 03-31-2020, 03:46 PM

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